सत्तर
के दशक में
अमरीका में एक
करिश्माई
नेता जिम जोंस
का प्रभाव
बढ़ने लगा।
उसके वक्तव्य
बड़े सम्मोहक
होते और उसके
अनुयाई अंधों
की तरह उसका अनुसरण
करते। जिम
जोंस ने कार्ल
मार्क्स, विंस्टन
चर्चिल, और एडोल्फ
हिटलर जैसे
लोगों को गहन
अध्ययन किया
था। उसके जीवन
पर किए गए अध्ययनों
के अनुसार वह
बचपन से मृत्यु
की घटना से
बड़ा
प्रभावित था।
अक्सर
छोटे-छोटे मृत
जानवरों को
लाकर उनका
अंतिम संस्कार
किया करता था।
वह अपनेआप को
महात्मा
गांधी, कार्ल
मार्कस, जीसस
और बुद्ध का
अवतार भी कहता
था।
जिम जोंस
साम्यवादी
विचारधारा
वाला व्यक्ति
था जिसके चलते
उसका मतभेद
अमरीका
प्रशासन से
गहराने लगा और
वह मीडिया के
निशाने पर भी
आ गया। उसने
अपने
अनुयाइयों के
आगे एक अलग
दुनिया बसाने
का प्रस्ताव
रखा और लगभग 1000
अमरीकी शिष्यों
को लेकर
गुयाना के घने
जंगलों में बस
गया। अपने इस
समुदाय का
उसने नाम दिया
जन मंदिर—पीपुल्स
टेंपल। 18
नवंबर 1978 को जन
मंदिर में एक
ऐसी घटना घटी
जिसने पूरे
विश्व को
दहला कर रख दिया।
इस दिन जिम
जोंस ने एक
प्रवचन टेप रिकॉर्ड
किया जिसे उसने
अनुयाइयों को
सुनाया गया।
अपने इस प्रवचन
में उसने कहा
कि पूरा विश्व
उनका शत्रु है
और यह धरती
उनके रहने के
काबिल नहीं
है। अब समय आ
गया है कि एक
बेहतर दुनिया की
और चला जाए।
जो उन सबका
इंतजार कर रही
है। सभी अच्छे
से तैयार हो
जाएं।
नहाएं-धोएं
अच्छे वस्त्र
पहने और अपने
जूते भी कस
लें क्योंकि
स्वर्ग रथ
आने वाला है।
जो सभी को नई दुनियां
में ले जाएगा।
इसके लिए जो
सबसे महत्वपूर्ण
कार्य है वह
है कि सभी को
एक स्थान पर
एकत्र होकर एक
पेय पदार्थ
पीना है जो कूल
एड और साइनाइड
का मिश्रण है।
लगभग 1000 लोग
जिम जोंस की
बात से
प्रभावित
होकर यह पेय
पीकर एक-दूसरे
का हाथ पकड़े,
सजे-संवरे
धरती पर लेट
गए। 914 लोगों ने
एक साथ सामूहिक
आत्म हत्या
में प्रवेश
किया।
निर्देश था कि
पेय पहले छोटे
बच्चों को
दिया जाए।
मरने वालों
में 303 बच्चे
थे। गिने-चुने
लोग ही साइनाइड
के प्रभाव
से बच पाए।
यह घटना
सामूहिक
बेहोशी का एक
सशक्त
उदाहरण है। एक
समूह का, एक
भीड़ का अपना
कोई उत्तरदायित्व
नहीं होता—न
हत्या में, न
आत्म हत्या
में, न बलात्कार
में और न ही
दंगा फसाद
में।
मनोवैज्ञानिक
कहते है कि जब
कोई व्यक्ति
असमंजस की स्थिति
में होता है
तो वह निर्णय
के लिए अपने
आसपास के व्यक्तियों
की और देखता
है कि बाकी
लोग इस विषय
में एक विचार
रखते है और
उसी पर आधारित
निर्णय ले लेता
है। बहुमत के
साथ चलने की
मनुष्य की
सोच
प्राचीनकाल
में चली आ रही
है। समूह के
साथ चलने में
एक सुरक्षा का
आभास होता है
इसीलिए
भीड़ों और
समूहों ने
जहां सशक्त प्रशासनों
को पलट दिया
वही जघन्य हत्याओं,बलात्कारों
और
सांप्रदायिक
दंगों को भी
अंजाम दिया
है।
कार्ल
गुस्ताव
जुंग की ‘सामूहिक
अवचेतना’
की थ्योरी के
अनुसार एक
भीड़, एक
समूह में
प्रत्येक व्यक्ति
अपना व्यक्तित्व
खो कर भीड़ ही
हो जाता है।
यह समूह या
भीड़ स्वयं
एकत्र नहीं
होती। इसे
एकत्र करने का
काम करता है
एक ऐसा व्यक्ति
जो करिश्माई
है। जिसमें
पहले करने की
प्राकृतिक
गुणवत्ता
है। यह व्यक्ति
ऐसा मनुष्य
भी हो सकता
है। जिसकी
चेतना में
रूपांतरण की
और ले जाने
में सहायक हो
सकता है।
लेकिन यह समूह
पर समूह की
तरह कार्य
नहीं करता बल्कि
प्रत्येक की
निजता और उसके
स्वभाव पर
कार्य करता
है।
दूसरी
और वह नेता एक
विक्षिप्त
और विध्वंसकारी
प्रवृति का रूग्ण
व्यक्ति भी
हो सकता है।
जो समूह को
हत्या,
दंगों बलात्कार
और विध्वंस
के लिए उकसा
सकता है।
ओशो
कहते है कि इस
धरती में हुई
क्रांतियां
आज तक इस लिए
सफल नहीं हुई
क्योंकि वह
भीड़ की
क्रांतियां
थी। वास्तविक
क्रांति तब
घटती है जब वह
प्रत्येक व्यक्ति
के अंतर्तम
में जन्म ले।
अभी
हाल ही में
दिल्ली में
एक बस में एक 23
वर्षीय युवती
का सामूहिक
बलात्कार
बड़े जघन्य
तरीके से हुआ
जिसके विषय
में हम सब
जानते है।
लेकिन यह कोई
इकलौती घटना
नहीं है। विश्व
में ऐसी घटनाएं
होती रहती है।
24
अक्टूबर 2009
में अमरीका के
कैलिफ़ोर्निया
के विद्यालय
रिचमंड हाई स्कूल
में छात्र-छात्राओं
का एक उत्सव चल
रहा था। एक पंद्रह
वर्षीय छात्रा
के एक सहपाठी ने
उसे स्कूल के
जिम में एक निजी
पार्टी में आने
का न्योता दिया
जहां पर 7 अन्य
छात्र प्रतीक्षा
कर रहे थे। इन सभी
न उस छात्रा से
कपड़े उतारने को
कहा जिससे उसने
इनकार कर दिया।
नशे
में धुत लड़कों
ने उस समूह ने लड़की
को उठा कर जमीन
पर पटक दिया। और
बारी-बारी से उसके
साथ बलात्कार
करने लगे जो लगभग
ढाई घंटे तक चला।
हैरानी
की बात तो यह थी
की उस स्थान पर
20 और लोग भी थे जो
वहां से गुजर रहे
थे। सभी मूक दर्शक
बने यह सब देखते
रहे। इन दर्शकों
में एक सल्वाडोर
रॉड्रीग्यूज
ने बयान दिया: ‘वो लड़के
उसे सिर पर अपने
जूतों से ठोकर
मार रहे थे, उसे
पीट रहे थे उसकी
सारी चीजें लूट
रहे थे। उन्होंने
उसके सारे वस्त्र
फाड़ दिये थे।
मानों वह मनुष्य
ही न हो। वह हिलडूल
भी नहीं रही थी।
मुझे लगा की वह
मर चुकी है। मुझे
लगता है में उसे
बचाने के लिए
कुछ कर सकता था।
लेकिन फिर लगा
जो हो रहा है। उसका
उतरदायी मैं नहीं
हूं।’
भीड़
में कोई उत्तर
दायी नहीं होता
क्योंकि भीड़
की कोई आत्मा
नहीं है।
स्वामी
अनिल सरस्वती
यस ओशो, फरवरी 2013
(विशेष—जिम जोंस की इस
वीभत्स कुरूर घटना
ने अमरीका को इतना
भय भीत कर दिया
किया वह सोचने
समझने की शमता
को भी खो बैठा।
जो जिम जोंस कर
रह था वह आदमी को
सम्मोहन की और
ले जा रहा था। इस
लिए अमरीकी ही
नहीं संसार के
सभी बुद्धि जीवी
और राजनैतिक लोग
भय भीत हुए हुये
थे सामूहिकता से
एक भीड़ से क्योंकि
वह देख चूके थे
एडोल्फ हिटलर को, जार
को, मुसोलनी को....अब
वह समझ नहीं सकी
ओशो के कार्य
को जो इस घटना के
बहुत जल्द यानि
1985 में अमरीका के
ऑरेगान में शुरू
हुआ। जिन जोंस
के साथ तो केवल
1000 लोग थे। परंतु
ओशो के साथ 5000 लोग
पाँच साल से वो
सब कर रहे थे विकास...जो
इस दुनियां का
नहीं लग रहा था।
तीन साल ओशो के
मौन के बाद ओशो
जब पहली बार अपने
जन्म दिन पर समागम
आये। उस समय दुनियां
भर से 10,000 लोग वह एकत्रित
हुए थे। ओशो उस
समय भी मौन में
थे। ओशो आकर अपनी
कुर्सी पर बैठे, चारों
और पागल मदमस्त
लोग। जो केवल झूम
रहे थे। ओशो ने
एक शब्द भी नहीं
बोला। और तीन घंटे
तक लोग पागलों
की तरह मंत्र मुग्ध
ओशो को पीते रहे।
राजनैतिक और बुद्धिजीवी
और मीडिया इस घटना
से डर गई कि हम तो
चीख-चीख कर भी बोलते
है तब भी लोग इतने
सम्मोहित नहीं
सुनते जरूर ये
लोग पागल हो गये
है। और लगता
है अब जिम जोंस
की दुर्घटना फिर
दोहराई जायेगी।
परंतु जिम
जोंस, हिटलर, मुसोलनी, या जार
में गुणात्मक भेद
था ओशो में, ओशो
लोगों को सामूहिक
जागरण दे रहे थे।
उन्हे जगा रहे
थे। ध्यान एक
जागरण है। वह बेहोशी
को तोड़ रहे थे।
वे लोगो को बंधन
में बाध नहीं रहे
थे उन्हें मुक्ति
दे रहे है। ये तो
इसी तरह से हुआ
की ध्यान भी एक
नशा देता है। और
शराब भी एक नशा।
नाम ख़ुमारी नानका
चढ़ी रहे दिन रात।
ध्यान का नशा
जागरण देता है।
वह आपके अचेतन
की पर्तों को प्रकाशित
कर रहा है। और शराब
क्या कर रही है।
आपके चेतन मन को
भी बेहोश कर रही
है। आप के पास जो
चेतन मन का एक हिस्सा
जागा हुआ है उसे
भी सुला देती है।
आप एक पशु तुल्य
हो जाते है। जिस का मन
सोया हुआ है। मन
सक्रिय और सजग
में बहुत भेद है।
पशु का मन सक्रिय
तो है पर सजग नहीं
है। इस तरह से हमारे
मन के 9 भाग अचेतन
के सोये और एक हिस्सा
ही जागा है।
शराब इस
तरह से मनुष्य
को समरस कर जाती
है। बीच में जो
एक हिस्सा जाग
है उसे सुला देती
है। कोई भेद नहीं
रहा। और ध्यान
अचेतन को जगाना
शुरू कर देता है, आपके
अंधेरे कमरे धीरे-धीरे
प्रकाशमय होने
शुरू हो जाते
है। ओशो लोगों
को सामूहिक जागरण
दे रहे थे, जिन
जोंस जैसे व्यक्ति
लोग को सामूहिक
नींद दे रहे है।
एक सम्मोहन दे
रहे है। एक गुलामी
दे रहे है।
काश ध्यान
का रस बुद्धि जीवी
वर्ग ने चखा होता
तो। ओशो के काम
को इस तरह से विध्वंस
न किया गया होता।
जो न कभी होगा
न किसी में वो कार्य
करने का सामर्थ्य
है। शायद शिव के
विज्ञान भैरव तंत्र
के बाद कोई अगर
ध्यान की नई विधि
कोई व्यक्ति
संसार को दे पाया
तो वह मात्र ओशो
है। आप इस से समझ
सकते है कि ओशो
किस हंसती के व्यक्तित्व
अपने में समेटे
थे। हम आने वाले
5000 साल बाद ही ओशो
को समझने लायक
बुद्धि विकसित
कर सकेंगे। हम
अभागे है बुद्ध
वक्त से पहले
आ जाते है। और कोई
जब उन्हें देख
कर उनके प्रेम
में पड़ता है तो
भीड़ उसे पागल
समझती है। वह समझती
है मुझे कुछ नहीं
हो सकता तो इन्हें
कैसे हो सकता है।
ये जरूर सम्मोहित
है..........)
स्वामी आनंद
प्रसाद मनसा
निःशब्द!💐💐💐
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