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मंगलवार, 26 जनवरी 2010

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—10

दंड या पुरस्‍कार

      क्षियों को सुनते-सुनते मुझे स्‍मरण हो आता है.....होई स्‍कूल में बस मेरी कक्षा के बाहर ही आम के अनेक वृक्ष थे। और आम के वृक्षों पर कोयलें अपना घोंसला बनाया करती है। जिसकी पुकार इस समय आ रही है, वहीं है कोयल, और कोयल की बोली में मधुर और कुछ भी नहीं है।
      इसलिए मैं खिड़की के पास पक्षियों की ओर, वृक्षों की और बाहर देखता हुआ बैठा करता था, और मेरे शिक्षक बहुत अधिक नाराज रहा करते थे। वे कहा करते,तुम्‍हें ब्‍लैक बोर्ड की और देखना पड़ेगा।
      मैं कहता,यह मेरा जीवन है और मुझको यह चुनने का पुरा अधिकार है कि कहां देखना है। बाहर कितना सुंदर है—पक्षी गीत गा रहे ह,और ये पुष्‍प, और ये वृक्ष, और वृक्षों की पत्‍तियों से छन-छन कर आती हुई यह धूप—तो मैं ऐसा नहीं सोचता कि आपका ब्‍लैक बोर्ड कहीं से इनका स्‍थानापन्‍न बन सकता है।
      वे अध्‍यापक इतने क्रोधित हो उठे कि उन्‍होंने मुझसे कहा: तब तुम बाहर जा सकते हो। और खिड़की के बाहर उस समय तक खड़े रहो जब तक कि तुम ब्‍लैक बोर्ड पर देखने को तैयार न हो जाओ—क्‍योंकि मैं तुमको गणित पढ़ा रहा हूं। और तुम वृक्षों को और पक्षियों को देख रहे हो।
      मैंने कहा: आप जो मुझको दे रहे है यह एक बड़ा पुरस्‍कार है, दंड नहीं, और मैंने उनको अलविदा कह दिया।
      उन्‍होंने कहा: क्‍या अभिप्राय है तुम्‍हारा।
      मैंने कहा: मैं कभी अंदर नहीं आऊँगा। मैं प्रतिदिन खिड़की के बाहर खड़ा रहूंगा।      
      उन्‍होंने कहा: अवश्‍य ही तुम पागल हो। मैं तुम्‍हारे पिता को , तुम्‍हारे परिवार को सूचित कर दूँगा: आप उस पर पैसा बरबाद कर रहे है, और वह बाहर खड़ा हुआ है।
      मैंने कहा: आप जो कुछ करना चाहें कर सकते है। अपने पिता के साथ मामला कैसे सुलझाया जाए वह मुझे पता है। और वे भली भांति जानते है कि यदि मैंने निर्णय कर लिया है कि मैं खिड़की के बाहर खड़ा रहूंगा, तो कुछ भी इस निर्णय को बदल नहीं सकता।   
      प्रधानाचार्य, जब वे राउंड पर निकलते थे, तो मुझको प्रतिदिन खिड़की के बाहर खड़ा हुआ देखा करते थे। वे हैरान थे कि मैं प्रतिदिन वहां क्‍या कर रहा होता हूं। तीसरे या चौथे दिन वे मेरे पास आए और उन्‍होंने कहा, तुम क्‍या कर रहे हो? तुम यहाँ क्‍यों खड़े हो?
      मैंने कहा: मुझको पुरस्‍कृत किया गया है।
      उन्‍होंने कहा: पुरस्‍कृत, किस लिए ?
      मैंने कहा: आप जरा मेरे साथ खड़े हो जाएं और पक्षियों के गीत सुनें। और वृक्षों का सौंदर्य....क्‍या आप सोचते है कि ब्‍लैक बोर्ड और मूढ़ अध्‍यापक की और देखते रहना उसके सामने कुछ भी महत्‍व रखता है। क्‍योंकि केवल मूढ़ लोग ही अध्‍यापक बन जाते है, उनको कोई और रोजगार तो मिलता नहीं। अधिकतर तो वे तृतीय श्रेणी स्‍नातक हुआ करते है। इसीलिए न तो मैं अध्‍यापकी और देखना चाहता हूं न ही मैं ब्‍लैक बोर्ड की और देखना चाहता हूं। जहां ते गणित का प्रश्न है, तो उसकी चिंता आपको करने की आवश्‍यकता नहीं है—मैं कुछ न कुछ व्‍यवस्‍था कर लुंगा। लेकिन मैं इस सौंदर्य की अनुभूति से चूक नहीं सकता।    
      वे मेरी बगल में आ खड़े हुए और उन्‍होंने कहा: निश्‍चित रूप से यह दृश्‍य सुंदर है। मैं यहां पर पिछले बीस वर्षो से प्रधानाचार्य हूं, और मैं कभी यहां नहीं आया। और मैं तुम्‍हारे साथ सहमत हूं कि यह पुरस्‍कार है। जहां तक गणित का प्रश्न है, मैं गणित में एम. एस सी. हूं,तुम किसी भी समय मेरे घर आ सकते हो। और तुमको मैं गणित पढ़ा दूँगा—लेकिन तुम बाहर खड़े रहना जारी रखो।
      इस तरह मुझे बेहतर अध्‍यापक विद्यालय के प्रधानाध्यापक,जो बेहतर गणितज्ञ थे। मिल गए। और मेरे गणित के अध्‍यापक बहुत अधिक हैरान थे। उन्‍होंने सोचा था कि कुछ दिन बाहर खड़ा रह कर मैं थक जाऊँगा। लेकिन पूरा महीना बीत गया। फिर वे बाहर आए और उन्‍होंने कहा: मुझे खेद है, क्‍योंकि मुझे पूरे समय सतत पीड़ा होती रही है। कि मैं कक्षा में हूं और मैंने तुमको यहां बाहर खड़ा होने के लिए बाध्‍य कर रखा है। और तुमने कोई हानि भी नहीं पहुँचाई है। तुम भीतर बैठ सकते हो और जहां चाहों वहां देखते रहना।
      मैंने कहा: अब तो बहुत देर हो चुकी है।
      उन्‍होंने कहा: क्‍या अभिप्राय है तुम्‍हारा।
      मैंने कहा: मेरा अभिप्राय यह है कि अब मैं बाहर रहने का मजा ले रहा हूं। खिड़की के पीछे बैठ कर वृक्षों का और पक्षियों का बहुत छोटा सा अंश ही अवलोकन के लिए उपलब्‍ध रहता है, यहां पर आम के हजारों वृक्ष अपलब्‍ध है। और जहां तक गणित का प्रश्न है। प्रधानाचार्य जी स्‍वयं मुझको पढ़ा रहे है। प्रत्‍येक संध्‍या को मैं उनके पास पढ़ने जाता हूं।
      उन्‍होंने कहा: क्‍या?
      मैंने कहा: जी हां, क्‍योंकि वे मेरे साथ सहमत है। कि यह यहां इस भांति खड़े रहना एक पुरस्‍कार है।
      वे सीधे प्रधानाध्‍यापक के पास गए और कहा, यह अच्‍छी बात नहीं है, मैंने उसको दंडित किया और आप उसको प्रोत्साह न दे रहे हो।
      प्रधानाचार्य ने कहा: दंड और प्रोत्‍साहन को भूल जाइए—आपको भी कभी-कभी बाहर खड़े हो जाना चाहिए। अब मैं और प्रतीक्षा नहीं कर सकता,वरना पहले तो मैं एक दिनचर्या की भांति विद्यालय में जो मुझको करना है वह है राउंड पर जाना और उस लड़के  के साथ‍ वहां पर खड़े रहना और वृक्षों का अवलोकन करना।
      पहली बार मैंने सीखा कि गणित से श्रेष्‍ठ चीजें भी है—पक्षियों का कलरव, पुष्‍प, हरे-भरे वृक्ष, वृक्षों से छन कर आती सूर्य की किरणें, बहती हुई और वृक्षों  के माध्‍यम से अपना गीत गाती हुई हवा। कभी-कभी आपको भी वहां जाना चाहिए और उसका साथ देना चाहिए।
      वे बहुत अफसोस ग्रस्‍त होकर वापस लौटे और बोल: प्रधानाध्‍यापक ने मुझको बताया है कि क्‍या हुआ है, तो अब क्‍या किया जाए। उन्‍होंने मुझसे पूछा: क्‍या मैं पूरी कक्षा को बाहर ले आऊं?
      मैंने कहा: यह तो बहुत अच्‍छा रहेगा। हम उन वृक्षों के नीचे बैठ सकते है और वहां आप अपनी गणित पढ़ा सकते है। लेकिन मैं कक्षा के कमरे में वापस आने वाला नहीं हूं। चाहे आप मुझको अनुत्‍तीर्ण कर दें। तब भी। लेकिन ऐसा आप न कर पाएँगे, क्‍योंकि अब मैं कक्षा के किसी भी छात्र की तुलना में अधिक गणित जानता हूं। और मेरे पास पढ़ाने के लिए बेहतर अध्‍यापक है। आप तृतीय श्रेणी में उतीर्ण बी. एससी. है, और वे प्रथम श्रेणी में स्‍वर्ण पदक विजेता एम. एससी. है।
      कुछ दिनों तक उन्‍होंने इसके बारे में सोचा, और एक सुबह जब मैं पहुंचा तो मैंने देखा कि पूरी कक्षा वृक्षों के नीचे बैठी हुई है। मैंने उनसे कहा: आपका ह्रदय अब भी जीवित है, गणित ने उसको मार नहीं डाला है।
--ओशो

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