सेमी एसेंशियल है कुछ बातें जैसे—जन्म मृत्यु सेमी एसेंशियल है। अगर आप इसके बाबत पूरा जान लें तो उसमें फर्क हो सकता है। और न जानें तो फर्क नहीं होगा। चिकित्सा की हमारी जानकारी बढ़ जाएगी तो हम आदमी की उम्र लंबा कर लेंगे—कर रहे है। अगर हमारी एटम बम की खोज-बीन और बढ़ती चली गयी तो हम लाखों लोगों को एक साथ मार डालेंगे—मारा है। यह सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य जगत है। जहां कुछ चीजें हो सकती है, नहीं भी हो सकती है। अगर जान लेंगे तो अच्छा है। क्योंकि विकल्प चुने जा सकते है। इसके बाद एसेंशियल अनिवार्य का जगत है। वहां कोई बदलाहट नहीं होती।
लेकिन हमारी उत्सुकता पहले तो नान एसेंशियल में रहती है। कभी शायद किसी की सेमी एसेंशियल तक जाती है। वह जो एसेंशियल है, अनिवार्य है, जिसमें कोई फर्क होता ही नहीं, उस केंद्र तक हमारी पकड़ नहीं जाती है। न हमारी इच्छा जाती है।
महावीर एक गांव से गुजर रहे है। और महावीर का एक शिष्य मखनी गोशालक उनके साथ है, जो बाद में उनका विरोधी हो गया। एक पौधे के पास से दोनों गुजरते है। गोशालक महावीर से कहता है। कि सुनिये, यह पौधा लगा हुआ है—क्या सोचते है आप, यह फूल ते पहुँचेगा। इसमें फूल लगेंगे या नहीं लगेंगे, यह पौधा बचेगा या नहीं बचेगा। इसका भविष्य है या नहीं।
महावीर आँख बंद करके उसी पौधे के पास खड़े हो जाते है। गोशालक पूछता है, कहिए आँख बंद करने से क्या होगा। टालिए मत। उसे पता भी नहीं कि महावीर आँख बंद करके क्यों खड़े हो गए है। वह एसेंशियल की खोज कर रहे है। इस पौधे के बीइंग में उतरना जरूरी है। इस पौधे की आत्मा में उतरना जरूरी है। बिना इसके नहीं कहा जा सकता। कि क्या होगा। आँख खोलकर महावीर कहते है कि यह पौधा फूल तक पहुँचेगा।
गोशालक ने उस सामने ही पौधे को उखाड़ कर फेंक देता है, और खिल खिलाकर हंसता हे। क्योंकि इससे ज्यादा और अतर्क्य प्रमाण क्या होगा। महावीर के लिए अब कुछ और कहने की जरूरत क्या है। उसने पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया, उसने कहा कि देख लें। वह हंसता है, महावीर मुस्कराते हे। वे दोनों अपने रास्ते चले जाते है।
साद दिन के बाद वापस उसी रास्ते पर लौट रहे है। जैसे ही महावीर और वे दोनों उस दिन गांव में पहुंचे थे वैसे ही बड़ी भंयकर वर्षा हुई थी। सात दिन तक मूसलाधार पानी पड़ता रहा। सात दिन तक निकल नहीं सके। फिर लौट रहे है। जब लौटते है तो ठीक उस जगह आकर महावीर खड़े हो गए है जहां वे सात दिन पहले आँख बंद करके खड़े थे। देखा कि वह पौधा खड़ा है। जोर से वर्षा हुई उसकी जड़ें वापस गीली जमीन को पकड़ गयीं और पौधा खड़ा हो गया।
महावीर फिर आँख बंद करके उसके पास खड़े हो गए। गोशालक बहुत परेशान हुआ। उस पौधे को फेंक गए थे। महावीर ने आँख खोली, गोशालक ने पूछा कह हैरान हूं, आश्चर्य, इस पौधे को हम उखाड़ कर फेंक गए, फिर खड़ा हो गया। महावीर ने कहा, यह फूल तक पहुँचेगा। और इसीलिए मैं आँख बंद करके ओर खड़े होकर उसे देखा।
इसकी आंतरिक पोटेंशियलिटी, इसकी आंतरिक संभावना क्या है। उसके भीतर की स्थिति क्या हे। तुम इसे बाहर से फेंक दोगे। उठाकर तो भी यह अपने पैर जमाकर खड़ा हो सकेगा। यह कहीं आत्मघाती तो नहीं है—सुसाइडल इंस्टिंक्ट तो नहीं है इस पौधे में, कहीं यह मरने को उत्सुक तो नहीं है। अन्यथा तुम्हारा सहारा लेकर मर जाएगा। यह जीने को तत्पर है। अगर यह जीने को तत्पर है तो जिएगा ही। मैं जानता था कि तुम इसे उखाड़कर फेंक दोगे।
गोशालक ने कहा, आप क्या कहते है। महावीर ने कहा जब मैं इस पौधे को देख रहा था तब तुम भी पास खड़े थे, तुम भी दिखायी पड़ रहे थे। और मैं जानता था कि तुम उसे उखाड़कर फेंकोगे। इसलिए ठीक से जान लेना जरूरी है कि पौधे की खड़े रहने की आंतरिक क्षमता कितनी है। इसके पास आत्म-बल कितना है। यह कहीं मरने को तो उत्सुक नहीं है कि कोई बहाना लेकर मर जाए तो तुम्हारा बहाना लेकर भी मर सकता है। अन्यथा तुम्हारा उखाड़कर फेंका गया पौधा पुन: जड़ें पकड़ सकता है।
गोशालक को दुबारा उस पौधे को उखाड़ कर फेंकने की हिम्मत न पड़ी—डरा। पिछली बार गोशालक हंसता हुआ गया था। इस बार महावीर हंसते हुए आगे बढ़े। गोशालक रास्ते में पूछने लगा, आप हंसते क्यों हो। महावीर ने कहा, मैं सोचता था कि देखें तुम्हारी सामर्थ्य कितनी है। तुम दुबारा इसे उखाड़कर फेंकते हो या नहीं।
गोशालक ने पूछा के आपको तो पता चल जाना चाहिए कि मैं उखाड़ कर फेंकूंगा या नहीं, तक महावीर ने कहा, वह गैर अनिवार्य है। उखाड़ कर फेंक भी सकते हो। अनिवार्य यह था कि पौधा अभी जीना चाहता था। उसके पूरे प्राण जीना चाहते थे, वह अनिवार्य था। वह एसेंशियल था। यह तो गैर अनिवार्य है, तुम फेंक भी सकते हो, नहीं भी फेंक सकते हो। यह तुम पर निर्भर हे। लेकिन तुम पौधे से कमजोर सिद्ध हुए हो—हार गए। महावीर से गोशालक के नाराज हो जाने के कुछ कारणों में एक कारण यह पौधा भी था।
जिस ज्योतिष की मैं बात कर रहा हूं उसका संबंध अनिवार्य से एसेंशियल से फाउण्ड़ेशनल से है। आपकी उत्सुकता ज्यादा से ज्यादा सेमी एसेंशियल तक आती है। पता लगाना चाहते हे कि कितने दिन जियूंगा, मर तो नहीं जाऊँगा,जीकर क्या करूंगा। जी ही लुंगा तो क्या करूंगा, आपकी उत्सुकता नहीं पहुँचती। मरूंगा तो मरने के बाद क्या करूंगा। इस तक भी आपकी उत्सुकता नहीं पहुँचती। घटनाओं तक पहुँचती है, आत्माओं तक नहीं पहुँचती। जब मैं जी रहा हूं तो यह तो घटना है सिर्फ—जीकर मैं क्या हूं। वह मेरी आत्मा होगी। हम सब मरेंगे। मरने के मामले में सबकी घटना होगी। लेकिन मरते क्षण में मैं क्या होऊंगा, क्या करूंगा। मरने के क्षण में हमारी स्थिति सब से भिन्न होगी। कोई मुस्कराते हुए भी मर सकता है।
मुल्ला नसरूदीन से कोई कुछ पूछता है, और वह अब मरने के करीब है। उससे कोई पुछता है। आपका क्या ख्याल है। मुल्ला जब लोग पैदा होते है तो कहां से आते है? मरते है तो कहां जाते है? मुल्ला ने कहां, जहां तक अनुभव की बात है, मैंने लोगों को पैदा होते वक्त रोते ही देखा हे। और मरते वक्त रोते ही जाते देखा हे। अच्छी जगह से न आते है न अच्छी जगह जाते है। इनको देखकर जो अंदाज लगता है न अच्छी जगह से आते है न अच्छी जगह जोत है। आते है तब भी रोते हुए मालूम पड़ते है। जाते है तब भी रोते हुए मालूम पड़ते है।
लेकिन नसरूदीन जैसा आदमी हंसता हुआ मरता है। मौत तो घटना है, लेकिन हंसते हुए मरना आत्मा है। तो आप कभी ज्योतिषी से पूछिए कि मैं हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए मरूंगा। यह पूछने जैसी बात है। लेकिन यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से जुड़ी हुई बात है।
आप पूछते है कब मरूंगा? जैसे मरना आपने आप में मूल्यवान है बहुत। कब तक जियूंगा। जैसे बस जी लेना काफी है। किस लिए जियूंगा क्यों जियूंगा, जीकर क्या हो जाऊँगा? कोई पूछने नहीं आता। इसलिए महल गिर गया। क्योंकि वह महल गिर जाएगा, जिसके आधार नान एसेंशियल पर रखे है। गैर जरूरी चीजों पर जिसकी हमने दीवारें खड़ी कर दी हो वह कैसे टिकेगा—अधार शिलाएं चाहिए।
मैं जिस ज्योतिष की बात कहर रहा हूं और आप जिसे ज्योतिष रहे है। उससे वह ज्योतिष भिन्न हे। गुणात्मक रूप से और गहरा है। उसके आयाम और होते है। मैं इस बात की चर्चा कर रहा हूं कि कुछ आपके जीवन में अनिवार्य आपके जीवन में और जगत के जीवन में संयुक्त है, लयबद्ध है। अलग-अलग नहीं है। उसमें पूरा जगत भागीदार है। उसमें आप अकेले नहीं है।( क्रमश: अगले अंक में.........
--ओशो
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म,
वुडलैण्ड, बम्बई, दिनांक 10 जुलाई 1971,
sach a wonder ful thing
जवाब देंहटाएंAdbhut ahsaas