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मंगलवार, 17 अगस्त 2010

जाति-स्‍मरण: गुप्त सूत्रों का रहस्‍य (3 )

 
एक स्‍त्री ने एक छोटी सी किताब लिखी है—एक छोटे बच्‍चे के साथ बच्‍चा होकर रहने की। उस स्‍त्री को उम्र तो सत्‍तर साल है। सत्‍तर सालक की स्‍त्री ने एक छोटे सा प्रयोग किया। एक पाच साल के बच्‍चे के साथ दोस्‍ती करने का। मुश्‍किल है बहुत, आसान मामला नहीं है। पाँच साल के बच्‍चे का बाप होना आसान है, मां होना आसान है, भाई होना आसान है, गुरु होना आसान है, दोस्‍त होना इतना आसान नहीं है। कोई मां-बाप दोस्‍त नहीं हो पाता। जिस दिन दुनिया में मां-बाप बच्‍चों के दोस्‍त हो सकेंगे उस दिन हम दुनिया को आमूल बदल देंगे। यह दुनियां बिलकुल दूसरी हो जायेगी। यह दुनिया इतनी कुरूप,इतनी बदशक्‍ल नहीं रह जायेगी। लेकिन दोस्‍ती का हाथ ही नहीं बढ़ पाता।
      उस स्‍त्री ने सच में एक अद्भत प्रयोग किया। उसने वर्षों तक वह प्रयोग किया। एक तीन साल के बच्‍चे से दोस्‍ती करनी शुरू की और पाँच साल के बच्‍चे तक, दो साल की उम्र तक निरंतर दो साल उससे सब तरह की दोस्‍ती निभाई। उसकी दोस्‍ती का ख्‍याल थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। वैसी स्‍त्री को पीछे लौट जाना बहुत आसान हो जायेगा।
      वह सत्‍तर साल की बूढ़ी स्‍त्री उस बच्‍चे के साथ जो उसका दोस्‍त है, समुन्दर के तट पर गई है। तो बच्‍चा दौड़ रहा है, कंकड़-पत्‍थर बीन रहा है। तो वह भी दौड़ रही है। कंकड़-पत्‍थर बीन रही है। क्‍योंकि बच्‍चे और उसके बीच में जो एज बैरियर है। जो आयु का बड़ा भारी व्‍यवधान है वह टूटेगा कैसे। फिर वह कंकड़-पत्‍थर ऐसे नहीं बीन रही है कि सिर्फ दोस्‍ती बढ़ाने के लिए है। वह सच में उन कंकड़-पत्‍थरों को उस आनंद से देखने की कोशिश कर रही है। जिस से बच्‍चा देख रहा है। वह बच्‍चे की भी आंखे है, अपनी भी आंखे देखती है। कंकड़-पत्‍थर को भी ऐसे देख रही है जैसे वो बेहद कीमती हीरे है। और सच उसे वो ऐसे ही लगन लगे। उनके अद्भत रंग आकर उससे मोहित कर रहे थे। उनका हाथ लगा कर देखती। उन्‍हें चूमती उन्‍हें आंखों के लगाती। बच्‍चा जिस पुलक से भरा होता,उस उसी पुलक से उन पत्‍थरों को देखती। कभी समुद्र के झाग पकड़ती, कभी उस के साथ तितलियों को पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ती। अगर रात दो बजे बच्‍चा उठ आया और उसने कहां की चलो बहार घर, कुछ खेलेंगे, बहार झींगुर बोल रहे है। उनकी आवज सुनेंगे। तो उसने कभी नहीं कहां मैं नहीं जाती। की अभी रात है अब तुम सो जाओ। वह बच्‍चे के साथ ही हो  लेती। अगर बहार जरा भी शोर होने से झींगुरों का बोलना बंद ने हो जाए। बच्‍चा अगर दबे पाव चलता तो वह भी बच्‍चे के साथ दबे पाँव चलती।
      दो साल की यह दोस्‍ती अनूठे परिणाम लाई। और उस स्‍त्री ने लिखा है की मैं भूल ही गई की मैं सत्‍तर साल की हूं। और मैंने जो पाँच साल का होकर जो कभी नहीं जाना वह उस सत्‍तर साल की उम्र में पाँच साल को होकर जाना। सारी दुनियां एक बंडर लेंड़ बन गई। सारा जगत एक परियों का जगत हो गया। में सच में दौड़ने लगी और पत्‍थर बीनने लगी और तितलियां पकड़ने लगी। उस बच्‍चे और मेरे बीच में सारी आयु के फासले गिर गये। वह बच्‍चा मुझ से ऐसे ही बातें करने लगा जैसे में भी पांच साल कि ही हूं। और मैं भी उस बच्‍चें के साथ ऐसे ही बातें करने लगी जैसे में भी अभी पाँच साल की हो गई हूं।
      उसने पूरी किताब लिखी है अपने दो साल के अनुभवों की, सेंस आफ बंडर, और उसमें उसने लिखा है कि मैंने फिर से पा लिया आश्‍चर्य का भाव। अब मैं कह सकती हूं, कि कहीं भी बड़े से बड़े संत ने अगर कुछ भी पाया होगा, तो इससे ज्‍यादा नहीं हो सकता। जो मुझे दिखाई पड़ रहा है।
जब जीसस से किसी ने पूछा कि कौन होंगे वे लोग जो तुम्‍हारे स्‍वर्ग के राज्‍य में प्रवेश करेंगे। तो जीसस ने कहा कि वे जो बच्‍चों की भांति हे।
 बच्‍चे शायद किसी ऐसे बड़े  स्‍वर्ग में रहते ही है। हम सब सिखा पढ़ा कर उनका स्‍वर्ग उनसे छीन लेते है। लेकिन जरूरी है कि यह स्‍वर्ग छीने,क्‍योंकि छीना गया स्‍वर्ग जब वापस मिलता है। तब उसका अनूठापन और ही होता है। लेकिन वापस बहुत कम लोगों को मिल पाता है। पैराडाइंज लास्‍ट की हालत बहुत लोगों की जिंदगी में होती है। पैराडाइंज रिगेंड की हालत बहुत कम लोगों की जिंदगी में आती है। खोते तो हम सब है स्‍वर्ग को, लेकिन उस स्‍वर्ग की वापसी नहीं हो पाती। अगर मरते-मरते तक कोई फिर बच्‍चा हो जाए। तो स्‍वर्ग वापस लोट आता है। और अगर बूढ़ा आदमी बच्‍चें की आंखों से दुनिया को  देख सके तो उसकी जिंदगी में जैसी शांति और जैसा आनंद और जैसा ब्‍लिस की वर्षा हो जाती है। उसका अनुमान लगाया जा सकता है।
तो बहार की जिंदगी में जिन्‍हें पीछे जाति-स्‍मरण में लौटना है। उन्‍हें अपने एज के फिकसेशन को तोड़ना होगा। कभी राह चलते किसी बच्‍चें को हाथ पकड़ कर उसके साथ दौड़ने लगें भूल जाये कि आपकी उम्र कितनी है। और मजा यह है कि उम्र सिर्फ याद है और कुछ भी नहीं। सिर्फ एक ख्‍याल है। एक विचार है जो मजबूती से पकड़ लिया गया है। बहार की जिंदगी में उम्र की फिक्‍सेन को तोड़े और भीतर की जिंदगी में जब ध्‍यान को बैठे तो एक-एक साल पीछे खिसकने लगें। एक-एक जन्‍म दिन वाप लोट आने लगें। धीरे-धीरे लौटेंतो इस जन्‍म के आखरी तक लौट आने में कोई कठिनाई नहीं है। पिछले जन्‍म में जाने का जो सूत्र है, वह मैं नहीं कह सकता हूं। इसको न कहने का कारण है। क्‍योंकि अगर कोई कुतूहलवश उसका प्रयोग करे,तो पागल हो सकता है। क्‍योंकि अगर पिछले जन्‍म की स्‍मृतियां एकदम से टूट पड़ें तो उन्‍हें संभालना मुश्‍किल है।
 मेरे पास एक लड़की को लाया गया। जिसकी उम्र जब उसे मेरे पास लाया गया था शायद कोई होगी ग्‍यारह साल की। उसे तीन जन्‍मों की स्‍मृति याद है। किसी कारण से नहीं आकस्‍मिक, प्रकृति की किसी भूल से। उसे तीन जन्‍म स्‍मरण है। प्रकृति बहुत इंतजाम करती है। कि आपके पिछले जन्‍म की पूरी की पूरी परत को दबा देती है। और इस जन्‍म की स्‍मृतियां उस परत के पास बननी शुरू होती है। वह परत गहरे रूप से आपके पिछले जन्‍म को आपसे तोड़े रखती है।
 इस लिए जिन मुल्‍कों में यह ख्‍याल है—जैसे मुसलमान मुल्‍कों में या ईसाई मुल्‍कों में—कि पिछला जन्‍म नहीं होता है, जिन मुल्‍कों में यह ख्‍याल है कि पिछला जन्‍म नहीं होता है। उन मुल्कों में पिछले जन्‍म की स्‍मृतियों के बच्‍चें नहीं पैदा होते। क्योंकि उस तरफ ध्‍यान ही नहीं दिया जाता है। जैसे हमने पक्‍का मान लिया कि इस दिवाल के पास कुछ भी नहीं है। तो हम धीरे-धीरे इस दीवाल की तरफ देखना ही बंद कर देंगे। लेकिन इस देश में जैनों में, बौद्धो में, हिंदुओं में कितना ही भेद हो, एक बात में मत भेद नहीं है, वह है पिछले जन्‍म का आस्‍तित्‍व। वह पुनर्जन्‍म की यात्रा में कोई भेद नहीं है। इस लिए इस देश का चित हजारों सालों से पिछले जन्‍म के होने की संभावना से भरा हुआ है।
तो कई बार अचानक यह संभावना होती है कि अगर पिछले जन्‍म में मरते वक्‍त कोई व्‍यक्‍ति गहरा भाव लेकर मर जाए, तो याद रह जायेगी। एक मरता हुआ आदमी अगर यह बहुत गहरा भाव रख ले कि जो मैं इस जिंदगी में था वह मुझे याद रह जाए। तो बिना किसी यौगिक प्रक्रिया के, बिना किसी ध्यान  के प्रयोग के, उसे अगले जन्‍म में याद रह जाएगा। लेकिन तब वह दिक्‍कत में पड़ जाएगा।
उस लड़की को जब मेरे पास लाए, उसे तीन जन्‍म की घटनाएं याद थी। पहला जन्‍म उसका आसाम में हुआ जहां वह सात साल की लड़की होकर मर गई। तो सात साल की लड़की जितनी आसामी बोल सकती है, उतनी वह बोलती है। सात साल की लड़की जितने आसामी-नाच नाच सकती है, उतना वह नाचती है। हालांकि वह तो पैदा हुई मध्‍यप्रदेश में अभी, आसाम कभी गई नहीं, आसामी भाषा से उसका कोई संबंध नहीं है। दूसरा जन्‍म उसका मध्‍य प्रदेश में ही हुआ, कटनी में। अभी वहां वह कोई साठ साल की होकर मरी। सड़सठ वर्ष। और अभी वह ग्‍यारह की है। तो कुल मिला कर तीनों जन्‍मों की अट्ठत्‍तर। उसकी ग्‍यारह साल की उम्र थी जब वह मेरे पास लाई गई। आप उसकी आंखें देखें तो अट्ठत्तर साल की बूढ़ी जैसी आंखें है। और चेहरा जैसे अट्ठत्तर साल की औरत का हो। और वो अभी केवल ग्‍यारह साल की लड़की है। लेकिन उतना ही पीला, जर्द, चिंतित, परेशान, जैसे मौत करीब हो। क्‍योंकि उसकी स्‍मृतियों की शृंखला अट्ठत्‍तर साल की है। उसके भीतर उसे अट्ठत्‍तर साल के स्‍वीकेंस, शृंखला का बोध है।
और उसकी कठिनाई बहुत बढ़ गई है। क्‍योंकि उसके पिछले जन्‍म के जो लोग है। उसके संबंधी, वे सब जबल पूर में मेरे पड़ोस में रहते थे। इस लिए उसे वो मेरे पास लाए। उसने अपने पिछले जन्‍म के सारे संबंधियों को हजारों की भिड़ में पहचान लिया। कोई उसका लड़का है। कोई उसकी बहु हे। कोई उसकी लड़की का  लड़का है। कोई-कोई है। हजारों की भिड़ में छिपा कर खड़ा किया गया। और उस लड़की ने उन सब को पहचान लिया। जिस घर में वह थी अब तो वह घर उन्‍होंने छोड़ दिया। वह तो कोई गांव में घर है। अब तो वे जबलपुर रहते है। उसने उस घर में गड़ा हुआ धन भी बता दिया। जो खोदने से मिल गया।
 जो पड़ोस में मेरे सज्‍जन रहते थे। उनकी वह पिछले जन्‍म में बहन थी। उस के सर पर एक चोट लगी थी। तो उस लड़की ने जैसे ही उसे पहचाना, तो कहां की अरे यह चोट तेरी अभी तक मिटी नहीं। तो उन्‍होंने कहा कि यह चोट मुझे कब लगी पता नहीं। क्‍या तुम बता सकती हो? उसने कहा कि यह चोट जि तेरी शादी हुई तू घोड़े से गिर गया था। घोड़ा बिचक गया और तू गिर पडा। लेकिन तब उसकी उम्र कोई आठ या नौ साल की थी। जब उसकी शादी हुई थी। तो उसे  भी याद नहीं है। तब इस बात का पता लगवाया गया की उनके गांव में किसी को भी इस बात की याद है। और एक बूढ़ी औरत ने इस बात की गवाही दी कि हां, यह लड़का गिरा था। और इसको चोट लग गई थी। और यह घोड़े से ही गिरने की इसकी चोट है। हांलाकि उसको खुद याद नहीं है।
इस लड़की के पिता को मेंने कहा कि इसकी स्‍मृतियों को भूला देने का उपाय करें। में इसमें थोड़ा सहयोगी हो सकता हूं। इसे ले आएं तो इसकी स्‍मृति सात दिन में भूला दी जाए। अन्‍यथा ये लड़की मुश्‍किल में पड़ जायेगी। उसकी कठिनाई बहुत है। क्‍यों किन तो वह स्‍कूल में पढ़ सकती है। क्‍योंकि अट्ठत्‍तर साल की बूढी स्‍त्री को आप स्‍कूल में भरती कर सकते है। वह कुछ सीख नहीं सकती। क्‍योंकि वह सीखी ही हुई है। वह खेल नहीं सकती। वह गंभीर है। वह घर में हर एक की आलोचना करती है। वह उतनी ही कलह से भरी हुई है। जितना अट्ठत्‍तर साल का पुरूष या स्‍त्री भरी हुई होती है। वह घर-घर में सबको आलोचना, निंदा और सबको कौन क्‍या गड़बड़ कर रहा है। उस सका हिसाब रखती है। अभी इस अम्र में। तो मैंने कहां कि यह लड़की पागल हो जाएगी, इसकी स्‍मृति भुलवा दें।
 लेकिन उसके घर के लोग को तो आनंद आ रहा था। क्‍योंकि भीड़ लगती थी। लोग देखने आते थे। कोई पैसे भी चढ़ा देता। नारियल,फल, और मिठाईया भी आने लगी। राष्‍ट्रपति ने उन्‍हें दिल्‍ली भी बुलवाया गया। अमरीका से भी एक निमंत्रण आ गया कि उसको अमेरिका ले आओ। तो बड़े खुश थे। उन्‍होंने मेरे पास लाना बंद कर दिया। हम भुलाना नहीं चाहते। यह तो बड़ी अच्‍छी बात है।
आज इस बात को हुए कोई सात साल हो गए। आज वह लड़की पागल है। अब वे मुझसे कहते है। कि आकर कुछ कीजिए। मैंने कहां की अब बहुत मुश्‍किल मामला हो गया है। जब कुछ हो सकता था तब आप राज़ी नहीं हुए। अब तो होश भी नहीं है उसको। अब तो अनर्गल हालत में कनफ्यूज्‍ड हो गई है। अब तो उसको यह भी पता नहीं चलता कि कौन सी स्‍मृति किस जन्‍म की है। यह भाई इस जन्‍म का है कि पिछले जन्‍म का है। यह पिता इस जन्‍म का है कि पिछले जन्‍म का है। यह सब कनफ्यूज्‍ड हो गया।
 प्रकृति की व्‍यवस्‍था ऐसी है कि आप जितना झेल सकते है। उतनी ही आपको स्‍मृति रह जाती है। इसलिए दूसरे जन्‍म की स्मृतियों के पहले विशेष साधना से गुजरना होता है। जो आपको इस योग्‍य बाना दे कि आपको कोई चीज कन्‍फ्यूज नहीं कर सकती।
 असल में दूसरे जन्‍म की स्‍मृति में जाने के लिए सबसे जरूरी जो शर्त है। वह यह है कि जब तक आपको ये जगत एक सपने की भांति मालूम न होने लगे—एक लीला, एक खेल—तब तक आपको पिछले जन्‍म की स्‍मृति में ले जाना उचित नहीं है। क्‍योंकि अगर आपको यह जगत एक खेल मालूम होने लगे। तो फिर कोई डर नहीं है। फिर आपके चित पर कोई चोट पड़ने वाली नहीं है। खेल की और स्‍मृतियां है उनसे कोई हर्जा होने वाला नहीं है।
लेकिन अगर आपको यह जगत बहुत वास्‍तविक मालूम हो रहा है। और आप अगर अपनी पत्‍नी को बहुत वास्‍तविक मान रहे है। और कल आपको स्‍मरण आ जाए कि पिछले जन्‍म में वह आपकी मां थी, तो आप बड़ी मुश्‍किल में पड़ जायेगे। कि अब क्‍या करें। इसको पत्‍नी मानें की मां मानें। (क्रमश:.......अगले अंक में)
ओशो
मैं मृत्‍यु सिखाता हूं,
प्रवचन—10, संस्‍करण—1991,  (5,860)
    
     

     

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