भारत तुम्हें पुकारता है
भारत शब्द का वहीं अभिप्राय है।
भा का अर्थात; प्रकाश,
और रत का अर्थ है, संलग्न।
जो प्रकाश में संलग्न है। वह भारत है। एक समय था जब यह पूरा का पूरा देश प्रकाश की यात्रा में संलग्न था। और पूरी दुनिया से लोग यात्रा करके यह अंतर् यात्रा के लिए लोग आते थे। वह आज भी आ रहे है। वे ही सच्चे अर्थों में भारतीय है। भले ही उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी हो—अमरीकी, रूसी, चीनी, यूरोपियन......। दूसरी और यह भी सच है जो लोग इस अनूठे भूखंड पर रहते हुए भी पश्चोन्मुख है, जिन्हें देर रात तक डिस्को पार्टियों में जाना है। बिजनेस डील करने है और सब तरह की बहिर्यात्राओं की चकाचौंध में उलझकर अपने को खो देना है। वे केवल अपनी राष्ट्रीयता में भारतीय है, वास्तव में उनका भारत से कोई सबंध नहीं है। उन्हें पश्चिम में होना चाहिए। लाखों ऐसे लोग भारत छोड़कर पशिचम में बस गए है। जिन्हें हम अप्रवासी भारतीय पुकारते है। लेकिन करोड़ों ऐसे लो यहां भारत में बसे हुए है जिनके प्राण तो पश्चिम में है, पर वे किन्हीं कारणों से इस भूखंड पर समय काट रहे है।
स्पष्ट है इस भूखंड पर रहने मात्र से कोई भारतीय नहीं हो जाता है। ओशो कहते है—‘’असली भारत मनुष्य की आत्मा की खोज है—भूगोल नहीं, राजनीतिक इतिहास नहीं, बल्कि अंतर् यात्रा। ध्यान की यात्रा ही असली भारत है। महावीर इसका प्रतिनिधित्व करते है। बुद्ध इसका प्रतिनिधित्व करते है। नानक, कृष्णा, गोरख, क्राइस्ट, रैदास.....। लाखों-लाखों नाम है। सच मायनों में वे ही असली भारत का प्रतिनिधित्व करते है। और मेरे पास उन सबकी धरोहर है—और उससे अधिक भी।‘’
इंडिया इस देश का असली नाम नहीं है। यह दिया गया है। असली नाम है ‘’भारत’’ यह नाम एक बहुत महान सम्राट का था जो अपने राज को त्याग कर संन्यासी हो गया था। यह एक पूर्व-ऐतिहासिक बात है। इसलिए इसका कोई इतिहास नहीं है। संभवत: लगभग दस हजार वर्ष पहले रहा होगा। लेकिन देश का यह नाम एक संन्यासी से जुड़ा था। यह भारत के ह्रदय की ‘’आधारभूत आंतरिकता रही है। इसने कभी सम्राटों का सम्मान नहीं किया है, इसने संन्यासियों को सम्मान किया है। इसने कभी धनी लोगों का सम्मान नहीं किया है, इसने व्यक्तियों का, चेतनताओं का तथा अध्यात्म का सम्मान किया है।‘’
ऐसे ही आज हजारों युवक पशिचम की भौतिकता छोड़कर ओशो के चरणों में आकर उनके चरणों में नव-संन्यास में दीक्षित हो रहे है ओर भारत के भारत के सनातन अमृत-पथ पर चल रहे है। वह अमृत भारत, वह ज्योतिर्मय भारत कोई इतिहास नहीं हो गया है—वह आज भी जिंदा है, आज भी धड़क रहा है। आज भी नृत्य कर रहा है। महोत्सव मना रहा है।
यहां पुणे में,ओशो कम्यून के प्रांगण में। ध्यान का वह शंखनाद आज भी यहां सुनाई पड़ता है।
इस बात से कोई फर्क नहीं होता की अब ओशो नहीं रहे। लाखों आज भी वहां पर वहीं उर्जा वहीं जीवंतता वह सुरमई माहौल पाते है। ध्यान और होश आज भी वहां पर एक-एक जरें-जरें, पत्ते-पत्ते, कण-कण रचा बसा है। वहां आज भी में दस दिन साल में रह कर इतनी उर्जा से भर जाता हूं कि साल भर भी में आपने को जीवंत महसूस करता हूं।
जब बहिर्यात्राओं से जी भर जाए, प्राण थक जाएं। तब तो लोग वहां जा कर आपने को जीवंत महसूस करते है। सच अगर कही, कोई तीर्थ है, कोई जीवित मंदिर है, वो है ओशो की मधुशाला पुणे ओशो आश्रम,(ओशो कम्यून पुणे) लेकिन हम ऐसी स्थिति की प्रतीक्षा क्यों करनी? जिनके प्राण संवेदनशील है, जिनके ह्रदय में आज भी बाल सुलभ ताजगी है। जो सरल है, सुकोमल है। बालवत हे, वहीं उसे महसूस कर सकता है। जो अपने जीवन में पंख चाहता है, पृथ्वी के चुम्बकीय खिचाव के बहार आसमान में पंख फैला उड़ना चाहता है, चहकना चाहता है, गीत गाना चाहता है, एक स्वछंद आकाश में मुक्त उड़ना चाहता है। उन्हें निमंत्रण है, एक आह्वान है, उन्हें भारत का: अमृतस्य पुत्र:, अमृत के पुत्रों, आओ, भारत तुम्हें पुकार रहा है। असली भारत को आह्वान सुनो, उठो, जागों और आगे बढ़ो,
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
ओशो कहते है: ‘’भारत का भाग्य मनुष्य की नियति है।‘’
-- स्वामी चैतन्य कीर्ति (मनसा आनंद)
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