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शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

सात शरीर और सात चक्र— ( 6 )

छठवाँ शरीर—आज्ञा चक्र---
      छठवाँ शरीर ब्रह्म शरीर है, काज़मिक बॉडी है; और छठवाँ केंद्र आज्ञा चक्र है। अब यहां से कोई द्वैत नहीं है। आनंद का अनुभव पांचवें शरीर पर प्रगाढ़ होगा। अस्‍तित्‍व का अनुभव छठवें शरीर पर प्रगाढ़ होगा—एग्‍ज़िसटैंस (अस्‍तित्‍व) का, बीइंग (होने) का। अस्‍मिता खो जायेगी छठवें शरी पर—हूं, यह भी चला जायेगा....हूं, ‘’मैं हूं’’—तो मैं चला जायेगा पांचवें शरीर पर हूं, चला जायेंगा पांचवें को पार कर के...है, इजनेस, का बोध होगा, ‘’तथाता का बोध होगा....ऐसा है उसमें ‘’मैं’’ कहीं भी नहीं आयेगा, उसमें अस्‍मिता कहीं नहीं आयेगी—जो है, बस वहीं हो जायेगा।
      तो यहां सत् का, बीइंग का बोध होगा; चित,कांशसनेस का बोध होगा, लेकिन यहां चित मुझसे मुक्‍त हो गया। ऐसा नहीं कि मेरी चेतना...मात्र चेतना। मेरा आस्तित्‍व—ऐसा नही, लेकिन अस्‍तित्‍व।

ब्रह्म का भी अतिक्रमण करने पर निर्वाण काया में प्रवेश—
      और कुछ लोग छठवें शरीर पर ही रूक जायेंगे, क्‍योंकि ब्रह्म शरीर ( काज्मिक बॉडी ) आ गया, ब्रह्म हो गया मैं, अहम ब्रह्मास्‍मि की हालत आ गयी—अब ‘’मैं’’ नहीं रहा, ब्रह्म ही रह गया है। अब और कहां है खोज? अब कैसी खोज? अब किसको खोजना है? अब तो खोजने को भी कुछ नहीं है; अब तो सब पा लिया है; क्‍योंकि ब्रह्म का मतलब है—दि टोटल; सम, समग्र।
      इस जगह खड़े हो कर जिन्‍होंने कहा है, वे कहेंगे कि ब्रह्म अंतिम सत्‍य है, ब्रह्म परम है, उसके आगे फिर कुछ भी नहीं है। और इस लिए इस पर तो अनंत जन्‍म रूक सकता है कोई। आम तौर से रूक जाता है; क्‍योंकि इसके आगे तो सूझ में नहीं आता कि इसके आगे भी कुछ हो सकता है।
      तो ब्रह्मज्ञानी इस पर अटक जायेगा, इसके आगे वह नहीं जायेगा। और यह इतना कठिन है इस जगह को पार करना, क्‍योंकि अब बचती नहीं है, कोई जगह जिसको पार करों। सब तो घेर लिया जगह भी चाहिए न। अगर मैं इस कमरे के बाहर जाऊँ तो बहर जगह भी तो चाहिए, अब यह कमरा इतना विराट हो गया—अंतहीन; अनंत हो गया; असीम अनादि हो गया; अब जाने को भी कोई जगह नहीं, ने व्‍हेयर टु गो। तब खोजने भी कहां जाओगे? अब खोजने को भी कुछ नहीं बचा, सब आ गया। तो यहां अनंत जन्‍म तक रूकना हो सकता है।
     
परम खोज में आखिरी बाधा ब्रह्म—
      तो ब्रह्म आखिरी बाधा है—द लास्‍ट बैरियर। साधक की परम खोज में ब्रह्म आखिरी बाधा है। बीइंग (अस्‍तित्‍व) रह गया है अब लेकिन अभी भी नॉन बीइंग (अनस्‍तित्‍व) भी है शेष; अस्‍ति तो जान ली, ‘’है’’ तो जान लिया है, लेकिन ‘’नहीं है’’ अभी वह जानने को शेष रह गया।
      इसलिए सातवां शरीर है निर्वाण काया। उसका चक्र है सहस्त्र सार। और उसके सबंध में कोई बात नहीं की जा सकती है। ब्रह्म तक बात जा सकती है। खींच-तानकर; गलत हो जायेगी बहुत।

छठवें शरीर में तीसरी आँख का खुलना—
      पांचवें शरीर तक बात बड़ी वैज्ञानिक ढंग से चलती है। सारी बात साफ हो सकती है। छठवें शरीर पर बात की सीमाएं खोने लगती है। शब्‍द अर्थहीन होने लगता है लेकिन फिर भी इशारे किये जा सकते है। लेकिन अब अंगुलि भी टूट जाती है। अब इशारे गिर जाते है; क्‍योंकि अब खुद का होना ही गिर जाता है।
      तो ऐब्सौल्यूट बीइंग (परम अस्‍तित्‍व) को छठवें शरीर तक और छठवें केंद्र से जाना जा सकता है।
      इसलिए जो लोग ब्रह्म की तलाश में है, आज्ञा चक्र पर ध्‍यान करेंगे। वह उसका चक्र है। इसलिए भृकुटि के मध्‍य में आज्ञा चक्र पर वे ध्‍यान करेंगे; वह उससे संबंधित चक्र है; उस शरीर का चक्र है। और वहां जो उस चक्र पर पूरा काम करेंगे, तो वहां से उन्‍हें जो दिखाई पड़ना शुरू होगा विस्‍तार अनंत का उसको वे तृतीय नेत्र और थर्ड आई कहना शुरू कर देंगे। वहां से वह तीसरी आंख उसके पास आयी जहां से वह अनंत को, काज्मिक को देखना शुरू कर देते है। लेकिन अभी एक और शेष रह गया—न होना, नॉन बीइंग, नास्ति।

सहस्‍त्रार चक्र की संभावना—
      अस्‍तित्‍व जो है वह आधी बात है। अनस्‍तित्‍व भी है; प्रकाश जो है वह आधी बात है अंधकार भी है; जीवन जो है आधी बात है मृत्‍यु भी है। इसलिए आखिरी अनस्‍तित्‍व को, शुन्‍य को भी जानने की जरूरत है; क्‍योंकि परम सत्‍य तभी पता चलेगा जब दोनों जान लिए—अस्‍ति और नास्‍ति भी; अस्‍तिकता भी जानी और संपूर्णता में और नास्‍तिकता भी जानी उसकी संपूर्णता में; होना भी जाना उसकी संपूर्णता में और न होना भी जाना उसकी संपूर्णता में...तभी हम पूरे को जान पाये, अन्‍यथा यह भी अधूरा है।
      ब्रह्म ज्ञान में एक अधूरापन है कि वह न होने को नहीं जान पायेगा। इसलिए ब्रह्मज्ञानी न होने को इनकार कही कर देता है; वह कहता है—वह माया है, वह है ही नहीं; वह कहता है; होना सत्‍य है;  न होना झूठ है। मिथ्‍या है; वह है ही नहीं; उसको जानने का सवाल कहां है।
      निर्वाण काया का मतलब है, शुन्‍य-काया—जहां हम होने से न होने में छलांग लगा जाते है। क्‍योंकि वह और जानने को शेष रह गया। उसे भी जान लेना जरूरी है कि न होना क्‍या है। इसलिए सातवां शरीर जो है वह एक अर्थ में माहमृत्‍यु है। और निर्वाण का, जैसा मैंने कहा अर्थ कहा, वह दीये का बुझ जाना है; वह जो हमारा होना था, वह जो हमारा मैं था, मिट गया; वह जो हमारी अस्‍मिता थी; मिट गई, लेकिन अब हम सर्व के साथ एक होकर फिर हो गये है; अब हम ब्रह्म हो गये है। अब उसे भी छोड़ देना पड़ेगा। और इतनी जिसकी छलांग की तैयारी है, वह ‘’जो है’’, उसे जो जान ही लेता है; ‘’जो नहीं है’’ उसे भी जान लेता है।
     
खोजने निकलो, मांगने नहीं—
      मुझसे एक बात तुमने की, मैंने तुम्‍हें कुछ कहा, अगर तुम मांगने आये थे तो तुमको जो मैंने कहा, तुम इसे अपनी थैली में बंद कर के संभाल कर रख लोगे, इसको संपति बना लोगे। तब तुम साधक नहीं, भिखारी ही रह जाते हो। नहीं, मैंने तुमसे कुछ कहां, वह तुम्‍हारी खोज बना, इसने तुम्‍हारी खोज को गतिमान किया, इसने तुम्‍हारी जिज्ञासा को दौड़ाया और जगाया, इससे तुम्‍हें और मुश्‍किल और बेचैनी हुई, इसने तुम्‍हें और नये सवाल खड़े किये और नयी दशाएं खोली; और तुम नयी खोज पर निकले, तब तुमने मुझसे मांगा नही, तब तुमने मुझसे समझा। और मुझसे तुमने जो समझा वह अगर तुम्‍हें स्‍वयं को समझने में सहयोगी हो गया, तब मांगना नहीं है।
      तो समझने निकलो, खोजने निकलो। तुम अकेले नहीं खोज रहे, और बहुत खोज रहे है। बहुत लोगों ने खोजा है, बहुत लोगों ने पाया है। उन सबको क्‍या हुआ है, क्‍या नहीं हुआ है। उस सबको समझो, लेकिन उस सबको समझकर तुम आपने को समझना बंद मत कर देना; उसको समझ तुम यह मत समझ लेना कि यह मेरा ज्ञान बन गया। उसका तुम अपने को समझना बंद मत कर देना। उसको समझकर तुम यह मत समझ लेना की  मेरा ज्ञान बन गया है। उसका तुम विश्‍वास मत बनाना, उस पर तुम भरोसा मत करना, उस सबसे तुम प्रश्न बनाना, उस सबको तुम समस्‍या बनाना, तुम विश्‍वास मत बनाना। बंद मत कर देना; उसको समझकर तुम यह मत समझ लेना की मेरा ज्ञान बन गया है। उसको समाधान मत बनाना,तो फिर तुम्‍हारी यात्रा जारी रहेगी। ओर तब फिर मांगना नहीं है, तब तुम्‍हारी खोज है।
      और तुम्‍हारी खोज ही तुम्‍हें अंत तक ले जा सकती है। और जैसे-जैसे तुम भीतर खोजोंगे तो जो मैंने तुमसे बातें कहीं है, प्रत्‍येक केंद्र पर दो तत्‍व तुमको दिखाई पड़ेंगे—ऐ जो तुम्‍हें मिला है, और एक जो तुम्‍हें खोजना है; क्रोध तुम्‍हें मिला है, क्षमा तुम्‍हें खोजनी है। सेक्‍स तुम्‍हें मिला है, ब्रह्मचर्य तुम्‍हें खोजना है; स्‍वप्‍न तुम्‍हें मिला है, विजन तुम्‍हें खोजना है, दर्शन तुम्हें खोजना है।
      चार शरीरों तक तुम्‍हारी द्वैत की खोज चलेगी, पांचवें शरीर पर तुम्‍हारी अद्वैत की खोज शुरू होगी।
      पांचवें शरीर में तुम्‍हें जो मिल जाये, उससे भिन्‍न को खोजना जारी रखना। आनंद मिल जाये तो तुम खोजना कि और आनंद के अतिरिक्‍त क्‍या है?
      छठवें शरीर पर तुम्‍हें ब्रह्म मिल जाये तो तुम खोज जारी रखना कि ब्रह्म के अतिरिक्‍त क्‍या है। तब एक दिन तुम उस सातवें शरीर पर पहुंचोगे,जहां होना और न होना, प्रकाश और अंधकार जीवन और मृत्‍यु दोनों एक साथ ही घटित हो जाते है। और जब परम दी अल्टीमेट.... और उसके बाबत फिर कोई उपाय नहीं कहने का।

--ओशो
जिन खोजा तिन पाइयां,
प्रश्‍नोत्‍तर चर्चाएं, बंबई,
प्रवचन--8
(7,468)


1 टिप्पणी:

  1. अच्छा लिखा है ....

    एक बार इसे जरू पढ़े -
    ( बाढ़ में याद आये गणेश, अल्लाह और ईशु ....)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_10.html

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