प्रिय मधु,
प्रेम। संघर्ष का शुभारंभ है।
ओर, उसमें तुझे धक्का देकर मैं अत्यंत आनंदित हूं।
सन्यास संसार को चुनौती है।
वह स्वतंत्रता में जीना ही संन्यास है।
असुरक्षा अब सदा तेरे साथ होगी, लेकिन वही जीवन का सत्य है।
सुरक्षा कहीं है नहीं—सिवाय मृत्यु के।
जीवन असुरक्षा है।
और यही उसकी पुलक है—यही उसकी सौंदर्य है।
सुरक्षा की खोज ही आत्मा घात है।
वह अपने ही हाथों, जीते-जी मरना है।
ऐसे मुर्दे चारों और है।
उन्होंने ही संसार को मरघट बना दिया है।
उनमें प्रतिष्ठित मुर्दे भी है।
इस सबको जगाना है, हालांकि वे सब जागे हुओं को भी सुलाने की चेष्टा करते है।
अब तो यह संघर्ष चलता ही रहेगा।
इसमें ही तेरे संपूर्ण संकल्प का जन्म होगा।
और मैं देख रहा हूं दूर—उस किनारे को जो कि तेरे संघर्ष की मंजिल है।
रजनीश के प्रणाम,
(25-10-1970)
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