गरीबी : जिम्मेदार कौन
(अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
(डेर श्पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ)
प्रश्न’—आप डच चित्रकार विन्सेंट वॉन गॉग के बहुत बड़े प्रशंसक है। जिसका एक ही कान था। आप कुछ इस तरह कहते है कि, ‘’उसने आत्महत्या कर ली क्योंकि जो कुछ वह चित्रित करना चाहता था, वह उसने चित्रित कर लिया था। तो पूरी दूनिया को यक आत्महत्या लगती है। परंतु मुझे नहीं। मुझे तो यह प्राकृतिक अंत लगता है। चित्र पूरा हुआ जीवन पूरा हुआ।
ओशो—हां, निश्चित ही।
प्रश्न—क्या आप अपनी नब्बे कारों की कतार में वॉन गॉग का कोई चित्र भी शामिल करना चाहेंगे?
ओशो—नहीं मैं अपने पास कुछ भी नहीं रखता........
प्रश्न—किसी व्यक्ति को मरना चाहिए या नहीं इसका निर्णय कौन करेगा—हो सकता है यह प्रश्न आपके लिए जरूरी नहीं हो, परंतु लोगों के लिए, किसे निर्णय करना चाहिए? डाक्टर, वकील या राजनेताओं की कोई समिति?
ओशो—निश्चित ही राजनेता तो नहीं। क़ानूनविदों का जीवन और मृत्यु से क्या लेना-देना? परंतु डॉक्टरों को इस हिपोक्रेटिक शपथ से कि उनका काम किसी भी स्थिति में बचाने का है; स्वतंत्र होना चाहिए। उन्हें इसकी इजाजत होना चाहिए.....उनका कार्य मात्र सेवा है, किसी भी स्थित में। यदि व्यक्ति अर्थपूर्ण जिंदगी जीने के योग्य है, यदि वह अभी भी जीना चाहता है। यदि वह जीवन की कामना से भरा है, उसकी मदद करो। परंतु व्यक्ति का जीवन में रस नहीं है और वह कह रहा है कि वह समय से जब वह शरीर से मुक्त होना चाहता है....
प्रश्न–आप सतत कहते रहते है कि आप किसी को प्रभावित नहीं करना चाहते, परंतु आप मोटी-मोटी पुस्तकें लिखे जा रहे है। और साक्षात्कार भी।
ओशो—जो मैं कर रहा हूं वह मैं करता रहूंगा, परंतु मैं किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं।
प्रश्न–परंतु क्या आप नहीं समझते कि जो कुछ आप कर रहे है उससे लोग डरते है......? तीर्थ ने कहा है कि, ‘’यदि ओशो मुझे कहें तो मैं तत्काल बंदूक से अपने आपको मार डालूंगा।‘’ क्या ये शैतानी प्रभाव है?
ओशो—जो भी वह कह रहा है यह उसकी तरफ से है। वह यह नहीं कह रहा है कि मैं ऐसा करने को कहने वाला हूं, क्योंकि मैं किसी को एक पानी का गिलास या चाय का कप पाने को भी नहीं कहता।
प्रश्न—लोगों को प्रभावित करने के कई दूसरे कारण है, मात्र.....
ओशो—नहीं मैं किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करता। मैं लगातार उन्हें सतर्क कर रहा हूं, कि मुझसे प्रभावित न हो। हो सकता है कि मैं गलत होऊं। जो वह व्यक्ति कह रहा है, यह उसकी श्रद्धा है।
प्रश्न—आपके द्वारा लिखित एक पुस्तक है। उसका शीर्षक है ‘’डाइंग फार इनलाइटमेंट’’.....
ओशो—वह एकदम ठीक है।
प्रश्न—हां, परंतु क्या आप नहीं सोचते कि लोग इससे प्रेरित हो सकते है; और इसका आशय क्या है?
ओशो—नहीं उस मृत्यु का अर्थ है अहंकार की मृत्यु।
प्रश्न—मृत्यु और बुद्धत्व मृत्यु के द्वारा।
ओशो—हां, इसका मतलब है अहंकार की मृत्यु......न कि तुम्हारी मृत्यु।
प्रश्न—दूसरी बात यह कि आप लोगों की अंतरात्मा को समाप्त कर रहे है।
ओशो—हां, अंतरात्मा जो समाज द्वारा निर्मित की गई है; क्योंकि इसी तरह से उसकी आत्म’ को स्वतंत्र किया जा सकता है। और ये दो अलग-अलग चीजें है। सिवाय फ्रैंच भाषा के, फ्रैंच भाषा में एक ही शब्द है, अंतरात्मा और आत्मा दोनों के लिए। परंतु ये दो अलग चीजें है। आत्मा अपने साथ लाता है और अंतरात्मा समाज, परिवार, शिक्षा और दूसरे सभी लोगों द्वारा दी जाती है।
प्रश्न—तो, यदि वह पूरी तरह से मुक्त हो, यदि कोई पूरी तरह से अंतरात्मा से मुक्त है, हो सकता है वह नुकसान दायक काम करे।
ओशो—क्या।
प्रश्न—क्या यह अंतरात्मा नहीं है जो लोगों को दूसरे लोगों को नुकसान पहुंचाने से रोकती है?
ओशो—यह अंतरात्मा है जिस कारण पूरी दूनिया में युद्ध होते रहे है और लाखों लोगों को मारा गया।
प्रश्न—हो सकता है, कि यह दूसरी तरह की अंतरात्मा हो।
ओशो—सभी अंतरात्माएँ: मुसलमानों ने किया, हिंदुओं ने किया, ईसाइयों ने किया। तीन हजार सालों में पाँच हजार युद्ध हुए पूरी दुनिया में, और वे अभी भी तीसरे व निर्णायक विश्व युद्ध की तैयारी कर रहे है। ये तुम्हारे राष्ट्रपतियों, तुम्हारे प्रधानमंत्रियों, नेताओं, पोप, पुजारियों और अंतरात्माएँ है। आत्मा से भरा व्यक्ति कुछ भी गलत नहीं कर सकता। यह असंभव है।
प्रश्न—क्या मदर टेरेसा अंतरात्मा से भरी महिला है? मैं मात्र नाम का उदाहरण दे रहा हूं क्योंकि मेरे पास उद्धरण है.......
ओशो—तुम किसी बेहतर व्यक्ति को नहीं ढूंढ सकते?
प्रश्न—प्रारंभ के लिए यह उद्धरण बहुत बढ़िया है। इस उद्धरण में आप तो उन्हें अपराधी और मूर्ख कहते है.......।
ओशो—हां।
प्रश्न—क्या आप सोचते है कि एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो दुःखी लोगों की मदद करता है, उसे पुकारने का यक ठीक ढंग है?
ओशो—जो लोग दुखी लोगों की मदद करते है, वे उनके दुखों को जिंदा रखते है।
प्रश्न—कम से कम वे लड़ने की कोशिश कर रहे है।
ओशो—नहीं वे अपनी प्रसिद्धि के लिये दुखों मा मात्र शोषण कर रहे हे। दुःख पूरी तरह से समाप्त किये जा सकते है। परंतु ये मदर टेरेसा द्वारा समाप्त किये जा सकते। मदर टेरेसा और अनाथ चाहती है। मदर टेरेसा और अधिक गरीब लोग चाहती है। ताकि वह उनका धर्मांतरण कैथोलिक धर्म में कर सके। यह शुद्ध राजनीति है। सभी धर्म शोषण कर रहे है। और एक ही खेल-खेल रहे है। मैं इन धर्मों में किसी तरह का भेद नहीं करता।
प्रश्न—क्या आप दयालु होने को एक गुण की तरह.......
ओशो—नहीं, कतई नहीं, मैं सिर्फ एक बात मानता हूं, यदि तुम्हारे पास बहुत अधिक है—अनंत जीवन, आनंद, कुछ भी—और तुम इसे बांटना चाहते हो, और यह बांटना तुम्हारे लिये आनंद है, तो बांटो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस के साथ बांटते हो। दूसरा व्यक्ति अमीर है या गरीब, हिंदू है या मुसलमान, पूर्वी है या पश्चिमी। यदि तुम खुशबू से भरे हो, तुम इसे बांटोगे। कोई और रहा नहीं है। जब बादल पानी से भरे होते है, तो बरसतें है। मैं गरीबों की सेवा नहीं सिखाता हूं, मैं गरीबी को समाप्त करना सिखाता हूं। और हमारे पास सभी संसाधन है कि हम गरीबी को समाप्त कर दें। परंतु राजनेता ऐसा नहीं होने देंगे। पंडित नहीं होने देंगे। क्योंकि ये दोनों ही गरीबी के साथ समाप्त हो जायेंगे। याद रखो।
प्रश्न—‘’हम’’ कौन है—मानवता या ओशो के लोग?
ओशो—मेरा मतलब है मानवता के प्रतिभावान लोग। मैं अभी भी इस तथ्य को नहीं स्वीकार सकता कि अंतरात्मा की समाप्त करना मानवता के लिए बहुत बड़ा कदम होगा।
अंतरात्मा ने अभी तक जो कुछ किया है, वह गंदा है, विध्वंसात्मक है। हमें बेहतर विचार चाहिए, और वह है चेतना। चेतना तुम्हारे होने का ध्यान द्वारा शुद्धिकरण है। यही मेरा सारा काम है। तब चेतना से भरा व्यक्ति जो भी करता है वह सही है। तब उसके लिए चुनाव का कोई सवाल नहीं है।
प्रश्न—वह किसी की हत्या कर सकता है?
ओशो—यदि वह समझेगा कि यह सही है, तो वह हत्या कर सकता है।
प्रश्न—इसे जैसे हम समझे है, वह सभ्यता से बहुत दूर है।
ओशो—तुम सभ्य नहीं हो। और सभ्यता कहां है?
प्रश्न—ठीक यहां........अमरीका में।
ओशो—कही भी सभ्यता का अस्तित्व नहीं है। यह मात्र ख्याल है जिसकी मानवता आशा करती है। जो कुछ है वह बर्बर है, कपड़े में लिपटा हुआ, मुखौटे में छुपा हुआ, आदमी का असली चेहरा। परंतु सच्ची सभ्यता का अस्तित्व नहीं है।
प्रश्न—क्या मैं आपको ठीक समझा हूं कि कोई भी जो चेतना के अंतिम शिखर पर पहुंच जाता है यदि उसे ठीक लगे तो वह किसी की हत्या कर सकता है?
ओशो—मैं कह रहा हूं, कि जो व्यक्ति पूरी तरह से चेतना को उपल्बध हो गया है वह कुछ गलत कर ही नहीं सकता। जो भी वह करता है वह सही है। वहां सही और गलत को चुनने का कोई सवाल ही नहीं है।
ओशो
दि लास्ट टेस्टामेंट, भाग—1
डेर श्पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ
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