देश और धर्म: झूठी लकीरें—ओशो
(अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
प्रश्न--युद्ध के अलावा, नैतिक व राजनैतिक दृष्टि से आप हिटलर के बारे में क्या सोचते है?
ओशो—नैतिक ढंग से वह महात्मा गांधी की तरह ही नैतिक था।
प्रश्न–महात्मा गांधी की तरह।
ओशो—हां, क्योंकि मैं दोनों को बहुत अनैतिक मानता हूं। सच तो यह है कि वह महात्मा गांधी से अधिक हिंदू था।
प्रश्न—किस तरह?
ओशो—उसके जीवन में। उसके जीने के ढंग में.......।
प्रश्न—क्योंकि वह शाकाहारी था.... ?
ओशो—वह शाकाहारी था।
प्रश्न—परंतु वह अहिंसावादी नहीं था, जैसे कि महात्मा गांधी थे।
ओशो—महात्मा गांधी भी अहिंसावादी नहीं थे। थोड़ा इंतजार करो; पहले मुझे हिटलर की बात खत्म करने दो। वह शाकाहारी था। वह ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाला था, जल्दी सोने चला जाता था। वह लगभग पूरे जीवन कुंवारा रहा—मात्र मरने से तीन घंटे पहले उसने शादी की। वह शराबी नहीं था, वह धूम्रपान नहीं करता था। वह सभी संभव आयामों में पाक दामन था, और उसने अनुशासित जीवन जीया, जैसे की संत आश्रमों में जीते है।
तुम पूछते हो कि गांधी अहिंसावादी थे। वह राजनीतिक चाल मात्र थी—परंतु वे अहिंसावादी नहीं थे। उन्होंने घोषणा की थी कि भारत की आजादी के बाद फ़ौजें समाप्त कर दी जायेगी। परंतु जब भारत आजाद हुआ और उनसे पूछा गया कि फ़ौजों को समाप्त किया जाये। वे मौन रहे। वे एक चालाक व्यक्ति थे। उनके सचिव ने कहा कि वो दिन उनके मौन रहने का है।
प्रश्न—आप यहूदियों को पसंद करते है या नहीं?
ओशो—मैं यहूदियों को प्यार करता हूं, पसंद की क्या बात है? मेरे लोगों में सबसे अधिक यहूदी है। मेरे लोगों में लगभग चालीस प्रतिशत यहूदी है।
प्रश्न—इसका मतलब हुआ कि आपका देशों या जातियों को लेकिर कोई पूर्वाग्रह नहीं है?
ओशो—मैं देशों या धर्मों में विश्वास नहीं करता। मैं दो लोगों के बीच किसी तरह की लकीर नहीं खींचता। और यदि मैंने कोई ऐसा चुटकला सुनाया है जो तुम्हें यहूदियों के खिलाफ लगता है, तो मैंने ऐसे चुटकुले भी बालें है जो हिंदुओं के खिलाफ है, मुसलमानों के खिलाफ है, ईसाइयों के खिलाफ है। मैंने ऐसे चुटकुले भी कहे है जो मेरे खिलाफ जाते है। चुटकुले मात्र चुटकुले होते है। वो कोई दार्शनिक मत नहीं होता।
प्रश्न—आपने कहा कि आपका धर्म पहला और आखरी धर्म है। तो आपके बाद किसी धर्म की कहीं भी जरूरत नहीं होगी?
ओशो—हां।
प्रश्न—यह आपकी मृत्यु के बाद भी लागू होता है?
ओशो—मैंने इसे पहला और आखरी धर्म इसलिए कहा है क्योंकि मैं पुराने धर्मों को प्रमाणिक धर्म नहीं मानता। वे धर्म लगते है, परंतु वे धर्म है नहीं।
प्रश्न—क्योंकि वे गरीबों के लिए थे?
ओशो—नहीं, क्योंकि वे धर्म अंधविश्वासी थे। एक भी धर्म परमात्मा का प्रमाण देने में सक्षम नहीं हुआ है। एक भी धर्म स्वर्ग और नर्क का प्रमाण देने में सक्षम नहीं हुआ है।
प्रश्न—इसका मतलब नहीं होता है कि परमात्मा नहीं है, यदि कोई इसका प्रमाण नहीं दे सके।
ओशो—इसका वे मतलब नहीं है; इसका बस यही मतलब है कि तुम उसकी पूजा नहीं किये जा सकते जिसका कोई प्रमाण पूरी मनुष्य जाति के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न—तो, बहारी लोगों के लिए आपके धर्म को इस तरह कहा जा सकता है; अपने अहंकार को खोजों, अपने आपको खोजों।
ओशो—नहीं तुम्हारे अंहकार को नहीं। परंतु स्वयं की चेतना। और इसमे बहुत बड़ा फर्क है। मात्र फर्क ही नहीं बल्कि ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत है। अहंकार झूठा भ्रम है। जो समाज पैदा करता है.....तुम यहूदी हो, तुम मुसलमान हो, तुम नाझी हो, तुम साम्यवादी हो, तुम इस खानदान के हो, यह तुम्हारा पवित्र शास्त्र है। यह तुम्हारा नाम है। तुम्हें अपनी प्रथाओं और परंपराओं से जुड़े रहना है।
ये सभी बातें अहंकार निर्मित करती है। इन सब चीजों से तुम्हारा अहंकार निर्मित होता है.....जैसे कि सम्मिश्रण। तुम्हारी चेतना समाज, चर्च, शिक्षा, खानदान या किसी के द्वारा नहीं दी गई है। तुम्हारी चेतना तुम जन्म के साथ लेकर आते हो। यह अस्तित्वगत है।
प्रश्न–इस कारण आप यह कहते है—और संभवतया आपने ऐसा किया है—इसी कारण आप कहते है; ‘’मुझे तुम्हारे अहंकार गलाने—मतलब अपने लोगों के अहंकार।‘’
ओशो—हां।
प्रश्न—तो, बीस या तीस लोग जो ठीक मेरे पीछे बैठे है उनका कोई अहंकार नहीं है?
ओशो—तुम्हीं देख लो और जानों।
प्रश्न—अच्छा, वे ऐसे दिखते नहीं है, परंतु अभी भी आप उन पर काम कर रहे है, नहीं क्या? मेरा आशय है, यदि यह आपका लक्ष्य है, आपका निशाना....कब आप, एक शिक्षक, पहचानता है कि किसी का अहंकार गल गया, खो गया, साफ हो गया, या कुछ भी हुआ हो?
ओशो—हां, मैं तत्काल पहचान जाता हूं।
प्रश्न—आप जान जाते है?
ओशो—हां।
प्रश्न—आपके शिष्य जान जाते है? (उपस्थित लोगों से) आप सब लोगों ने कब जाना कि आपका अहंकार बिदा हो गया?
ओशो—मेरे शिष्य विकास के कई चरण में है। कुछ का अहंकार पूरी तरह बिदा हो गया है। कुछ का बस बिदा होने की सीमा पर है, कुछ का अहंकार अभी भी बचने का प्रयास कर रहा है, कुछ प्रयास कर रहे है कि इसे जाने नहीं दिया जाये। तो वे कई चरणों में है। परंतु मैं उन्हें यह बताने का प्रयास करता हूं कि वे कहां है। और वहां से उन्हें कहां जाना है।
प्रश्न–लोगों के ऊपर प्रयोग की इस विधि को क्या आप सर्वशक्तिमान की विधि कहलाना पसंद करेंगे?
ओशो—नहीं, मैं उन्हें अनुसरण करने को नहीं कह रहा हूं। मैं मात्र अपना अनुभव उनके साथ बांट रहा हूं। मैंने उन्हें यहां नहीं बुलाया, वे स्वयं अपने से यहां आएं है। मेरे साथ रहने का यह उनका अपना निर्णय है; यह मेरा निर्णय नहीं है। कि उन्हें मेरे साथ रहना चाहिए।
प्रश्न—तो, आप किस तरह से, लोगों को मनाते है कि वे अपना परिवार, संपति, घर दे देते है..... ?
ओशो—मैं नहीं मनाता।
प्रश्न—परंतु आपके पास कोई तो योजना है कि वे यहां आ रहे है। मेरा मतलब है, आपके पास होने के लिए वे सब कुछ दे देते है। वे अपना व्यक्तित्व भी दे देते है। और इसके बदले में उन्हें क्या मिल रहा है?
ओशो—मेरे आस पास जो कुछ भी वह महसूस कर रहे है। उसके लिए वह स्वयं ही सब कुछ छोड़ने को तैयार है। परंतु मैंने किसी एक व्यक्ति को भी अपना परिवार या धंधा छोड़ने के लिये नहीं कहा है। मैं त्याग के पक्ष में नहीं हूं। पुराने सभी धर्म त्याग के पक्ष में है। वे लोगों को कहते रहे है कि परिवार छोड़ो, ब्रह्मचारी रहो। वे लोगों को कहते है कि आश्रमों में आ जाओं। वे लोगों को कहते है कि समाज को छोड़ दो इसके बहार आ जाओं। एकांत वास करों...वे समाज से लोगों को बहार निकाल रहे है। मैंने कभी किसी एक व्यक्ति को भी मेरे आदेश अनुसार कुछ करने को नहीं कहां। परंतु यदि मेरे साथ रहते हुए उन्हें ऐसा लगता है कि वह कुछ बेवकूफियों ढोये चले आ रहे है और उन्हें वे छोड़ते है तो यह उनका अपना मामला है।
प्रश्न–आपके अनुयायियों में बहुत ज्यादा संख्या में पश्चिमी सभ्यता से लोग आ रहे है। अमेरिका से, यूरोप से, परंतु कोई एकाध ही आपके अपने गृह देश, शायद ही कोई भारतीय, यहां आ रहा है। क्या मैं गलत हूं?
ओशो—भारत मरा हुआ देश है।
प्रश्न–शारीरिक या मानसिक?
ओशो—दोनों।
प्रश्न--आर्थिक रूप से निश्चित ही। एक देश इतनी महान सभ्यता रखता हो, आप उसे भी मानसिक रूप से मरा हुआ मानते है?
ओशो—यह कभी था, परंतु दो हजार सालों की गुलामी......
प्रश्न–कर के मामले में क्या हुआ, उसमें कुछ प्रगति हुई?
ओशो—मुझे पता नहीं, क्योंकि मैंने कभी कोई कर नहीं दिया। मेरी कोई आमदनी नहीं है।
प्रश्न–आपकी कोई आमदनी नहीं है?
ओशो—नहीं कोई आमदनी नहीं है।
प्रश्न–फिर आप कैसे जीते है?
ओशो—मेरे मित्र.....मैं उनका मेहमान हूं। मैं पैंतीस सालों से मेहमान हूं—सच तो यह है कि पूरा जीवन। शुरूआत में मैं अपने परिवार में मेहमान था, और उसके बाद मैं अन्य परिवारों में मेहमान हूं।
ओशो
लास्ट टेस्टामेंट
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