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रविवार, 30 दिसंबर 2012

विज्ञान भैरव तंत्र विधि—99 (ओशो)

दूसरी विधि—
स्‍वयं को सभी दिशाओं में परिव्‍याप्‍त होता हुआ महसूस करो—सुदूर, समीप।
     तंत्र और योग दोनों मानते है कि संकीर्णता ही समस्‍या है। क्‍योंकि तुमने स्‍वयं को इतना संकीर्ण कर लिया है इसीलिए तुम सदा ही बंधन अनुभव करते हो। बंधन कही और से नहीं आ रहा है। बंधन तुम्‍हारे संकीर्ण मन से आ रहा है। और वह संकीर्ण से संकीर्णतर होता चला जाता है। और तुम सीमित होते चले जाते हो।
      वह सीमित होना तुम्‍हें बंधन की अनुभूति देता है। तुम्‍हारे पास अनंत आत्‍मा है। और अंनत अस्‍तित्‍व है, पर वह अनंत आत्‍मा बंदी अनुभव करती है। तो तुम कुछ भी करो, तुम्‍हें सब और सीमाएं नजर आती है। तुम कहीं भी जाओ एक बिंदु पर पहुंच जाते हो जहां से आगे नहीं जाया जा सकता। सब आरे एक सीमा-रेखा है। उड़ने के लिए कोई खुला आकाश नहीं है।

      लेकिन यह सीमा तुमने खड़ी की है, यह सीमा तुम्‍हारा निर्माण है। तुमने कई कारणों से यह सीमा निर्मित की है: सुरक्षा के लिए, बचाव के लिए। तुमने एक सीमा बना ली है। और जितनी संकीर्ण सीमा होती है उतने सुरक्षित तुम महसूस करते हो। यदि तुम्हारी सीमा बहुत बड़ी हो तो तुम पूरी सीमा पर पहरा नहीं दे सकते हो, तुम सब और से सावधान नहीं हो सकते। बड़ी सीमा असुरक्षित हो जाती है। सीमा के संकीर्ण करो तो तुम उस पर पहरा दे सकते हो, बंद रह सकते हो। फिर तुम संवेदनशील न रहे, सुरक्षित हो गए। इस सुरक्षा के लिए ही तुमने सीमा खड़ी की है। लेकिन फिर तुम्‍हें बंधन लगता है।
      मन ऐसा ही विरोधाभासी है। तुम सुरक्षा भी मांगते हो और साथ ही साथ स्‍वतंत्रता भी। दोनों एक साथ नहीं मिल सकती। यदि तुम्‍हें स्‍वतंत्रता चाहिए तो सुरक्षा खोनी पड़ेगी। कुछ भी हो, सुरक्षा बस भ्रम मात्र है। वास्‍तविक नहीं है। क्‍योंकि मृत्‍यु तो होगी ही। तुम चाहे कुछ भी करो, तुम मरोगे ही। तुम्‍हारी सारी सुरक्षा ऊपर-ऊपर है। कुछ भी मदद न देगा। लेकिन असुरक्षा से डरकर तुम सीमाएं खड़ी करते हो। अपने चारो और बड़ी-बड़ी दीवारें खींच लेते हो। और फिर खुला आकाश कहां है? और कहते हो, मैं स्‍वतंत्रता चाहता हूं और मैं बढ़ना चाहता हूं। लेकिन तुमने ही ये सीमाएं खड़ी की है।
      तो इससे पहले कि तुम यह विधि करो, यह पहली बात याद रख लेने जैसी है। वरना इसे कर पाना संभव नहीं होगा। अपनी सीमाओं को बचाकर तुम इसे नहीं कर सकते। जब तक तुम सीमाएं बनाना बंद न कर दो, तब तक तुम न तो इसे कर पाओगे, न ही महसूस कर पाओगे।
      सभी दिशाओं में परिव्‍याप्‍त होता हुआ महसूस करो—सुदूर, समीप।
      कोई सीमाएं नहीं, अनंत हो रहे हो। अनंत आकाश के साथ एक हो रहे हो........।
      तुम्‍हारे मन के साथ तो यह असंभव होगा। तुम इसे कैसे अनुभव कर सकते हो। इसे कैसे कर सकते हो। पहले तुम्‍हें कुछ चीजें करना बंद करना पड़ेगा।
      पहली बात यह है कि यदि तुम सुरक्षा के बारे में ज्‍यादा ही चिंतित हो तो बंधन में ही रहो। असल में, कारागृह सबसे सुरक्षित स्‍थान है। वहां तुम्‍हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। कैदियों से अधिक सुरक्षित, अधिक पहरे में और कोई नहीं रहता। तुम किसी कैदी को मार नहीं सकते। उसकी हत्‍या नहीं कर सकते। बहुत कठिन है। वह राजा से भी अधिक पहरे में है। तुम किसी राष्‍ट्रपति या  राजा की हत्‍या कर सकते हो। यह कठिन नहीं है। रोज लोग उनकी हत्‍या करते रहते है। लेकिन तुम किसी कैदी को नहीं मार सकते। वह इना सुरक्षित है कि यदि किसी को इतनी ही सुरक्षा पानी हो तो उसे कारागृह में ही रहना पड़ेगा। बाहर नहीं। कारागृह से बाहर रहना खतरनाक है। मुसीबतों से भरा है। कुछ भी हो सकता है।
            तो हमने अपने चारों और मानसिक कारागृह, मनोवैज्ञानिक कारागृह बना लिया है। और हम उन कारागृहों को अपने साथ ढोते है। तुम्‍हें उनमें रहने की जरूरत नहीं है। वे तुम्‍हारे साथ चलते है। जहां भी तुम जाते हो तुम्‍हारा कारागृह तुम्‍हारे साथ चलता है। तुम सदा एक दीवार के पीछे रहते हो। बस कभी-कभी किसी को छूने के लिए तुम अपना हाथ उससे बाहर निकालते हो। लेकिन बस एक हाथ तुम अपने कारागृह से कभी बाहर नहीं आते।
      तो जब भी लोग आपस में मिलते है, वह केवल कारागृहों से निकले हुए हाथों का मिलन होता है। डरे-डरे हम खिड़कियों से हाथ बाहर निकलते है। और किसी भी क्षण हाथ वापस खींच लेने को तैयार रहते है। दोनों लोग एक ही काम कर रहे है। बस एक हाथ से छू रहे है।
      और अब तो मनोवैज्ञानिक कहते है कि यह भी एक दिखावा ही है। क्‍योंकि हाथों के चारों और अपना एक कवच होता है। कोई भी हाथ दस्‍ताने के बिना नहीं है। सिर्फ क्‍वीन एलिज़ाबेथ ही दस्‍ताने नहीं पहनती, तुम भी दस्‍ताने पहनते हो ताकि तुम्‍हें छू न सके। और यदि कोई छूता भी है तो बस एक हाथ, मुर्दा हाथ। तुम पहले से ही पीछे हटे हुए हो। भयभीत होकर। क्‍योंकि दूसरा व्‍यक्‍ति भय पैदा करता है।
      जैसा सार्त्र ने कहा है, दूसरा दुश्‍मन है। यदि तुम इतने बंद हो तो दूसरा तुम्‍हें दुश्‍मन की तरह ही दिखाई देगा। बंद व्‍यक्‍ति से किसी तरह की मित्रता नहीं हो सकती। उससे मित्रता असंभव है। प्रेम असंभव है, किसी तरह का संवाद असंभव है।
      तुम भयभीत हो। कोई तुम पर मालकियत कर सकता है। तुम पर हावी हो सकता है। तुम्‍हें गुलाम बना सकता है। इससे भयभीत होकर तुमने एक कारागृह, एक सुरक्षा कवच का निर्माण अपने चारों और कर लिया है। तुम संभलकर चलते हो, फूंक-फूंक कर कदम रखते हो। जीवन एक ऊब हो जाता है। यदि तुम बहुत ज्‍यादा ही सावधान हो तो जीवन एक अभियान नही हो सकता। यदि तुम अपने को बहुत ज्‍यादा ही बचा रहे हो, सुरक्षा के पीछे भीग रहे हो, तो तुम पहले ही मर चुके।
      तो एक आधारभूत नियम याद रखो: जीवन असुरक्षा है। और यदि तुम असुरक्षा में जीने को राज़ी होत भी तुम जीवंत रह पाओगे। असुरक्षा स्‍वतंत्रता है। यदि तुम असुरक्षित होने को सतत असुरक्षित होने को तैयार हो तो तुम स्‍वतंत्र रहोगे। और स्‍वतंत्रता परमात्‍मा का द्वार है।
      भयभीत, तुम एक कारागृह बना लेते हो, मुर्दा हो जाते हो। फिर तुम पुकारते हो। परमात्‍मा कहां है? और फिर तुम पूछते हो, जीवन कहां है? जीवन का अर्थ क्‍या है? आनंद कहां है? जीवन तुम्‍हारी प्रतीक्षा कर रहा है, लेकिन उसी की शर्तों के अनुसार तुम्‍हें उससे मिलना होगा। तुम अपनी शर्तें नहीं लगा सकते हो। जीवन की अपनी शर्तें है। और मूल शर्त है: असुरक्षित रहो। इसके बाबत कुछ नहीं किया जा सकता। तुम जो भी करोगे एक धोखा ही होगा।
      अगर तुम प्रेम में पड़ते हो तो तुम्‍हें भय पकड़ लेता है। कि यह स्‍त्री तुम्‍हें छोड़ देगी या यह किसी पुरूष के पास चली जायेगी। भय तत्‍क्षण प्रवेश कर जाता है। जब तुम प्रेम में नहीं थे तो कभी भयभीत नहीं थे। अब तुम प्रेम में हो: जीवन का प्रवेश हुआ और उसके साथ ही असुरक्षा का भी। जो किसी से प्रेम नहीं करता उसे कोई भय नहीं होता है। पूरा संसार उसे छोड़ सकता है उसे कोई भय नहीं है। तुम उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते। वह सुरक्षित है। जिस क्षण तुम किसी के प्रेम में पड़ते हो, असुरक्षा शुरू हो जाती है। क्‍योंकि जीवन प्रवेश कर गया। और जीवन के साथ-साथ मृत्‍यु प्रवेश कर गई। जिस क्षण तुम प्रेम में पड़ते हो तुम्‍हें भय पकड़ लेता है। यह व्‍यक्‍ति मर सकता है। छोड़कर जा सकता है, किसी और से प्रेम कर सकता है।
      अब सब कुछ सुरक्षित करने के लिए तुम्‍हें कुछ करना पड़ेगा,तुम्‍हें विवाह करना पड़ेगा। फिर एक कानूनी बंधन बनाना पड़ेगा ताकि वह व्‍यक्‍ति तुम्‍हें छोड़ न सके। अब समाज तुम्‍हारी रक्षा करेगा। कानून तुम्‍हारी रक्षा करेगा। पुलिस जज, सब तुम्‍हारी रक्षा करेंगे। अब यदि वह व्‍यक्‍ति तुम्‍हें छोड़ना चाहे तो तुम उसे कोर्ट में घसीट सकते हो। और यदि वह तलाक लेना चाहे तो उसे तुम्‍हारे विरूद्ध कुछ सिद्ध करना पड़ेगा। तब भी इसमे तीन से पाँच साल तक लगेंगे। अब तुमने अपने चारों और एक सुरक्षा खड़ी कर ली।
      लेकिन जिस क्षण तुमने विवाह किया तुम मर गए। संबंध जीवित नहीं रहा। अब वह संबंध नहीं रहा,एक कानून बन गया। अब यह कोई जीवंत चीज नहीं रही, कानूनी घटना हो गई। कोर्ट जीवन को नहीं बचा सकता। बस सौदों को बचा सकता है। कानून जीवन को नहीं बचा सकता, बस नियमों को ही बचा सकता है। अब विवाह एक मरी हुई चीज है। प्रेम अपरिभाष्‍य है।
      विवाह के साथ तुम परिभाषाओं के जगत में आ गए। पर पूरी बात ही समाप्‍त हो गई। जिस क्षण तुमने सुरक्षित होना चाहा, जिस क्षण तुमने जीवन को बंद कर लेना चाहा ताकि इसमें कुछ भी नया न हो सके। तुम उसमें कैद हो गए। फिर तुम कष्‍ट भोगोगे। फिर तुम कहोगे कि यह पत्‍नी तुम्‍हारे लिए बंधन बन गई है। पति कहेगा कि पत्‍नी ने उसे बाँध लिया है। फिर तुम लड़ोगे, क्‍योंकि दोनों एक दूसरे के लिए कारागृह बन गए हो। अब तुम लड़ते हो। अब प्रेम समाप्‍त हो गया है। बस एक कलह बची है। सुरक्षा के पीछे दौड़ने से यही होता है।
      और ऐसा बस चीजों में हुआ है। इसे मूल नियम की तरह याद रखो; जीवन असुरक्षित है। यह जीवन का स्‍वभाव है। तो जब तुम प्रेम में पड़ो इस भय को भले ही झेल लो कि प्रेमिका तुम्‍हें छोड़कर जा सकती है। पर कभी सुरक्षा मत खड़ी करो। फिर प्रेम विकसित होगा। हो सकता है प्रेमिका मर जाए और तुम कुछ भी न कर पाओ। लेकिन उससे प्रेम नहीं मरेगा। प्रेम तो और बढ़ेगा।
      सुरक्षा मार सकती है। असली में यदि आदमी अमर होता तो मैं कहता हूं कि प्रेम असंभव हो जाता। यदि आदमी अमर होता तो किसी को भी प्रेम करना असंभव हो जाता। प्रेम में पड़ना बहुत खतरनाक हो जाता। मृत्‍यु है तो जीवन ऐसे है जैसे किसी कंपते हुए पत्‍ते पर पड़ी ओस की बूंद। किसी भी क्षण हवा आयेगी और ओस की बूंद गिरकर खो जायेगी। जीवन बस एक स्‍पंदन है। उस स्‍पंदन के कारण, उस गति के कारण, मृत्‍यु सदा बनी रहती हे। इससे प्रेम को त्‍वरा मिलती है। प्रेम इसीलिए संभव है। क्‍योंकि मृत्‍यु के कारण ही प्रेम सघन हो पाता है।
      सोचो, यदि तुम्‍हें पता हो तुम्‍हारी प्रेमिका अगले ही क्षण मरने वाली है तो सब चालाकियां, सब कलह समाप्‍त हो जाएगी। और यही एक क्षण शाश्‍वत हो जाएगा। ओर इतना प्रेम उमगेगा कि तुम्‍हारा पूरा अस्‍तित्‍व उसमें प्रवाहित हो जाएगा। लेकिन अगर तुम्‍हें पता हो कि अभी तुम्‍हारी प्रेमिका जीवित रहेगी तो फिर कोई जल्‍दी नहीं है। फिर अभी तुम झगड़ सकते हो। प्रेम को और आगे के लिए टाल सकते हो। यदि जीवन शाश्‍वत हो, शरीर अमर हो, तो तुम प्रेम नहीं कर सकते।
      हिंदुओं की एक बड़ी सुंदर कथा है। वे कहते है कि स्‍वर्ग में जहां इंद्र राज्‍य करता है—इंद्र स्‍वर्ग का राजा है—वहां कोई प्रेम नहीं है। वहां सुंदर युवतियां है, पृथ्‍वी से अधिक सुंदर युवतियां है। वहां संभोग तो होता ह पर प्रेम नहीं होता,क्‍योंकि वे अमर हे।
      हिंदुओं की कथा में कहा गया है कि मुख्‍य अप्‍सरा उर्वशी ने एक पुरूष से प्रेम करने के लिए एक दिन पृथ्‍वी पर जाने की अनुमति मांगी। इंद्र ने कहा, क्‍या मूर्खता है, तुम यहां प्रेम कर सकती हो। और इतने सुंदर लोग तुम्‍हें पृथ्‍वी पर नहीं मिलेंगे। वे भले ही सुंदर हो पर, अमर है। इसमें कोई मजा नहीं आता, उनका प्रेम एक मुर्दा प्रेम है। सच में वे सब मरे हुए है।
      वास्‍तव में वे मुर्दा ही है। क्‍योंकि उन्‍हें जीवंत बनाने के लिए प्रेम जगाने के लिए मृत्‍यु चाहिए। जो वहां पर नहीं है। वे सदा-सदा रहेंगे। वे कभी मर नहीं सकते। इसलिए वे जीवित भी कैसे हो सकते है? वह जीवंतता मृत्‍यु के विपरीत ही होती है। आदमी जीवित है, क्‍योंकि मृत्‍यु सतत संघर्ष कर रही है। मृत्‍यु की भूमिका में जीवन है।
      तो उर्वशी ने कहां, मुझे पृथ्‍वी पर जाने की आज्ञा दो। मैं किसी को प्रेम करना चाहती हूं। उसे आज्ञा मिल गई। तो वह नीचे पृथ्‍वी पर आ गई और एक युवक पुरुरवा के प्रेम में पड़ गई। लेकिन इंद्र की और से एक शर्त थी। इंद्र ने शर्त रखी थी कि वह पृथ्‍वी पर जा सकती है, किसी से प्रेम कर सकती है, पर जो पुरूष उसे प्रेम करे उसे यह पहले ही पता देना होगा कि वह उस से यह कभी न पूछे कि वह कौन है।
      प्रेम के लिए यह कठिन है, क्‍योंकि प्रेम जानना चाहता है। प्रेम प्रेमी के विषय में सब कुछ जानना चाहता है। हर अज्ञात चीज को ज्ञात करना चाहता है। हर रहस्‍य में प्रवेश करना चाहता है। तो इंद्र ने बड़ी चालाकी से यह शर्त रखी, जिसकी चालबाजी को उर्वशी नहीं समझ पाई। वह बोली, ठीक है, मैं अपने प्रेमी को कह दूंगी कि वह मेरे बारे में कभी कुछ न जानना चाहे। कभी यह न पूछे कि मैं कौन हूं। और यदि  वह पूछता है तो तत्‍क्षण उसे छोड़कर मैं वापस आ जाऊगी। और उसे पुरुरवा से कहा, कभी मुझ से यह मत पूछना कि मैं कौन हूं। जि क्षण तुम पूछोगे, मुझे पृथ्‍वी को छोड़ना पड़ेगा।
      लेकिन प्रेम तो जानना चाहता है। और इस बात के कारण पुरुरवा और भी उत्‍सुक हो गया होगा कि वह कौन हे। वह सो नहीं भी सका। वह उर्वशी की और देखता रहा। वह है कौन? इतनी सुंदर स्‍त्री, किसी स्‍वप्‍निल पदार्थ की बनी लगती है। पार्थिव, भौतिक नहीं  लगती। शायद वह कहीं और से, किसी अज्ञात आयाम से आई है। वह और-और उत्‍सुक होता गया। लेकिन सह और भयभीत भी होता गया। कि वह जा सकती है। वह इना भयभीत हो गया कि जब रात वह सोती, उसकी साड़ी का पल्‍लू वह अपने हाथ में ले लेता। क्‍योंकि उसे अपने पर भी भरोसा नहीं था। कभी भी वह पूछ सकता था, प्रश्‍न सदा उसके मन में रहता था। अपनी नींद में भी वह पूछ सकता था। और उर्वशी ने कहा था कि नींद में भी उसके बाबत नहीं पूछना है। तो वह उसकी साड़ी का कोना अपने हाथ में लेकर सोता।
      लेकिन एक रात वह अपने को वश में नहीं रख पाया और उसने सोचा कि अब वह उससे इतना प्रेम करती है कि छोड़कर नहीं जाएगी। तो उसने पूछ लिया। उर्वशी को अदृश्‍य होना पड़ा, बस उसकी साड़ी का एक टुकड़ा पुरुरवा के हाथ में रह गया। और कहा जाता है कि वह अभी भी उसे खोज रहा है।
      स्‍वर्ग में प्रेम नहीं हो सकता। क्‍योंकि असल में वहां कोई जीवन ही नहीं है। जीवन यहां इस पृथ्‍वी पर है, जहां मृत्‍यु है। जब भी तुम कुछ सुरक्षित कर लेते हो, जीवन खो जाता है। असुरक्षित रहो। यह जीवन का ही गुण है। इसके बारे में कुछ किया नहीं जा सकता। और यह सुंदर है।
      जरा सोचो, यदि तुम्‍हारा शरीर अमर होता तो कितना कुरूप होता। तुम आत्‍मघात करने के उपाय खोजते फिरते। और यदि यह असंभव है, कानून के विरूद्ध है, तो तुम्‍हें इतना कष्‍ट होगा कि कल्‍पना भी नहीं  कर सकते। अमरत्‍व एक बहुत लंबी बात है। अब पश्‍चिम में लोग स्‍वेच्‍छा मरण की बात सोच रहे है। क्‍योंकि लोग अब लंबे समय तक जी रहे है1 तो जो व्‍यक्‍ति सौ वर्ष तक पहुंच जाता है वह स्‍वयं को मारने का अधिकार चाहता है।
      और वास्‍तव में,यह अधिकार देना ही पड़ेगा। जब जीवन बहुत छोटा था तो हमने आत्‍महत्‍या न करने का कानून बनाया था। बुद्ध के समय में चालीस या पचास साल का हो जाना बहुत था। औसत आयु कोई बीस साल के करीब थी। भारत में अभी बीस साल पहले तक औसत आयु तेईस साल थी। अब स्‍वीडन में औसत आयु तिरासी साल है। तो लोग बड़ी आसानी से डेढ़ सौ साल तक जी सकते है। रूप में कोई पंद्रह सौ लोग है जो डेढ़ सौ तक पहुंच गए है। अब यदि वे कहते है कि उन्‍हें स्‍वयं को मारने का अधिकार है। क्‍योंकि अब बहुत हो चुका, तो हमें यह अधिकार उन्‍हें देना होगा। इससे उन्‍हें वंचित नहीं किया जा सकता।
      देर-अबेर आत्‍महत्‍या हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार होगा। अगर कोई मरना चाहता है तो तुम उसे मना नहीं कर सकते—किसी भी कारण से नहीं। क्‍योंकि अब जीवन का कोई अर्थ नहीं रह गया। पहले ही बहुत हो चुका। सौ साल के व्‍यक्‍ति को जीने जैसा नहीं लगता। ऐसा नहीं है कि यह परेशान हो गया है। कि उसके पास भोजन नहीं है। सब कुछ है, पर जीवन का कोई अर्थ नहीं रह गया।
      तो अमरत्‍व की सोचो, जीवन बिलकुल अर्थहीन हो जाएगा। अर्थ मृत्‍यु के कारण होता है। प्रेम का अर्थ हे, क्‍योंकि प्रेम खोया जा सकता है। तब प्रेम धड़कता है, स्‍पंदित होता है। प्रेम खो सकता हे। तुम उसके बारे में निश्‍चित नहीं हो सकते। तुम उसे कल पर नहीं टाल सकते। क्‍योंकि हो सकता है कल प्रेम रहे ही न। तुम्‍हें प्रेमी या प्रेमी का को इस तरह से प्रेम करना होगा कि हो सकता है कल आए ही न। फिर प्रेम सधन होता हे।
      तो पहली बात, सुरक्षित जीवन पैदा करने के अपने सारे प्रयास हटा लो। बस यह प्रयास हटाने से ही तुम्‍हारे आस-पास की दीवारें गिरने लगेंगी। पहली बार तुम्‍हें लगेगा कि वर्षा तुम पर सीधी पड़ रही है। हवाएँ सीधी तुम तक बह रही है। सूर्य सीधा तुम तक पहुंच रहा है। तुम खुले आकाश के नीचे आ जाओगे। सुंदर है यह। लेकिन तुम्‍हें अगर यह विचित्र लगता है तो इसलिए क्‍योंकि तुम कारागृह में रहने के आदी हो गए हो। रहा है। तुम्‍हें  इस नई स्‍वतंत्रता से परिचित होना पड़ेगा। यह स्‍वतंत्रता तुम्‍हें अधिक जीवंत,अधिक तरल, अधिक खुला अधिक समृद्ध, अधिक जीवित बनाएगी। लेकिन तुम्‍हारी जीवंतता तुम्‍हारे जीवन का शिखर जितना ऊँचा होगा। उतनी ही गहन मृत्‍यु तुम्‍हारे निकट होगी। एक दम करीब होगी। तुम केवल मृत्‍यु के,मृत्‍यु की घाटी के विरूद्ध ही उठ सकते हो। जीवन का शिखर और मृत्‍यु की घाटी सदा पास-पास होते है। और एक ही अनुपात में होते है।
      इसलिए में कहता हूं कि नीत्‍शे के सूत्र का पालन करना चाहिए। यह बड़ा आध्‍यात्‍मिक सूत्र है। नीत्‍शे कहता है, खतरे में जीओं। ऐसा नहीं कि खतरा तुम्‍हें खोजना है। खतरे को अनी और से खोजने की कोई जरूरत नहीं है। बस सुरक्षा मत खड़ी करो। अपने चारों और दीवारें मत खीचों स्‍वाभाविक रूप से जीओं और यही बहुत खतरनाक होगा। खतरे को खोजने की जरूरत नहीं है।
      फिर तुम यह विधि कर सकते हो, स्‍वयं को सभी दिशाओं में परिव्‍याप्‍त होता हुआ महसूस करो—सुदूर,समीप।
      फिर यह बहुत आसान है। यदि दीवारें न हों तो तुम स्‍वयं को सब और व्‍याप्‍त होता हुआ अनुभव करने ही लगोगे। फिर तुम कहां समाप्‍त होते हो। इसकी कोई सीमा नहीं होगी। तुम बस ह्रदय से शुरू होते हो। और कहीं भी समाप्‍त नहीं होते। बस तुम्‍हारे पास एक केंद्र है और कोई  परिधि नहीं है। परिधि बढ़ती चली जाती है—आगे और आगे। पूरा आकाश उसमे समा जाता है1 सितारे उसमें घूमते है। पृथ्‍वीयां उसी में बनती है और मिटती है। ग्रह उगते है। और अस्‍त होते है। पूरा ब्रह्मांड तुम्‍हारी परिधि बन जाता है।
      इस विस्‍तार में तुम्‍हारा अहंकार कहां होगा? इस विस्‍तार में तुम्‍हारे कष्‍ट कहां होंगे। इस विस्‍तार में तुम्‍हारा चालाक मन कहां होगा। इतनी विस्‍तार में मन नहीं बच सकता, विलीन हो जाता है। बस एक संकीर्ण स्‍थान पर ही मन बच सकता है। मन तो केवल तभी चल सकता है जब दीवारों में बंद हो। कैद हो। यह बंद होना ही समस्‍या है। खतरे में जीओं और असुरक्षा में जीवन के लिए तैयार रहो। और मजा यह है। कि अगर तुम असुरक्षा मे न भी रहना चाहो तो भी असुरक्षित ही हो। तुम कुछ भी नहीं कर रहे हो।
      मैंने एक राजा के बारे में सुना था। वह अधिक डरपोक था, सभी राजा डरपोक होते है। क्‍योंकि उन्‍होंने इतने लोगों को शोषण किया होता है। उन्‍होंने इतने लोगों को दबाया कुचला हाता है। इतने लोगों पर उन्‍होंने राजनीतिज्ञ खेल खेले है। उनके कई शत्रु बन जाते है। असली राजा का कोई मित्र नहीं होता हे। हो ही नहीं सकता। क्‍योंकि घनिष्‍ठत्‍म मित्र भी उसका शत्रु होता है। बस अवसर की तलाश होती है। कब उसे मार कर उसकी जगह बैठा जाये1 सता में जो व्‍यक्‍ति होता है उसका कोई मित्र नहीं हो सकता। किसी हिटलर, किसी स्‍टैलिन, किसी निकसन, किसी चंगेज खां, किसी नादिर शाह.....का कोई मित्र नहीं था। उसके बस शत्रु होते है कि कब मौका मिलते ही उसको धक्का देकर वे स्‍वयं सिंहासन पर बैठ सकें। जब भी उन्‍हें मिलें वह कुछ भी कर सकते है। एक ही क्षण पहले वे मित्र थे, लेकिन उनकी मित्रता एक छलावा है। उनकी मित्रता एक दांव-पेंच है। सत्‍ता में जो है उसका कोई मित्र नहीं हो सकता।
      इसीलिए लाओत्‍से कहता है: यदि तुम चाहते हो कि तुम्‍हारे मित्र हों तो सत्‍ता में मत आओ। फिर सारा संसार तुम्‍हारा मित्र है। यदि तुम सत्‍ता में हो तो बस तुम ही अकेले मित्र हो। बाकी सब शत्रु है।
      तो वह राजा बहुत डरा हुआ था। उसे मृत्‍यु का बड़ा भय था। चारों और मृत्‍यु ही मृत्‍यु थी। उसे यही भय लगा रहता था कि उसके आस पास सभी उसे मारना चाहते है। वह सो भी नहीं सकता था। उसने अपने सलाहकारों से पूछा कि क्‍या करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि वह एक ऐसा महल बनवाए जिसमे केवल एक ही द्वार हो। द्वार पर सैनिकों की सात टुकड़ियों खड़ी की जाएं। पहली टुकड़ी महल पर नजर रखे, दुसरी टुकड़ी पहली पर। तीसरी दूसरी पर एक ही द्वार होने से कोई और नहीं भीतर आ सकता। और आप सुरक्षित रहेंगे।
      राजा ने एक ही द्वार वाला महल बनवाया और उस पर सैनिकों की सात टुकड़ियां तैनात करवा दी जो एक दूसरे पर नजर रखती थी। यह खबर चारों और फैल गई पड़ोसी राज्‍य का राज उसे देखने आया। वह भी भयभीत था। उसे खबर मिली थी कि पड़ोसी राजा ने ऐसा सुरक्षित महल बनवाया है। जहां उसे मार पाना असंभव है। तो वह देखने आया और दोनों ने मिलकर इस एक ही द्वार वाले महल और सुरक्षा व्‍यवस्‍था की बड़ी प्रशंसा की—कोई खतरा नहीं हे।
      जब वे द्वार की और देख रहे थे तो सड़क के किनारे बैठा एक भिखारी हंसने लगा। तो राजा ने उससे पूछा:तुम हंस क्‍यों रहा है?’ भिखारी ने उत्‍तर दिया, मैं इसलिए हंस रहा हूं कि तुमसे एक गलती हो गई हे। तुम्‍हें अंदर जाकर एक द्वार को भी बंद कर लेना चाहिए। यह द्वारा खतरनाक है। कोई इससे भीतर धूस सकता है। द्वार का अर्थ ही है कि कोई भीतर आ सकता है। यदि और कोई न भी आए तो कम से कम मृत्‍यु तो आएगी ही। तो तुम एक काम करो: अंदर चले जाओ और इस द्वार को भी बंद कर लो। तब तुम सच में सुरक्षित हो जाओगे। क्‍योंकि मृत्‍यु भी नहीं घुस सकेगी।
      लेकिन राजा ने कहा, अगर मैं यह द्वार भी बंद कर लूं तो मैं वैसे ही मर जाऊँगा। उस भिखारी ने कहा, निन्यानवे प्रतिशत तो तुम मर ही चूके हो। तुम उतने ही जीवित हो जितना यह द्वार। बस इतना ही खतरा है, इतने ही तुम जीवित हो। यह जीवंतता भी छोड़ दो।
      सभी अपनी-अपनी तरह से अपने आस-पास महल बना रहे है। ताकि भीतर कोई न आ सके। और वे शांति से रह सकें। लेकिन फिर तुम पहल ही मर गए। और शांति बस उन्‍हें ही घटती है जो जीवित है। शांति कोई मुर्दा चीज नहीं है। जीवंत रहो। खतरे में जीओं। एक संवेदनशील, मुक्‍त जीवन जीओं। ताकि तुम्‍हें सब कुछ स्‍पर्श कर सके। और अपने साथ सब कुछ होने दो। जितना तुम्‍हारे साथ कुछ घटेगा। उतने ही तुम समृद्ध होओगे।
      फिर तुम इस विधि का अभ्‍यास कर सकते हो। फिर यह विधि बड़ी सरल है। तुम्‍हें इसका अभ्‍यास करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बस भाव करो, और तुम पूरे आकाश में परिव्‍याप्‍त हो जाओगे।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—पांच,
प्रवचन-71

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