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रविवार, 31 जनवरी 2010

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—18

शिक्षक की शर्तें

      मेरे शिक्षकों में से एक प्रतिदिन अपनी कक्षा इस बात को कह कर शुरू किया करते थे। पहले मेरी शर्तों को सुन लो। मुझे सिर में दर्द होना स्‍वीकार नहीं है, मुझे पेट में दर्द होना स्‍वीकार नहीं है। मैं उन चीजों को स्‍वीकार नहीं करता जो मुझे ज्ञात न हो सकें। हां, यदि तुम्‍हें बुखार है, तो मैं इसको स्‍वीकार करता हूं, क्‍योंकि मैं जांच कर सकता हूं कि तुम्‍हारा तापमान बढा हुआ है। इसलिए याद रहे कोई भी ऐसी बात के लिए छुटटी नहीं मिलेगी जो सिद्ध न कि जा सके। कोई डाक्‍टर भी यह सिद्ध नहीं कर सकता कि सिर में दर्द है या नहीं। उन्‍होंने करीब-करीब प्रत्‍येक बात पर रोक लगा दी, क्‍योंकि तुमको दिखने वाली बीमारी प्रस्‍तुत करनी थी। केवल तब ही तुम बाहर जा सकते हो; लेकिन मुझे कुछ उपाय खोजना था, क्‍योंकि यह स्‍वीकार योग्‍य बात नहीं थी।
     
    वे एक वृद्ध व्‍यक्‍ति थे, इसलिए मुझे जो भी करना था वह रात में करना था....वे वृद्ध थे लेकिन बहुत शक्‍तिशाली थे, और व्‍यायाम करने के बारे में टहलने के बारे में बहुत नियमित थे, इसलिए वे सुबह जल्‍दी पाँच बजे उठ जाया करते थे। और अंधेरे में ही दूर तक टहलने के लिए निकल जाते थे। इसलिए मुझे बस उनके दरवाजे पर केले के छिलके रखने पड़े। सुबह-सुबह वे गिर पड़े और उनकी पीठ में चोट लग गई। मैं तुरंत वहां पहुंच गया, क्‍योंकि मुझे इस बारे में पता था।
      उन्‍होंने कहा: मेरी पीठ में बहुत दर्द हो रहा है।
      मैंने कहा: ऐसी किसी बात का उल्‍लेख मत कीजिए जिसको आप सिद्ध न कर सकें।
      उन्‍होंने कहा: लेकिन में इसे सिद्ध कर सकूं या नहीं, मैं आज स्‍कूल आने योग्‍य नहीं रहा।
      तब मैने कहा: आपको कल से अपनी शर्ते बंद करनी पड़ेगी, क्‍योंकि मैं सारे स्‍कूल में पूरी बात फैलाने जा रहा हूं, कि यदि पीठ दर्द स्‍वीकार किया जा सकता है....क्‍या सबूत है आपके पास इसका। तो सिर का दर्द क्‍यो नही?
      उन्‍होंने कहा: मैं सोचता हूं कि यहां पड़े हुए केले के छिलकों से तुम्‍हारा कोई संबंध है।
      मैंने कहा: शायद आप सही है, लेकिन आप सिद्ध नहीं कर सकते, और मैं केवल उन बातों में ही विश्‍वास करता हूं जिनको सिद्ध किया जा सके।
      उन्‍होंने कहा: कम से कम तुम मेरे लिए एक काम तो कर सकते हो, तुम मेरा आवेदन प्रधानाध्‍यापक तक पहुंचा सकते हो।
      मैंने कहा: मैं आपका आवेदन पत्र ले लुंगा, लेकिन स्‍मरण रखें, कि कल से आप उन शर्तों को बंद कर देंगे, क्‍योंकि कभी-कभी मेरे सिर में दर्द होता है, कभी-कभी मेरे पेट में दर्द होता है। क्‍योंकि मैं हर प्रकार के कच्‍चे फल खाने का आदी हूं। जब आप दूसरे के बग़ीचे से फल चुरा रहे होते है तो आप यह नहीं कह सकते कह फल पका हुआ होना चाहिए। और पकने से पहले ही वो फल आप को मिल जाए। जैसे ही वे पक जाते है। उनको लोग ले जाते है। इसलिए मुझे पेट की परेशानी रहती है। और निशिचत रूप से उन्‍होंने उस दिन से इन शर्तों को समाप्ति कर दिया। उन्‍होंने बस मेरी और देखा, मुस्कुराए और अपनी कक्षा आरंभ कर दी।
      छात्र तो बस अचंभित रह गए: इनको क्‍या हो गया? शर्तों का क्या हुआ, मैं उठ खड़ा हुआ और बोला,मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा है।
      तुम जा सकते हो। ऐसा पहली बार हुआ था....संध्‍या को जब वे मेरे पिता से मिलने आए तो उन्‍होंने बताया,ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी को पेट दर्द के कारण अवकाश दिया हो.....क्‍योंकि ये लोग इतने कल्‍पनाशील है और नये बहाने खोजने वाले है। और उन्‍होंने मेरे पिता जी से कहा: आपका पुत्र खतरनाक है।
      मैंने कहा: पुन: आप कुछ ऐसा करने का प्रयास कर रहे है जिसे आप सिद्ध नहीं कर सकते,बस आप कल्‍पना कर सकते है। मैं बस सुबह घूमने जा रहा था और मैंने आपको गिरे हुए देखा,और मैं उठने में आपकी सहायता करने चला गया। क्‍या आप सोचते है कि किसी की सहायता करना गलत है।
      मैंने कहा: उसकी खोज आपको करना पड़ेगी—यह आपका मकान है यह बस संयोग है कि मैं सुबह टहलने जा रहा था और मेरे पिता जानते है कि रोज मैं सुबह घूमने के लिए जाता हूं।
      मेरे पिता ने कहा: यह सच है, यह प्रतिदिन टहलने जाता है। लेकिन यह संभव है कि उसने यह किया हो। लेकिन जब तक आप इसे सिद्ध न कर दें, इसका कोई उपयोग नहीं है: हमें उसके सामने चीजों को सिद्ध करना पड़ता है। यदि तर्क से वह जीत जाता है तब भले ही हम सही हों, वह विजेता है और हम पराजित है। इसने हमें आपकी पीठ की चोट के बारे में पूरी बात बता दी थी और यह भी बताया था के आपने तब से अपनी दोनों शर्तों को वापस ले लिया है।
      मेरे पिताजी भी उनके छात्र रहे थे। उन्‍होंने का: यह अजीब है, क्‍योंकि आपने कभी भी उन शर्तों के बीना पढ़ाना आरंभ नहीं क्या था।
      मेरे शिक्षक ने कहा: पहले कभी मेरे पास इस प्रकार का विद्यार्थी नहीं रहा। मुझको अपनी पूरी योजना बदलनी पड़ी, क्‍योंकि उसके साथ विवाद में पड़ना खतरनाक है, उसने मुझे मार डाला होता।   
--ओशो

1 टिप्पणी:

  1. vidhyarthi hi shikshak ko hamesha naya kerte hai shiksha se use jode rekhte hai ..vidhyarthiyon ki gikgasayen v unke seekhne ki lalsaa per shkshak ke shikshan kary ki gunvatta mein bhi furk aata hai ....dhanyawad mansa ...achaa laga ..

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