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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

पांचवी--पद्म लेश्‍या

 
पद्म..महावीर कहते है, दूसरी धर्म लेश्‍या है पीत। इस लाली के बाद जब जल जायेगा अहंकार.....स्‍वभावत: अग्नि की तभी तक जरूरत है जब तक अहंकार जल न जाये। जैसे ही अहंकार जल जायेगा, तो लाली पीत होने लगेगी। जैसे, सुबह का सूरज जैसे-जैसे ऊपर उठने लगता है। वैसा लाल नहीं रह जायेगा,पीला हो जाये। स्‍वर्ण का पीत रंग प्रगट होने लगेगा। जब स्पर्धा छूट जाती है, संघर्ष छूट जाता है, दूसरों से तुलना छूट जाती है और व्‍यक्‍ति अपने साथ राज़ी हो जाता है—अपने में ही जाने लगता है—जैसे संसार हो या न हो कोई फर्क नहीं पड़ता—यह ध्‍यान की अवस्‍था है।
      लाल रंग की अवस्‍था में व्‍यक्‍ति पूरी तरह प्रेम से भरा होगा, खुद मिट जायेगा,दूसरे महत्‍वपूर्ण हो जायेंगे। पीत की अवस्‍था में न खुद रहेगा, न दूसरे  रहेगें। सब शांत हो जायेगा। पीत ध्‍यान का अवस्‍था है—जब व्‍यक्‍ति अपने में होता है, दूसरे का पता ही नहीं चलता कि दूसरा है भी। जिस क्षण मुझे  भूल जाता है कि ‘’मैं हूं’’ उसी क्षण यह भी भूल जायेगा कि दूसरा भी है।
      पीत बड़ा शांत, बड़ा मौन, अनुद्विग्न रंग है। स्‍वर्ण की तरह शुद्ध,लेकिन कोई उत्तेजना नहीं। लाल रंग में उत्‍तेजना है, वह धर्म का पहला चरण है।
      इसलिए ध्‍यान रहे, जो लोग धर्म के पहले चरण में होते है, वे उत्‍तेजित होते है। धर्म उनके लिए खींचता है—जोर से धर्म के प्रति बड़े आब्‍सेज्‍ड होते है। धर्म भी उनके लिए एक ज्‍वर की तरह होता है। लेकिन,जैसे-जैसे धर्म में गति होती जाती है, वैसे-वैसे सब शांत हो जाता है।
      पश्‍चिम के धर्म है—ईसाइयत,लाल रंग को अभी पार नहीं कर पाया है। क्‍योंकि अभी भी दूसरे को कनवर्ट करने की आकांशा है। इसलाम लाल रंग को पार नहीं कर पाया है। गहन दूसरे पर ध्‍यान है। कि दूसरों को बदल देना है। किसी भी तरह बदल देना है उसकी वजह से एक मतांधता है।
      व्यक्ति जब पहली दफा धार्मिक होना शुरू होता है, तो बड़ा धार्मिक जोश खरोश होता है। यही लोग उपद्रव का कारण हे जो जाते है, क्‍योंकि उनमें इतना जोश खरोश होता है कि वे फेनेटिक हो जाते है; वे अपने को ठीक मानते है, सबको गलत मानते है। और सबको ठीक करने की चेष्‍टा में लग जाते है....दया वश। लेकिन वह दया भी कठोर हो सकती है।
      जैसे ही ध्‍यान पैदा होता है, प्रेम शांत होता है। क्‍योंकि प्रेम में दूसरे पर नजर होती है, ध्‍यान में अपने पर नजर आ जाती है। पीत लेश्‍या—पद्म लेश्‍या ध्यानी की अवस्‍था होती है। बारह वर्ष महावीर उसी अवस्‍था में रहे। और पीला भी जब और बिखरता जाता है, विलीन होता जाता है तो शुभ्र का जन्‍म होता है। जैसे सांझ जब सूरज डूबता है और रात अभी नहीं आई, और सूरज डूब गया है। और संध्‍या फैल जाती है। शुभ्र, कोई उत्‍तेजना नहीं, वह समाधि की अवस्‍था है। उस क्षण में सभी लेश्‍याएं शांत हो जाती है। सभी लेश्‍या शुभ्र बन गई। शुभ्र अंतिम अवस्‍था है चित की।
     
ओशो
महावीर वाणी भाग:2,
प्रवचन—चौदहवां, दिनांक 29 अगस्‍त,1973,
पाटकर हाल, बम्‍बई

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