(शुन्य की किताब)--ओशो
(ओशो की अंग्रेजी
पुस्तक Hsin
Hsin Ming का हिन्दी अनुवाद शुन्य की किताब जो झेन गुरु सोसान के
सुत्रों पर ओशो के अमृत प्रवचनों का संकलन है।)
प्रवेश से पूर्व
प्रतीक जिस वस्तु
को अभिव्यक्त करता है उसका ज्यादा महत्व नहीं रह गया है। गुलाब का महत्व नहीं है 'गुलाब'
शब्द महत्वपूर्ण हो गया है। और मनुष्य शब्द का इतना आदी हो गया है
शब्द से इतना आविष्ट हो गया है कि शब्द से प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। कोई 'नीबू' का नाम ही लेता है तो तुम्हारे मुंह में पानी
आता है। यह शब्द का आदी हो जाना है। हो सकता है नीबू भी इतना प्रभावकारी न हो भले ही
नीबू टेबल पर रखा हो और तुम्हारे मुंह में पानी भी न आए। लेकिन कोई कहता है 'नीबू’?
और तुम्हारे मुंह में पानी आ जाता है। शब्द वास्तविक से अधिक महत्वपूर्ण
हो गया
है-- यही उपाय है--और जब तक तुम इस शब्द-- आसक्ति को नहीं छोड़ते
तुम्हारा
वास्तविकता से साक्षात्कार नहीं होगा। दूसरा कोई और अवरोध नहीं है।

और तुम्हारे मुंह में पानी आ जाता है। शब्द वास्तविक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया
है-- यही उपाय है--और जब तक तुम इस शब्द-- आसक्ति को नहीं छोड़ते तुम्हारा
वास्तविकता से साक्षात्कार नहीं होगा। दूसरा कोई और अवरोध नहीं है।