अब वैज्ञानिक कहते है कि दस पीढ़ियों में हमें पूरा अंदाजा लग पायेगा कि क्या-क्या परिणाम हुए। क्योंकि इनका सब कुछ रेडियो एक्टिविटी से प्रभावित हो गया। अब जो स्त्री बच गई उसके शरीर में जो अंडे है वह प्रभावित हो गए है। अब वह अंडे कल उनमें से एक अंडा बच्चा बनेगा वह बच्चा वैसा ही बच्चा नहीं है। वह लँगड़ा हो सकता है, लूला हो सकता है, अंधा हो सकता है। उसकी चार आंखें भी हो सकती है। आठ आंखे भी हो सकती है।
कुछ भी हो सकता है, अभी हम कुछ भी नहीं कह सकते वह कैसा होगा। उसका मस्तिष्क बिलकुल रूग्ण भी हो सकता है। प्रतिभाशाली भी हो सकता है। वह जीनियस भी पैदा हो सकता है। जैसा जीनियस कभी पैदा न हुआ हो। अभी हमें कुछ भी पता नहीं कि वह क्या होगा। इतना पक्का पता है कि जैसा होना चाहिए—साधारणत: आदमी वैसा वह नहीं होगा।
अगर एटम की रेडियो उर्जा ऐसा कर सकती है जो कि बहुत छोटी ताकत है—हमारे लिए वह बहुत बड़ी है। एक एटम एक लाख बीस हजार आदमियों को मार पाया हिरोशिमा और नागासाकी में—फिर भी तुलनात्मक दृष्टि में वह बहुत छोटी ताकत है। सूर्य के ऊपर जो ताकत है उसका हम इससे कोई हिसाब नहीं लगा सकते है—जैसे अरबों एटम बम एक साथ
फूट रहे हो। उतनी रेडियो एक्टिविटी सूरज के ऊपर है: और असाधारण है यह।
क्योंकि सूरज चार अरब वर्षों से तो पृथ्वी को गर्मी दे रहा है। और उससे पहले से और अभी भी वैज्ञानिक कहते है कि कम से कम चार हजार वर्ष तक तो उसके ठंडे होने की कोई भी संभावना नहीं। प्रतिदिन इतनी गर्मी...और सूरज दस करोड़ मील दूर है पृथ्वी से। हिरोशिमा में जो घटना घटी है उसका प्रभाव दस मील से ज्यादा दूर नहीं पडा। दस करोड़ मील दूर सूरज है चार अरब वर्षो से तो वह हमें सब सारी गर्मी दे रहा है। फिर भी अभी रिक्त नहीं हुआ। पर यह सूरज कुछ भी नहीं है। इससे भी महा सूर्य है। ये सब तारे जो है आकाश में, ये महा सूर्य है। और इसमें से प्रत्येक से अपनी व्यक्तिगत और निजी क्षमता की सक्रियता हम तक प्रवाहित होती है।
एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक, जो अंतरिक्ष में फैलती ऊर्जाओं के संबंध में अध्ययन कर रहा है। माइकेल गाकलिन, उसका कहना है कि जितनी ऊर्जाऐं हमें अनुभव में आ रही है। उनमें से हम एक प्रतिशत के संबंध में भी पूरा नहीं जानते। जब से हमने कृत्रिम उपग्रह छोड़े है पृथ्वी के बाहर,तब से उन्होंने हमें इतनी खबरें दी है कि हमारे पास न शब्द है उन खबरों को समझने के लिए,न हमारे पास विज्ञान है। और इतनी ऊर्जाऐं इतनी एनजी्र चारों तरफ बह रही होंगी; इसकी हमें कल्पना ही नहीं थी। इस संबंध में एक बात और ख्याल में ले लेनी जरूरी है।
ज्योतिष कोई विकसित होता हुआ नया विज्ञान नहीं है। हालत उल्टी है। ताजमहल अगर आपने देखा है तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी। कहानी यह है कि शाहजहाँ न मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए,जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसा अपनी कब्र के संगमूसा का काला पत्थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था। लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया।
ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी, लेकिन अभी इतिहासज्ञों ने खोज की है तो पता चला है कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी है। वह किसी बनने वाले महल दीवारें नहीं है। वह किसी बहुत बड़े महल की गिर चुका है। खंडहर है, पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते है। एक नये मकान की दीवारें उठ रही है—अधूरी है, मकान बना नहीं है। हजारों सालों बाद तय करना मुशिकल हो जाएगा कि नये मकान की बनी दीवारें है या किसी बने हुए मकान की। जो गिर चूका—उसके बचे खुचे अवशोष है,खंडहर है।
पिछले तीन सौ सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ हे, वह शाहजहाँ बनवा रहा था, वह पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है उससे पता चलता है। कि वह महल पूरा था। और न केवल यह पता चला है। वह महल पूरा था, बल्कि यह भी पता चलाता है कि ताजमहल शाहजहाँ ने कभी नहीं बनवाया। वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है, जिसको उसने सिर्फ कनवर्ट किया। जिसको सिर्फ थोड़ा सा फर्क किया। और कई दफा इतनी हैरानी होती है। कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते है फिर उससे भिन्न बात को हम सोचते भी नहीं।
ताज महल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनवायी। कब्र ऐसी बनायी भी नहीं जाती। क्रब ऐसी बनायी ही नहीं जाती। ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्थान है। बंदूकें और तोप लगाने के स्थान है क्रबों की बंदूकें और तोपें लगाकर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती। वह महल है पुराना उसको सिर्फ कनवर्ट किया गया है। वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है जो गिर गया, जिसके खंडहर शोष रह गए।
ज्योतिष भी खंडहर की तरह है। एक बहुत बड़ा महल था, पूरा विज्ञान था, जो ढह गया। कोई नयी चीज नहीं है। कोई नया उठता मकान नहीं है। लेकिन जो दीवारें रह गयी है उनसे कुछ पता नहीं चलता कि कितना बड़ा महल उसकी जगह रहा होगा। बहुत बार सत्य मिलते है और खो जाते है।
अरिस्टिकारस नाम का एक यूनानी ने जीसस से दो सौ वर्ष पूर्व यह सत्य खोज निकाला था कि सूर्य केंद्र है, पृथ्वी केंद्र नहीं है। अरिस्टिकारस का यह सूत्र, हेलियो सेंट्रिक सिद्धांत कि सूरज केंद्र पर है। जीसस के तीन सौ वर्ष पहले खोज निकाला गया था। लेकिन जीसस के सौ वर्ष बाद टोलिमी ने इस सूत्र को उलट दिया और पृथ्वी को फिर केंद्र बना दिया। और फिर दो हजार साल लग गए केपलर और कोपरनिसक को खोजने में वापस, कि सूर्य केंद्र है, पृथ्वी केंद्र नहीं है। दो हजार साल तक अरिस्टिकारस का सत्य दबा पडा रहा। दो हजार साल बाद जब कोपरनिसक ने फिर से कहा तब अरिस्टिकारस की किताबें खोजी गयी। लोगों ने कहा, यह तो हैरानी की बात है।
अमरीका कोलंबस ने खोजा,ऐसा पश्चिम के लोग कहते है। एक बहुत प्रसिद्ध मजाक प्रचलित है, ऑस्कर वाइल्ड का। वह अमरीका गया हुआ था। उसकी मान्यता थी कि अमरीका और भी बहुत पहले, खोजा जा चुका है। और यह सच है। यह सच्चाई है कि अमरीका बहुत दफा खोजा जो चुका है और पुन: पुन: खो गया। उससे संबंध सूत्र टूट गए।
एक व्यक्ति ने ऑस्कर वाइल्ड को पूछा कि हम सुनते है कि आप कहते है, अमरीका पहले ही खोजा जा चुका है। तो क्या आप नहीं मानते कि कोलंबस ने पहली खोज की। और अगर कोलंबस ने पहली खोज नहीं की तो अमरीका बार-बार क्यों खो गया। तो ऑस्कर वाइल्ड ने मजाक में कहा कि कोलंबस ने पुन: खोज की ही है, रि-डिस्कवर्ड अमेरिका, इट वाज डिस्क वर्ड से मेनी टाईम, बट एवरी टाइम हश्ड-अप। हर बार इसको दबाकर चुप रखना पडा। क्योंकि उपद्रव को बार-बार दबाना यहाँ भुलाना जरूरी था।
महाभारत अमरीका की चर्चा करता है। अर्जुन की एक पत्नी मेक्सिको की लड़की है। मेक्सिको में जो प्राचीन मंदिर है वह हिंदू मंदिर है जिन पर गणेश की मूर्तियां तक खुदी हुई है। बहुत बार सत्य खोज लिए जाते है और खो जाते हे। बहुत बार हमें सत्य पकड़ में आ जाता है, फिर खो जाता है।
ज्योतिष उन बड़े से बड़े सत्यों में से एक है जो पूरा का पूरा ख्याल में आ चुका ओ खो गया है। उसे फिर से ख्याल में लाने के लिए बड़ी कठिनाई है। इसलिए मैं बहुत सी दिशाओं से आपसे बात कर रहा हूं। क्योंकि ज्योतिष पर सीधी बात करने का अर्थ होता हे। कि वह जो सड़क पर ज्योतिषी बैठा हे, शायद मैं उस संबंध में कुछ कह रहा हूं। जिसको आप चार आने देकर और अपना भविष्य फल निकलाव आते है। शायद उसके संबंध में या उसके समर्थन में कुछ कह रहा हूं।
नहीं ज्योतिष के नाम पा सौ में से निन्यान्नबे धोखाधड़ी है। ओ वह जो सौवां आदमी हे, निन्यान्नबे को छोड़कर उसे समझना बहुत मुश्किल है। क्योंकि वह कभी इतना डागमेटिक नहीं हो सकता कि कह दे कि ऐसा होगा ही। क्योंकि वह जानता है कि ज्योतिष बहुत बड़ी घटना है। इतनी बड़ी घटना है कि आदमी बहुत झिझक कर ही वहां पैर रख सकता है।
जब मैं ज्योतिष के संबंध में कुछ कह रहा हूं तो मेरा प्रयोजन है कि मैं उसे पूरे-पूरे विज्ञान को आपको बहुत तरफ से उसके दर्शन करा दूँ। इस महल के । तो फिर आप भीतर बहुत आश्वस्त होकर प्रवेश कर सकें। और मैं जब ज्योतिष की बात कर रहा हूं तो ज्योतिषी की बात नहीं कर रहा हूं। उतनी छोटी बात नहीं है। पर आदमी की उत्सुकता उसीमें है कि उसको पता चल जाए कि उसकी लड़की की शादी होगी कि नहीं होगी। इस संबंध में यह भी आपको कह दूँ कि ज्योतिष के तीन हिस्से है।
एक—जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्तीभर फर्क नहीं होता। वह सर्वाधिक कठिन है उसे जनना । फिर उसके बाहर की परिधि हे—नान एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते है। अगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते है और उन दोनों के बीच में एक परिधि है—सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते है। न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होगें। तीन हिस्से करते है। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई अपाय नहीं है।
धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की—उसके बाद दूसरा है—सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य—अगर जान लेंगे तो बदल सकते है। अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा तो जो होना है वहीं होगा। ज्ञान होगा तो अल्टरनेटिव्ज, विकल्प है—बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस यह है—नान एसेंशियल उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है। लेकिन हम जिस ज्योतिष की बात समझते है। वह नान एसेंशियल का ही मामला है।
एक आदमी कहता है, मेरी नौकरी लग जाएगी या नहीं लग जाएगी। चाँद-तारों के प्रभाव से आपकी नौकरी के लगने, न लगने को कोई भी गहरा संबंध नहीं है। एक आदमी पूछता है मेरी शादी हो जाएगी या नहीं हो जाएगी। शादी के बिना भी समाज हो सकता है। एक आदमी पूछता है कि मैं गरीब रहूंगा कि अमीर रहूंगा। एक समाज कम्युनिस्ट हो सकता है। कोई गरीब और अमीर नहीं होगा।
ये नान एसेंशियल हिस्से है जो हम पूछते है। एक आदमी पूछता है कि अस्सी साल में मैं सड़क पर से गुजर रहा था। और एक संतरे के छिलके पर पैर पड़ कर गिर पडा तो मेरे चाँद तारे का इसमें कोई हाथ है या नहीं। अब चाँद-तारे से तय नहीं किया जा सकता कि फंला-फंला ना के संतरे से और फंला-फंला सड़क पर आपका पैर फिसले। वह निपट गँवारी है। लेकिन हमारी उत्सुकता इसमें है कि आज हम निकलेंगे सड़क पर, छिलके पर पैर पड़ कर फिसल तो नहीं जाएगा। यह नान एसेंशियल है। यह हजारों कारणों पर निर्भर है लेकिन इसके होने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इसका बी इंग से, आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह घटनाओं की सतह है। क्रमश: अगल अंक में............
ओशो
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म
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