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सोमवार, 23 अगस्त 2010

सात शरीर और सात चक्र—(1)

पहला शरीर—मूलाधार चक्र

     जैसे सात शरीर है, ऐसे ही सात चक्र भी है। और प्रत्‍येक एक चक्र मनुष्‍य के एक शरीर से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। भौतिक शरीर, फिजिकल बॉडी, इस शरीर का जो चक्र है वह मूलाधार है; वह पहला चक्र है। इस मूलाधार का भौतिक शरीर से केंद्रीय संबंध है; यह भौतिक शरीर का केंद्र हे। इस मूलाधार चक्र की दो संभावनाएं है। एक इसकी प्रकृतिक संभावना है, जो हमें जन्‍म से मिलती है। और एक साधना की संभावना है, जो साधना से उपलब्‍ध होती है।
      मूलाधार चक्र की प्राथमिक प्राकृतिक संभावना कामवासना है, जो हमें प्रकृति से मिलती है। वह भौतिक शरीर की केंद्रीय वासना है। अब साधक के सामने पहला ही सवाल यह उठेगा कि वह जो केंद्रीय तत्‍व है उसके भौतिक शरीर का, इसके लिए क्‍या करे। और इस चक्र की एक दूसरी संभावना है, जो साधना से उपलब्‍ध होगी, वह है ब्रह्मचर्य। सेक्‍स इसकी प्राकृतिक संभावना है और ब्रह्मचर्य इसकी ट्रांसफॉमेंशन है, इसका रूपांतरण है। जितनी मात्रा में चित कामवासना से केंद्रित और ग्रसित होगा उतना ही मूलाधार अपनी अंतिम संभावनाओं को उपलब्‍ध नहीं कर सकेगा। उसकी अंतिम संभावना ब्रह्मचर्य है। उस चक्र की दो संभावनाएं है: एक जो हमें प्रकृति से मिली, और एक जो हमें साधना से मिलेगी।

न भोग, न दमन—वरन जागरण
      अब इसका मतलब यह हुआ कि जो हमें प्रकृति से मिली है उसके साथ हम दो काम कर सकते है : या तो जो प्रकृति से मिला है हम उसमें जीते रहें,तब जीवन में साधना शुरू नहीं हो पायेंगे; दूसरा काम जो संभव है वह यह कि हम इसे रूपांतरित करें।
      रूपांतरण के पथ पर जो बड़ा खतरा है वह खतरा यहीं है कि कहीं हम प्राकृतिक केंद्र से लड़ने न लगें। साधक के मार्ग में खतरा क्‍या है? या तो जो प्राकृतिक व्‍यवस्‍था है वह उसको भोगे, तब वह उठ नहीं पाता उस तक जो चरम संभावना है—जहां तक उठा जा सकता था; भौतिक  शरीर जहां तक उसे पहुंचा सकता था वहाँ तक वह नहीं पहुंच पाता; जहां से शुरू होता है वहीं अटक जाता है। तो एक तो भोग है, दूसरा दमन है कि उससे लड़े। दमन बाधा है साधक के मार्ग पर—पहले केंद्र की जो बाधा है; क्‍योंकि दमन के द्वारा कभी ट्रांसफॉमेंशन (रूपांतरण) नहीं होता।
      दमन बाधा है तो साधक क्‍या बनेगा? साधन क्‍या होगा? समझ साधन बनेगी, अंडरस्‍टैंडिंग साधन बनेगी। कामवासना को जो जितना समझ पायेगा उतना ही उसके भीतर रूपांतरण होने लगेगा। उसका कारण है; प्रकृति के सभी तत्‍व हमारे भीतर अंधे और मूर्छित है। अगर हम उन तत्‍वों के प्रति होश पूर्ण हो जायें तो उनमें रूपांतरण होना शुरू हो जाता है।
      जैसे ही हमारे जैसे ही हमारे भीतर कोई चीज जागनी शुरू होती है वैसे ही प्रकृति के तत्‍व बदलने शुरू हो जाते है। जागरण कीमिया है, अवेयरनेस केमिस्‍ट्री है उनके बदलने की, रूपांतरण की। तो अगर कोई अपनी कामवासना के प्रति पूरे भाव और पूरे चित पूरी समझ से जागे, तो उसके भीतर कामवासना की जगह ब्रह्मचर्य का जन्‍म शुरू हो जाता है। और जब तक कोई पहले शरीर पर ब्रह्मचर्य पर न पहुंच जाये तब तक दूसरे शरीर की संभावनाओं के साथ काम करना बहुत कठिन है। 
--ओशो
जिन खोजा तिन पाइयां,
प्रश्‍नोत्‍तर चर्चाएं, बंबई,
प्रवचन--8

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