सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि:-मैडम
ब्लावट्स्की—
(हवा
का एक झोंका
है ब्लावट्स्की।
और कोई उससे
बहुत महानतर
शक्ति उस पर
आविष्ट हो गई
है: और वह हवा
का झोंका उस
सुगंध को ले
आया है।)
इस
जगत में जो भी
जाना लिया
जाता है। वह
कभी खोता नहीं
है। ज्ञान के खोने
का कोई उपाय
नहीं है। न
केवल शास्त्रों
में संरक्षित
हो जाता है
ज्ञान, वरन
और भी गुह्म
तलों पर ज्ञान
की सुरक्षा और
संहिता निमित
होती है। शास्त्र
तो खो सकते
है। और अगर
सत्य शास्त्रों
में ही हो तो
शाश्वत नहीं
हो सकता। शास्त्र
तो स्वयं भी क्षणभंगुर
है। इसलिए
शास्त्र
संहिताएं नही
है। इस बात को
ठीक से समझ
लेना जरूरी
है। तभी ब्लावट्स्की
की यह सूत्र
पुस्तिका
समझ में आ
सकती है।
ऐसा
बहुत पुराने
समय में भारत
ने भी माना
था। हमने भी
माना था कि
वेद संहिताओं
का नाम नहीं है।
शास्त्रों
का नाम नहीं
है। वरन वेद
उस ज्ञान का
नाम है, जो
अंतरिक्ष में , आकाश में
संरक्षित हो
जाता है। जो
इस अस्तित्व
के गहरे अंतस्तल
में ही छिप
जाता है। और
होना भी ऐसा
ही चाहिए। बुद्ध
अगर बोले और
वह केवल
किताबों में
लिखा जाए तो
कितने दिन
टिकेगा। और
बुद्ध का बोला
हुआ अगर अस्तित्व
के प्राणों
में ही न समा
जाए तो अस्तित्व
ने उसको स्वीकार
ही नहीं किया।
करोड़ों-करोड़ों
वर्ष में कोई
व्यक्ति
बुद्धत्व को
उपल्बध होता
है। वह जो जानता
है, वह इस जगत का
जो गहनत्म
अनुभव है। जो
रहस्य है। इस
जगत की जो आत्यंतिक
अनुभूति है, यह पुरा जगत
उसे सम्हाल
कर रख लेता
है। इस जगत के
कण-कण की
गहराई में वह
अनुभूति छा
जाती है।
समाविष्ट हो
जाती है। वहीं
अर्थ है कि
वेद शास्त्रों
में वह अनुभूति
छा जाती है।
समाविष्ट हो
जाती हे। यही
अर्थ है कि
वेद शास्त्रों
में नहीं,
वरन आकाश में
लिखा जाता हे।
शब्दों से
नहीं बल्कि
जब बुद्ध जैसे
व्यक्ति के
प्राणों में
सत्य की घटना
घटती है। तो
साथ ही साथ उस
घटना की अनुगूँज
आकाश के
कोने-कोने में
छा जाती है।
और जब भी कोई
व्यक्ति
बुद्धत्व के
करीब पहुंचने
लगेगा, तब
प्राचीन
बुद्धों ने जो
जाना था,
उसके प्राणों
में आकाश के
द्वारा, उस
अनुगूँज की
फिर से
प्रतिध्वनि
हो सकती हे।
ब्लावट्स्की
की यह किताब
साधारण किताब
नहीं है। इसने
उसे लिखा नहीं,
इसने उसे सुना
ओर देखा है।
यह उसकी कृति
नहीं है,
वरन आकाश में
जो अनंत-अनंत
बुद्धों की
छाप छूट गई है, उसका
प्रतिबिंब है।
ब्लावट्स्की
ने कहा है कि
यह जो मैं कह
रही हूं,
यह
आकाश-संहिता
से मुझे उपलब्ध
हुआ है। ऐसा
मैंने आकाश से
पाया और जाना
है।
आकाश
से अर्थ है: वह
जो चारो तरफ
घेरे हुए है
हमें, जो
हमारे भीतर भी
है और हमारे
श्वास-श्वास
में है। जिसके
बिना हम नहीं
हो सकते; और
हम नहीं थे तब
भी जो था। और
हम नहीं होंगे
तब भी जो
रहेगा। आकाश
से अर्थ है:
परम अनस्तिव
का। ब्लावट्स्की
ने कहा है: इस
परम अस्तित्व
ने ही मुझे
बताया है। वही
इस पुस्तक
में मैंने
संग्रहीत
किया है।
लेखिका वह नहीं
है। सिर्फ
संग्रह किया
है उसने।
यही
वेद ऋषियों ने
कहा है कि
हमने सुना है
वह वाणी। और हमने
अपने हाथों
लिखी है।
लेकिन हमारे
हाथों से कोई
और ही उसे
लिखवाया हे।
जीसस ने भी
यही कहा है कि
मैं जो कह रहा
हूं; वाणी मेरी
हो, लेकिन
जो उस वाणी से
बोल रहा है।
वह परमात्मा
का है। मोहम्मद
ने भी यही कहा
हे कि कुरान
मैने सुनी है।
उसका इलहाम
हुआ। उसकी
मुझे प्रेरण
हुई है; और
किसी रहस्यमयी
शक्ति नें
मुझे पुकार और
कहा कि पढ़।
और
मोहम्मद के
साथ तो बड़ी
मीठी घटना है।
क्योंकि
मोहम्मद पढ़
नहीं सकते थे।
और जब पहली
बार उन्हें
ऐसी भीतर कोई
आवाज गूंज गई
कि पढ़, तो
मोहम्मद ने
कहा; मैं
हूं बे पढ़ा
लिखा। मैं
पढूंगा कैसे।
और कोई किताब
तो सामने थी
ही नहीं। जिसे
पढ़ना था। कुछ
और था आंखों
के सामने जिसे
गैर पढ़ा लिखा
भी पढ़ सकता
है। जिसको
कबीर भी पढ़
लेते है। कुछ
और था जो
पढ़ना नहीं
पड़ता। जो
दिखाई पड़ता
है। कुछ और
था। जो इन
आंखों से
जिसका कोई
संबंध नहीं
है। किसी और
भीतर की आँख
का संबंध है।
मोहम्मद ने
समझा कि इन
आंखों से मैं
कैसे पढूंगा।
मैं पढ़ा लिखा
नहीं हूं।
लेकिन कोई और
भीतर की आँख
पढ़ सकती है।
और वही कुरान
का जन्म हुआ।
ब्लावट्स्की
की यह पुस्तक, ‘समाधि के
सप्त द्वार’ वेद,
बाईबिल,
कुरान महावीर
बुद्ध के वचन, उस हैसियत
की पुस्तक
है। यह भी उसे
आकाश में
अनुभव हुआ है।
इस
पुस्तक के
एक-एक सूत्र
को समझ पूर्वक
अगर प्रयोग किया
तो जीवन से
वासना ऐसे ही
झड़ जाती है,
जैसे कोई धूल
से भरा हुआ आए
और स्नान कर
ले और सारी
धूल झड़ जाए।
या कोई थका
मांदा किसी
वृक्ष की छाया
के नीचे
विश्राम कर ले
और सारी थकान
विसर्जित हो
जाए। ऐसा ही
कुछ इस पुस्तक
की छाया में, इस पुस्तक
के स्नान में
आपके साथ हो
सकता है।
लेकिन इसे
बुद्धि से
समझने की कोशिश
मत करना। इसे
ह्रदय से
समझने की
कोशिश करें।
मैंने
इस पुस्तक को
जान कर चूना
है। क्योंकि इधर
दो सौ वर्षों
में ऐसी न के बराबर
पुस्तकें है,
जिनकी हैसियत
वेद-कुरान और
बाइबिल की हो।
उन थोड़ी सी
दो चार पुस्तकों
में है यह
पुस्तक।
समाधि
के सप्त
द्वार। और
इसलिए भी चुना
कि ब्लावट्स्की
ने जरा सी भी
भूलचूक नहीं
की आकाश की
संहिता को
पढ़ने में।
ठीक मनुष्य
के जगत में उस
दूर के सत्य
को जितनी
सही-सही हालत
में पकड़ा ह।
प्रतिबिंब
जितना साफ बन
सकता है। उतना
प्रतिबिंब
साफ बना है।
और यह पुस्तक
आपके लिए जीवन
की आमूल
क्रांति
सिद्ध हो सकती
है। फिर इस
पुस्तक का
किसी धर्म से
भी कोई संबंध
नहीं है। इसलिए
भी मैंने इसे
चुना है। न यह
हिंदू है, न
यह मुसलमान
हे। और धर्म
को जितना निर्वैयक्तिक,
गैर-सांप्रदायिक
ढंग से प्रकट
किया जो सकता
है। उस ढंग से
इसमे प्रकट
हुआ है।
ओशो
समाधि
के सप्त
द्वारा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें