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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

सम्‍मोहन क्‍या होता है?

सम्‍मोहन क्‍या होता है, क्‍या तुमने कभी किसी सम्मोहन विद को ध्‍यान से देखा है, क्‍या करता है वह? पहले तो वह कहता है ‘’रिलैक्‍स’’ शिथिल हो जाओ। और वह दोहराता है इसे, वह कहता जाता है, रिलैक्‍स, रिलैक्‍स—शिथिल हो जाओ, शिथिल हो जाओ।
      रिलैक्‍स की लगातार ध्‍वनि भी बन जाती है एक मंत्र,एक ट्रान्‍सेन्‍डेंटल मेडिटेशन, एकसा ही होता है टी. एम. में। तुम लगातार एक मंत्र को दोहराते हो; वह नींद ले आता है। यदि तुम्‍हारे पास नींद न आने की समस्‍या हो, तो टी. एम. सबसे अच्‍छी बात है करने की। वह तुम्‍हें नींद देता है। और इसलिए वह इतना महत्‍वपूर्ण हो गया है अमरीका में। अमरीका ही एक ऐसा देश है जो इतनी ज्‍यादा पीड़ा भोग रहा है नहीं आने के रोग की। वह महर्षि महेश योगी कोई सांयोगिक घटना नहीं है। वे एक आवश्‍यकता है। जब लोग अनिद्रा से पीड़ित होते है तो वे सोन हीं सकते। उन्‍हें चाहिए शामक दवाएं। और भावतित ध्‍यान और कुछ नहीं सिवाय शामक दवा( ट्रैंक्‍विलाइजर) के; वह तुम्‍हें  शांत करता है। तुम निरंतर दोहराते जाते हो एक निशचित शब्‍द;राम, राम, राम.. कोई भी शब्‍द काम देगा; कोका-कोला, कोका कोला, काम देगा वहां, उसका राम से कुछ लेना देना नहीं है। कोका कोला उतना ही बढ़िया होगा जितना की राम का नाम। या शायद उससे भी ज्‍यादा प्रासंगिक होता है। तुम एक निश्‍चित शब्‍द निरंतर दोहराते हो। निरंतर दोहराव एक ऊब निर्मित कर देता है। और ऊब आधार है सारी नींद का। जब तुम ऊब अनुभव करते हो तो तुम तैयार होत हो सो जाने के लिए।
      एक सम्मोहन विद दोहराता जाता है। शिथिल हो जाओ। वह शब्‍द ही व्‍याप्‍त हो जाता है तुम्‍हारे शारीर और अंतस में। वह दोहराए जाता है और वह तुमसे सहयोग देने को कहता है। और तुम सहयोग देते हो। धीरे-धीरे तुम उनींदापन अनुभव करने लगते हो। फिर वह कहता है, तुम उतर रहे हो गहरी नींद में,उतर रहे हो, उतर रहे हो नींद के गहरे शून्‍य में—उतर रहे हो....। वह दोहराता ही जाता है और मात्र दोहराने से तुम्‍हें नींद आने लगती है।
      यह एक अलग प्रकार की नींद होती है। यह कोई साधारण नहीं है, क्‍योंकि यह पैदा की गयी होती है; किसी ने इसे बहला फुसला कर निर्मित कर दिया है तुम में। क्‍योंकि इसे किसी ने निर्मित किया होता है; इसकी एक अलग ही गुणवता होती है। पहला और बहुत आधारभूत भेद यह है कि तुम सारे संसार के प्रति सोए हुए होओगे, यदि एक बम भी फट पड़ेगा तो वह तुम्‍हारी शांति भंग न करेगा। रेलगाड़ियाँ गुजर जाएंगी, हवाई जहाज ऊपर से गुजर जाएंगे। लेकिन कोई चीज तुम्‍हें अशांत नहीं करेंगी। तुम कुछ नहीं सुन पाओगे। तुम सारे संसार के प्रति बंद होते हो, लेकिन सम्मोहन विद के प्रति खुले होते हो। यदि वह कुछ कहे तो तुम तुरंत सुन लोगे; तुम केवल उसे ही सुनोंगे। केवल एक ग्राहकता बच रहती है—सम्मोहन विद और सारा संसार बंद हो जाता है। जो कुछ वह कहता है उस पर तुम विश्‍वास कर लोगे। क्‍योंकि तुम्‍हारी बुद्धि सोन चली गयी है। ता जो कुछ भी सम्मोहन विद कहता है, तुम्‍हें उसका विश्‍वास करना पड़ता है। तुम्‍हारा चेतन मन काम नहीं कर रहा है। केवल अचेतन मन कार्य करता है। अब किसी बेतुकी बात पर भी विश्‍वास आ जाएगा।
      यदि सम्मोहन विद कहता है कि तुम घोड़े बन गए हो तो तुम नहीं कहा सकते, नहीं क्‍योंकि कौन नहीं कहेगा। गहनी निद्रा में विश्‍वास संपूर्ण होता है। तुम घोड़े बन जाओगे,तुम घोड़े की भांति अनुभव करोगे। यदि वह कहता है कि अब तुम हिन हिनाओ घोड़े की भांति तो तुम हिन हिनाओगे। यदि वह कहे,दौड़ों,कुदो—घोड़े की भांति तो तुम कुदोगे और दौड़ने लगोगे।
      सम्‍मोहन कोई साधारण निद्रा नहीं। साधारण निद्रा में तुम किसी से नहीं कह सकेत कि तुम घोड़े बन गए हो। पहली तो बात: यदि वह तुम्‍हें सुनता है तो वह सोया हुआ नहीं होता। दूसरी बात वह कि यदि वह तुम्‍हें सुनता है तो सोया हुआ नहीं होता और जो तुम कह रहे हो वह उस पर विश्‍वास नहीं करेगा। वह आंखें खोलेगा अपनी और हंसेगा और कहेगा, क्‍या तुम पागल हुए हो। क्‍या कह रहे हो तुम। मैं एक घोड़ा?
      सम्‍मोहन एक उत्पन्न की हुई नींद होती है। निद्रा से ज्‍यादा तो वह किसी नशे की भांति है। तुम किसी नशे के प्रभाव में होते हो। नशीला द्रव्‍य साधारण रसायनिक द्रव्‍य नहीं होता, बल्‍कि वह देह में बहुत गहरे तक चला गया एक रसायन होता है। किसी एक निश्‍चित शब्‍द का दोहराव मात्र ही शरीर के रसायन को बदल देता है। इसीलिए मनुष्‍य के सारे इतिहास में मंत्र इतने ज्‍यादा प्रभावी रहे है। निरंतर रूप से किसी खास शब्‍द का दोहराव शरीर के रसायन को बदल देता है। क्‍योंकि एक शब्‍द मात्र एक शब्‍द राम, राम, राम...वह गुजरता है शरीर के सारे रसायन में से। वे तरंगें बहुत शीतलता से आती है; वे तुम्‍हारे भीतर एक मंद-मंद गुनगुनाहट बना देती है, उसी भांति जैसे कि मां लोरी गा रही होती है, जब बच्‍चा सो नहीं रहा होता है। लोरी बहुत सीधी सरल बात है। एक या दो पंक्‍तियों लगातार दोहरा दी जाती है। और यदि मां बच्‍चे को अपने ह्रदय के समीप ले जाती है तब तो प्रभाव और जल्‍दी होगा। क्‍योंकि ह्रदय की धड़कन एक और लोरी बन जाती है। ह्रदय की धडकन और लोरी साथ-साथ हों तो बच्‍चा गहरी नींद सो जाता है।
      यही सारी तरकीब है जप की और मंत्र की; तुम्‍हें बढ़िया प्रभावपूर्ण नींद में पहुंचा देता है। उसके बाद तुम ताजा अनुभव करते हो। लेकिन कोई आध्‍यात्‍मिक बात उसमें नहीं होती, क्‍योंकि आध्‍यात्‍मिक का संबंध होता है ज्‍यादा सजग होने से, न कि कम सजग होने से।
      ध्‍यान से देखना किसी सम्मोहन विद को। क्‍या कर रहा होता है? प्रकृति ने वही किया है तुम्‍हारे साथ। प्रकृति सबसे बड़ी सम्मोहन विद है। उसने तुम्‍हें सम्‍मोहनकारी सुझाव दिए होते है। वे सुझाव पहुँचाए जाते है क्रोमोसोम्‍स द्वारा, तुम्‍हारे शरीर के कोशाणुओं द्वारा। अब वैज्ञानिक कहते है कि एक कोशाणु मात्र करीब-करीब एक करोड़ संदेश ले आता है। वे संदेश उसी में रचे होते है। जब एक बच्‍चा गर्भ में आता है, तो दो कोशाणु मिलते है; एक मां की और एक पिता की और से। दो क्रोमोसोम्‍स मिलते है। वे ले आते है लाखों-लाखों संदेश। वे नक्‍शे बन जाते है और बच्‍चा उन आधार भूत नक़्शों–ढाँचों से जन्‍मता है। वे दुगुने-चौगुना होते जाते है। इसी भांति बढ़ता जाता है।
      तुम्‍हारा सारा शरीर छोटे-छोटे अदृश्‍य कोशाणुओं से बना होता है, करोड़ों कोशाणु होते है। और प्रत्‍येक कोशाणु संदेश लिए रहता है। जैसे कि प्रत्‍येक बीज संपूर्ण संदेश ले आता है संपूर्ण वृक्ष के लिए; कि किस प्रकार के पत्‍ते उसमें उगेंगे; किस प्रकार के फूल खिलेंगे इसमें; वे लाल होंगे या नीले होंगे। पीले होंगे। एक छोटा सा बीज सारा नक्‍शा लिए रहता है। वृक्ष के संपूर्ण जीवन का। हो सकता है वृक्ष चार हजार साल तक जीए। चार हजार साल तक उसकी हर चीज वह छोटा सा बीज लिए रहता है। वृक्ष को इसका ध्‍यान रखने की या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं; हर चीज कार्यान्‍वित होगी। तुम भी वीज लिए हो: एक बीज अपनी मां से और एक अपने पिता से। और वह आते है पिछले हजारों वर्षों से, क्‍योंकि तुम्‍हारे पिता को बीज उन्‍हें दिया गया था उनके पिता और मां द्वारा। इस भांति प्रकृति तुममें प्रविष्‍ट हुई है।
      तुम्‍हारा शरीर आया है प्रकृति से; तुम आए हो कहीं और से। इस कहीं और का मतलब है परमात्‍म। तुम एक मिलन बिंदु हो शरीर और चेतना के। लेकिन शरीर बहुत शक्‍तिशाली है और जब तक तुम इस विषय में कुछ करो नहीं; तुम इसकी शक्‍ति के भीतर रहोगे, इसके अधिकार में रहते हो। योग एक ढंग है इससे बाहर आने का। योग ढंग है शरीर द्वारा आविष्‍ट न होने  का और फिर से मौलिक होने का। अन्‍यथा तुम तो गुलाम बने रहोगे।
--ओशो
पतंजलि: योग-सूत्र भाग—2,
प्रवचन—13,    
श्री रजनीश आश्रम, पूना,
23 अप्रैल, 1975,

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