हम
भारतीय लोग,
दृष्टि कोण
और विश्वास
दोनों ही
धरातलों पर
अलग-अलग ढंग
सक जीते है।
हमारी सोच
हमें अलग दिशा
में ले जाती
है तो हमारी
मान्यताएं
और हमारे संस्कार
हमें दूसरी
दिशा में ले
जाते है। ऐसी
उलझनों से हम
तभी पार पा
सकते है जब
ओशो जैसे
सद्गुरू
मार्गदर्शक
और मित्र हमारे
साथ हों। हर
व्यक्ति को
अपने जीवन में
पल-पल पर एक
गुरु की जरूरत
होती है। मगर
किसी के लिए
यह संभव नहीं
है। कि वह
बार-बार अपने
गुरु के पास
जाकर मार्ग
दर्शन ले। मेरे
लिए तो ओशो की
किताबें, उनकी
कैसेट्स ही गुरु,
मित्र और
मार्गदर्शक
का काम करती
है।
फिल्म
निर्माण में
कई तरह के
शारीरिक,
मानसिक व भावनात्मक
तनावों से
गुजरना होता
है—इन तनावों
से उबरने के
लिए एक अध्यात्मिक
शक्ति की
जरूरत होती
है। और यह आध्यात्मिक
शक्ति मुझे
ओशो से मिलती
है। दुनिया की
तमाम फिलॉसॉफी
को ओशो ने हर
काल और समाज
की आवश्यकता
के अनुरूप
प्रस्तुत कर
पूरी मनुष्यता
को नई दिशा दी
है। ओशो ने एक इंसान
के रूप में
जन्म लेकिन
पूरी मनुष्य
जाति के लिए
एक क्रांति का
सूत्रपात
किया है।‘’
हम
भारतीय लोग
बेटी के लिए
अगल बेटे के
लिए अलग, मां
के लिए अलग,
बाप के लिए
अलग, घर के
अंदर अलग तो
घर के बाहर
अलग दृष्टिकोण
रखते है। ओशो
ने हमारे इसी
सोच को बदलने
की सार्थक
कोशिश की है।
ओशो
को सुनने व
पढ़ने से
मिलने वाली
आध्यात्मिक
शक्ति मुझे
अपनी फिल्म
निर्माण के
लिए प्रेरणा
देती है। फिल्म
निर्माण का
कार्य किसी
ड्रीम प्रोजेक्ट
को परदेश पर
साकार करने का
होता है—हमें हर
पात्र से
प्रेम होता है
चाहे वह हीरो
हो, हीरोइन हो
या विलीन हो—इन
सभी चरित्रों
को साकार कर
पाना ओशो की अनंतदृष्टि
के साथ सहज
है।
सुभाष
घई
फिल्म
निर्माता
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