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सोमवार, 23 अगस्त 2010

पत्र-पाथेय-- ( 6 ) संन्‍यास नया जन्‍म है

प्रिय योग यशा,

प्रेम। नये जन्‍म पर मेरे शुभाशीष।
संन्‍यास नया जन्‍म है।
स्‍वंय में, स्‍वयं में स्‍वयं का।
वहीं मृत्‍यु भी है।
साधारण नहीं—महा मृत्यु।
उस सब की जो तू तक थी।
और जो तू अब है, वह भी प्रतिपल मरता रहेगा।
ताकि, नया जन्‍मे–-नया जन्‍मता ही रहे।
अब एक पल भी तू-तू नहीं रह सकेगी।
मिटना है प्रतिपल और होना है प्रतिपल।
यही है साधना।
नदी की भांति जीना है।
सरोवर की भांति नहीं।
सरोवर गृहस्‍थ है।
सरिता संन्‍यासी है।






रजनीश का प्रणाम
 (11-11-1970)
(प्रति : मा योग यशा, विश्रव्नीड़, आजोल, गुजरात)

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