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बुधवार, 27 जनवरी 2010

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—12

बहादुर या कायर मास्‍टर

    मेरे हाई स्‍कूल में, वहां विद्यालय भवन में दो इमारतें थी। और उनके बीच में  कम से कम बीस फिट  का फासला था। मुझे लकड़ी का एक ऐसा पटिया मिल गया जो बीस फिट लंबा था। पहले मैं इसे भूमि पर रख देता और अपने मित्रों से कहता, तुम इस पर चल सकते हो? और प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति इसपर बिना गिरे चल पाने में समर्थ था। और तब मैं लकड़ी के उस पटिये को उन दो इमारतों पर पुल की भांति रख देता था, और मेरे अतिरिक्‍त कोई उस पर चलने का प्रयास तक करने को तैयार नहीं होता।
      मैं कहा करता, अजीब मामला है यह,    क्‍योंकि उसी पटिये पर तुम चल चुके हो और तुम गिरे नहीं थे।
      वे कहते, वह भिन्‍न परिस्‍थिति थी। अब यह इतना खतरनाक है कि जरा सा भय लगता है, यदि बस एक कदम गलत पड़ गया तो तुम तीस फीट नीचे गिर पड़ोगे।
      मैं उनको यह कह कर फुसलाता, तुम मुझे चलता हुआ देख सकते हो, तुम्हें इस और या उस और नहीं देखना चाहिए। तुम इस लकड़ी पर चल चुके हो...ओर मेरी रणनीति यहीं है। यहां-वहां न देखना, बस पूरी तरह से लकड़ी पा एकाग्र कर लेना और चलते चले जाना। और मैं इस तरह से मीलों जा सकता हूं।
      जब एक दिन मैं कुछ छात्रों को उस पर चलने के लिए फुसला रहा था, एक नये शिक्षक रसायन विज्ञान के अध्‍यापक जो शेखी बधारा करते थे। कि वह बहुत बहादुर आदमी है पास आ गए। मैंने कहा: आप बहुत बहादुर आदमी हैं,शायद आप कोशिश कर सकें।
      उन्‍होंने कहा: मैं कोशिश कर सकता हूं। किंतु तब उन्‍होंने नीचे देखा, वह तीस फीट का फासला था। वे अधिक से अधिक दो फीट आगे बढ़े, गिर पड़े और उनकी जगह-जगह से हड्डियां टूट गई।
      अस्‍पताल में मैं उनको देखने गया। उन्‍होंने मुझसे कहा: मैंने ऐसा खतरनाक व्‍यक्‍ति कभी नहीं देखा। क्‍या खयाल थ यह?
      मैंने कहा: आप इतनी अधिक शेखी बधार रहे थे कि....एक बाद आप अच्‍छे हो जाएं फिर हम कुछ और कामों की कोशिश करेंगे।
      उन्‍होंने कहा: क्‍या मतलब तुम्‍हारा?
      मैंने कहा: आपको बस यह कहना होगा कि आप शेखी बधार रहे थे। क्‍योंकि मूलत: आप ऐसे व्‍यक्‍ति है जो बहुत अधिक भयभीत है। इस पर लीपा-पोती करने के लिए आप शेखी बधार रहे थे। आधी रात को घने से घने जंगल में मैं अकेला जा सकता हूं। मैं किन्‍हीं भूतों ये या किन्‍हीं डकैतों से या किन्‍हीं हत्‍यारों से नहीं डरता हूं।
      यह आप ही थे जिसने मुझको कुछ खोजने के लिए उकसाया। और मैं आपसे आगे चला गया, तो ऐसा नहीं था कि मैं खतरा नहीं उठा रहा था। क्‍योंकि आपने सोचा कि मैं चल लिया हूं, तो आप भी चल सकेंगे। यहीं पर आपने विचार गलत थे।    
      आपने पहले फुट से ही कांपना आरंभ कर दिया था, किंतु आप वापस न लौट सके। वहां पर समय था, आप कूद कर वापस हो सकते थे, आपने केवल दो कदम ही बढ़ाए थे, किंतु यह वापस लौटना आपके अहंकार के प्रतिकूल था। इसलिए आप चलते चले गए और गिर गए। यह आपके शरीर की हड्डियाँ नहीं टूटी है, वरन आपके अहंकार की टूटी है। आपका शरीर दो-तीन सप्‍ताह में  कुछ बेहतर अवस्‍था में हो जाएगा,लेकिन आपका अहंकार, उसका क्‍या होगा। दुबारा कभी अपनी बहादुरी का उल्‍लेख न करें; वरना....मुझे कुछ नये काम और मिल गए है।
      उन्‍होंने कहा: मैं इस स्कूल से इस्‍तीफा देने जा रहा हूं, बहुत हो चुका यह सब। मैं ऐसा नहीं चाहता था।
      मैंने कहा: यह आप पर निर्भर करता है। आप इस्‍तीफा दे सकते है। लेकिन फिर भी हम कुछ कोशिश करेंगे।
      और हमने कोशिश कर ली। उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी, उन्‍होंने सामान लिया—उनकी न कोई पत्‍नी थी, न बच्‍चा, न कोई और। वे बस विश्‍वविद्यालय से अभी-अभी शिक्षा लेकर आए एक युवक थे। मैं और मेरे कुछ मित्रों ने उन्‍हें जा पकड़ा, और हमने इतना शोरगुल मचाया कि बड़ी भीड़ एकत्रित हो गई।
      हमने कहा: वे अपनी पत्‍नी को छोड़कर भाग रहे है।
      और भीड़ को समझाने की कोशिश कर रहे थे, मेरी कोई पत्‍नी वगैरह नहीं है। ये लोग झूठ बोल रहे है। मैं तो बस नौकरी छोड़ रहा हूं। और जा रहा हूं।
      मैंने भीड़ से कहा: बस इनको वापस घर ले चलो। इनके पत्‍नी और तीन बच्‍चे है।    
      उन्‍होंने कहा: मुझको छोड़ दो, क्‍योंकि मेरी ट्रेन छूट जाएगी। मैं वापस नहीं जा सकता।
      लेकिन भीड़ ने उनको घेर लिया और कहा: नहीं जा सकते है आप। पहले आप घर वापस चलिए। ये लड़के भला क्‍यों झूठ बोल रहे होगें? और हम लोग भी बस एक-दो नहीं थे, मेरे दस लड़के थे जो पंक्‍तिबद्ध होकर खड़े थे और कह रहे थे: आपकी पत्‍नी रो रही है। आपके बच्‍चे रो रहे है। आप उनको छोड़ कर जा रहे है। यह कोई अच्‍छी बात नहीं है।
      भीड़ ने उनको पकड़ लिया। हम सभी भाग खड़े हुए। वे चिल्‍ला रहे थे, चीख रहे थे और कह रहे थे: मेरा विवाह नहीं हुआ है, मेरा कोई बच्‍चा नहीं है। मेरी कोई पत्‍नी नहीं है।
      भीड़ ने कहा: पहले आप घर वापस चलिए।
      उन्‍होंने कहा: मेरी ट्रेन छूट जाएगी।
      उन लोगो न कहा: हमें ट्रेन से कुछ लेना-देना नहीं। ट्रेन आप कल पकड़ सकते है—क्‍योंकि वहां जाने के लिए प्रतिदिन एक ही ट्रेन थी। इसलिए यह केवल चौबीस घटों का मामला है। पहले तो आप घर चलिए।
      और हमने एक बहुत गरीब स्‍त्री का इंतजाम कर रखा था, जिसके तीन बच्‍चे थे, और हमने उससे कहा था—हम तुम्‍हें थोड़े अभिनय के लिए पाँच रूपये देने वाले है।    
      उसने कहा: लेकिन ये कोई अच्‍छी बात नहीं है।
      मैंने कहा: नुकसान ही क्‍या है। तुम बस अपना चेहरा ढांके रहो ताकि कोई जान न पाए कि तुम कौन हो...., और भारत में तुम अपने सिर को घूँघट से ढाक सकते हो। और रो सकते हो। और मैंने बच्‍चों से कह दिया, तुम कहो, पापा, आप हमें क्‍यों छोड़ कर जा रहे हो।
      वे अपनी आंखों पर भरोसा न कर सके: वहां एक महिला थी जो रो रही थी और उनके पैर पकड़े हुए थी और कह रही थी, हमें छोड़ कर मत जाइए, आपने विवाह किया है मुझसे और तीन बच्‍चे विलाप कर रह थे: पापा.....।
      और भीड़ ने कहा: अब क्‍या कहते है आप?
      उन्‍होंने कहा: अब मैं क्‍या कह सकता हूं, मैंने कभी इन बच्‍चों को नहीं देखा, मैंने कभी इस स्‍त्री को नहीं देखा, और वे मेरे मकान में बैठे हुए है।
      भीड़ के पीछे हम सभी उपस्‍थित थे। अंतत: मैंने उनसे कहा: ट्रेन लेट है, चिंता मत करिए। मैं उनको एक और ले गया और मैंने उनसे कहा, यह मेरे उपायों में से बस ऐ उपाय है। आपको इस स्‍त्री को पाँच रूपये देने पड़ेंगे, फिर आप जा सकते है। तब मैं मामला सम्‍हाल लुंगा।
      उनको उस महिला को पाँच रूपये देने पड़े। भीड़ ने पूछा: क्‍या हो रहा है यह।
      मैंने कहा: उनका समझौता हो गया है। वे केवल दो दिन के लिए जा रहे है। और उन्‍होनें दो दिन के खर्च के लिए घन दे दिया है। फिर वे वापस लोट आएँगे।     
      तब उन लोगों ने उन्‍हें जाने दिया। और बाद में उस महिला ने मुझसे कहा: यदि तुम्‍हारे पास इस प्रकार के अभिनय के कुछ और प्रस्‍ताव हो तो मैं सदा तत्‍पर हूं। मात्र पाँच मिनट के अभिनय के लिए पाँच रूपये। उन दिनों पाँच रूपये काफी धन होता था। पाँच रुपयों से कोई महीने भर का खर्चा चला सकता था।
      उन्‍होंने कहा: अब कोई उपाय नहीं, मेरे शरीर में जगह-जगह हड्डियां टूटी गई है, मेरे पाँच रूपये चले गए है, और मुझे नहीं लगता कि मुझको अब ट्रेन मिल सकती है।
      मैंने कहा: आप चिंता मत करे ट्रेन जा चुकी है। आपको वेटिंग रूम में प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन हमने सारा इंतजाम कर लिया है....वहां आप आराम से रहेंगे। रात में बस जरा सावधान, सजग रहें। मैंने कहा: हमारे पास अधिक समय है भी नहीं, केवल एक ही रात है। हमने भूतों से संपर्क साधा था....केवल एक भूत तैयार है।
      उन्‍होंने कहा: हे भगवान।
      मैंने कहा: तो रात को वेटी रूम में...क्‍योंकि रात में वहां कोई ट्रेन नहीं आती थी। और स्‍टेशन मास्‍टर चले जाते थे। और  वेटिंग रूम खाली रहता था। पूरा प्‍लेटफार्म खाली था।
      उन्‍होंने कहा: तब तो मैं स्‍टेशन नहीं जा सकता, मैं तो सड़क पर, बाजार में कही पर रूक जाऊँगा, लेकिन अब मैं रात में स्‍टेशन, उस वीरान जगह पर नहीं जाऊँगा।      
      मैंने कहा: आप कहा करते थे कि आपको भूतों में विश्‍वास नहीं है।     
      वे कहने लगे, मैं कहता था। लेकिन तुम्‍हारे उपायों को देख कर....भले ही भूतों को अस्तित्व हो या न हो, कोई न कोई भूत अवश्‍य प्रकट हो जाएगा। और मैं और अधिक मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता।
      वे सज्‍जन मुझे पच्‍चीस वर्षो के बाद मिल गए। मैंने पूछा: कैसे है आप?
      वे बोले, मैं कैसा हूं। तुमने मुझको इतना डरा दिया कि मैंने निर्णय ले लिया कभी विवाह नहीं करना है। कभी बच्‍चे पैदा नहीं करने है। और कभी किसी स्‍कूल में नौकरी नहीं करनी है। खतरनाक है यह। मेरा पूरा शरीर हड्डियां टूटने के बरबाद हो गया,और उस दिन तो तुम और अधिक हानि पहुंचा सकते थे। क्‍योंकि पूरी भीड़ तुम पर विश्‍वास कर रही थी।   
      मैंने कहा: वह महिला आपके साथ जाने को तैयार थी। वे बच्‍चे आपके साथ जाने को तैयार थे। आपने स्‍वयं ही उनको रिश्‍वत दी कि वे आपका पीछा छोड़ दे।  
      वे बोले, मैंने उन्‍हें रिश्‍वत दी? तुमने सलाह दी थी कि पाँच रूपये उनको दे दूँ। और इन लोगों को तुम्हीं लेकर आए थे। और मैं उस महिला और उन बच्‍चो को जानता था। वे बस पडोस में ही रहा करते थे।
      लेकिन, मैंने कहा: आप कांप क्‍यों रहे थे?
      उन्‍होंने कहा: मैं क्‍यों कांप रहा था? मैं कांप रहा था क्‍योंकि यह भीड़ कहीं उस महिला और उन बच्‍चों को मेरे सिर पर न थोप दे। मेरी नौकरी जा चुकी थी, और मेरे पास एक ऐसा परिवार होता जिसका मुझसे कोई सरोकार नहीं था। कितनी कुरूप थी वह महिला और तुम इतने चतुर थे कि तुमने उससे अपना चेहरा साड़ी की ओट में छिपाने के लिए कह रखा था। लेकिन तक से मैं इतना घबड़ा गया हूं कि मैंने किसी स्‍कूल में नौकरी नहीं की। और मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि मैं एक बहादुर आदमी हूं। मैंने स्‍वीकार कर लिया कि मैं कायर हूं।
      मैंने कहा: यदि आपने पहले ही यह मान लिया होता,तो इस हादसे को टला जा सकता था।
      --ओशो

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