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रविवार, 12 दिसंबर 2010

स्‍वर्ग का अख़बार और पत्रकार—

    
पत्रकार की तो और भी अड़चन है। पत्रकार तो जीता है गलत पर ही। पत्रकार का सत्‍य से कोई लेना-देना नहीं है। पत्रकार तो जीता असत्‍य पर है, क्‍योंकि असत्‍य लोगों को रुचिकर है। अख़बार में लोग सत्‍य को खोजने नहीं जाते। अफवाहें खोजते है। तुम्‍हें शायद पता हो या न हो कि स्‍वर्ग कोई अख़बार नहीं निकलता। कोई ऐसी घटना ही नहीं घटती स्‍वर्ग में जो अख़बार में छापी जा सकें। नरक में बहुत अख़बार निकलते है। क्‍योंकि नरक में तो घटनाएं घटती ही रहती है।
      एक बार एक पत्रकार मरा और स्‍वर्ग पहुंच गया। द्वार पर दस्‍तक दी। द्वारपाल ने द्वार खोला और पूछा कि क्‍या चाहते हो? उसने कहा, मैं पत्रकार हूं, और स्‍वर्ग में प्रवेश चाहता हूं। द्वारपाल हंसा और उसने कहा कि असंभव, तुम्‍हारे लिए ठीक जगह नरक में है, तुम्‍हारा काम वहीं पर है। तुम्‍हें यहां पर कोई रस नहीं आयेगा। तुम्‍हें रस भी वहीं पर आयेगा। तुम्‍हारा सारा व्‍यवसाय वहीं फलता है। यहां तो सिर्फ, नरक से हम पीछे ने पड़ जाये, चौबीस जगह खाली रखी है अख़बार वालों के लिए। मगर वे कब की भरी है। चौबीस अख़बार वाले हमारे यहां है। हालांकि वे भी सब बेकार है। अख़बार छपता ही नहीं। एक कोरा कागज रोज बँटता है, ऋषि-मुनि उसको पढ़ते है। ऋषि-मुनि कोरे कागज ही पढ़ सकते है। क्‍योंकि उनका मन कोरा है। उसपर कोई शब्‍द अंकित नहीं है, इस लिए वो कोरा कागज पढ़ते है। उन्‍हें शब्‍दों की जरूरत नहीं है। और फिर यहां पर कोई उत्‍तेजना नहीं है, चारों और शांति है, न ही कोई घटना घटती है। न यहां बलात्‍कार होते है, न ही घोटाले, न कहीं चोरी-चकोरी, न काला धन की खोज, न ही यहां पर साधुओं को गोरख धंधा चलता है। क्‍योंकि यहां सब संत है। कोन ध्‍यान, योग आसन सिखाने के नाम पर अपनी दुकान चलाए, एक ही दिन में उसकी दुकान पर ताल लग जायेगा। अज्ञानियों को ही अज्ञानी भटका सकते है। ज्ञानियों के यहां उनकी दाल गलनें वाली नहीं है।
      तुम नरक में जाओ, वहां खुब समाचार है, वहां आदमी को कुत्‍ता भी काट ले तो समाचार बन जाता है। वहां पर रोज-रोज नये तमाशे होते है। और कुछ नहीं तो धारावाहिक ही हनुमान की पूछ होते है। उन्हें ही खींचे जाओ। वहां आदमी कुत्‍ते को काट ले तो भी समाचार वहां समाचारों की कोई कमी नहीं है। नाहक यहां तू अपना सर फोड़ेगा। कुछ काम नहीं मिलेगा। फिर दो चार दिन में मेरी जान खायेगा की मुझे बहार निकल फिर, तुझे जीवन भर यहीं फँसना होगा। क्योंकि यहां पर चौबीस ही पत्रकार रह सकते है। फिर न जाने कितने सालों बाद कोई पत्रकार स्‍वर्ग आये तब तू निकल सकेगा।
      यहां पर तू बेकार समय खराब कर रहा है। तू नरक में जा वहां पर तेरा मन भी लगा रहेगा और कुछ काम धंधा भी तुम मिल जायेगा। नरक चले जाओ। वहां रोज-रोज नये अख़बार निकलते है, सुबह का संस्‍करण भी निकलता है, दोपहर का संस्‍करण भी, सांझा का भी संस्‍करण, देर रात्रि का भी। खबरें वहां पर इतनी ज्‍यादा है। घटनाओं पर घटनाएं घटती रहती है। स्‍वर्ग में कोई घटना थोड़े ही घटती है। महावीर बैठे अपने वृक्ष के नीचे, बुद्ध बैठे है अपने वृक्ष के नीचे, मीरा नाच रही है, कबीर जी कपड़ा बुने जा रहे है अपनी खड्डी पर और खंजड़ी बजा रहो है, रवि दास जी अपना चमड़ा रंग रहे है, नानक जी बाला मर्दाना के साथ पद गये जा रहे। सारा स्‍वर्ग आनंद से सरा बोर है। यहां पर कोई घटना नहीं घटती, सब अपने आनंद में डूबे है। यहां पर कुछ नहीं होता। यहां सब ठहर गया है।
      लेकिन अख़बार वाला भी इतनी जल्‍दी से हार मानने वाला नहीं था। वह जब तक पूरी खोज बीन न कर ले उसे तसल्ली नहीं होने वाली। यूं तो नेताओं के घर से भी बहार निकाल दिया जाता था। पर जब तक पूरी तसल्ली नहीं हो जाती तब तक गेट पर अड़ा रहता था। इतनी जल्‍दी हटने वाला वो नहीं था। उसने द्वार पाल को अपनी चिकनी चुपड़ी बातें में फंसा कर चौबीस घंटे  के अवसर के द्वार पाल को राज़ी कर लिया। कि अगर मैं किसी अख़बार वाले को स्‍वर्ग से बहार जाने के लिए किसी अख़बार वाले को तैयार कर लूं तो मुझे जगह मिल जायेगी।
      द्वार पाल ने कहा, तुम्‍हारी मर्जी अगर कोई राज़ी हो जाए, तो तेरा भाग्‍य, मैं तुझे अपने रिसक पर चौबीस घंटे का मौका दिये देता हूं। तू भीतर चला जा।
      और अख़बार वाले ने, जो वह जिंदगी भर करता रहा था, वहीं काम किया। उसने जो मिला उसी से कहा कि अरे सुना तुमने, नरक में एक बहुत बड़े अख़बार के निकलने की आयोजना चल रही है। प्रधान संपादक, उप प्रधान संपादक, संपादक, सब जगह खाली है। बडी तनख़ाह, कारें, बगले, सब का इंतजाम है। सांझ होते-होते उसने चौबीसों अख़बार वालों को मिल कर यह खबर पहुंचा दि। चौबीस घंटे पूरे होने पर वह द्वार पर पहुंचा। द्वारपाल ने कहा कि गजब कर दिया भाई तुमने, एक नहीं चौबीस ही चले गए, अब तुम मजे से रहो।
      उसने कहा पर मैंने चौबीस घंटे रह कर देख लिया, यहां तो मैं पागल हो जाऊँगा, ये लोग बड़े ही साहसी थे जो इतने दिन से रह रहे थे। मैं भी जाना चाहता हूं।
      द्वारपाल ने पूछा अब तो आपका रास्‍ता साफ हो गया अब आप क्‍यों जाना चाहते है?
      उसने कहां कोन जाने बात सच ही हो।
      झूठ में एक गुण है। चाहे तुम ही उसे शुरू करो, लेकिन अगर दूसरे उस पर विश्‍वास करने लगें तो एक न एक दिन तुम भी उस पर विश्‍वास कर लोगे। जब दूसरों को तुम विश्‍वास करते देखोगें, उसकी आंखों में आस्‍था जगती देखोगें, तुम्‍हें भी शक होने लगेगा; कौन जने हो न हो बात सच ही हो। मैंने तो झूठ की तरह कही थी, लेकिन हो सकता है, संयोगवशात मैं जिसे झूठ समझ रहा था वह सत्‍य ही रहा हो। मेरे समझने में भूल हो गई होगी। क्‍योंकि चौबीस आदमी कैसे धोखा खा सकेत है? उसने कहा कि नहीं भाई,अब मैं रूकने वाला नहीं हूं। पहले तो मुझे नरक जाने ही दो। स्‍वर्ग तो आपका एक दिन देख ही लिया, एकदम रूखा है।
      स्‍वर्ग में अख़बार नहीं निकलता, क्‍योंकि घटना नहीं घटती,शांत, ध्‍यानस्‍थ,निर्विकल्‍प समाधि में बैठे हों लोग तो क्‍या है वहां घटना?
      अख़बार तो जीता है उपद्रव पर। जितना उपद्रव हो उतना अख़बार जीता हे। जहां उपद्रव नहीं है वहां भी अख़बार वाला उपद्रव खोज लेता है, जहां बिलकुल खोज नहीं पाता वहां ईजाद कर लेता है।

--ओशो
काहे होत अधीर,
ओशो कम्‍यून इंटरनेशनल
प्रवचन-2, पूना
    

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