पहला प्रकार—
पहले प्रकार के स्वप्न तो मात्र कूड़ा करकट होते है। हजारों मनो विश्लेषक बस कूड़े पर कार्य कर रहे है; यह बिलकुल व्यर्थ है। ऐसा होता है क्योंकि सारे दिन में, दिन भर काम करते हुए तुम बहुत-कुड़ा कचरा इकट्ठा कर लेते हो। बिलकुल ऐसे ही जैसे शरीर पर आ जमती है धूल। और तुम्हें होती है स्नान की जरूरत, एक सफाई की। इसी ढंग से मन इकट्ठा कर लेता है धूल को। लेकिन मन के स्नान कराने को कोई उपाय नहीं। इसलिए मन के पास होती है एक स्वचलित प्रक्रिया सारी धूल और कूड़े करकट को बहार फेंक देने की। पहली प्रकार का स्वप्न कुछ नहीं है सिवाय उस धूल को उठाने के जिसे मन फेंक रहा होता है। यह सपनों को बड़ा भाग होता है। लगभग नब्बे प्रतिशत। सभी सपनों का करीब-करीब नब्बे प्रतिशत तो फेंक दि गई धूल होती है। मत देना ज्यादा ध्यान उनकी और। धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम्हारी जागरूकता विकसित होती जाती है। तुम देख पाओगे की धूल क्या होती है।
दूसरी प्रकार के स्वप्न—
दूसरे प्रकार का स्वप्न एक प्रकार की इच्छा की परिपूर्ति है। बहुत सी आवश्यकताएं होती है। स्वभाविक आवश्यकताएं। लेकिन पंडित-पुरोहितों ने और उन तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने तुम्हारे मन को विषैला बना दिया है।
जितनी इच्छाएं है चेतन मन की। अचेतन किन्हीं इच्छाओं को नहीं जानता है, इच्छाओं की फिक्र अचेतन को नहीं है। होती क्या है इच्छा?इच्छा फूटती है तुम्हारे सोचने-विचारे से, शिक्षा से, संस्कारों से। तुम देश के राष्ट्रपति होना चाहोगे; अचेतन को इस बात की फिक्र नहीं है। राष्ट्र के राष्ट्रपति हो जाने में अचेतन की कोई रूचि नहीं है। अचेतन को तो मात्र इसमें रूचि है कि एक परितृप्ति जीवंत समग्रता किस प्रकार हुआ जाए। लेकिन चेतन मन कहता है। राष्ट्रपति हो जाओ। और यदि राष्ट्रपति होने में तुम्हें तुम्हारी स्त्री को त्यागना पड़े तो त्याग देना उसे। यदि तुम्हारी देह की बलि देनी पड़े तो दे देना। यदि तुम्हें बाकी सुख चैन त्यागना पड़े तो त्याग देना।
दूसरे प्रकार के स्वप्न के पास तुम्हारे सम्मुख उद् धटित करने को बहुत कुछ होता है। दूसरे प्रकार के साथ तुम परिवर्तित करने लगते हो अपनी चेतना को, तुम बदलने लगते हो आने व्यवहार को, तुम अपने जीवन का ढांचा बदलने लगते हो। अपनी आवश्यकता ओर की सुनो जो कुछ अचेतन कह रहा हो, उसे सुनो।
हमेशा याद रखना कि अचेतन सही होता है। क्योंकि उसके पास युगों-युगों की बुद्धिमानी होती है। लाखों जन्मों से अस्तित्व रखते हो तुम। चेतन मन तो इसी जीवन से संबंध रखता है। यह प्रशिक्षित होता रहा है विद्यालयों में और विश्व विद्यालओं में। परिवार और समाज में जहां तुम उत्पन्न हुए हो, संयोगवशात उत्पन्न हुए हो। अचेतन साथ लिए रहता है तुम्हारे सारे जीवनों के अनुभव। यह वहन करता है उसका अनुभव जब तुम एक चट्टान थे, यह वहन करता है उसका अनुभव जब तुम एक वृक्ष थे। वह साथ बनाए रखता हे उसका अनुभव जब तुम पशु थे—यह सारी बातें साथ लिए रहता है। सारा अतीत। अचेतन बहुत बुद्धिमान है और चेतन बहुत मुर्ख। ऐसा होता है क्योंकि चेतन मन तो मात्र इसी जीवन का होता है। बहुत छोटा, बहुत अनुभवहीन। वह बहुत बचकाना होता है। अचेतन है प्राचीन बोध उसकी सुनो।
अब पश्चिम में सारा मनोविश्लेषण केवल यही कर रहा है और कुछ नहीं। दूसरे प्रकार के स्वप्न पर ध्यान दे रहा है। और उसी के अनुसार तुम्हारे जीवन ढाँचे को बदल रहा है। और मनोविश्लेषण ने मदद की है बहुत लोगों की। इसकी कुछ अपनी सीमाएं है, तो भी इसने मदद दी है। क्योंकि कम से कम यह बात, दूसरे प्रकार के स्वप्न को सुनना। तुम्हारे जीवन को बना देती है अधिक शांत, कम तनावपूर्ण।
तीसरे प्रकार का स्वप्न—
फिर होता है तीसरे प्रकार का स्वप्न। यह तीसरे प्रकार का स्वप्न अति चेतन से आया संकेत होता है। दूसरे प्रकार का स्वप्न अचेतन से आया संप्रेषण है। तीसरे प्रकार का स्वप्न बहुत विरल होता है। क्योंकि हमने अति चेतन के साथ सारा संपर्क खो दिया है। लेकिन फिर भी यह उतरता है, क्योंकि अति चेतन तुम्हारा है। हो सकता है कि यह बादल बन चुका हो और आकाश में बढ़ गया हो, विलीन हो गया हो। हो सकता है, कि दूरी बहुत ज्यादा हो, लेकिन यह बस भी तुम्हारी पकड़ में है, और सदा से था। यह लंगर डाले है अब भी तुम में।
अति चेतन से आया संप्रेषण बहुत विरल होता है। जब तुम बहुत-बहुत जागरूक हो जाते हो केवल तभी तुम इसे अनुभव करने लगोगे। अन्यथा। यह उस धूल में खो जायेगा जिसे मन फेंकता है सपनों में। और जाएगा उस आकांक्षा पूर्ति में जिसके सपने मन बनाये चला जाता है;वे अधूरी दबी हुई चीजें। यह उनमें खो जायेगा। लेकिन जब तुम जागरूक होते हो तो यह बात हीरे के चमकने जैसी होती है—वे सारे कंकड़ जो चारों और है उनसे नितांत भिन्न।
जब तुम अनुभव कर सकते हो और वह स्वप्न पा सकते हो जो अति चेतन से उतर रहा होता है। तो उसे देखना,उस पर ध्यान करना। वहीं तुम्हारा मार्गदर्शन बन जाएगा। वह तुम्हें सद्गुरू तक ले जाएगा। वह तुम्हें ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि तुम्हारे अनुकूल पड़ सकता है। जो तुम्हें ले जाएगा सम्यक् अनुशासन की और। वह सपना भीतर एक गहन मार्ग दर्शन बन जाएगा। चेतन के साथ तुम ढूंढ सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु और कुछ नहीं होगा सिवाय शिक्षक के। अचेतन के साथ तुम खोज सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु एक प्रेमी से ज्यादा कुछ नहीं होगा--तुम एक निश्चित व्यक्तित्व के, एक निश्चित ढंग के प्रेम में पड़ जाओगे। केवल अति चेतन तुम्हें सम्यक गुरु तक ले जा सकता है। तब वह शिक्षक नहीं होता; जो वह कहता है उससे तुम सम्मोहित नहीं होते; जो वह है उसके साथ अंधे सम्मोहन में नहीं पड़ते हो तुम। बल्कि इसके विपरीत तुम निर्देशित होते हो तुम्हारे परम चेतन के द्वारा कि इस व्यक्ति से तुम्हारा तालमेल बैठेगा और विकसित होने के लिए इस व्यक्ति के साथ एक सही संभावना बनेगी तुम्हारे लिए, कि वह आदमी तुम्हारे लिए आधार है भूमि बन सकता है।
क्रमश: अगल लेख में..........
ओशो
पतंजलि :योग-सूत्र
भाग—2
प्रवचन-1
श्री रजनीश आश्रम पूना
1 मार्च, 1975
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