केंद्रित
होने की
सातवीं विधि:
‘’पाँवों
या हाथों को
सहारा दिए
बिना सिर्फ
नितंबों पर
बैठो। अचानक
केंद्रित हो जाओगे।‘’
चीन
में ताओ
वादियों ने
सदियों से इस
विधि को
प्रयोग किया
है। यह एक
अद्भुत विधि
है और बहुत
सरल भी।
इसे
प्रयोग करो: ‘’पाँवों
या हाथों को
सहारा दिए
बिना सिर्फ
नितंबों पर
बैठो। अचानक
केंद्रित हो
जाओगे।‘’
इसमें
करना क्या है? इसके
लिए दो चीजें
जरूरी है। एक
तो बहुत संवेदनशील
शरीर चाहिए,
जो कि तुम्हारे
पास नहीं है।
तुम्हारा
शरीर मुर्दा
है। वह एक बोझ
है। संवेदनशील
बिलकुल नहीं
है। इसलिए
पहले तो उसे
संवेदनशील
बनाना होगा,
अन्यथा यह
विधि काम नहीं
करेगी। मैं
पहले तुम्हें
बताऊंगा कि
शरीर को
संवेदनशील
कैसे बनाया
जाए—खासकर
नितंब को।
तुम्हारी
जो नितंब है
वह तुम्हारे
शरीर का सब से
संवेदनशील
अंग है। उसे
संवेदनहीन
होना पड़ता
है। क्योंकि
तुम सारा दिन
नितंब पर ही
बैठे रहते हो।
अगर वह बहुत
संवेदनशील हो
तो अड़चन
होगी। तुम्हारे
नितंब को
संवेदनहीन
होना जरूरी
है। पाँव के
तलवे जैसी
उसकी दशा है।
निरंतर उन पर
बैठे-बैठे पता
नहीं चलता कि तुम
नितंबों पर
बैठे हो। इसके
पहले क्या
कभी तुमने उन्हें
महसूस किया है? अब कर
सकते हो,
लेकिन पहले
कभी नहीं
किया। और तुम
पूरी जिंदगी
उन पर ही
बैठते हो—बिना
जाने। उनका
काम ही ऐसा है
कि वे बहुत
संवेदनशील
नहीं हो सकते।
तो
पहले तो उन्हें
संवेदनशील
बनाना होगा।
एक बहुत सरल
उपाय काम में
लाओ। यह उपाय
शरीर के किसी
भी अंग के लिए
काम आ सकता
है। तब शरीर
संवेदनशील हो
जाएगा। एक
कुर्सी पर
विश्राम
पूर्वक, शिथिल
होकर बैठो।
आंखे बंद कर
लो और शिथिल
होकर कुर्सी
पर बैठो। और
बाएं हाथ को
दाहिने हाथ पर
महसूस करो।
कोई भी चलेगा।
बाएं हाथ को
महसूस करो।
शेष शरीर को
भूल जाओ। और
बांए हाथ को
महसूस करो।
तुम
जितना ही उसे
महसूस करोगे
वह उतना ही
भारी होगा।
ऐसे बाएं हाथ
को महसूस करते
जाओ। पूरे शरीर
को भूल जाओ।
बाएं हाथ को
ऐसे महसूस करो
जैसे तुम बायां
हाथ ही हो।
हाथ ज्यादा
से ज्यादा
भारी होता
जाए।
जैसे-जैसे वह
भारी होता जाए
वैसे-वैसे उसे
और भारी महसूस
करो। और तब देखो
कि हाथ में क्या
हो रहा है।
जो
भी उत्तेजना
मालूम हो उसे
मन में नोट कर
लो—कोई उत्तेजना।
कोई झटका, कोई
हलकी गति,
सबको मन में
नोट करते जाओ।
इस तरह रोज
तीन सप्ताह
तक प्रयोग
जारी रखो। दिन
के किसी समय
भी दस-पंद्रह मिनट तक
यह प्रयोग
करो। बाएं हाथ
को महसूस करो
और सारे शरीर
को भूल जाओ।
तीन
सप्ताह के
भीतर तुम्हें
अपने एक नए
बाएं हाथ का
अनुभव होगा। और
वह इतना
संवेदनशील
होगा, इतना
जीवंत। और तब
तुम्हें हाथ
की सूक्ष्म और
नाजुक संवेदनाओं
का भी पता
चलने लगेगा।
जब
हाथ सध जाए तो
नितंब पर प्रयोग
करो। तब यह
प्रयोग करो:
आंखें बंद कर
लो और भाव करो
कि सिर्फ दो नितंब
है। तुम नहीं
है। अपनी सारी
चेतना को नितंब
पर जाने दो।
यही कठिन नहीं
है। अगर
प्रयोग करो तो
यह आश्चर्यजनक
है, अद्भुत है।
उससे शरीर में
जा जीवंतता का
भाव आता है वह
अपने आप में बहुत
आनंददायक है। और
जब तुम्हें
अपने नितंबों
का एहसास होने
लगे, जब वे खूब
संवेदनशील हो
जाएं। जब भीतर
कुछ भी हो उसे
महसूस करने
लगो, छोटी सी हलचल,
नन्हीं सी
पीड़ा भी
महसूस करने लगो।
तब तुम
निरीक्षण कर
सकते हो। जान
सकते हो। तब
समझो कि तुम्हारी
चेतना
नितंबों से जुड़
गयी।
पहले
हाथ से प्रयोग
शुरू करो, क्योंकि
हाथ बहुत
संवेदनशील
है। एक बार
तुम्हें यह
भरोसा हो जाए
कि तुम अपने
हाथ को
संवेदनशील
बना सकते हो। तब
वहीं भरोसा
तुम्हें
तुम्हारे
नितंब को
संवेदनशील
बनाने में मदद
करेगा। और तब
इस विधि को
प्रयोग में लाओ।
इसलिए इस विधि
को प्रयोग में
लाओ। इसलिए इस
विधि में
प्रवेश करने
के लिए तुम्हें
कम से कम छह
सप्ताह की
तैयारी करनी
चाहिए। तीन
सप्ताह हाथ
के साथ और तीन
सप्ताह
नितंबों के
साथ। उन्हें
ज्यादा से ज्यादा
संवेदनशील
बनाना है।
बिस्तर
पर पड़े-पड़े शरीर
को बिलकुल भूल
जाओ, इतना ही
याद रखो कि सिर्फ
दो नितंब बचे
है। स्पर्श
अनुभव करो—बिछावन
की चादर का,
सर्दी का या
धीरे-धीरे आती
हुई उष्णता
का। अपने स्नान
टब में पड़े-पड़े
शरीर को भूल
जाओ। नितंबों
को ही स्मरण
रखो।
उन्हें
महसूस करो।
दीवार से
नितंब सटाकर
खड़े हो जाओ और
दीवार की ठंडक
को महसूस करो।
अपनी
प्रेमिका, या
पति के साथ
नितंब से
नितंब मिलाकर
खड़े जाओ
और एक-दूसरे
को नितंबों के
द्वारा महसूस
करो। यह विधि
महज तुम्हारे
नितंब को पैदा
करने के लिए
है। उन्हें
उस स्थिति में
लाने के लिए
जहां वे महसूस
करने लगें।
और
जब इस विधि को
काम में लाओ: ‘’पाँवों
या हाथों को
सहारा दिए
बिना.....।‘’
जमीन
पर बैठो, पाँवों
या हाथों के
सहारे के बिना
सिर्फ
नितंबों के
सहारे बैठो।
इसमें बुद्ध
का पद्मासन काम
करेगा या सिद्घासन
या कोई मामूली
आसन भी चलेगा।
लेकिन अच्छा
होगा कि हाथ
का उपयोग न
करो। सिर्फ
नितंबों के
सहारे रहो।
नितंबों पर ही
बैठो। और तब
क्या करो? आंखे
बद कर लो और नितंबों
का जमीन के
साथ स्पर्श
महसूस करो। और
चूंकि नितंब
संवेदनशील हो
चूके है।
इसलिए तुम्हें
पता चलेगा कि
एक नितंब जमीन
को अधिक स्पर्श
कर रहा है।
उसका अर्थ हुआ
कि तुम एक नितंब
पर ज्यादा
झुके हुए हो। और
दूसरा जमीन से
कम सटा हुआ
है। और तब
दूसरे नितंब
पर बारी-बारी
से झुकते जाओ और
तब धीरे-धीरे
संतुलन लाओ।
संतुलन
लाने का अर्थ
है कि तुम्हारे
दोनों नितंब एक
सा अनुभव करते
है। दोनों के
ऊपर तुम्हारा
भार बिलकुल
समान हो। और तब
तुम्हारे
नितंब संवेदनशील
हो जाएंगे तो
यह संतुलन
कठिन नहीं होगा।
तुम्हें
उसका एहसास
होगा। और एक
बार दोनों
नितंब संतुलन में
आ जाएं तो तुम
केंद्र पर
पहूंच गए। उस
संतुलन में तुम
अचानक अपने
नाभि केंद्र
पर पहुंच
जाओगे और भीतर
केंद्रित हो जाओगे।
तब तुम अपने
नितंबों को भूल
जाओगे। अपने
शरीर को भूल
जाओगे। तब तुम
अपने आंतरिक
केंद्र पर स्थित
होओगे।
इसी
वजह से मैं
कहता हूं कि
केंद्र नहीं,
केंद्रित
होना महत्वपूर्ण
है। चाहे वह
घटना ह्रदय में
या सिर म या नितंब
में घटित हो, उसका
महत्व नहीं है।
तुमने
बुद्धों को
बैठे देखा होगा।
तुमने नहीं सोचा
होगा कि वे
अपने नितंबों
का संतुलन किए
बैठे है। किसी
मंदिर में जाओ
और महावीर को
बैठे देखो या
बुद्ध को बैठे
देखो, तुमने नहीं
सोचा होगा कि
यह बैठना
नितंबों का संतुलन
भर है। यह वही
है। और जब
असंतुलन न रहा
तो संतुलन से
तुम केंद्रित
हो गए।
ओशो
विज्ञान
भैरव तंत्र
(तंत्र-सूत्र—भाग-1)
प्रवचन-13
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