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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-02)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना भाग-02

उस रात के समय तो को तो आश्रम में कोई खास ध्‍यान नहीं हो रहा था। केवल पश्‍चात्‍य संगीत और फूहड़ नृत्य जो मुझे अधिक नहीं भाता। सो नहाने के बाद थोड़ा आश्रम में धूम पुरानी यादों में कुछ क्षण जिया। और उसके बाद थोड़ी सी खिचड़ी और दाल खाई और फिर कुछ लिखा फिर प्रवचन लगा कर सो गया। रात को मुझे जल्‍दी सोने की आदत है। क्‍योंकि फिर सुबह जल्‍दी उठना भी होता है। अकसर सुबह तीन बजे मेरी आँख खुल जाती है। उठने के बाद सबसे पहले थोड़ा पानी पिया और उसके बाद केतली में चाय बनाई और फिर बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा। जो मेरी घर पर भी दिनचर्या थी। घर पर भी जल्‍दी उठ कर मैं और मोहनी साथ घूमने निकल पड़ते है। इस बार उमर ख्‍याम में ठहरने का मोका मिला था। सच ही उमर ख्‍याम को तो ओशो की चित्र कला की प्रदर्शनी के लिए सजाया व बना रखा था। पूरे गलियारे सीढ़ियों या कमरों में जहां भी नजर जाती थी केवल ओशो की बनी पेंटिंग ही लगी थी। कुछ तो ऐसी थी जो मैं पहली बार देख रहा था। ये अंग्रेज सच चीजों को कलात्मक से बनाने में माहिर है।

उसके बाद आकर नहाया और चोगा पहन कर ओशो की समाधि पर शांत ध्‍यान के लिए चला गया। वहां से जब तक आया, तब तक विजिटिंग सेंटर (स्‍वागत कक्ष)  खुलाने का समय हो गया था। इसलिए मैं कार्ड बनवाने के लिए चला गया। मेरे पास पुराना कार्ड था इस लिए बनने में अधिक देर नहीं लगी और फिर पैसे जमा करने के लिए अंदर जाकर जहां कार्य ध्‍यान के आफिस चला गया। तब वहां जाकर मैंने पैसे जमा करने के लिए बिल निकलवाया। वहां पर एक विदेशी लड़की बैठी थी।

उसने जो पर्ची निकाली उस में 1 लाख और 55 हजार रूपये लिखा था। जो कुछ गलत था। क्‍योंकि मार्च में आफ सीजन हो जाता है। इसलिए मार्च के महीने में 1 लाख 23 हजार 600 रूपये होने चाहिए था। ये रेट तो इस समय विदेशियों का था। जिसे मैंने नेट पर भी देख लिया थे। इस लिए में एक लाख रूपये ही कमरे से लेकर आया था क्‍योंकि बेटी ने 25 हजार पहले ही जमा करा दिये थे। इस लिए मैं कृष्‍णा स्‍वामी के पास अकाउंट सेक्‍सन (Section) में गया। और मैंने उन्‍हें बताया की कुछ तो गलत है। वह मेरी बात को समझ कर सहम हो गये। और उन्‍होंने उस बिल को ठीक करा कर मेरे पैसे जमा किए और मुझे रसीद दी और साथ में मेरे कार्ड पर एक महीने का स्टिकर लगा दिया।

अब एक महीना मेरा था जो मुझे ओशो की उर्जा में बिताने के लिए परमट था। क्‍योंकि अभी यानि 11 तारीख यानि ध्‍यान शुरू होने में पाँच दिन थे। इस लिए पहले ही वहां की हवा पानी का में तन व मन को सहज करने का ये सुअवसर था। अगर आश्रम का तरूण ताला खूला होता तो क्‍या कहने थे फिर तो सोने पर सुहागा था। क्‍योंकि तरूण ताल के साथ-साथ जी कूजी और सोना बाथ का भी आनंद लिया जा सकता था। मेरे कमरे की सफाई हर सोमवार की थी। इसके अलावा लॉन्ड्री सर्विस फ्री थी। वहां के धुले कपड़ों की बात ही अलग थी। मानो नये से भी नये हो जाते है। परंतु तरूण ताल के बिना आश्रम कुछ अधूरा-अधूरा लग रहा था। परंतु अब कुछ नहीं किया जा सकता। अब जो है उसी को आनंद से जीना है। न होने का दूख को नाहक क्‍यों ओढ़ा जाये। दिन का खाना खाने के बाद नोटिस बोर्ड पर देखा तो आज 1 बज कर 30 मिनट पर राधा हाल में टेस्‍टर था (ओपन ब्रीद) ध्‍यान का जिसे साधना जी करा रही थी। गहरी श्वास लें क्‍योंकि हम स्‍वांस बहुत उथले लेते है।

पूना में ये बहुत सुंदर है ध्‍यान से पहले टेस्‍टर होते है। उसे वहां रहने वाले प्रत्‍येक साधक को करना ही चाहिए अगर समय हो तो। आधे घंटे के ये टेस्‍टर एक दम से फ्री होते है। उस में बहुत सुंदर तरह से ध्‍यान की गहराई के विषय में बतलाया जाता है। की किस तरह से आप अपनी स्‍वांस को गहरा कर सकते है। गहरी श्‍वास एक प्रकार से गहरी शांति लाती है। क्‍योंकि एक कहावत भी है चैन की श्‍वास। फिर आपके सामने एक दूसरा व्‍यक्‍ति खड़ा हो जाता है, कुछ दूरी पर। फिर एक ताल देते हुए उसे तेज किया जाता है और आपको कहां जाता है की आप अपने श्‍वास को तेजी से लो और गहरा छोड़ो। बार-बार आप नाभि तक श्‍वास को लेते है और निकालते है। बहुत सुंदर ध्‍यान था।

उस के बाद कमरे में जा कर कुछ विश्राम किया तब तक श्‍याम के ध्‍यान का समय हो गया। उमर ख्‍याम में रहने का से फायदा था की सामने ही पिरामिंड है। आप को केवल पाँच मिनट पहले उठ कर जाना है। न ही आप को कार्ड को साथ लेना है। पिरामिंड में पहुंच कर नाद ब्रह्म ध्‍यान किया, उसके कुछ देर बाद कुंडली शुरू हो जाता है। सो उसे भी करना ही था। और रात संध्या सतसंग। धीरे-धीरे ध्‍यान का दिन नजदीक आ रहा था। 9 तारीख को ओशो मिस्‍टिक रोज का टेस्‍टर समाधि पर हुआ वह 30 मिनट का था। बहुत सुंदर रहा जो हमारी कल्‍पना के परे था। सच उसे शब्‍दों में नहीं कहा जा सकता। जो एक प्रकार का भय और घबराहट मन को हो रही थी। वहां वह एक दम से गायब थी। मन नाहक एक जाल बुन रहा था। लगा कोई भय नहीं ओशो समाधि की उर्जा गजब की है उस का कोई जवाब नहीं। अगले दिन फिर 11 बजे मिस्‍टिक रोज का टेस्‍टर पिरामिंड में हुआ वह एक घंटे का था। अब वो भी करना था। परंतु जब दोनों को देखा तो दिन रात का फर्क था। कितनी दूरी है, दोनो स्‍थान ओशो उर्जा से लवरेज है। परंतु समाधि पर केवल 30 मिनट का टेस्टर बहुत गहरा गया। अब मैं सोच रहा था। की ये दोनों ही स्‍थान ओशो की उर्जा क्षेत्र समाधि है, फिर ओशो पिरामिंड जब इतनी से दूरी में ध्‍यान में दिन रात का फर्क है तो ये ध्‍यान जब हम दूसरे किसी आश्रम या जगह पर करते है तो कितना भेद हो जाता होगा। क्‍योंकि हम तुलना नहीं कर पाते उसकी गहराई की।

मैंने दोनों स्‍थान की उर्जा देखी गजब चमत्कार है, ओशो समाधि का। परंतु कहीं भी करे ओशो ध्‍यान अपनी गहराई तो देता है। परंतु स्‍थान का भी अपना महत्‍व होता है। मैं ये नहीं कहता की कहीं और मिस्‍टिक रोज या दूसरे ध्‍यान नहीं करने चाहिए। न करने से तो लाख गुणा अच्‍छा है करना। आप कहीं भी करे ओशो उर्जा तो बरसेगी ही। मानो थोड़ी सी कम या अधिक।

मनसा-मोहनी दसघरा

ओशोबा हाऊस नई दिल्‍ली 

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