इस लिए बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि जब भी तुम्हें कुछ भी भीतर आनंद मिले—तत्क्षण अनुगृहीत हो जाना समस्त जगत के क्योंकि तूम अकेले नहीं हो। अगर सूरज ने निकलता, अगर चाँद निकलता, अगर एक रत्तीभर भी घटना और घटी होती तो तुम्हें यह नहीं होने वाला था जो हुआ है। माना कि तुम्हें हुआ है।
बुद्ध ऐसा नहीं कहेंगे कि मुझे हुआ है। बुद्ध इतना ही कहते है कि जगत को मेरे माध्यम से हुआ है। वह जो घटना घटी है एनलाइटेनमेंट की, चह जो प्रकाश का आविर्भाव हुआ है। यह जगत ने मेरे बहाने जाना है। मैं सिर्फ एक बहाना हूं। एक क्रास रोड,जहां सारे जगत के रास्ते आकर मिल गए है।
कभी आपने ख्याल किया है, कि चौराहा बड़ा भारी होता है। लेकिन चौराहा अपने में कुछ नहीं होता है। वह जो चार रास्ते आकर मिले होते है, उन चारों को हटा लें तो चौराहा विदा हो जाता है। हम सब क्रिस क्रास प्वाइंट है जहां जगत की अनंत शक्तियां आकर एक बिंदु को काटती है। वह व्यक्ति निर्मित हो जाता है, इंडीवीजुअल बन जाता है।
वह जो सारभूत ज्योतिष है उसका अर्थ केवल इतना ही है कि हम अलग नहीं है। एक, उस एक ब्रह्म के साथ है। उस एक ब्रह्मांड के साथ है। और प्रत्येक घटना भागीदार है। तो बुद्ध ने कहा है कि मुझसे पहले जो कुछ बुद्ध हुए उनको नमस्कार करता हूं, और मेरे बाद जो होंगे उनको भी नमस्कार करता हूं।
किसी ने पूछा आप उनको नमस्कार करें जो आपके पहले हुए, यह समझ में आता है। क्योंकि हो सकता है, उनसे कोई जाना अनजाना ऋण हो क्योंकि जो आपके पहले जान चुके है उनके ज्ञान ने आपको साथ दिया हो, लेकिन जो अभी हुए ही नहीं उनसे आपको क्या लेना-देना है, उनसे आपको कौन सी सहायता मिली है?
तो बुद्ध ने कहा, जो हुए है उनसे भी मुझे सहायता मिली है। जो अभी नहीं हुए है उनसे भी सहायता मिली है। क्योंकि जहां मैं खड़ा हूं वहां अतीत और भविष्य एक हो गए है। वहां जो जा चुका है, वह उससे मिल रहा है। जो अभी आने को है। वहां सूयोर्दय और सूर्यास्त एक ही बिंदु पर मिल रहे है। तो मैं उन्हें भी नमस्कार करता हूं जो होंगे उनका भी मुझ पर ऋण है क्योंकि अगर वे भविष्य में न हों तो मैं आज न हो सकूंगा।
इसको समझना थोड़ा कठिन पड़ेगा। यह एसेंशियल एस्टोलाजी की बात है। कल जो हुआ है अगर उसमे से कुछ भी खिसक जाए तो मैं न हो सकूंगा। क्योंकि मैं एक शृंखला में बंधा हुआ हूं। यह समझ में आता है। अगर मेरे पिता ने हों जगत में तो मैं न हो सकूंगा। यह समझ में आता है। क्योंकि अगर एक कड़ी अगर विदा हो जाए तो मैं न हो सकूंगा। अगर मेरे पिता न हों तो मैं न हो सकूंगा क्योंकि कड़ी विसर्जित हो जाएगी। लेकिन मेरा भविष्य,अगर उसमें कोई कड़ी न हो तो मैं न हो सकूंगा, समझना मुशिकल पड़ेगा। क्योंकि उससे क्या लेना देना, मैं तो हो ही गया हूं।
लेकिन बुद्ध कहते है कि अगर भविष्य में भी जो होने वाला है, वह न हो तो मैं न हो सकूंगा। क्योंकि भविष्य और अतीत दोनों के बीच की मैं कड़ी हूं। कहीं भी कोई भी बदलाहट होगी तो मैं वैसे नहीं हो सकूंगा जैसा हूं। कल ने भी मुझे बनाया,आने वाला कल भी मुझे बनाता हे—यही ज्योतिष है—बीता कल ही नहीं, आने वाल कल भी—जा चुका ही नहीं,जो आ रहा,वह भी—जो सूरज पृथ्वी पर उगे वह नहीं, जो उगे गे वह भी। वह भी भागीदार है। वह भी आज के क्षण को निर्मित कर रहे है। क्योंकि जो वर्तमान का क्षण है वह हो ही न सकेगा अगर भविष्य का क्षण इसके आगे न खड़ा हो। उसके सहारे ही वह हो पाता है।
हम सब के हाथ भविष्य के कन्धे पर रखे हुए है। हम सबके पैर अतीत के कंधों पर पड़े हुए है। हम सबके हाथ भविष्य के कन्धों पर रखे हुए है। नीचे तो हमें दिखायी पड़ता है कि अगर मेरे नीचे जो खड़ा है वह न हो तो मैं गिर जाऊँगा। लेकिन भविष्य में मेरे जो फैले हाथ है, वह जो कन्धे को पकड़े हुए है। अगर वह भी न हों तो भी मैं गिर जाऊँगा।
जब कोई व्यक्ति अपने को इतनी आन्तरिक एकता में अतीत ओर भविष्य के बीच जुड़ा हुआ पाता है तक वह ज्योतिष को समझ पाता है। तब ज्योतिष धर्म बन जाता है। तब ज्योतिष अध्यात्म हो जाता है। और नहीं तो वह जो नान एसेंशियल है, गैर जरूरी है उससे जुड़ कर ज्योतिष सड़क की मदारी गिरी हो जाता है। उसका फिर कोई मूल्य नहीं रह जाता। श्रेष्ठतम विज्ञान भी जमीन पर गड़ कर धूल की कीमत के हो जाते है। हम उनका क्या उपयोग करते है। उस पर सारी बात निर्भर है। इसलिए मैं बहुत द्वारों से एक तरफ आपको धक्का दे रहा हूं। कि आपको यह ख्याल में आ सके—सब संयुक्त है—संयुक्ता इस जगत का एक परिवार होना या एक आर्गैनिक बॉडी होना, एक शरीर की तरह होना।
मैं सांस लेता हूं तो पूरा का पूरा शरीर प्रभावित होता है। सूरज सांस लेता है तो पृथ्वी प्रभावित होती है। और दूर के महा सूर्य है वे भी कुछ करते है तो पृथ्वी प्रभावित होती हे। और पृथ्वी प्रभावित होती है तो हम प्रभावित होते है। सब चीजें छोटा सा रोयाँ तक महान सूर्यों के साथ जुडकर कंपता है। कंपित होता है।
यह ख्याल में आ जाए तो हम सारभूत ज्योतिष में प्रवेश कर सकेंगे। और असार भूत ज्योतिष की जो व्यर्थताए है उनसे भी बच सकेंगे। क्षुद्र तम बातें हम ज्योतिष से जोड़कर बैठ गए है। अति क्षुद्र तम, जिनका कहीं भी कोई मूल्य नहीं हे। और उनको जोड़ने की वजह से बड़ी कठिनाई होती है, जैसा हमने जोड़ रखा है कि एक आदमी गरीब पैदा होगातो इसका संबंध ज्योतिष से होगा। नहीं गैर जरूरी बात अगर आप नहीं जानते है तो ज्योतिष से संबंध जुड़ा रहेगा। अगर आप जान लेते है तो आपके हाथ में आ जाएगा।
एक बहुत मीठी कहानी आपको कहूं तो ख्याल में आए, जिन्दगी ऐसी ही बे लेन्स है, ऐसा ही सन्तुलन है। मुहम्मद का एक शिष्य है, अली। और अली मुहम्मद से पूछता है कि बड़ा है कि बड़ा विवाद है सदा से कि मनुष्य स्वतंत्र है अपने कृत्य में या परतंत्र है—बंधा है कि मुक्त है। मैं जो करना चाहता हूं वह कर सकता हूं या नहीं कर सकता हूं। सदा से आदमी ने यह पूछा है। क्योंकि अगर हम कर ही नहीं सकते कुछ तो फिर किसी आदमी को कहना कि चोरी मत करो, झूठ मत बोलों ईमानदार बनों नासमझी है।
एक आदमी अगर चोर होने को बदा है तो यह समझाते फिरना कि चोरी मत करो, नासमझी है। यह फिर यह हो सकता है कि एक आदमी के भाग्य में बदा है कि वह यही समझता रहे कि चोरी न करो—जानते हुए कि चोर चोरी करेगा बेईमान बेईमानी करेगा, असाधु होगा, हत्या करनेवाला हत्या करेगा, लेकिन अपने भाग्य में यह बदा है कि लोगों को कहते फिरो कि चोरी मत करो।–एब्सर्ड है।
अगर सब सुनिश्चित है तो समस्त शिक्षाऐं बेकार है—सब प्रोफट्स,सब पैगम्बर, सब तीर्थंकर व्यर्थ है। महावीर से भी लोग पूछते है, बुद्ध से भी लोग पूछते है कि अगर होना है वही होना है तो आप समझा क्यों रहे है—किस लिए समझा रहे हे।
मुहम्मद से भी अली पूछता है कि आप क्या कहते है। अगर महावीर से पूछा होता अली ने तो महावीर ने जटिल उत्तर दिया होता। और बुद्ध से पूछा होता तो बड़ी गहरी बात कही होती। लेकिन मुहम्मद ने वैसा उत्तर दिया था जो अली की समझ में आ सकता था। कई बार मुहम्मद के उत्तर बहुत सीधे और साफ हे। अकसर ऐसा होता है कि जो लोग कम पढ़े लिखे है, ग्रामीण है उनके उत्तर सीधे और साथ होते है—जैसे कबीर के या नानक के,या मुहम्मद के या जीसस के—बुद्ध और महावीर और कृष्ण के उत्तर जटिल है। वह संस्कृति का मक्खन हे। जीसस की बात ऐसी है जैसे किसी ने सर पर लट्ठ मार दिया हो। कबीर तो कहते है—कबीरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ। लट्ठ लिए बाजार में खड़े है कबीर। कोई आये हम उसका सिर खोल दें।
मुहम्मद के कोई बहुत मेटाफिजिकल बात नहीं की। मुहम्मद ने कहा अली, एक पैर उठाकर खड़ा हो जा। अली ने कहा, हम पूछते है कि कर्म करने में आदमी स्वतंत्र। मुहम्मद ने कहा, तू पहले एक पैर उठा अली बेचारा एक पैर, बायां पैर उठा खड़ा हो गया। मुहम्मद ने कहा, अब तू दायां भी उठा ले।
अली ने कहा,आप क्या बात करते है। तो मुहम्मद ने कहा, अब तू चाहता पहले तो दाहिना भी उठा सकता था। अब नहीं उठा सकता। मुहम्मद ने कहा कि एक पैर उठाने को आदमी सदा स्वतंत्र है। लेकिन एक पैर उठाते ही तत्काल दूसरा पैर बंध जाता हे।
वह जो नान एसेंशियल हिस्सा है हमारी जिन्दगी का, गैर जरूरी हिस्सा हे, उसमें हम पूरी तरह पैर उठाने को स्वतंत्र है, लेकिन ध्यान रखना,उसमे उठाए गए पैर भी एसेंशियल हिस्से में बन्धन बन जाते है। वह जो बहुत जरूरी है वहां भी फंसाव पैदा हो जाता हे। गैर जरूरी बातों में फंस जाते है। मुहम्मद ने कहा,तू उठा सकता था पहला पैर भी—दायां भी उठा सकता था, कोई मजबूरी न थी। लेकिन अब चूंकि तू बायां उठा चुका इसीलिए दायां उठाने में असमर्थता होगी। आदमी की सीमाएं हे। सीमाओं के भीतर स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता सीमाओं के बाहर नहीं है।( क्रमश: अगले अंक में........
--ओशो
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म,
वुडलैण्ड, बम्बई, दिनांक, 10 जुलाई, 1971
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