हजारों साल से स्त्री एक रहस्य रही है। वह किस तरह का व्यवहार करेगी किस क्षण में, अनिश्चित है। स्त्री अनप्रिडिक्टेबल है, उसकी कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। ज्योतिषी उससे बुरी तरह हार चुके है। अभी क्षण भर को प्रसन्न दिखाई पड़ रही थी, क्षण भर बाद एकदम अप्रसन्न हो गई। और पुरूष के तक्र में बिलकुल नहीं आता कि कोई कारण उपस्थित नहीं हुआ। वह क्षण भर पहले बड़ी भली चंगी, आनंदित थी, और क्षण भर बाद दुःखी हो गई। और आंसू बहने लगे,छाती पीटकर रोने लगी। बड़ी बेबूझ मालूम होती है।
फ्रायड ने चालीस साल अध्ययन के बाद कहा कि स्त्री के संबंध में कुछ कहने की संभावना नहीं है। और जिन लोगों ने कुछ कहा भी है, उनका कहा भी पक्षपातपूर्ण मालूम होता है। यह उनकी दृष्टि है इससे स्त्री की बात जाहिर नहीं होती।
लेकिन बायो एनर्जी की खोज से एक नई बात पता चली है। और वह यह कि जैसे ही स्त्री का माहवारी शुरू होती है। उसके शरीर का विद्युत-प्रवह प्रति दस मिनट में सिकुड़ता है, कन्ट्रैक्ट होता है। और यह चलता है तब तक जब तक कि माहवारी बंद नहीं हो जाती। पैंतालीस-पचास साल तक। प्रति दस मिनिट में स्त्री को भी पता नहीं चलता कि उसे पूरे शरीर की विद्युत सिकुड़ती है, फिर फैलती है। फिर सिकुड़ती है, फिर फैलती है। इस हर दस मिनट के परिवर्तन के कारण उसका चित हर दस मिनट में परिवर्तित होता है।
और यह जो संकुचन है, फैलाव है, यह बच्चे के लिए जरूरी है। बच्चे के विकास के लिए जरूरी है। जब बच्चा उनके गर्भ में होता है तो यह संकुचित होना, फैलना बच्चे को एक तरह का आन्तरिक व्यायाम देता है। एक एक्सरसाइज देता है। इससे बच्चा बढ़ता है। इस लिए माहवारी शुरू होने और माहवारी अंत होने के बीच,तीस साल पैंतीस साल स्त्री का शरीर दस मिनट में एक झंझावात से गुजरता है। और यह झंझावात उसके चित को प्रभावित करता है। इसलिए जब स्त्री बहुत परेशान हो तो आप परेशान न हों; थोड़ी देर रुके, थोड़ी देर प्रतीक्षा करें, वह झंझावात वैद्युतिक है। और स्त्री को भी अगर ख्याल में आ जाये,तो वह उस झंझावात से परेशान न होकर उसकी साक्षी हो सकती है।
पुरूष के शरीर में ऐसा कोई झंझावात नहीं है। इसलिए पुरूष ज्यादा तर्कयुक्त मालूम होता है। एक सीमा होती है उसकी बंधी हुई। उसके बाबत भविष्यवाणी की जा सकती है। कि वह क्या करनेवाला है। उसे भीतर कोई झंझावात नहीं चलता रहता हे। विद्युत की एक सीधी धारा है। इस विद्युत की सीधी धारा के कारण ही उसके चित की लेश्याओं का ढंग सीधा-साफ है। स्त्री की चित की लेश्याएं ज्यादा बड़ी तरंगें लेगी। क्योंकि विद्युत सिकुड़ेगी, फैलेगी,सिकुड़ेगी फैलेगी। स्त्री को प्रतिपल झंझावात में और तरंगों में रखता है।
ओशो
महावीर वाणी भाग:2,
प्रवचन—चौदहवां, दिनांक 29 अगस्त,1973,
पाटकर हाल, बम्बई
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