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बुधवार, 27 जनवरी 2010

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—11

ओम, ओम.....का नाद और दंड

      पने प्राइमरी स्‍कूल में उस समय मैं चौथी कक्षा में था, मेरे एक शिक्षक थे...स्‍कूल में यह उनकी कक्षा में मेरा पहला दिन था, और मैंने कुछ गलत किया भी नहीं था, मैं वहीं कर रहा था जो तुम ध्‍यान में किया करते हो: ओम, ओम....., लेकिन भीतर-भीतर मुंह बंद करके। मेरे कुछ मित्र थे, और मैंने उनको भिन्‍न—भिन्‍न स्‍थानों पर बैठने के लिए कह रखा था। जिस से वह  शिक्षक जान न सके कि ध्‍वनि कहां से आ रही है। एक समय यह ध्‍वनि यहां से आ रही होती, दूसरे समय यह वहां से आ रही होती, फिर एक बार यहीं से आ रही होती। वह खोजते रहे कि ध्‍वनि कहां से आ रही थी। इसलिए मैंने उनको कहा हुआ था, अपने मुंह बंद रखो और भीतर ओम का जाप करते रहो।
      एक क्षण को तो वे इसको जान नही पाए। मैं बिलकुल पीछे बैठा था। सारे अध्‍यापक चाहते थे कि में उनके सामने बैठा करूं जिससे वे मुझ पर निगाह रख सकें। और मैं सदा पीछे बैठना चाहता था। जहां तुम कई  और काम कर सकते हो, यह अधिक सुविधाजनक है। वे सीधे ही मेरे पास आए। अवश्‍य ही उन्‍हें तीसरी कक्षा के शिक्षक ने यह बता दिया होगा कि ‘’ आप इस लड़के पर निगाह रखें। इसलिए उन्‍होंने कहा: हालांकि मैं जान नहीं पा रहा हूं कि वे लोग क्‍या कर रहे है जो यह सब कर रहे है। तुम ही यह कर रहे होओगे।‘’
      मैंने कहा: क्‍या? मैं क्‍या कर रहा हूं? आपको मुझे बताना पड़ेगा। बस यह कहना तुम क्‍या कर रहे हो, से कोई अर्थ नहीं निकलता है। क्‍या.....?
      अब उनके लिए वह कर पाना कठिन था जो मैं कर रहा, क्‍योंकि वह मूर्खतापूर्ण प्रतीत होता और प्रत्‍येक हंसने लगा होता।
      उन्‍होंने कहा: चाहे यह जो कुछ भी हो, अपने दोनों कान अपने हाथों से पकड़ो और बैठ  जाओ, खड़े हो जाओ, बैठ जाओ, खड़े हो जाओ—ऐसा पाँच बार करों।
      मैंने कहा: बिलकुल उचित है। मैंने उनसे पूछा: क्‍या मैं पचास बार कर सकता हूं।
      उन्‍होंने कहा: यह कोई पुरस्‍कार नहीं है दंड है।
      मैंने कहा: आज सुबह मैं कोई व्‍यायाम नहीं कर पाया हूं,इसलिए मैंने सोचा कि यह अच्‍छा अवसर है, और आप बहुत प्रसन्‍न होंगे,पाँच के स्‍थान पर मैं पचास कर लुंगा। और सदैव स्‍मरण रखें, जब कभी भी आप मुझे कोई पुरस्‍कार दें—उदार होकर दें। और मैंने पचास बैठके लगाना आरंभ कर दिया।
      पे बोलते रहे, रूक जाओ, काफी हो चुका। मैंने कभी ऐसा लड़का नहीं देखा। तुमको शर्मिंदा होना चाहिए कि तुमको दंडित किया गया है।
      मैंने कहा: नहीं मैं अपना सुबह का व्‍यायाम कर रहा हूं। आपने मेरी सहायता की,आपने मुझे पुरस्‍कृत किया है। अच्‍छा व्‍यायाम है यह। वास्‍तव में तो आपको भी करना चाहिए।
--ओशो

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