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शुक्रवार, 25 जून 2010

चमत्‍कार वैज्ञानिक चित का अभाव है—2


एक हजार साल गुलाम रहे थे, और यहां ऐसे चमत्‍कारी पड़े है कि जिसका कोई हिसाब नहीं, गुलामी की जंजीरें नहीं कटतीं। ऐसा लगता है कि अंग्रेज के सामने चतत्‍कार नहीं चलता। चमत्‍कार होने के लिए हिंदुस्‍तानी होना जरूरी है। क्‍योंकि अगर खोपड़ी में थोड़ी भी विचार चलता हो, तो चमत्‍कार के कटने का डर रहता है। तो जहां विचार है, बिलकुल न चला पाओगे चमत्‍कार को। सब से बड़ा चमत्‍कार यह है कि लोग चमत्‍कार कर रहे है। सबसे बड़ा चमत्‍कार यह है कि हम खुद भी होते हुए चमत्‍कार देख रहे हे। और घरों में बैठकर चर्चा कर रहे है। कि चमत्‍कार हो रहा है। और कोई इन चमत्‍कारियों की जाकर गर्दन नहीं पकड़ लेता कि जो खो गयी है घड़ी उसको बाहर निकलवा ले, कि क्‍या मामला है। क्‍या कर रहे हो? वह नहीं होता है।
      हम हाथ पैर जोड़कर खड़े है.....उसका कारण है, हमारे भीतर कमजोरीयां है। जब राख की पुड़िया निकलती है तो हम सोचते है कि भई, शायद और भी कुछ निकल आयें, पीछे, राख की पुड़िया से कुछ होनेवाला नहीं है न, आगे कुछ और संभावना बनती है। आशा बंधती है। और कोई बीमार है, किसी को नौकरी नहीं मिली है, किसी की पत्‍नी मर गई है, किसी का किसी से प्रेम है, किसी का मुकदमा चल रहा है, सबकी तकलीफें है। तो लगता है जो आदमी ऐसा कर रहा है, अपनी तकलीफ भी कुछ कम कर रहा है। दौड़ो इसके पीछे।
      बीमारी, गरीबी, परेशानी, उलझनें कारण हैं कि हम चमत्‍कारियों के पीछे भाग रहे है। कोई धार्मिक जिज्ञासा कारण है, धार्मिक जिज्ञासा से इसका कोई संबंध नहीं है। धार्मिक जिज्ञासा से इसका क्‍या वास्‍ता। धार्मिक जिज्ञासा का क्‍या हल होगा, इन सारी बातों से, लेकिन लोग करते चले जाएंगे, क्‍योंकि हम गहरे अज्ञान में है, गहरे विश्‍वास में है। लोग कहते चले जाएंगे और शोषण होता चला जायेगा। पुराने चित ने चमत्‍कारी पैदा किया था। लेकिन जिन-जिन कौमों ने चमत्‍कारी पैदा किये उन-उन कौमों ने विज्ञान पैदा नहीं किया।
      ध्‍यान रहे, चमत्‍कारी चित वहीं पैदा हो सकता है जहां एंटी सांइटिफिक माइंड हो, जहां विज्ञान विरोधी चित हो। जहां विज्ञान आयेगा वहां चमत्‍कारी मरेगा। क्‍योंकि विज्ञान कहेगा, चमत्‍कार को कि हम काज़ और इफेक्‍ट में मानते है। हम मानते है, कार्य और कारण में। विज्ञान किसी चमत्‍कार को नहीं मानता है। उसने हजारों चमत्‍कार किये है। जिनमें से एक भी कोई संत कर देता तो हम हजारों-लाखों साल तक उसकी पूजा करते।अब यह पंखा चल रहा है, यह माइक आवाज कर रहा है। यह चमत्‍कार नहीं होगा। क्‍योंकि यह विज्ञान ने किया है। और विज्ञान किसी चीज को छिपाता नहीं है। सारे कार्य-कारण प्रगट कर देता है। आदमी का ह्रदय बदला जा रहा है। दूसरे का ह्रदय उसके काम कर रहा है। आदमी के सारे शरीर के पार्ट बदले जा रहे है।
      आज नहीं कल, हम आदमी की स्‍मृति भी बदल सकेंगे। उसकी भी संभावना बढ़ती जा रही है। कोई जरूरी नहीं है कि एक आइंस्‍टीन माइ्ंड वह मर ही जाये। आइंस्‍टीन मरे—मरे, उसकी स्‍मृति को बचाकर हम एक नये बच्‍चे में ट्रांस्‍पलांट कर सकते है। इतने बड़े चमत्‍कार घटित हो रहे है। लेकिन कोई नासमझ न कहेगा कि ये चमत्‍कार है। कहेगा, ऐसा चमत्‍कार क्‍या है। और कोई आदमी की फोटो में से राख झाड़ देता है, हम हाथ जोड़कर खडे हो जाते है चमत्‍कार हो रहा है, बड़ा आश्‍चर्य है। अवैज्ञानिक विज्ञान विरोधी चित है। विज्ञान ने इतने चमत्‍कार घटित किये है कि हमें पता ही नहीं चलता, क्‍योंकि विज्ञान चमत्‍कार का दावा नहीं करता। विज्ञान खुला सत्‍य है, ओपन सीक्रेट है।
      और यह जो बेईमानों की दुनिया है यहां.....इसलिए अगर किसी आदमी को कोई तरकीब पता चल जाती है। तो उसको खोलकर नहीं रख सकता। क्‍योंकि खोले तो चमत्‍कार गया। इसलिए ऐसे मुल्‍क का ज्ञान रोज बढ़ जाता है। अगर मुझे कोई चीज पता चल जाये और चमत्‍कार करना हो तो पहली जरूरत हो यह है कि उसके पीछे जो राज है, उसको मैं प्रगट न करूं। आयुर्वेद ने बहुत विकास किया, लेकिन आयुर्वेद का जो वैद्य था, वह वह चमत्‍कार कर रहा था। इसलिए आयुर्वेद पिछड़ गया। नहीं तो आयुर्वेद की आज की स्‍थिति एलोपैथी से कहीं बहुत आगे होती। क्‍योंकि ऐलापैथी की खोज बहुत नयी हे। आयुवे्रद की खोज बहुत पुरानी है। इसलिए एक वैद्य को जो पता है, वह अपने बेटे को भी न बातयेगा, नहीं तो चमत्‍कार गड़बड़ हो जायेगा। मजा लेना चाहता है।
      मजा लेना चाहता है—टीका, छाप लगाकर और साफ़ा वगैरह बांधकर बैठा रहेगा और मर जायेगा। वह जो जान लिया था। वह छिपा जायेगा। क्‍योंकि वह अगर पूरी कड़ी बता दे, तो फिर चमत्‍कार नहीं होगा। लेकिन तब साइंस बंद करनी पड़ी। हिंदुस्‍तान में कोई साइंस नही बनती। जिस आदमी को जो पता है, वह उसको छिपाकर रखता है। वह कभी उसका पता किसी को चलने नहीं देगा। क्‍योंकि पता चला कि चमत्‍कार खत्‍म हो गया। इस वजह से हमारे मुल्‍क में ज्ञान की बहुत दफे किरणें प्रगट हुई। लेकिन ज्ञान का सूरज कभी न बन पाया। क्‍योंकि एक-एक किरण मर गयी। और उसे कभी हम बपौती नबना पाये कि उसे हम आगे दे सकें। उसको देने में डर है, क्‍योंकि दिया तो कम से कम उसे तो पता ही चल जायेगा कि अरे....।
      एक महिला मेरे पास प्रोफसर थी—वह संस्‍कृत की प्रोफेसर थी। वह इसी तरह एक मदारी के चक्‍कर में आ गयी। जिनकी फोटो से राख गिरती है। और ताबीज निकलते है। उसने मुझ से आकर आशीर्वाद मांगा कि मैं अब जा रही हूं। सब छोड़कर। मुझे तो भगवान मिल गये है। अब कहां यहां पड़ी रहूंगी। आप मुझे आशीर्वाद दें। मैंने कहा, यह आशीर्वाद मांगना ऐसा है, जैसे कोई आये कि अब मैं जा रहा हूं कुएं में गिरने को और उसको मैं आशीर्वाद दूं। मैं न दूंगा। तुम कुएं में गिरो मजे से, लेकिन इसमें ध्‍यान रखना कि मैंने आशीर्वाद नही दिया। क्‍योंकि मैं इस पाप में क्‍यों भागीदार होऊं। मरो तुम, फंसू मैं। यह मैं न करूंगा। तुम जाओ मजे से गिरो। लेकिन जिस दिन तुम्‍हें पता चल जाये कि कुएं में गिर गई हो और अगर बच सकी हो, तो मुझे खबर जरूर कर देना।
      पाँच-सात साल बीत गए, मुझे याद भी नहीं रहा, उस महिला का क्‍या हुआ। क्‍या नहीं हुआ। पिछले वक्‍त बंबई में बोल रहा था सभा में,तो वह उठकर आयी और उसने मुझे आगर कहा, आपने जो कहा, वह घटना हो गयी है। तो मैं कब आकर पूरी बात बजा जाऊं। लेकिन कृपा करके किसी और को मत बताना। मैंने कहां, क्‍यों? उसने कहा वह भी मैं कल बजाऊंगी। वह कल आयेगी उसने कहा, अब बड़ी मुश्‍किल हो गयी। जिन ताबीजों को आकाश से निकालते देखकर मैं प्रभावित हुई थी। अब मैं उन्‍हीं संत की प्राइवेट सेकेट्री हो गई हूं। अब मैं उन्‍हीं के ताबीज बाजार से खरीद कर लाती हूं। बिस्‍तर के नीचे छिपा आती हूं। प्रगट होने का सब राज पता हो गया है। अब मैं भी प्रगट कर सकती हूं। लेकिन बड़ी मुशिकल में पड़ गयी हूं। उसी चमत्‍कार से तो हम आये भी। अब वह चमत्‍कार सब खत्‍म हो गया है। अब मैं क्‍या करूं? अब मैं छोड़कर आ जाऊं, तो उसमें तो और भी मुश्‍किल है।
      कालेज में नौकरी करती थी, मुझे सात सौ रूपये मिलते थे। अब मुझे कोई दो-ढाई हजार रूपये को फायदा, महीने का होगा। और इतने रूपये आते है मेरे पास कि जितने उसमें से उड़ा दूं, वह अलग है। उसका कोई हिसाब नहीं है। इसलिए मैं आ तो नहीं सकती। इसलिए में आपको कहती हूं कृपा करके किसी और को मत कह देना। अब मेरी काम अच्‍छा चल रहा है। नौकरी है, लेकिन अब तो चमत्‍कार वह अध्‍यात्‍म का कोई लेना देना नहीं है।
      तो इसलिए पता न चल जाये—वह सारा त्‍याग चल रहा है। ज्ञान पता है—पगट होने को उत्‍सुक होता है। बेइ्रमानी सदा अप्रकट रहना चाहती है। ज्ञान सदा खुलता है, बेईमानी सदा छिपाती है। नहीं, कोई मिरेकल जैसी चीज दुनिया में नहीं होती, न हो सकती है। और अगर होती होगी, तो पीछे जरूर कारण होगा। यह हो सकता है। और अगर होती होगी। तो पीछे जरूर करण होगा। यह हो सकता है। आज कारण न खोजा जा सके, कल खोज लिया जायेगा, परसों खोज लिया जायेगा।( क्रमश: अगले अंक में.........)
ओशो
स्‍वर्ण पाखी था जो कभी और अंग है भिखारी जगत का
जगत के जलते प्रश्‍न



     
     

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