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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

जंगल का फूल—कविता

जंगल में एक फूल खीला जब,
मैने पूछा चुपके से।
क्‍यों यहां खिला और के लिए?
किस उसने हंसकर कुछ यूं देखा
फिर हौट हीले और बात झरी
खिलनें में ही पूर्णता है,
      न जग के लिए।
      न रब के लिए।।
स्‍वामी आनंद प्रसाद ’’मनसा’’

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