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सोमवार, 23 अगस्त 2010

पत्र-पाथेय--( 5 ) संन्‍यास जीवन का परम भोग है।

प्रिय योग प्रिया,

प्रेम, तेरे संन्‍यास से अत्‍यंत आनंदित हूं।
जिस जीवन (वृक्ष) में संन्‍यास के फूल न लगें, वह वृक्ष बांझ है।
क्‍योंकि, संन्‍यास ही परम जीवन-संगीत है।
संन्‍यास त्‍याग नहीं है।
वरन, वही जीवन का परम-भोग है।
निश्‍चय ही जो हीरे-मोती पा लेता है, उससे कंकड़-पत्‍थर छूट जाते है।
लेकिन, वह छोड़ना नहीं छूटना है।





रजनीश का प्रणाम
15-10-1970

(प्रति : मा योग प्रिया, विश्रव्नीड़, आजोल, गुजरात)

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