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शनिवार, 12 जनवरी 2013

04--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)

फूल वाला-कहानी  


(दसघरा की दस कहानियां)-

फजलू मियां की पान की दुकान मोहल्‍ले की नाक थी। उसी के सामने एक बड़ा सा खुला चौक पसरा पड़ा था। जो भविष्‍य के गावस्‍कर, कपि‍ल, सचिन, लाला अमरनाथ तैयार होने की नर्सरी का काम करता था। अब इस नर्सरी से चाहे सारा मोहल्‍ला परेशान क्‍यो न हो परन्‍तु मजाल क्‍या कोई उन्‍हें ड़ाटे-डप्‍टे या कुछ कहने की हिम्मत कर सकता था। ये मोहल्ले के लिए ही नहीं, पूरे देश के साथ भी गद्दारी समझी जाती। अरे भाई किसे पता है, कल कोई निकल जाये यहीं से सहवाग, गौतम गम्भीर, या धोनी जो दूर दराज मोहल्‍ले का नाम रौशन करेगा। तब आप उस पर ताली कैसे बजा सकेंगे आपको अपने पर तब शर्म नहीं आयेगी। पूरे मोहल्ले को एक आस थी, की एक दिन जरूर यहां से एक ऐसा खिलाड़ी निकलेगा की सारा देश जान जायेगा इसे गांव को इस मोहल्ले को। फिर इस गांव को ही नहीं पूरे देश को उस पर नाज होगा। उस महान विभूति के साथ इस मोहल्ले को भी अपने पर बहुत गर्व होगा। देखो आस उम्मीद तो रखनी ही पड़ेगी आपको। परन्‍तु इस आस उम्मीद के देखते-देखते ये तीसरी पीढ़ी चली गई। बड़े नवाब पटौदी से लेकर धोनी जी क्या अब तो विराट कोहली जी सम्हाल चुके है बाग डोर भारत की। पर मजाल है आज तक ये साध पूरी हुई हो। पर एक आस है भविष्‍य के इन दुलारो से आज नवाब रजवाड़ों से क्रिकेट निकल कर गली मोहल्‍ले में तो आ गई है। सो भविष्‍य के इन जुगनुओं से उम्‍मीद है एक दिन मोहल्‍ले का नाम चमकायेंगे। इसलिए वो कितना भी शोर मचाये, कैसा ही चौका-छक्‍का मारे, बीच में खुदा ना खासता आप आ गये और बाल ने आपकी मूंह पीठ या गाल तक की भी चुम्बन ले ली तो आपको केवल मुस्कराना है। किसी किस्‍म का कोई प्रतिरोध नहीं करना है। भले ही मोना लिसा जैसी आपकी मुस्‍कान न हो, आपकी हंसी की। इसके अलावा शाबाशी के लिए अगर आप ने ताली भी बजा दी तो ये हुई न सोने पे सुहागे वाली बात पूरी, ‘गुड़ शाँट .... बैल प्लेयड़ सर’ कह कर तो आप चार कदम और भी आगे चले गए। ये तो भला हो फटा-फट क्रिकेट का जो टेनिस के बाल से बच्‍चे खेलते है, वरना तो न किसी का सर होता न खिड़कियों पर कांच।

भला हो एम. सी. डी. वालों का जो उनके फजल से नल अब घर-घर आ गए है। वरना तो श्री कृष्ण भगवान ने भी इतनी गागर नहीं फोड़ी होगी जितनी इस मोहल्ले के बच्चे क्रिकेट की बाल से फोड़ देते। फजलू मियां इस खेल मैदान प्रसारण केंद्र था। फजलू मियां अपनी पान की दुकान पर बैठे पान की गिलोरियां बनाते, बीच-बीच में विशेषज्ञ की भांति विशेष टीका-टिप्पणी भी देते नहीं थकते थे। फिर कौन सचिन कि तरह शाँट मारता है, या एक नाथ सोलकर की तरह केंच लपकता है, कौन ब्रेड़ मैंन की तरह खेल रहा है। ये सब टीका-टिप्पणी मुत्तु स्‍वामी तक पहुँचा ही देते।

मोहल्ले का थोड़ा परिचय करना भी एक प्रकार का पूरा भारत दर्शन ही समझो। गली के दायें खन्‍ड़ेलवाल जी का मकान है। उसके आगे समाने एक दम खन्‍ना जी कोठी उसकी क्या बात है, उसकी सारे मोहल्ले की वह शान है। नीम का पेड़ जिस घर के सामने है वो बाडकर जी का मकान है। पान की दुकान के सामने भटृाचार्य जी, चौक के दूसरे कोन पर जहां दीवार पर क्रिकेट का विकट बना है, बहीं पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा है, एम. सी. सी. (मुत्तु स्‍वामी क्रिकेट कलब) गाहे बगाहे वो ही बच्चों को क्रिकेट के महीन राज बताते है। बही एक मात्र पंडित थे क्रिकेट के हमारे मोहल्‍ले में। हां आंखों देखा हाल तो सब सुनते थे परंतु समझ किसी को कम ही आती थी। तब वह अपना मूंह उठा कर मुत्तु स्वामी की और देखता था। कि ये गली, एक्ट्रा कवर, थर्डमेन...फाइन लेग, शोट कवर....तब हाथ के इसारे से मुत्तु स्वामी बाते की बाद में बात करेंगे। अभी खेल का आनंद लो। खंडेलवाल जी की परचून की दुकान थी, उससे कोई फरलांग भर आगे जहां गली खत्‍म हो चौड़ा रोड लाल किले कि तरफ निकल जाता था। हां बही रामचंद्र हलवाई की मशहूर दुकान आपको दिखाई देगी। जलेबी, समोसे, कचोरी सब लाजवाब मील भर दूर से ही आपकी नाम में सुगंध आनी शुरू हो जायेगी। शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल करते थे हमारे रामचंद्र हलवाई जी। एक से एक मिठाई...बनाते थे। मजाल की आप उनके काम में जरा सी भी नुक्ता चिनी निकल दो।

तीस साल से रामचंद्र जी दुकान चलाते है, दुकान के आगे मजाल आप एक डोना, कागज तक पा जाओ, मूंह में बीड़ी हाथ में झाडू सफाई का जुनून था उन्‍हें। इसी सफाई में तो उनकी दुकान चलने की चाबी छुपी थी। यही वजह है, इस गली के अन्दर भी रामचंद्र की दुकान चल ही नहीं रही दौड रही थी। मंगल के दिन तो सुबह से ही बून्‍दी बनने लग जाती थी, उस दिन समोसे कचोरी वालों को तो आधे पेट ही रह जाना पड़ता था। उस दिन दुकान की रौनक देखने जैसी होती थी। चारों तरफ से ग्राहकों की मारा मारी, राम चन्‍द्र जी का काम केवल पैसे इक्कठा करके गल्ले में जगह बनाना होता था। सब बातों की एक बात हमारा मोहल्‍ला बहुजतियता, बहुसमाजिकता का आदर्श नमूना था। अगर कभी सरकार के मन में खेल रत्‍न, भारत रत्‍न के साथ मोहल्‍ला रत्‍न की घोषणा की तो आप ये समझिये ये इनाम तो गया हमारे मोहल्ले की झोली में। काश गांधी जी जिंदा होते तो उनका सीना चौड़ा हो जाता फ़ूल कर, देख लेते आप अगर वो ‘साबरमती’ छोड़ हमारे मोहल्‍ले में रहने के लिए नहीं आ जाते, कि रहने लायक अगर भारत में कुछ है तो वहीं हमारा आदर्श मोहल्ला। परंतु किया क्या जा सकता है। गांधी जी पहले ही चले गए हमारे मोहल्ले को देखे बिना। हाय होनी को मंजूर नहीं था ये सब, जब चने नहीं थे तब दांत थे, अब चने हुए तो दांत नहीं है।

हमारा मोहल्‍ला क्‍या था मानो गुणों की खान ही था। एक-एक प्राणी के गुणों का जिक्र करूं तो पूरा एक मेघ दूत सा ग्रंथ बन जायेगा। फिर वो धूल चाटता पड़ा रहेगा केवल पुस्तकालयों में, सो भलाई इसी में है, इसे कहानी तक ही सीमित रखते है। फजलू मियां का पूरा नाम फजलू रहमान कुरैशी था, इनकी बेगम के खानदान में कोई बेगम हजरत महल के हुजूर में पान की गिलोरी लगाया करती थी। अब यहीं एक प्रशस्ति पत्र है, फजलू मियां के पास है जिससे सालो से ही नहीं पीढ़ियों से भुनाये चला जा रहा है। और वो भी कोई लिखित नहीं उन्होंने कहा और हम ने मान लिया, केवल जबान पर भरोसा है। जबान पर।

जैसे परांठे वाली गली के परांठे मशहूर है। ठीक इसी तरह से हमारे फजलू मियाँ का पान चाहे वह मीठा हो, सादा हो, लखनवी, या कोई और न जाने कितने प्रकार के तो वो नाम गिनवाते है। इसलिए उसने अपने दुकान पर पान के नाम को बोर्ड ही नहीं लगा रखा था। भला इत्ते से बोर्ड पर सैकड़ों प्रकार के नाम कैसे आ सकते थे। आप दुनियां में कहीं भी कोई पान बनता हो आप फजलू से फ़रमाइश कीजिए पान हाजिर है। मैं तो इतने दावे के साथ कहता हूं कि अगर फजलू मियां का पान आपने नौशा नहीं फरमाया तो नाहक आए आप दिल्‍ली में। अरे अगर गली कूचे की बजाये कहीं होती फजलू मियां की दुकान कनॉट प्‍लेस में तो देखना अमरीका तक फजलू मियां के पान निर्यात नहीं होते तो हमारा नाम बदल देते। मियां मूंह में पान की गिलौरी रखी नहीं की लगी मक्खन की तरह पिघलने, अपने आप सुपारी मूंह में घुलने लग जाती है। दाँतों को पता ही नहीं चलता कि कब पान चबाया, जनाब दूसरों के पान की सुपारी दांतों से तोड़ते-तोड़ते कब सुपारी दाँत को भी अपना हम सफर बना लेगी ये डर हमेशा लगा रहता था। पान न खाना हो गया जनाब दांतों की कोई कसरत हो रही हो।

सामने मुत्तु स्वामी के यहां कोई नया किराये दार आया है, फूल बेचने बाला, मोहल्‍ला इसी एक सौगात के बिना अधूरा था। सो वो साध भी पुरी हुई, वरना तो दरीबे कला से जा कर फूल लाना न हो एक सजा मिल गई आपको। चप्पलें चटकाते एक तो इतनी दूर जाओ ऊपर से पूरा मोहल्‍ला ऐसे देखेगी की आप चिड़ियों घर के कोई प्राणी हो। कितने दिनों की ये साध पुरी हुई सब ने एक दूसरे को बधाइयाँ दी मुत्तु स्वामी की चपल बुद्धि के क़सीदा पढ़े गये। परन्‍तु फजलू मियां को वो आदमी फूटी आंख नहीं भाया, फजलू मियां की बात पर किसी ने गौर भी किया। बात आई गई हो गई दिन बीते महीने भर के अंदर फूल वाले का परिवार भी आ गया। परिवार क्‍या भानमती का कुनबा समझो, आठ फूल से बच्‍चे, पूरी टीम में मात्र तीन कम ही थी। सच मुत्तु स्‍वामी ने कोई किराये दार न रख कर एक कलब को निमंत्रण दिया हो। सारा दिन बच्‍चे गली मोहल्ले के घर-घर की घंटियां बजाते फिरते थे। मानो घर की घंटी न हो मंदिर को घंटा हो गया। बार-बार लोग आकर दरवाजा खोल कर देखते की सामने नाक बहती दाँत खिसियाते बच्चे खड़े हंस रहे है। कितना गुस्सा करें कोई एक दो ने तो दो चार बच्चे को धुनाई भी कर दि। परंतु न जाने उन्हें इस घंटी बजाने का क्या चसकता था। अजीब आफत आ गई लोगों की अब तो कोई मेहमान भी आये तो दस-दस मिनट घंटी बजाता रह जाता था। कोई दरवाजा ही नहीं खोलता था। सब सोचते थे वही आफत के परकाला बच्चे होंगे। मेहमान को मूंह सूज कर बेड पकोड़े की तरह हो जाता था। कि कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं आप लोग घोड़े बेच कर सो रहे थे। लगता था धीरे-धीरे इस मोहल्ले से अब मेहमानों का आना जाना कम होने वाला है। किसी के आंगन में खेलने चले जाते तो रौनक मेला सा लग जाता, एक दो दिन तो वह बरदाश्त करता फिर दूसरे दिन वह भी हाथ जोड़ देता की माफ करो यहां बहुत काम है।

अब इतना बड़ा घर था मुत्तु स्वामी का फिर भी जब नए किराये दार की पूरी पलटन खाना खाने बैठते तो एक छोटा मोटा लंगर ही खुल जाता। अब भला ये खाना कोई कमरे में खाया जा सकता था। पूरा आँगन लंगर बन जाता। एक बहन चावल परोसते चलती तो दूसरी बहन पीछे-पीछे दाल पापड़। खाना परोसना जब आपको ऐसा लग रहा है तो उन बेचारे के शरीर से पूछो जो ये लंगर रोज बनाते। खिलाते है। गजब के लोग है भाई देख-देख की घबराहट होती है यहां तो। जब कोई आगे चावल देने वाला चलता तो पीछे-पीछे दाल, अचार, पापड़, आदि की पुकार चल रही होती। वाह रे मुत्तु स्वामी तुने भी गजब के किराये दार रखे वो भी फूल वाला।

दिन भर तो ये सब हुड़दंग चलता था। क्रिकेट कलब भी लगभग अब बंद होने के कगार पा पहुंच गया था। लगता था सालों की तपस्या और मेहनत का जब फल आने को हुआ तो पेड़ को दीमक लग गई। और वो भी उसी माली के हाथों जो इस क्रिकेट रूपी वृक्ष को सींच रहा था। दो तीन महीने में ही पूरा मोहल्ला परेशान हो गया। लेकिन गजब तो तब हुआ जब अचानक एक रात नौ बजे मोहल्‍ले की शान्ति को श्राप लग गया, जोर-जोर से कोई गालियां बकने लगा, दरों दीवारों पर जो शान्ति इतने दिनों से प्लास्टर की तरह चिपकी थी। आज अचानक भूर-भूरा कर गिर गई, घटना इतनी अनहोनी थी, मोहल्‍ले के लोगों ने खिड़की खोल के देखा कि‍ क्‍या हो रहा है। देखा तो फूल वाला दारू के नशे में अंट–शंट गालियां बक रहा था। दिन भर बच्चे जो इस मोहल्ले के नोनिहाल थे। वे परेशान हो रहे थे। फूल वाले के आने से उनके खेल में बहुत बाधा पड रही थी। पास के प्राचीन मंदिर के कारण फूल वाले की आमदनी बढ़ने लगी थी। तब क्या था उसने आधा मैदान उसके फूलों की रेहड़ी की भेट चढ़ गया था। फिर अगर बच्‍चों की बाल आठ रतनों में से किसी को छू गई तो वो तांडव शुरू होता कि बच्चों को खेल खत्‍म कर घर जाना ही पड़ता था।

मुत्तु स्वामी का अपना कलब अब उसके लालच और मूर्खता की भेट चढ़ रहा था। भला ऐसा कोई भला मानस सोच सकता है। परंतु अब सब लोग कह रहे थे कि ये कैसी मुत्तु स्वामी की दूरदर्शिता थी। अरे हम तो उसे बहुत ही बुद्धिमान समझते थे। देखो उसने क्या किया। जो वह अपने किराये दार को देख नहीं पाया उसके चाल चलन स्वभाव को समझ नहीं पाया। भला तब वह इन बच्चों को क्या खाकर गावस्कर, कपिल देव बनायेगा। आज हमें पता लगा की मुत्तु स्वामी तो निरा मुर्ख है। हम भी इतने सालो से किस की बातों में आ गए। फिर रही सही कसर फूल बाला रात को आकर कर देता था। सबकी मां बहन एक कर देता, ऐसी-ऐसी गलियों का उच्‍चारण किया जाता कि भोला नाथ की पर्यायवाची कोश भी फेल हो जाता। न जाने ये दारू पीने वाले कहां से ऐसे-ऐसे शब्द ढूंढ कर लाते है की बड़े-बड़े लेखक भी दांतों तले उँगली दबा ले। आप पूरा दिन सर खपाई करते रहो शब्‍द कोश में, मजाल वो शब्‍द आप को मिल जाये।

देखते ही देखते मोहल्‍ले की खुशी को ग्रहण लग गया। फजलू मियां ने तो पूत के पैर पालने में पहले ही देख लिये थे। परन्‍तु उसके अनुभव का मोहल्‍ले ने फायदा नहीं उठाया सो अब पछताने से क्‍या होता है। बात निकल गई ग्यारह महीने के लिए हाथ से। क्योंकि मुत्तु स्वामी ने ग्यारह महीने एग्रीमेंट किया था। लो भला कैसे कटेंगे ये पहाड़ से आठ-नौ महीने। मुत्तु स्‍वामी ने, फूल वाले को यहां बसा का इस मोहल्ले से तुने किस जन्म का बैर निकाला। कितना भरोसा किया तुझ पर हाए तुने क्या किया...। लोग आपस में खड़े हो कर कहते की अब तो तु ही बचा सकता है इस आफत से। फजलू मियां से ही लोगों को कोई आस उम्मीद थी। और मोहल्ले के लोग तो फिल्म में भी लड़ाई का दृश्य देखकर कांप जाते थे। और पीछे से शोर करने लग जाते की भाई गुंड़ा पीछे से चाकू ले कर आ रहा है। तब भला आप उन लोगों से क्या उम्मीद कर सकते थे है की माहाराणा प्रताप या पृथ्वी राज की तरह लड़ेगें। ना-ना ये आपकी भूल है। आप उनके हाथ में जरा डंडा थमा दो की मारो किसी गली के कुत्ते को, कुत्ते को तो बेचारे क्या मारेंगे खुद ही उससे पहले गिरे मिलेंगे आपको सड़क पर। पहाड़ से ये ग्यारह महीने क्‍या आज ही खत्‍म होने वाले है, सबको यही चिन्ता थी। क्रिकेट का ग्राउंड सुनसान पड़ा रहने लगा था। बच्‍चे डरे सहमें किताबों में सर घुसाये उदास बैठे होते थे। दूध का गिलास रो झींक के पिलाया जाता था। जो फ्रीज कल तक खाली मूंह ताकता रहता था। आज फलों से भरा रहता है, कोई उसे छूता भी नहीं। न बच्चों का खाने में मन लगता है नहीं स्कूल की पढ़ाई में। अब किया तो किया क्या जा सकता था। यहीं तो चार दिन है बच्चों के खेलने कुदने के अब ये सब पहले स्कूल की कैद में अब घर की कैद में। बहुत ही खराब काम किया इस मुत्तु स्वामी ने।

फजलू मियां का जब पान लगाते हुए सामने मैदान की तरफ ध्‍यान जाता वहां फूल वाले के बच्‍चे मस्‍त खेल रहे होते। सार मैदान पड़ा खाली कितना मनहूस लगता था। बच्चों के शोर सराबे के बिना ये मैदान ये संसार कोई शोभा रखता है। या दूर किसी कौन में आपको एक दो चिड़ियाँ दाना चुगती हुई दिखाई दे जायेगी। अब तो मस्त फूल वाला तो सुबह ही पिन्‍नक में सवार हो जाता था। फूलो पे पानी छिड़कते हुए दो चार बुंदे शायद सोम रस की भी गिर जाती थी। राम चन्द्र हलवाई के सामने ही तो वो पुराना शिव मन्‍दि‍र था, जो शायद पांच सो साल पुराना अवश्‍य ही रहा होगा। कहते है सालों पहले मन्दिर के एक कोने में पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कि थी। जब मन्‍दि‍र का नया नाम करण करना पड़ा था, ‘प्राचीन शिव हनुमान मन्‍दि‍र, अभी दो साल पहले लोगों के मन में एक नई श्रद्धा की उत्पत्ति उठी की शिरडी के सांई बाबा की मूर्ति लाई जाये। सो पास ही रेलवे रोड कि दुकानों में से छांट कर सुन्‍दर मूर्ति ला स्थापित कर दी गई। भारतीय समाज में जिस तरह की भिन्नता में एकता है ठीक इसी तरह मन्दिर भी भिन्नता में संपूर्णता समेटे रहते है। अब नाम करण संस्कार भी पूर्ण करना पड़ा सर्व सम्मति से नाम रखा गया,’ प्राचीन शिव हनुमान सॉंई मन्दिर’ अब आगे की राम जाने या आने वाली नसलें। कोई और उत्पाती नहीं करेंगी तब तक तो यही नाम चलता रहेगा।

फूल वाला अपनी पत्नी के साथ खड़ा हो फूल बेचता था। नाम ही फूल वाले का था काम तो वही बेचारी करती थी। बस वह एक काम महान करता था की मंडी में रात को जाकर फूल ले आता था। नाजुक बेचारी सारा दिन धूप में खड़ी रहती थी। फूल वाला सारा दिन नशे में धुत्त रहता था। पत्नी जब घर चली जाती तो उसे न फूलों का होश रहता न सामने वाले का कौन खड़ा है उसका ही। कभी तो किसी महिला के हाथ की उंगली को भी छू लेता था। या उसके पल्लू को पकड़ने की नाकामयाब कोशिश करता था। उसके पास से इतनी दुर्गंध आती की मजबूरी में लोगों को तोबा-तोबा कर के फूल लेने पड़ते थे। परंतु अंदर से एक भय भी बना रहता की शराबी के हाथ लगे फूल वह भगवान के चरणों में चढ़ा कर कहीं पाप तो नहीं कर रहा है। कुछ साहसी लोग तो दूर बल्लीमारान के माड़ से जाकर फूल लाने लगे थे। परंतु इस बात की फूल वाले को जरा भी चिंता नहीं थी। धीरे-धीरे तो फूल वाला फूलों के नीचे ही अपना पव्वा दब के रखता था। जब जरा सी पिन्नक कम हुई मार लिया एक घूंट, जब उसका मन करता फूलों के नीचे से निकालता जय सोम रस और कहता की ये भी तो भगवान का प्रसाद है। क्या राम चंद्र का प्रसाद ही प्रसाद है तो अपने पुराने किले के पीछे जो भैरो जी का मंदिर है वहां भी तो हमारे सोम रस का प्रसाद चढ़ता है। मूंह से इतनी बू आती मन्‍दि‍र जाने से पहले मानो नरक के फाटक पर हाजिरी देना अनिवार्य सा हो गया था। कोई उसके मूंह माथे नहीं लगता, कौन यहां घर बसाने आये है, फूल लिए नाक पर कपड़ा रख कर मन्‍दि‍र में चले जाते थे। परंतु चित एक दम से खराब हो जाता था। मंदिर में भी मन बैचेन रहता था। शांति के लिए आये थे की दिन भर की दौड़ धूप से पहले भगवान के चरणों में बैठ कर थोड़ा मन को शांत कर लेंगे। परंतु यहाँ तो और उलटा हुआ जा रहा है। इससे तो बेहतर था की घर में दीप-धूप
कर लेते।

राम चन्‍द्र हलवाई शोर मचाता ‘’अरे देखो भाई हमारी दुकान पर तो अगर चाय पीते भी ग्राहक अगर आ भी जाता तो पहले हाथ धोते फिर ग्राहक को सामान देते है। दुकान शिव जी का थडा होती है, इसे पवित्र पूजा भाव से करना चाहिए। परन्‍तु इस पापी फूल वाले ने तो सार कायदे कानून ताक पर रख दिए है। इस के अंदर न इंसान का भय है और नहीं भगवान का। आज रामचंद्र को पता लगा की देवताओं के बीच राक्षस कैसे रह सकते थे। वो जो कहानी कथा सूनी था आज वह सत्य सामने घटती नजर आ रही है। अरे भला यहां तो एक ही राक्षस है और उस युग में तो चारों और इनका ही राज था। भगवान राम ने कितने ही मारे फिर भी हजारों लाखों साल बाद भी इनका बीज खत्म नहीं हुआ।‘’

फूल बाला एक बार राम चन्‍द्र हलवाई की तरफ देखता, उसे लगता ये सब बक झक करते रहेंगे पैसे जोड़ कर मर जायेंगे। बनेंगे देखना मरने के बाद सांप उसकी रखवाली करने के लिए। क्‍या जीवन है इन लोगों का घास फूस खाते हैं, जानवरों की तरह और पानी पी कर राम नाम सत्‍य हो जायेंगे। वो इन फिजूल की बातों पर ध्‍यान ही नहीं देता था। धीरे-धीरे मन्‍दि‍र के साथ मोहल्ले की साख भी मिट्टी मिलने लगी। दूसरे मोहल्ले की बहु-बेटियाँ मन्दिर आने के लिए गली से न आ कर पूरा चक्कर लगा कर आना मंजूर करती थी। मोहल्ले वालों ने पुलिस से सहायता ली, इतना काम जरूर कर दिया फूल वाला मन्दिर के सामने फूल नहीं लगता। वह लाल कुआँ वापस अपने ठिकाने सरक गया, जाना पड़ा फिर भी लोगों को फूल वाले के पास। क्योंकि मंदिर में फूल के बिना भगवान के कैसे दर्शन होते। और लोगों की परेड हो गई पहले आधा मील पीछे जाओ फिर मंदिर जाओ समय की बरबादी अलग।

एक समस्‍या हो तो कहें, जो मैदान कभी शीशे की तरह साफ सुथरा रहता था। अब कूड़े के ढेर लगे रहते थ। कूड़ा उठाने वाली भी रोज झिकझिक करके हार गई थी। वह भी कोई कम तो नहीं थी एक दम से तलवार थी। फूल वाली और कूड़े वाली के जब संवाद हुए तो उसने भी वो श्लोक पढ़े की मोहल्ले उसका मूंह देखता रह गया। अरे हमने तो आज तक इसके मुखर बिंदु से कभी चूं तक आवाज नहीं सूनी। ओर अब ये ऐसी-ऐसी गालियां बक रही है की औरतों को कानों में उंगली डालनी पड़ रही थी। परंतु तेल चुपड़े मटके पर पानी की एक बुंद रुके तब तो कोई बात फूल वाले के भेजे में घूसे। फूल वाले की बीवी का रंग एक दम शाह काला था। परन्‍तु जब गली में बैठ पैरो की एड़ियाँ रगड़ती तब लगता अब खून निकला कर ही दम लेगी। किस तन्मयता से पैरों को रगड़ती थी आप पल उसे निहारते रही जायेंगे। पैर रगड़ते देखने वाले को डर लगता था अरे बाबा अब खून निकला कि तब। लोगों को समझ नहीं आता था की पैर के रगड़ने से का सुंदरता बढ़ जायेगे हम नाहक सालो से चेहरे पर मानो साबुन लगते आ रहे है। अब जब पैर इस तरह से धोए जाते है तो नहाने की राम जाने अन्दर ही कही हरी ओम हरी ओम कर लेती होगी। बच्‍चों के बाल चिड़ियों के घोसले हुए रहते थे। जब किसी का नहाने का नम्‍बर आता तो पूरे मोहल्ले में हाहाकार मंच जाता था। एक को नहलाया जाता तब सारे दर्शक बन उसे घेर लेते थे। और जिस दिन उसका नम्बर आता था तो वह पकड़ने से बचने के लिए पूरे क्रिकेट मैदान के कितने चक्कर लगवा देता था। सब समझ जाते थे की आज इस महान विभूति का नहाने का नम्बर है।

एक फूल वाले के आने से पूरे मोहल्ले का गुण धर्म ही बदल गया था। फजलू की दुकान पर मायूसी फैली रहती थी। सच कहें तो आज कल उसके पान में भी वह मिठास नहीं रही थी। न ही उसकी बातों में वह लच्छेदार नजाकत थी। सब कितना बे रोनक हो गया था। मानो किसी सुंदर उपवन के एक तूफान के बाद सारे पेड़ पौधे टूट बिखर कर उदास हो गये हो। क्रिकेट के बादशाह दूर से ही अपने प्रिय ग्राउंड को निहार कर तृप्त हो जाते थे। फूल वाले का एक छत्र राज हो गया पूरे मोहल्ले पर। कभी गांधी, बुद्ध, महावीर का अहिंसक मोहल्ला था हमारा। हिंसा तो यहां के शब्‍द कोश में नाम भी नहीं थी। अब देखो वह नादीर शाह, मोहम्मद गजनवी के हाथों आ गया था। उसकी ये हालत क्या हो गई थी। अब हमें भी कोई महाराणा प्रताप या वीर शिवाजी जैसे कोई इस मोहल्ले का उद्धार कर सकता है। सच हमारे पूर्वज बहुत चतुर और समझदार थे। इतना मीठा भी मत बनो की तुम्हें कोई खा जाये। भगवान राम के हाथों धनुष, हनुमान के हाथों में गदा, भगवान कृष्ण के हाथों में सुदर्शन चक्र ये सब कितने सही थे। ताली एक हाथ से नहीं बजती। ठीक ही कह रहा है, मुत्तु स्वामी हम गुलाम इस लिया हो गए की हमें लगातार अहिंसा का पाठ तो पढ़ाया जाता रहा था। और फिर घास-फूल की तरह से उग रहे है चारों और राक्षस। हां किसी फिल्म में ये दृश्य जरूर देखा होगा कि अहिंसा से देश आजाद हो सकता है। बुरे विचारों को खत्म किया जा सकता है। परंतु जीवन में ये सब कठिन होता है। कठिन ही नहीं असंभव भी होता है। अब कहां से एक और पैदा करें ‘’भैराम डाकू’’ को जो इस मोहल्ले को फूल वाले से मुक्ति दिलाये। अब भगवान भी मानो फूल वाले से प्रसन्‍न है, क्‍यों न हों इसके फूल जो भगवान जी के चरणों में चढ़ते है।

होली आई फूल वाले के नाते रिसते दार भी आ पधारे, क्‍या होली का हुड़दंग मचा रात के नौ बज गये, जो होली सालों से 2-3 बजे खत्‍म हो जाती थी। मानो उसकी रील ही अटक गई थी। खत्‍म जरूर होती परंतु फिर से दोबारा शुरू हो जाती। लाख लोगों न मना किया की अब बहुत हो गया अपने मेहमानों से कहो की अब होली का समय खत्म हो गया है। एक दो बजे के बाद हमारे मोहले में होली नहीं खेली जाती। ऐसी होली आज से पहले न मोहल्ले ने देखी न सुनी थी। अरे ‘’बरसाने’’ बाले भी आ जाते तो यहां आके हार मान लेते। नाच गाना ढोल मंजीरा, गाली-गलौज मोहल्ले वालों ने खिड़कियाँ बंद कर टी वी की आवाज तेज कर के इस शोर को अपने घर से दूर रखने की लाख कोशिश की। फिर भी कोई पंचम सुर इन अवरोधो को तोड़ कर अन्दर पहुँच ही जाता था। रात 12 बजे जब ये नौटंकी खत्‍म हुई तब जा के मोहल्ले ने शान्ति की सांस ली। बेचारी शांति भी आज बहुत थक गई थी। इस हड़ दंग के सामने। कहां छूप कर कोने में खड़ी रही होगी पूरा दिन।

खन्‍ड़ेलवाल जी सुबह तीन बजे उठ कर रोज दो घण्टे नित नियम से पूजा पाठ करते थे। घर के बीच खुला आंगन जिसमें एक भेल पत्र, अमरूद, नींबू, के साथ मौसमी फूल भी उगाये हुए थे। ताकि पूजा के लिए अपने घर के फूलों का ही उपयोग किया जाये। न जानें फूलों पर भी कैसे-कैसे बैठ जाते है लोग। कैसे-कैसे हाथ लगता है। ये सब खंडेलवाल जी को पसंद नहीं था। चाहे वह एक ही फूल चढ़ाये भगवान के चरणों में वह एक शुद्ध होना चाहिए। क्‍या बिसात, एकदम शुद्ध न किसी की गंदी छुअन न किसी की झूठ-कूठ, आज तो जमाना ही नहीं रहा, फूल क्‍या सब्‍जी क्‍या जब गाड़ियों में लाद कर लाते है तो जूतों समेत, वहीं पान तम्बाकू खा थूकते रहते है। लोग है कि संवेदन हीन हो गये है, हमारे जमाने में चारा काट कर जब खेत से लाते हुए आप गट्ठे पर बैठ गये तो मजाल क्‍या जो भैंस उसमें से एक ति‍नका भी मुँह में डाल ले। राम..राम समय ने कितनी जल्‍दी रंग बदल गया है। ये फूल वाला तोबा..तोबा, चारों तरफ गहन शान्ति का राज्‍य था, शायद शुक्ल पक्ष था, पूर्णिमा के चांद कि उपस्थिति में तारा मंडल पूर्ण आभा छाई हुई थी। एक-आधी बादल का टुकड़ा तारों के झुंड के साथ आँख मिचौनी खेल रहा था। अभी सूर्य देव के आगमन में एक पहर बाकी था। सूर्य उदय से पहले हर रोज खंडेलवाल जी पूजा कर चूके होते थे। ये उनका नित का नियम था। जब तक पूजा न हो जाये एक अन्न का दाना मुख में नहीं जाता अगर कभी बहुत बीमार भी हो जाते है तो पुरोहित को बुला लिया जाता था। परंतु पूजा अवश्य होती थी। एक नियम कायदा था खंडेलवाल जी का।

खन्‍ड़ेलवाल जी के पूजा के बर्तन साफ हो गये थे, लाल और सफेद चंदन घिसने कि तैयारी कर रहे थे। अचानक एक छोटी सी बदली जो अभी-अभी तारों के साथ आंख मिचौली खेल रही थी, मानो झुंझला के उसके आंसू निकल गये। बुंदा-बांदी के साथ अचानक गली जो अभी तक जहां पर शान्त थी। शोर के कम्पन से कुछ पल के लिए थर-थरा गई। खन्‍ड़ेलवाल जी ने खिड़की से झाँक कर देखा तो वहीं फूल बाला ऊपर की तरफ हाथ उठा कर गालियां दे रहा था। खन्‍ड़ेलवाल जी ने देखा क्‍या ये पागल हो गया है। न यहां कोई आदमी न आदमी की जात फिर किसको ये गालियां दे रहा है। किस घड़ी में मुत्तु स्‍वामी इस निच्छत्र को मोहल्ले में लें आया जीना दूभर कर रखा है। पूजा की तैयारी कर ही रहे थे लो हो गई पूजा। इन लोगों को भगवान भी क्यों मनुष्य का शरीर दे देता है। भले आदमी जब तुम अपने जीवन की कोई कदर ही नहीं जानते तो ये तुम्हें दिया है उसकी तुम कदर क्या जानोगे। जय भोले अब तु ही इन से पार पा सकता है हमारे बस की तो बात नहीं।

इतनी देर में एक काली सी परछाई दिखाई दी, उसकी आवाज तो खन्‍डेलवाल जी के कानों में नहीं पड़ी परन्‍तु वो हाथ हिला कर कुछ इशारे कर रही थी। जिसका जवाब नशेडी फूल वाला इतने जोर से दे रहा था। वो खन्‍ड़ेलवाल के कानों को भी फाड़े डाल रहे थे।

‘’देखो ये हराम खोर मोहल्ले वाले मुझे रात को सोने भी नहीं देते, छत पर खड़े हो कर मेरे ऊपर पानी फेंक रहे है। मेरा जीना हराम कर रखा है, इस मोहल्ले में या नरक में आ गया हूँ, थू है इस मोहल्ले को’’...........।

इतनी देर में परछाई का हाथ घूमा च...टा..‍क...बड़ी जोर से एक आवाज आई, फूल बाला चारों खाने चित। तीन चार लात पड़ी लगा कराहने। उतर गया सारा नशा पल में। हाथ जोड़ कर उस परछाई के पैरों में गिर कर लाख माफी मांगने लगा। मुझे माफ कर दो मुझसे भूल हो गई। आगे से कभी एक शब्द निकले तो मेरी जबान काट लेना। खंडेलवाल जी ने लाख जतन किया उस परछाई का चेहरा नहीं दिखाई दिया। परंतु फूल वाला जमीन पर पड़ा दया की भीख मांग रहा था। और कसमें खा रहा था की अब के बाद अगर वह एक जबान भी खोले तो उनकी जीभ काट लेना। अचानक परछाई ने हाथ हिलाकर कुछ निर्देश दिये और अचानक अंधेरे में गायब हो गई। अरे ये कैसा अवतार ये तो कोई भगवान का भेजा दूत था। मानो आज खंडेलवाल की पुजा से पहले किसी अवतार ने या खूद भोला भंडारी ने दर्शन दे दिये। सच्चे मन से मांग की थी इस पापी से पिंड छुड़ाने के लिए। इतनी जल्दी उद्धार करते है आपके भोला भंडारी। गजब हो गया। ये सब इतनी जल्‍दी हुआ की खंडेलवाल जी को यकीन ही नहीं आता, अगर फूल वाले को नीचे गिरा नहीं देखता। वह कभी मानता ही नहीं। पुजा का समय बीता जा रहा था। कितनी देर पूजा करते रहे आज पूजा में भी ध्‍यान नहीं लग रहा था। बार-बार ध्यान उस परछाई और फूल वाले की तरफ जाता था। लेकिन बहार क्रिकेट के मैदान में एक दम मरघट सी शांति थी। कितनी देर बीत गई बाहर का भी कोई शोर नहीं आया था। कैसी निभ्रर्म शान्ति फैली रही घण्टों तक मानो ये अपना वो मोहल्ला ही नहीं है। जहां कुछ देर पहले महा तांडव हो रहा था। किसी ने ठीक ही कहा है। थोड़ा पिटे तो रोए अधिक पीटे तो सोए। लगता है आज फूल वाले की अच्छी खासी मसाज हुई है और वो बेचारा विश्राम मुद्रा में आसन लिए पड़ा होगा। चलो जो हुआ ये सब भोले बाबा की मर्जी थी। अच्छा ही हुआ।

काली अंधेरी रात बीत गई, गली में भी मानो शुक्ल पक्ष का उजियारा फैलने लगा था। फिर मोहल्ला दोबारा अपनी चिर परिचित गति में लौटने लगा था। फूल वाले की चिड़ियां एक दम चुप जैसे उसकी जबान को लकवा मार गया हो। सुबह सवेरे मोहल्ले का चौक एक दम साफ सुथरा। किसी को भी यकीन नहीं आया रात तो इतनी मूसलाधार बारिश हो रही थी, अचानक ये सूरज भगवान कैसे निकल आया। लोग अपनी आंखें मल-मल कर देख रहे है की ये अपना ही मोहल्ला है या रात पूरी पृथ्वी घूम कर कही और हमारे मोहल्ले को ले गई। ये तो चमत्कार का भी चमत्कार था। कोन अवतार उतरे इस मोहल्ले में। सच पृथ्वी पर जैसे-जैसे पाप बढ़ता है, प्रभु को अवतरित होना होता है। आज तक मोहल्ले का एक दो नास्तिक थे वह भी गये काम से। क्योंकि वह परमात्मा नहीं है की बात तो करते थे। परंतु फूल वाले का उसके गुरु मार्क्स और लेनिन के पास कोई इलाज नहीं था। ये तो हिंदु धर्म में ही शक्ति है। देखा कर दिया पल में मोहल्ले का उद्धार। जैसी भोले की इच्छा। बम-बम भोले भंडारी तेरी जय हो।

खन्‍ड़ेलवाल जी जब श्‍याम को पूजा के लिए पान सुपारी लेने के लिए फजलू मियां की दुकान पर आये। तब उन्होंने फजलू मियाँ को रात की परछाई वाली बात का जिक्र किया- ‘फजलू मियाँ मेरी बात का यकीन करो या मत करो परन्‍तु मैंने सुबह-सुबह एक चमत्‍कार देखा।’’

फजलू मियाँ ने गर्दन हिलाते हुये कहा ‘’क्‍या देखा लाला जी। जरा हमें भी बता दो। आपने दिव्य चक्षुओं का पराक्रम।’’

‘’मैंने देखा ये जो अपना फूल वाला है, आपको अब क्या बताऊँ आप मेरा मजाक करेंगे परंतु सच मैंने अपनी आंखों से देखा था। सुबह इसने मेरी पूजा के समय वो हुड़दंग मचा रखा था। बस लगा की आज तो पूजा होने से रही। इतनी देर में क्या देखता हूं कि एक परछाई से अवतरित हुई। और देखते ही देखते फूल वाला जमीन पर पड़ा दया की भीख मांग रहा था। मेरे भोले बाबा ने सही किया इस पापी का। वह अपने भक्तों की सुनता है। आज भी आप चाहे इसे कलयुगी कहो परंतु परमात्मा तो कलजुग में भी यही रहेगा अपने भक्तों की रक्षा के लिए। इसकी चिड़िया चुप भोले बाबा के गणो ने की है, एक काली सी परछाई इस पर कोई मंत्र मार गई नहीं ये शैतान आदमी के बस में आने वाला नहीं था।‘’

लोग कुछ भी कहे भोले बाबा अपने भगतों की सुनता है, धन्‍य हुई मेरी आंखें जो भगवान न सही उसके गण की एक झलक तो पाई।‘’

फजलू मियाँ ने पान सुपारी पत्‍ते में लपेटते हुए, एक हलकी सी मुस्‍कान बिखेरी, और आसमान की तरफ देखते हुए कहां अल्ला सब पे करम फ़रमा। ‘’शिव-शिव जय भोले।’’

‘’भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, जय सिया राम।’’

फिर क्या था। कुछ दिनों बाद अचानक फूल बाला मोहल्ला छोड़ कर चला गया। अब सब पहले से भी कहीं अधिक अच्छा था। अपना एम0 सी0 सी0 कलब फिर आबाद होना ही था। परन्‍तु किसी की बात समझ में नहीं आई ये अचानक फ़ूल वाले को हो क्‍या गया। जाते हुए भी फजलू मियाँ से हाथ जोड़ कर माफी भी मांग रहा था। उसके बाद मुत्तु स्‍वामी को सबने हिदायत दे दी थी, अगर दोबारा कोई किराये दार रखे तो पुरी तरह छान बीन कर ले। फिर मुत्तु स्‍वामी ने वो कमरा कभी किराये पर नहीं दिया ही नहीं।

भविष्य के सहवाग और धोनी...... के लिए खाली छोड़ दिया कि जब कोई खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व करेगा वो ही इसकी भरपाई करेगा। देखो कब साध पूरी होती है। बेचारे मुत्तु स्वामी की। अब मोहल्ले कि या मुत्तु स्‍वामी ने फिर अपने खिलाड़ियों से अधिक सावधान होकर खेलने की गुजारिश की। ताकि तुम्हें पता चले की मोहल्ला तुम्हारे लिए कितनी त्याग और तपस्या कर रहा है। फजलू मियाँ की पान कि गिलौरियों के साथ अब भी रीले कमेंट्री या आँखों देखा हाल जारी रहता था।

जब भी फूल वाले के जाने की बात होती तो। फजलू मियां पान के साथ एक शरारती मुस्कुराहट भी परोसने लगे थे। सब उसी का करम है। सब भोले भंडारी की कृपा है इन नौनिहालों पर। वरना तो इन बच्चों का भविष्य तो खत्म हो गया। देखना अब अगर भारतीय क्रिकेट टीम में इनमें से किसी का नाम न आये तो हमारा नाम बदल देना। फजलू मियाँ जिसे कोई समझने की कोशिश भी नहीं करना चाहता था। सोचते है ये फजलू का कोई नया स्टाइल है।

लेकिन उनकी इस हरकत-मुरकी तो बच्चे समझ गये थे। की इसमें सारा का सारा हाथ फजलू मियां का है। वो परछाई कोई और नहीं फलजू मियां ही थे।

 

(यह कहानी जाह्नवी पत्रिका में सितम्बर 2010 अंक में प्रकाशित हुई थी)

 

 

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