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गुरुवार, 7 मार्च 2013

हर चक्र की अपनी नींद—ओशो

सहस्‍त्रार को छोड़ कर प्रत्‍येक चक्र की अपनी नींद है। सातवें चक्र में बोध समग्र होता है। यह विशुद्ध जागरण की अवस्‍था है। इसीलिए कृष्‍ण गीता में कहते है कि योगी सोता नहीं। योगी का अर्थ है जो अपने अंतिम केंद्र पर पहुंच गया। अपनी परम खिलावट पर जो कमल की भांति खिल गया। वह कभी नहीं सोता। उसका शरीर सोता है। मन सोता है। वह कभी नहीं सोता। बुद्ध जब सो भी रहे होते है तो अंतस में कहीं गहरे में प्रकाश आलोकित रहता है। सातवें चक्र में निद्रा का कोई स्‍थान नहीं होता। बाकी छ: चक्रों में यिन और यैंग, शिव और शक्‍ति, दोनों है। कभी वे जाग्रत होते है और कभी सुषुप्‍ति में—उनके दोनों पहलू है।

      जब तुम्‍हें भूख लगती है तो भूख का चक्र जाग्रत हो जाता है। यदि आपने कभी उपवास किया तो आप चकित हुए होंगे। शुरू में पहले दो या तीन दिन भूख लगती है। और फिर अचानक भूख खो जाती है। यह फिर लगेगी और फिर समाप्‍त हो जाएगी। फिर लगेगी......ओर तुम कुछ भी नहीं खा रहे हो। इसलिए तुम यह भी नहीं कह सकते हो कि भूख मिट गई। क्‍योंकि मैंने कुछ खा लिया है। तुम उपवास किए हो, कभी-कभी तो भूख जोरों से लगती है। तुम तड़पा जाते हो। लेकिन यदि तुम बेचैन नहीं  होते हो तो यह समाप्‍त हो जायेगी। चक्र सो गया है। दिन में फिर एक समय आएगा जब यह जगेगा। और फिर सो जायेगा।
      काम केंद्र में भी ऐसा ही होता है। काम-वासना जगती है, तुम उसमें उतरते हो और संपूर्ण वासना तिरोहित हो जाती है। चक्र सो गया है। यदि तुम बिना दमन किए ब्रह्मचर्य का पालन करो तो तुम हैरान रह जाओगे। यदि तुम काम वासना का दमन न करो और केवल साक्षी रहो....तीन महीने के लिए यह प्रयोग करो—बस साक्षी रहो। जब काम वासना उठे, शांत बैठ जाओ। इसे उठने दो। इसे द्वार खटखटाने दो, आवाज सुनो, ध्‍यान में सुनो लेकिन इसके साथ बह मत जाओ। इसे उठने दो इसे दबाओ मत। इसमें लिप्‍त मत होओ। साक्षी बने रहो। और तुम जान कर चकित रह जाओगे। कभी-कभी वासना इतनी तीव्रता से उठती है कि लगता है पागल हो जाओगे। और फिर स्‍वय: ही तिरोहित हो जाएगी। जैसे कभी थी ही नहीं। वह फिर लौटेगी, फिर चली जाएगी।
      चक्र चलता रहता है। कभी-कभी दिन में वासना जगेगी। और फिर रात में सो जाएगी। और सातवें चक्र के नीचे सब छ: चक्रों में ऐसा ही होता है।
      निद्रा का अपना अगल चक्र नहीं है। लेकिन सहस्‍त्रार के अतिरिक्‍त प्रत्‍येक चक्र में इसका अपना स्‍थान है। तो एक बात और समझ लेने जैसी है—जैसे-जैसे तुम ऊपर के चक्रों में प्रवेश करते जाओेगे तुम्‍हारी नींद की गुणवता बेहतर होती जाएगी क्‍योंकि प्रत्‍येक चक्र में गहरी विश्रांति का गुण है। जो व्‍यक्‍ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है उसकी नींद गहरी न होगी। उसकी नींद उथली होगी क्‍योंकि यह दैहिक तल पर जीता है। भौतिक स्‍तर पर जीता है। मैं इन चक्रों कि व्‍याख्‍या इस प्रकार भी कर सकता हूं।
      प्रथम, भौतिक—मूलाधार।
      दूसरा, प्राणाधार—स्‍वाधिष्‍ठान।
      तीसरा, काम या विद्युत केंद्र—मणिपूर।
      चौथा,  नैतिक अथवा सौंदयपरक—अनाहत।
      पांचवां, धार्मिक—विशुद्ध।
      छठा,   आध्‍यात्‍मिक—आज्ञा।
      सातवां, दिव्‍य—सहस्‍त्रार
      जैसे-जैसे ऊपर जाओगे तुम्‍हारी नींद गहरी हो जाएगी। और इसका गुणवता बदल जायेगी। जो व्‍यक्‍ति भोजन ग्रसित है और केवल खाने के लिए जीता है।  उसकी नींद बेचैन रहेगी। उसकी नींद शांत न होगी। उसमें संगीत न होगा। उसकी नींद एक दु:ख स्वप्न होगी। जिस व्‍यक्‍ति का रस भोजन में कम होगा और जो वस्‍तुओं की बजाएं व्‍यक्‍तियों में अधिक उत्‍सुक होगा, लोगों के साथ जुड़ना चाहता है। उसकी नींद गहरी होगी। लेकिन बहुत गहरी नहीं। निम्‍नतर क्षेत्र में कामुक व्‍यक्‍ति की नींद सर्वाधिक गहरी होगी। यही कारण है कि सेक्‍स का लगभग ट्रैक्‍युलाइजर, नशे की तरह उपयोग किया जाता है। यदि तुम सो नहीं पार रहे हो तो और तुम संभोग में उतरते हो तो शीध्र ही तुम्‍हें नींद आ जायेगी। संभोग तुम्‍हें तनाव मुक्‍त करता है। पश्‍चिम में चिकित्‍सक उन सबको सेक्‍स की सलाह देते है जिन्‍हें नींद नहीं आ रहा है। अब तो वे उन्‍हें भी सेक्‍स की सलाह देते है जिन्‍हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा है। क्‍योंकि सेक्‍स तुम्‍हें विश्रांत करता है। तुम्‍हें गहरी नींद प्रदान करता है। निम्‍न तल पर सेक्‍स तुम्‍हें सर्वाधिक गहरी नींद देता है।
      जब तुम और ऊपर की और जाते हो, चौथे अनाहत चक्र पर तो नींद अत्‍यंत निष्‍कंप, शांत, पावन व परिष्‍कृत हो जाती है। जब तुम किसी से प्रेम करते हो तो तुम अत्‍यंत अनूठी विश्रांति का अनुभव करते हो। मात्र विचार कि कोई तुम्‍हें प्रेम करता है। और तुम किसी से प्रेम करते हो। तुम्‍हें विश्रांत कर देता है। सब तनाव मिट जाते है। एक प्रेमी व्‍यक्‍ति गहरी निद्रा जानता है। धृणा करो तो तुम सो न पाओगे। क्रोध करो तो तुम सो न पाओगे। तुम नीचे गिर जाओगे। प्रेम करो, करूणा करो। और तुम गहरी नींद आएगी।
      पांचवें चक्र के साथ नींद लगभग प्रार्थना पूर्ण बन जाती है। इसी लिए सब धर्म लगभग आग्रह करते है कि सोने से पहले तुम प्रार्थना करो। प्रार्थना को निद्रा के साथ जोड़ दो। प्रार्थना के बिना कभी मत सोओ। ताकि निद्रा में भी तुम्‍हें उसके संगीत का स्‍पंदन हो। प्रार्थना की प्रतिध्‍वनि तुम्‍हारी नींद को रूपांतरित कर देती है।
      पांचवां चक्र प्रार्थना है—और यदि तुम प्रार्थना कर सकते हो तो और अगली सुबह तुम चकित होओगे। तुम उठोगे ही प्रार्थना करते हुए। तुम्‍हारा जागना ही एक तरह की प्रार्थना होगी। पांचवें चक्र में नींद प्रार्थना बन जाती है। यह साधारण नींद नहीं रहती।
      तुम निद्रा में नहीं जा रहे। बल्‍कि एक सूक्ष्‍म रूप से परमात्‍मा में प्रवेश कर रहे हो। निद्रा एक द्वार है जहां तुम अपना अहंकार भूल जाते हो। और परमात्‍मा में खो जाना आसान होता है। जो कि जाग्रत अवस्‍था में नहीं हो पाता। क्‍योंकि जब तुम जागे हुए होते हो तो अहंकार बहुत शक्‍तिशाली होता है।
      जब तुम गहरी निद्रावस्‍था में प्रवेश कर जाते हो तुम्‍हारी आरोग्‍यता प्रदान करने वाली शक्‍तियों की क्षमता सर्वाधिक होती है। इसीलिए चिकित्‍सक का कहना है कि यदि कोई व्‍यक्‍ति बीमार है और सो नहीं पाता तो उसके ठीक होने की संभावना कम हो जाती है। क्‍योंकि आरोग्‍यता भीतर से आती है। आरोग्‍यता तब आती है। जब अहंकार का आस्‍तित्‍व बिलकुल नहीं बचता।  जो व्‍यक्‍ति पांचवें चक्र—प्रार्थना के चक्र तक पहुंच गया है। उसका जीवन एक प्रसाद बन जाता है। जब वह चलता है तो उसकी भाव भंगिमाओं में आप एक विश्रांति का गुण पाओगे।
      आज्ञा चक्र, अंतिम चक्र है जहां नींद श्रेष्‍ठतम हो जाती है। इसके पार नींद की आवश्‍यकता नहीं रहती, कार्य समाप्‍त हुआ। छटे चक्र तक निद्रा की आवश्‍यकता है। छठे चक्र में निद्रा ध्‍यान में रूपांतरित हो जाती है। प्रार्थना पूर्ण ही नहीं,ध्‍यानपूर्ण।
      क्‍योंकि प्रार्थना में द्वैत है। मैं और तुम, भक्‍त और भगवान। छठवें में द्वैत समाप्‍त हो जाता है। निद्रा गहन हो जाती है। इतनी जितनी की मृत्‍यु। वास्‍तव में मृत्‍यु और कुछ नहीं बल्‍कि एक गहरी नींद है और कुछ नहीं बल्‍कि एक छोटी-सी मृत्‍यु है। छठे चक्र के साथ नींद अंतस की गहराई तक प्रवेश हो जाती है। और कार्य समाप्‍त हो जाता है।
      जब तुम छठे से सातवें तक पहुंचते हो तो निद्रा की आवश्‍यकता नहीं रहती।
      तुम द्वैत के पार चले गए हो। तब तुम कभी थकते ही नहीं। इसलिए निद्रा की आवश्‍यकता नहीं रहती है।
      यह सातवीं अवस्‍था विशुद्ध जागरण की अवस्‍था है।
ओशो
दि डिवाइन मैलडी




6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

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  2. Osho ji ki sari bate pravchan sab kuch yanha isi trah hindi me rakho.plz

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