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शनिवार, 13 मार्च 2010

प्रसन्न ता और उदासी—का सदुपयोग शिवनेत्र के लिए

कभी जब चित बहुत प्रसन्‍न हो तो द्वार-दरवाजे बंद करके अपने कमरे में लेट जाए, कम से कम वस्‍त्र हो या नग्‍न होकर लेटे तो और भी बेहतर होगा। और एक मिनट तक अपने माथे पर हाथ रखकर दोनों आंखों के बीच में एक मिनट तक रगड़ते रहे। चित्‍त अगर प्रसन्‍न हो, तो माथे पर रगड़ते ही सारी प्रसन्‍नता माथे पर इक्कठी हो जाएगी।
      ध्‍यान रहे जब आदमी उदास होता है। तो अक्‍सर माथे पर हाथ रखता है। माथे पर हाथ रखने से उदासी बिखरती है। और प्रसन्‍नता इकट्ठी होती है। हालांकि प्रसन्नता में कोई नहीं रखता,उसका खयाल नहीं है।
      जब आदमी उदास होता है, दुःख होता है चिंतित होता है, तो माथे पर हाथ रखता है। उससे चिंता बिखर जाती हे। उस समय जो इकट्ठा है वह बिखर जाता है। निगेटिव कुछ होगा तो माथे पर हाथ रखने से बिखर जाता है। पाजीटिव कुछ होगा तो माथे पर हाथ रखने से इक्कठ्ठा हो जाता है।
 इस लिए मैंने कहा: जब प्रसन्‍न क्षण हो मन को कोई,लेट जाएं, माथे पर एक क्षण रगड़ लें जोर से हाथ से, अपने ही हाथ से। वह जगह बीच में जो है, वह बहुत कीमती जगह है। शरीर में शायद सर्वाधिक कीमती जगह है। वह अध्‍यात्‍म का सारा राज छिपा है। थर्ड आई, कोई कहता है उसे कोई शिवनेत्र, उसे कोई भी कुछ नाम देता हो, पर वहां राज छिपा है। उस पर हाथ रगड़ लें। उस पर हाथ रगड़ने के बाद जब आपको लगे कि प्रसन्‍नता सारे शरीर से दौड़ने लगी है उस तरफ, आँख बंद ही रखें, और सोचें कि मेरा सिर कहां हे। खयाल करें आप आँख बंद करके कि मेरा सर कहां है।
       आपको बराबर पता चल जाएगा कि सिर कहां है। सब को पता है, अपना सिर कहां है। फिर एक क्षण के लिए सोचें कि मेरा सिर जो है, वह छ: इंच लंबा हो गया। आप कहेंगे, कैसे सोचेंगे।
       यह बिलकुल सरल है, और एक दो दिन में आपको अनुभव में आ जाएगा कि माथा छ: इंच लंबा हो गया। आँख बंद किए। फिर वापिस लौट आएं, नार्मल हो जाएं, अपनी खोपड़ी के अंदर वापिस आ जाएं। फिर छ: इंच पीछे लोटे, फिर वापस लोटे, पाँच सात बार करें।
      जब आपको यह पक्‍का हो जाए कि यह होने लगा, तब सोचें कि पूरा शरीर मेरा जो है। वह कमरे के बराबर बड़ा हो गया है। सिर्फ सोचना, जस्ट ए थाट, एंड दि थिंग हैपेंस। क्‍योंकि जैसे ही वह तीसरे नेत्र के पास शक्‍ति आती हे। आप जो भी सोचें, वह हो जाता हे। इसलिए इस तरफ शक्‍ति लाकर कभी भी कुछ भूलकर गलत नहीं सोच लेना, वरना ........
      इस लिए इस तीसरे नेत्र के संबंध में बहुत लोगों को नहीं कहा जाता है। क्‍योंकि इससे बहुत संबंधित द्वार हैं। यह करीब-करीब वैसी ही जगह है, जैसा पश्‍चिम का विज्ञान ऐटमिक एनर्जी के पास जाकर झंझट में पड़ गया है। वैसाही पूरब को योग इस बिंदु के पास आकर झंझट मैं पड़ गया था। और पूरब के मनीषी यों ने खोजा हजारों वर्षों तक, और फिर छिपाया इसको। क्‍योंकि आम आदमी के हाथ में पडा तो खतरा शुरू हो जाएगा।
      अभी पश्‍चिम में वहीं हालत है। आइंस्टीन रोते-रोते मरा है, कि किसी तरह एटमिकएनर्जी के सीक्रेट खो जाए तो अच्‍छा हो। नहीं तो आदमी मर जाएगा।
      पूरब भी एक दफा इस जगह आ गया था दूसरे बिंदु से, और उसने सीक्रेट खोज लिया था। और उससे बहुत उपद्रव संभव हो गए थे, और शुरू हो गए थे तो,उन्‍हें भुला देना पडा। पर यह छोटा-सा सूत्र मैं कहता हूं, इससे कोई बहुत ज्‍यादा खतरे नहीं हो सकते है। क्‍योंकि और गहरे सूत्र है, जो खतरे ला सकते है।
--ओशो,(गीता दर्शन भाग-4,अघ्‍याय-8, प्रवचन—01) 










2 टिप्‍पणियां:

  1. इस तीसरे नेत्र की महिमा के विषय में ओशो के कुछ विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मैंने पूजा करते वक्त माथे पर तिलक लगाना आरम्भ किया । पहले जब मुझे इस तीसरे नेत्र की शक्तियों का ज्ञान नहीं था तब तक मुझे माथे पर तिलक करना पोंगा पंडित होने का एहसास करता था और मैं पूजा तो करता था पर तिलक नहीं लगता था। उस पुण्य आत्मा को मेरा नमन।

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