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बुधवार, 10 मार्च 2010

नारी कहां है........?



  इस संबंध में बोलने का सोचता हूं, तो पहले यही खयाल आता है। कि नारी कहां है? नारी का कोई अस्‍तित्‍व ही नहीं है। मां का अस्तित्व है, बहन का अस्‍तित्‍व है, बेटी का अस्तित्व है, पत्‍नी का अस्‍तित्‍व है। पर नारी का कहीं अस्‍तित्‍व नहीं है। नारी का अस्‍तित्‍व उतना ही है जिस मात्रा में वह पुरूष से संबंधित होती है। पुरूष का संबंध ही उसका अस्‍तित्‍व है। उसकी अपनी कोई आत्‍मा नहीं है।
      यह बहुत आश्‍चर्यजनक है, लेकिन यह कड़वा सत्‍य है कि नारी का अस्‍तित्‍व उसी मात्रा ओर उसी अनुपात में होता है, जिस अनुपात में वह पुरूष से संबंधित होती है। पुरूष से संबंधित नहीं हो तो ऐसी नारी का कोई अस्‍तित्‍व नहीं है। और नारी का अस्‍तित्‍व ही न हो तो क्रांति की क्‍या बात करना हे?
      इसलिए पहली बात यह समझ लेनी जरूरी हे। कि नारी अब तक अपने अस्तित्व को भी—स्‍थापित नहीं कर पाई हे। उसका अस्‍तित्‍व पुरूष के अस्तित्व में लीन है। पुरूष का एक हिस्‍सा है उसका अस्‍तित्‍व। ....
      पहली बात, नारी का अपना कोई अस्‍तित्‍व नहीं है। और उसे अस्‍तित्‍व की अगर धोषणा करनी होगी उसे कहना चाहिए कि मैं-मैं हूं—किसी की पत्‍नी नहीं; वह पत्‍नी होना गौण है। मैं-मैं हूं—किसी की मां नहीं, मां होना गोण है। किसी की बहन, बेटी होना गोण है। वह मेरा अस्‍तित्‍व नहीं है। मेरे अस्‍तित्‍व के अनंत संबंधों में से एक संबंध है। यह संबंध है, रिलेशनशिप है, वह मैं नहीं हूं। यह स्‍पष्‍ट भाव आने वाली पीढी की एक-एक लड़की में, एक-एक युवती में एक-एक नारी में होना चाहिए—मेरा भी अपना अस्‍तित्‍व है।
      दूसरी बात यह कहना चाहता हूं कि अगर स्त्रीयां अपनी आत्‍मा खोजना चाहती है, उन्‍हें स्‍पष्‍ट यह समझ लेना चाहिए कि बिना प्रेम के बिना विवाह के रह जाना बेहतर है, लेकिन बिना प्रेम के विवाह करना पाप है, अपराध है।....
      आने वाल बच्‍च्‍िायों को, आने वाली भविष्‍य की स्‍त्रियों को, आने वाले नारी के नये रूपों को यह मन से बहुत साफ होना चाहिए कि प्रेम है, तो पीछे विवाह है; प्रेम नहीं है, तो विवाह नहीं हे। अगर नहीं है प्रेम तो विवाह की कोई जरूरत नहीं है। प्रेम आएगा, प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।.....
      अगर नारीयों को यह स्‍पष्‍ट खयाल हो जाए कि उनके व्‍यक्‍तित्‍व की प्रेम असली आवाज है, तो आने वाली बच्‍चियों के व्‍यक्‍तित्‍व में प्रेम की पूरी संभावना को विकसित करने में मां को सहयोगी, मात्र और साथी बनना चाहिए। और यह ध्‍यान रखना चाहिए कि प्रेम के बाद ही विवाह आए, प्रेम के पहले नहीं। जिस दिन प्रेम के पीछे विवाह आएगा, उसी दीन नारी को अपनी आत्‍मा मिल जाएगी। प्रेम से ही उसे आत्‍मा मिल सकती है। ये अपनी पहचान के लिए पहला कदम है।......
      अगर यह क्रांति उपस्‍थित नहीं  होती है, तो नारी को जो अनुदान देना चाहिए मनुष्‍य की सभ्‍यता के लिए, वह नहीं दे पाती हे। और नारी के जीवन में जो प्रफुल्‍लता, शांति, और आनंद होना चाहिए वह उसे अपलब्‍ध नहीं हो पाता हे। और नारी का आनंद बहुत अर्थपूर्ण है, क्‍योंकि वह घर को केंद्र हे। अगर घर का केंद्र उदास,दीन-हीन, थका हुआ, हारा हुआ है, तो सारा घर,सारा परिवार,जो उसकी परिधि पर घूमता है, वह सब दीन-हीन, उदास और हारा हुआ हो जाएगा।
      एक हंसती हुई,मुस्कराती हुई नारी जिस घर में है। जिसके कदमों में प्रेम के गीत है, जिसके चलने से झंकार है, जिसके दिल में खुशी है, जिसे जीने का एक आनंद  मिल रहा है, है,जिसकी श्‍वास-श्‍वास प्रेम से भरी है, ऐसी नारी जिस घर के केंद्र पर है। उस सारे घर में एक नई सुवास, एक नया संगीत पैदा हो जाएगा। और एक घर का सवाल नहीं है। यह प्रत्‍येक घर का सवाल है। अगर प्रत्‍येक घर में यह संभव हो सके,तो एक समाज पैदा होगा—जो शांत हो, आनंदित हो, प्रफुल्लित हो।
      यह बड़ी क्रांति में ,कि यह मनुष्य का समाज परमात्‍मा के निकट पहुंचे, नारी बहुत अर्थों में सहयोगी हो सकती है। उस क्रांति के ये थोड़े से सूत्र मैंने कहे। नारी को अपनी आत्‍मा और अपने आस्‍तित्‍व की घोषणा करनी है। नारी को  संपत्‍ति होने से इनकार करना है। नारी को पुरूष के द्वारा बनाए गए विधानों को वर्गीय घोषित करना है। और उसे निर्मित करना है कि वह क्‍या विधान अपने लिए खड़ा करें। नारी को प्रेम के अतिरिक्‍त जीवन की सारी व्‍यवस्‍था को अनैतिक स्‍वीकार करना है। प्रेम ही नैतिकता का मूल मंत्र है। अगर यह इतना हो सके तो एक नई नारी का जन्‍म हो समता है।
--ओशो (नारी और क्रांति)







4 टिप्‍पणियां:

  1. इस संबंध में बोलने का सोचता हूं, तो पहले यही खयाल आता है। कि नारी कहां है? नारी का कोई अस्‍तित्‍व ही नहीं है। मां का अस्तित्व है, बहन का अस्‍तित्‍व है, बेटी का अस्तित्व है, पत्‍नी का अस्‍तित्‍व है। पर नारी का कहीं अस्‍तित्‍व नहीं है। नारी का अस्‍तित्‍व उतना ही है जिस मात्रा में वह पुरूष से संबंधित होती है। पुरूष का संबंध ही उसका अस्‍तित्‍व है। उसकी अपनी कोई आत्‍मा नहीं है।

    Bahut sundar.Bilkul yahi maiN sochta huN. Tabiyat khush ho gayi padhke.

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  2. Sir, u r makin it necessry for me to buy a printer right now so that i can keep a hard copy of all these articles with me all the time. it is my habit of reading a article again and again if i like it. kyaa karoo? i can't manage it.

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  3. Sach to yahi hai ki Nari aur Purush alal-2 nahi balki Ek Saiukt vyaktitwa hai. Inhe PREM- isrei aur Parisharam (Shram) - Purush ke rup ma alag-2 kiya ja skta hai.

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  4. ओशो के नारी-सम्बन्धी विचार मुझे हमेशा से आकर्षित करते हैं. नारी का स्वरूप ही प्रेममय है. ऐसा लगता है कि नारी और प्रेम एक-दूसरे के पूरक हैं. ओशो का ही शायद यह कथन है- पुरुष प्रेम करता है, शरीर पाने के लिये और नारी शरीर देती है प्रेम पाने के लिये. प्रेम की कमी से ही कितनी आपराधिक प्रवृत्तियाँ समाज में जन्म लेती हैं. यदि लोग स्त्री और प्रेम दोनों को सम्मान देने लगें तो समाज के कितने ही विकार दूर हो जायेंगे.

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