हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा
मौन प्रतीक्षा—(अध्याय—13)
6मार्च 1986, रात्रि
1.20बजे।मौन प्रतीक्षा—(अध्याय—13)
ओशो
के साथ एक
छोटे जैट
विमान में
विवेक देवराज,आनंदों,
मुक्ति और
जॉन सवार हुए।
एथेंस से
विमान ने एक अज्ञात
लक्ष्य की और
उड़ान भरी—जिसका
पता पायलेटों
को भी नहीं
था। आकाश में
उन्होंने
जान से पूछा, ‘किधर।’ जॉन भी यह
नहीं जानता
था।
हास्या व
जयेश ओशो के
बीसा के लिए
स्पेन में व्यस्त
थे तथा जॉन के
साथ उनका सम्पर्क
टेलीफ़ोन
द्वारा बना
हुआ था। हास्या
ने कहा अभी स्पेन
तैयार नहीं
हुआ और स्पेन
कभी तैयार भी
नहीं हुआ था।
उन्हें तो न
कहने के लिए
भी दो महीने
लग गये।
विमान ने
एक ऊंची उड़ान
ली तथा यह
तीव्र गति से
उड़ रहा था—दिशाहीन।
क्रेट के
बंगले में मैं
शांत खड़ी थी।
सामान के तीस
नगों के साथ
चलने की
तैयारी कर रही
थी।
मैंने
बंगले के
चारों और नज़र
दौड़ाई—टूटी
हुई खिड़कियाँ, क़ब्ज़ों
के साथ झूलते
दरवाजे तथा
पुलिस द्वारा
बनाई इनकी
दुर्गति—अन्याय
व बर्बरता के
प्रतीक।
कवीशा व
डेविड, आविर्भावा
तथा सर्वेश को
इतना आघात लगा
कि वे आगे
यात्रा पर
निकलने में
कठिनाई महसूस
कर रहे थे।
इसके साथ वे
कुछ थक भी गये
थे। वे यूनान
में नहीं
रूकना चाहते
थे। मा अमृतो, उसका पाँच
वर्ष का बेटा
सिंधु,मनीषा, केंद्रा
तथा मुझे एक
ग्रुप में
निकलना था तथा
लंदन पहुंचकर
अगले समाचार
की प्रतीक्षा
करनी थी।
विमान से
मुझे संदेश
मिला कि ओशो
मेरा हाल-चाल
पूछ रहे थे
तथा उन्होंने
कहां था, ‘चेतना
का ध्यान
रखना।’
हमने सुना
कि लंदन
पहुंचने से
पहले ओशो स्विट्ज़रलैंड
में प्रवेश की
अनुमति नहीं
मिली थी।
फ्रांस, स्पेन, स्वीडन और
फिर इंग्लैंड
उसके बार थे
कैनेड़ा वे
एंटीगुआ। इन
देशों में
प्रवेश की बात
तो दूर रही
बल्कि उनके
विमान को
हथियारों से
लैस
सिपाहियों तथा
पुलिस का
सामना करना
पडा।
प्रत्येक
देश में संन्यासियों
से सम्पर्क
पहले से ही स्थापित
कर लिया गया
था। वकील
सहायता करने
का पूरा
प्रयास कर रहे
थे।
‘बियॉंड
साइकॉलॉजी’ में से ओशो
के कुछ शब्द:
यूनान से
हम जीनेवा गए, केवल एक
रात्रि के
विश्राम के
लिए और जैसे
ही उन्हें
मेरे नाम के
बारे में पता
चला वे बोले बिल्कुल
नहीं। हम उन्हें
अपने देश में
प्रवेश की
अनुमति नहीं
दे सकते। मुझे
विमान से नीचे
भी नहीं उतरने
दिया गया।
हम स्वीडन
की और बढ़े यह सोचते
हुए कि हमने
सुना,
कि यूरोप विश्व
के किसी भी
देश से अधिक
उन्नत देश है, कि स्वीडन
आतंकवादियों,
क्रांतिकारियों, निर्वासित
राजनेताओं को
शरण देता रहा
है। कि यह देश
बहुत उदार हे।
हम स्वीडन
पहुंचे, वहां हम रात
को रूकना
चाहते थे। क्योंकि
पायलेटों के
पास समय बहुत
कम था वे और
आगे नहीं जा
सकते थे नहीं तो
यह अवैध करार
दिया जाता। और
हम बहुत खुश
हुए क्योंकि
एयरपोर्ट पर
जो व्यक्ति
था हमने एक
रात का
विश्राम
मांगा था
परंतु उसने
सात दिन का
वीसा दे दिया।
सभी लोगों को।
या तो वह
शराबी था या
सोया हुआ। आधी
रात का समय था, या उससे कुछ अधिक।
जो व्यक्ति
वीसा के लिए
गया था वह
बहुत प्रसन्न
वापस लौटा कि
हमें सात दिन
का वीसा मिल
गया था। परंतु
अचानक पुलिस आ
गई। उन्होंने
हमारे वीसा रद
कर दिए तथा
हमें तुरंत जाने
को कहा, ‘हम इस व्यक्ति
को अपने देश
में प्रवेश की
अनुमति नहीं
दे सकते।’
वे आतंकवादियों
को अनुमति दे
सकते है। वे
हत्यारों को
अनुमति दे
सकते है। वे
माफिया के लोगों
को अनुमति दे
सकते है तथा
उन्हें शरण
दे सकते है।
परंतु वे मुझ
अनुमति नहीं
दे सकते। और
मैं न तो उनसे
शरण मांग रहा
था और न ही स्थायी
निवास, बस केवल एक
रात रूकना।
हम लंदन की
और मुड़े, क्योंकि
यह केवल मुल भूत
अधिकार का
प्रश्न था। और
हमने इसे
वैद्य करने का
दोहरा प्रयत्न
किया हमने अगले
दिन प्रथम
श्रेणी की
टिकट ली हमार
निजी विमान वहां
था परंतु फिर
भी हमने
टिकटें
खरीदीं ताकि
यदि वे कहेंगे
तुम्हारे
पास कल की
टिकट नहीं है।
इसलिए हम तुम्हें
प्रथम श्रेणी
के लॉच में
नहीं ठहरने
देंगे।
हमनें हर
व्यक्ति की
टिकट खरीदी
ताकि हम लॉज
से रूक सकें
और हमने उन्हें
कहा हमारा जैट
विमान है और
हमारे पास
टिकटें भी है
परंतु उन्होंने
हमें
एयरपोर्ट के
एक उपनियम का
हवाला देकर कहा
कि सरकार या
कोई भी व्यक्ति
इसमे हस्तक्षेप
नहीं कर सकता।
यह उनके
निर्णय पर
निर्भर करता
है और हम इस व्यक्ति
को लॉज में
ठहरने की
अनुमति नहीं
दे सकते। मैंने
सोचा मैं लॉज
में किसी की
नैतिकता को, धर्म को
कैसे नष्ट कर
सकता हूं।
पहली बात तो
मैं सो रहा होऊंगा।
और सुबह होते
ही हम लोग जा
चुके होंगे।
परंतु नहीं
ये तथा कथित
सभ्य देश
इतने ही असभ्य
तथा बर्बर है
जितनी आप कल्पना
भी नहीं कर
सकते।
उन्होंने
कहां कि हम
केवल इतना ही
कर सकते है, कि रात भर
के लिए आपको
जेल में रख
सकते है।
और तभी
संयोगवश
हमारे एक मित्र
ने फाइल देखी
उनके पास पहले
से ही सरकार
द्वारा दिए गए
निर्देश थे:
कि मुझे किसी
भी प्रकार देश
में प्रवेश की
अनुमति न दि
जाये। किसी
होटल या लॉज
में एक रात
रूकने की भी
नही; बस
एक ही उपाय है
कि मैं एक रात
जेल में
गुजारूं।
बिना किसी
गुनाह या कसूर
के।
सुबह हमने
आयरलैंड की और
प्रस्थान
किया शायद
यात्रियों के
बीच उस व्यक्ति
ने मेरे नाम
की और ध्यान
नहीं दिया।
हमने केवल दो
या तीन दिन
रूकने का
अनुरोध किया
था,
अधिक से अधिक
सात दिन यदि
आप हमें दे
सकें। हमें
समय चाहिए था
क्योंकि
हमें एक दूसरा
निर्णय लेना
था और वे इसमे
देरी कर रहे
थे और हमारा
वहां से जाना
उनके निर्णय
पर निर्भर था।
वह व्यक्ति
सचमुच उदार
था.....शायद उसने
बियर कुछ अधिक
मात्रा में ले
ली थी। उसने
सबको इक्कीस
दिन दे दिए हम
अपने होटल में
गए ही थी कि
होटल में उस
अनुमित को रद करने
पुलिस आ गई
तथा हमें कहा
गया वह व्यक्ति
पागल है....उसे
कुछ भी मालूम
नहीं है। उन्होंने
प्रवेश पत्र
रद कर दिया, परंतु वे
कठिन परिस्थिति
में फंस गये—वे
हमारा क्या
करें। हम पहले
ही उनकी धरती
पर थे,
उनके होटल में
थे। हम उस
होटल में कुछ
घंटे बिता
चूके थे।
हमारे पासपोर्ट
पर वे इक्कीस
दिन दे चुके
थे। और अब उन्होंने
ये रद कद दिए।
हम जाने को
तैयार न थे; हमे अभी कुछ
दिन और रूकना
था।
तुम देख
सकते हो कि
प्रशासन अपने
दोषों पर कैसे
पर्दा डालता
है। उन्होंने
कहा,तुम
यहां रूक सकते
हो परंतु किसी
को भी यह बात मालूम
नहीं होनी
चाहिए। कि ओशो
यहां है। नहीं
तो हम मुश्किल
में पड़
जायेंगे। यह
पूरी यात्रा
प्रशासन का
अच्छा
भंडाफोड़ है।
और अभी-अभी
मुझे सूचना
मिली है कि
यूरोप के सभी
देश मिलकर यह
निर्णय ले रहे
है कि किसी भी
एयरपोर्ट पर
अपना विमान
नहीं उतार
सकता। विमान
में ईंधन
डालने पर
नैतिकता कहां
प्रभावित
होती है।
ग्यारह
वर्ष की
अनुपस्थिति
के पश्चात
मैंने एक
समुराई की
भांति लड़ाई
की तैयारी के
साथ इंग्लिश
धरती पर कदम
रखा। केंद्रा
और जॉन के साथ
ओशो के विमान
से फोन से सम्पर्क
बना हुआ था और
उसने सारी बात
सुन ली थी कि इंग्लैड
में ओशो को
केवल प्रवेश
की अनुमति से
ही इंकार नहीं
किया,उन्हें
एक रात जेल
में भी रखा
था।
हमारा दो
टन सामान ट्रक
के बराबर एक
ट्राली में
रखा गया और
कुली लगातार
मुझसे बुदबुदाता
रहा, ओह, प्रिय इसके
लिए तो वे
तुम्हें अलग
कर देंगे। ओह, लव वे तुम्हें
सामान के साथ
देश में प्रवेश
नहीं करने
देंगे।
मनीषा
केंद्रा और
मैं ट्राली के
साथ चल रही थी
और आविर्भावा
सर्वेश को
संभाल रही थी।
सर्वेश का
सूजा हुआ चेहरा
बड़ा डरावना
लग रहा था।
डेविड बाहर
प्रतीक्षा कर
रहा था। जबकि कवीशा
को यात्रा
करने की कला
आती थी—वह
प्रत्येक
अवसर पर चुप
बैठी रहती।
हम यह नहीं
बताना चाहते
थे कि हम
ग्रीस से आ रहे
है। अत:
जब दो कस्टम
अधिकारियों
ने पूछा कि हम
कहां से आ रहे
है तो केंद्रा
ने जिसके भूरे
लहराते बालों
की एक लट बड़े
सम्मोहक ढंग
से उसके चेहरे
पर झूल गई थी—ने
कहा,
कहीं और से।
कहीं और से, हुं,
अधिकारी ने वही
बात दोहराई।
और तुम लोग
कहां जा रहे
हो। उसने
पूछा।
मेरा
अनुमान है, कहीं ओर, बड़ी सहजता
से उसने अपने
प्रश्न का
उत्तर दिया।
हां, केंद्रा ने
कहा।
ठीक है, उसने
कहां।
हम लोगों को
ग्रुप इतना
रंगीन दिखता
था और हमारे
सामान की संख्या
इतनी असाधारण
थी कि कुछ
विमान तलों के
अधिकारियों
ने स्वयं ही
अनुमान लगा
लिया कि हमारा
कोई थियेटर
गुप है। हमने
भी यही स्वीकार
किया।
हम
केंसिंगटन
में एक फ्लैट
में जाकर रुके।
जहां हमें
चुपचाप दो सप्ताह
प्रतीक्षा
करनी थी। इस
विश्व
यात्रा के
दौरान पूरे
विश्व संन्यासी
चुपचाप
प्रतीक्षा कर
रहे थे। ओशो
के लोग, वे विश्व
में कहीं भी
हों, उनका
बाह्म परिस्थतियों
कैसी भी हो।
एक अंतर यात्रा
पर एक साथ गति
कर रहे है।
मुझे लगता है हम
सभी एक जैसी, आन्तरिक कठिनाइयों
का सामना कर
रहे है। जब
ओशो शाब्दिक
अर्थों में एक
विमान में रह
रहे थे। तथा
उतरने के लिए
धरती पर किसी
स्थान की
तलाश कर रहे
थे। ओशो के
साथ और ओशो के
माध्यम से एक
दूसरे के साथ
हमारा सम्बंध
इतना गहरा है
कि जहां तक
मैं समझती हूं
हम सभी मिलकर
एक देह की
भांति चल रहे
है। जिसमे देश
ओर काल प्रवेश
नहीं कर सकते।
चाहे कोई शिष्य
शारीरिक रूप
से ओशो के
समीप बैठा हो
या दस हजार
मील दूर हो, यह फासला तो
उसकी ध्यानावस्था
पर निर्भर
करता है।
पूना में
जब ओशो
प्रतिदिन प्रवचन
देते थे, एक बात स्पष्ट
रूप से दिखाई
देती कि वहां
एक सामूहिक
चेतना थी। हम
सभी एक दूसरे
के साथ जुड़े थे
प्रात: एक से
भाव व
परिवर्तन
अनुभव करते, यहां तक कि
विचार भी एक
से होते। यह
एक सामान्य
घटना थी। कि
प्रवचन में
ओशो किसी के
प्रश्न का
उत्तर देते
और वह ठीक
वहीं प्रश्न
होता जो आप
पूछना चाहते
थे, शब्दशः:।
और बहुत बार
ओशो ऐसे विषय
पर बोलते जिसकी
चर्चा पिछली
रात कुछ मित्र
कर रहे थे।
मैंने बहुत से
लोगों से सूना
है कि उनका भी
यहीं अनुभव
है। यह बड़ी रहस्यमयी
बात थी ऐसा
लगता जैसेकि
ओशो कान लगाकर
हुन रहे थे।
अब लंदन
में ऐसा कुछ
नहीं था जो हम
कर सकते थे—ओशो
कहां है इसके
बारे में कुछ पतन
था। अब पुन: हम
कब मिलेंगे
कुछ भी मालूम
न था वर्तमान
में होने का
यह एक अच्छा अवसर
था। अतीत के
बारे में सोचना
और भविष्य को
लेकर चिंतित
होना हमारे
लिए हानिकारक
था। मानसिक व
शारीरिक स्वास्थ्य
दोनों के लिए
खतरनाक था। हम
ऐसी परिस्थिति
में थे जिसमे
मन अपने खेल-खेल
सकता था। और
बाहर निकलने
का एक ही रास्ता
था कि हम अपने भीतर
चले जाएं।
बार में
मैंने ओशो से
पूछा था:
प्यारे
सदगुरू,
जब परिस्थितियां
मेरे लिए कठिन
हो जाती है तो
मैं ‘अभी
और यहीं’
में शरण लेती
हूं। वर्तमान
के उस क्षण
में सभी कुछ
स्थिर होता
है तथा तलवार
की धार पर
खड़े रहने का मेरे
लिए यही एक
मात्र उपाय
हाता है।
परंतु फिर भी
एक संदेह
उपजता है कि
जो भी वास्तव
में हो रहा है
मैं उससे
पलायन कर रही
हूं। हो सकता
है मैं एक ही
दशा में देख
रही होऊं। प्यारे
सदगुरू कृपया
इसे समझाने
में मेरी सहायता
करें, और
बताये सच क्या
है।
ओशो: मन की
कभी मत सुनो।
मन बड़ा
धोखेबाज है।
यदि तुम
वर्तमान में
शांति व स्थिरता
का अनुभव करते
हो तो वह
अनुभव इतना
मूल्यवान है
कि मन को इसका
मूल्यांकन
करने का कोई
अधिकार नहीं
है। मन उससे
बहुत नीचे है।
मन सदा या
तो अतीत में
होता है या
भविष्य में।
या तो स्मृति
में या कल्पना
में, यह
वर्तमान को
जानता ही
नहीं। और जो
भी सत्य है, वह वर्तमान
में है।
जीवन केवल
क्षणों से बना
है। कोई पूर्व
जीवन नहीं, कोई भावी
जीवन नहीं।
जीवन जब भी है, वर्तमान
में है। और
यहीं तो विडम्बना
है: जीवन है
अभी और यहीं
तथा मन कभी ‘अभी और यहीं’ नहीं होता।
पूर्व की महत्वपूर्ण
खोजों में से
एक है: जहां तक
तुम्हारी
आत्म प्रकटता
का सम्बन्ध
है, जहां
तक तुम्हारे
होने का सम्बंध
है, मन नपुंसक
है—
जब भी तुम
कुछ ऐसा अनुभव
करते हो
मनातीत है, मन संदेह
पैदा करेगा।
उसके विरूद्ध
तर्क देगा।
तुम्हें
उलझन में डालेगा।
परेशान
करेगा। ये
उसकी पुरानी
चाल है। वर्तमान
क्षण की भांति
यह कोई उत्तम
प्रकार की वस्तु
की रचना नहीं
कर सकता। वास्तव
में मन
सृजनात्मक
नहीं है। जीवन
के किसी भी
आयाम में
होनेवाला
सारा सृजन
अ-मन से होता
है। महान
कलाकृतियां, महान संगीत,महान काव्य—वह
सब तो सुंदर
है, वह सब
जो मनुष्य को
पशुओं से अलग
करता है,
एक छोटे से पल
से ही जन्म
लेता है।
यदि तुम
उसमे
बोधपूर्वक
प्रवेश करते
हो तो यह तुम्हें
बुद्धत्व की
और ले जाता
है। यदि यह
अनजाने में, संयोगवश
घटता है तो भी
यह तुम्हें
अद्भुत मौन, विश्रान्ति, शांति,बुद्धिमता
की और ले जाता
है। यदि यह
केवल सांयोगिक
है—तो तुम
मंदिर तक तो
पहुंच गए
परंतु एक कदम
से चुक गए।
मेरे देखे यही
सभी सृजनशील
कलाकार नर्तक, संगीतकार, वैज्ञानिक रुके
है—केवल एक पग
और।
रहस्यदर्शी
वर्तमान पल के
अंतरतम में
प्रवेश कर जाता
है। और स्वर्णिम
कुंजी उसके
हाथ लग जाती
है। उसका पूरा
जीवन एक दिव्य
आनंद बन जाता
है। फिर जो भी
हो उसके आनंद
पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ता।
परंतु जब
तक तुमने
मंदिर के भीतर
प्रवेश नहीं किया।
मन अंतिम घड़ी
तक तुम्हें
खींचने का
प्रयत्न
करेगा। तुम
कहां जा रहे
हो। यह केवल
पागलपन है।
तुम जीवन से
पलायन कर रहे
हो।
और मन ने
तुम्हें कभी
कोई जीवन नहीं
दिया इसने
तुम्हें कभी
कोई ऐसा स्वाद
नहीं दिया कि
तुम जीवन देख
सको कि जीवन
क्या है।
इसने कभी किसी
रहस्य को
प्रकट नहीं
किया। बल्कि
यह तुम्हें
निरंतर पीछे
खींचता रहा
है। क्योंकि
यदि तुम एक
बार मंदिर में
प्रविष्ट हो
गए तो यह
अकेला बाहर
छूट जाएगा।
ठीक वहां जहां
तुम अपने जूते
छोड़ आते हो।
यह मंदिर
में प्रवेश
नहीं कर सकता।
इसमें वह सामर्थ्य
नहीं,
इसकी वह सम्भावना
नहीं।
अंत:
सावधान रहना।
जब मन कहे कि
तुम जीवन से
पलायन कर रहे
हो, मन से
कहना, कहां
है जीवन। तुम
किस जीवन की
बात कर रहे हो? मैं जीवन
में पलायन कर
रहा हूं,
जीवन में नहीं।
मन के सम्बंध
म बहुत सचेत
रहना क्योंकि
तुम्हारे
भीतर यही तुम्हारा
शत्रु है। और
यदि तुम सतर्क
नहीं रहते तो
यह शत्रु तुम्हारे
विकास की हर
सम्भावना को
नष्ट कर
देगा। जरा सी
सावधानी—और मन
तुम्हारा
कुछ नहीं
बिगाड़ सकता।
(द पाथ ऑफ दि
मिस्टिक)
दो सप्ताह
बाद खबर आई कि
ओशो उरूग्वे
की राह पर थे।
उरूग्वे। यह
कहां है? हमने एक
दूसरे से
पूछा। दक्षिण
अमरीका। परंतु
क्या यह वह
जगह नहीं है
जहां हर साल
दो साल में फ़ौजें
सत्ता
परिवर्तन कर
देती है। और
गुप्तचर
सेनाएं लोगों
को पूछताछ के
लिए ले जाती
है और वे फिर
कभी दिखाई
नहीं देते। यह
हमारे लिए अंजान
और खतरनाक देश
था।
मुझे याद
है नेपाल में
जब हमने
दुनिया का
एटलस देखा तो
सोचा कहां
जाएं। पूरा
संसार उपलब्ध
था। परंतु अब
यह संसार बहुत
अधिक छोटा हो
गया है। यहां
कही जाने को
नहीं है। हास्या
और जयेश सतत
पूछताछ कर रहे
थे ऐसा कौन सा
देश है जो
हमारा स्वागत
करे। सरकारें
जो संदेश पा
रही थी वह यह था
कि हम आतंक
वादी है।
अमरीका जिन देशों
को आर्थिक मदद
करता है उन्हें
संदेश भेज रहा
था कि वे ओशो
पर दबाव
डालें।
मैं अभी तक
यह समझ नहीं
पा रही हूं कि
अमरीकी राजनेता
ओशो के क्या
हाथ धोकर पीछे
पड़े हुए थे।
मैं जानती हूं
कि जो वे कहते
है वह उनका
सभ्यता, समाज,
विश्वास के विपरीत
है, परंतु
इसके लिए उनको
इस तरह
प्रताड़ित
करना मेरी समझ
के बाहर है।
मैंने
राफिया से
पूछा जो अमरीका
में पैदा हुआ
और बड़ा हुआ—हालांकि
मैं उसे
अमरीकी नहीं
कहती –क्या
बात है उसे क्या
लगता है क्यों
अमरीकी ओशो के
साथ इस तरह
पागलपन का व्यवहार
कर रहे है।
गले को खँखारते
हुए और आंखों
में एक चमक के
साथ वह बोला, ‘ओशो
ने अमरीका के
सभी भगवानों
को कचरे के
डाल दिया,
उनका पहला
भगवान है,
पैसा, धन।’ उसने कहा की
अमरीका का
भौतिकवाद ऐसा
है कि प्रत्येक
व्यक्ति
शानदार कार के
लिए पाकल है
और ओशो के पास
एक नहीं 96 रॉल्स
राय कार थीं।
उसने कहा
कि यह सोच भी
कि अमरीकी अधिक
प्रगतिशील है
बुरी तरह उखड़़
गया। मात्र
पाँच साल में
ओरेगॉन का
रेगिस्तान
एक आधुनिक शहर
और कृषि
क्षेत्र बन
गया। जहां पर
हजारों
लोग नाचते।
गाते आराम और आनंद
में जी रहे
है। राफिया को
याद था जब वह
कैलिफ़ोर्निया
से पहली बार
ओरेगॉन आया था
तो उसने कारों
के बम्पर स्टिकर
देखे—लाल होने
से मौत बेहतर
है। और ऐसे
पोस्टर जिन
पर ओशो का
चेहरा काटा
हुआ यह
दर्शाते हुए
कि—‘कि
इसे मिटा दो।’
और फिर
ईसाई भगवान। रीगन
और उसकी सरकार
कट्टर ईसाई थे
और ओशो कह रहे
थे, ‘पिछले
दो हजार सालों
में ईसाइयत ने
मानवता का
किसी दूसरे
धर्म से अधिक
नुकसान किस
है। हत्याएँ
की है। लोगों
को जिंदा
जलाया है।
भगवान सत्य
धर्म के नाम
पर लोगों को
मार डाला हत्याएँ
कर दीं—उनके
अपने भले वे
स्वार्थ के
लिए।’
और जब हत्यारा
तुम्हारे भले
के लिए हत्याएँ
करता है, तो उसे कोई अपराध
बोध भी नहीं होता। उसकी
जगह वह सोचता है
कि उसने बढ़िया
काम किया है। उसने
मानवता की,
भगवान की, सभी
महान मूल्य प्रेम, सत्य,स्वतंत्रता,की सेवा कही है।
(जीसस क्रूसीफायड
अगेन दिस टाइम
रोनाल्ड रीगन अमरीका)
जहां कहीं परमात्मा
है वहां शैतान
भी होगा ही। और
अमरीका के लिए
साम्यवाद शैतान
है। कम्यून में
हमने उच्चस्तर
के साम्यवाद का
निर्माण किया जो
सफल हुआ। पहली
बार दुनिया के
इतिहास में पाँच
हजार लोग परिवार
की तरह रहे। कोई
किसी से उसके देश
या धर्म या जाति
या नस्ल के बारे
में नहीं पूछता।
हर साल पूरी दुनिया
से बीस हजार लोग
इस चमत्कार को
देखने आते। अमरीका
के राजनेता कम्यून
की सफलता से विचलित
हो गए.....।
ऐसा ओशो में
क्या है कि सरकारी
अधिकारी उनकी हत्या
करना चाहत है? यूएस. अटर्नी
जनरल,ओरेगॉन
का यूएस. अटर्नी
जनरल, फेडरल
मजिस्ट्रेट और
फेडरल जज और न्यायिक
विभाग उनकी हत्या
के लिए साजिश करने
क्यों तत्पर
होते है? शायद
इसका उत्तर है
सर्वाधिक बिकनेवाली
लेखक टाम रॉबिंसन
का स्टीक वक्तव्य,जब वह कहता है:
...अधिकारी यह
स्वभावत: समझ
लेते है कि ओशो
के संदेश में खतरा
है। अन्यथा उनके
विरूद्ध फिलीपींस
के तानाशाह या
किसी माफिया डॉन
के विरूद्ध भी
नहीं किया ऐसा
विद्वेषपूर्ण
अत्याचार करने
के लिए उन्होनें
ओशो को ही क्यों
चूना? यदि
रोनाल्ड रीगन
का बस चलता तो उसने
इस सौम्य शाकाहारी
व्यक्ति को व्हाइट
हाऊस की लॉन में
सूली पर चढ़ा दिया
होता।
ओशो के वचनों
में जो खतरा उनकी
पकड़ में आया वह
यह था कि...उन शब्दों
में ऐसा संदेश
है कि यदि उसे ठीक
से समझ लिया जाए
तो वह स्त्री
पुरूषों को इन
अधिकारियों के
चंगुल से मुक्त
कर सकता है।
किसी भी शासन
या उसके जर्म में
सहयोगी को, संस्थागत
धर्म को इससे अधिक
और कोई सम्भावना
नहीं डराती जितनी
यह कि कोई प्रजा
स्वयं अपने बारे
में सोचे और पूरी
स्वतंत्रता से
जिए। (जीसस क्रूसीफायड
अगेन दिस टाइम
रोनाल्ड रीगंस
अमरीका।)
मैं कभी-कभी
सोचती कि ओशो ने
राजनेताओं और धार्मिक
नेताओं की पोल
नहीं खोली होती
तो अच्छा होता।
मैं सोचती कि क्यों
नहीं वे कहीं ऐसी
जगह हमसे उनकी
जादुई बात चुपचाप
करते जहां कोई
हमारी परवाह नहीं
करता। परंतु ओशो
ने परवाह की, और हर दिन
वह प्रमाणित किया
कि कैसे मनुष्य
की बेहोशी इस ग्रह
को नष्ट किए दे
रही है। उन्हें
सच बोलना ही है
क्योंकि इसके
सिवाय उन्हें
करने के लिए और
कुछ नहीं था।
‘गुस्सा
होने की कोई जरूरत
नहीं है, कोई
शिकायत पालने की
जरूरत नहीं है।
जो उन्होंने किया
है, उसका फल
उनको भुगतना ही
है। वे स्वयं
अपनी पोल खोल रहे
है। और इन निहित
स्वार्थी का यही
ढंग है उन लोगों
से व्यवहार करने
का जो सत्य के
साथ खड़े होते
है। तो यह नया नहीं
है। परंतु एक चीज़
मुझे खुश करती
है कि एक व्यक्ति
बिना किसी ताकत
के दुनिया की महाशक्ति
को डरा सकता है, उसकी बुनियाद
को हिला सकता है।
मैं उनकी पोल खोलता
रहूंगा। उनके ऊपर
नाराज़ होने की
जरूरत नहीं है।
बस उनकी पोल खोल
दो। उनके असली
चेहरे दुनिया के
सामने ले आओ।
इतना ही काफी है।....’
(जीसस क्रूसीफायड
अगेन, दिस
टाइम रोनाल्ड
रीगंस अमरीका)
सभी देश जो ओशो
के प्रवेश को रोक
रहे थे वे अपना
असली चेहरा बात
रहे थे। यह एक गहरी
समझ देने वाला
पाठ था। कि सभी
तथाकथित लोकतान्त्रिक
देश अमरीका के
हाथों की कठपुतली
मात्र है।
हम जहां भी गये, हम वहां परदेशी
ही थे....।
मां
प्रेम शुन्यों
(माई
डायमंड डे विद
ओशो) हीरा
पायो गांठ
गठियायो)
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