(ओशो
द्वारा दिए गए
15 अमृत प्रवचनों
का अपूर्व संकलन।
जो ध्यान साधना
शिविर, माथेरान
में ध्यान प्रयोग
के साथ प्रश्नचर्चा
सहित।)
समाधि
की भूमिका:
समाधि
का अर्थ ही यह होता
है : जिससे चित्त
की समस्त अशांति
का समाधान हो गया।
जिसे वे लगाते
होंगे वह समाधि
नहीं है, वह केवल
जड्मूर्च्छा है।
जो चीज लगाई जा
सकती है वह समाधि
नहीं है, वह
केवल जडमूर्च्छा
है। वह अपने को
बेहोश करने की
तरकीब है। ट्रिक
सीख गए होंगे,
और तो कुछ नहीं।
तो वह ट्रिक अगर
सीख ली जाए तो कोई
भी आदमी उतनी देर
तक बेहोश रह सकता
है उतनी देर उसे
कुछ पता नहीं होगा।
अगर आप उसको मिट्टी
में दबा दें तो
भी कुछ पता नहीं
होगा। उस वक्त
श्वास भी बंद हो
जाएगी और सब चेतन
कार्य बंद हो जाएंगे।
उसको
लोग समाधि समझ
लेते हैं। वे उसको
समझ लेते हैं वह
तो ठीक है, लेकिन
दूसरे भी समझ लेते
हैं कि वह समाधि
है। समाधि के नाम
पर एक मिथ्या,
जडअवस्था प्रचलित
हुई है। जिसका
समाधि से, धर्म
से कोई संबंध नहीं
है। जो बिलकुल
मदारीगिरी है।
समाधि कोई ऐसी
चीज नहीं जिसको
आप लगाते हैं और
जिसमें से निकल
आते हैं। समाधि
उत्पन्न हो जाए
तो वह आपका स्वभाव
होती है। इसलिए
न आप उसको लगा सकते
हैं, न उसके
बाहर निकल सकते
हैं न उसके भीतर
जा सकते हैं।
समाधि
जो है वह लगाने
और निकलने की चीज
नहीं है। जैसे
स्वास्थ्य है।
अब आप स्वस्थ हैं
तो कोई बताइएगा
कि हम एक घंटे भर
के लिए स्वस्थ
हुए जाते हैं और
फिर हम अस्वस्थ
हो जाएंगे। हम
स्वास्थ्य लगाए
लेते हैं और फिर
हम न लगाएंगे।
जैसा स्वास्थ्य
है न,
स्वास्थ्य तो
देह का है, वह
आंतरिक चित्त का
स्वास्थ्य है,
वहां एक दफा
स्वास्थ्य प्राप्त
हो जाए तो वह सतत
आपके साथ होता
है, उसके बाहर
आप नहीं हो सकते।
तो समाधि में भीतर
तो जा सकते हैं,
समाधि के बाहर
कभी नहीं आ सकते।
आज तक कोई आदमी
तो समाधि के बाहर
नहीं आया।
लेकिन
जिसको हम समाधि
जानते हैं उसमें
भीतर—बाहर दोनों
हो जाता है आना—जाना।
वह आना—जाना कुछ
भी नहीं है, वह
मूर्च्छा है। आप
मूर्च्छित कर लेते
हैं, फिर होश
में आ जाते हैं।
उस आदमी में आप
कुछ भी न पाएंगे,
जो बहत्तर घंटे
नहीं, कितने
ही घंटे लगाता
हो। उसके जीवन
में कुछ भी नहीं
होगा। समाधि से
हम धीरे— धीरे चमत्कार
में पतित हो गए
हैं और उसको मदारीगिरी
बना लिया है। समाधि
का वह लक्षण नहीं
है।
यानी
समाधि एक अवस्था
है। एक क्रिया
नहीं है जिसके
भीतर गए और लौट
आए। एक अवस्था
है चित्त के समाधान
की। और उस पर अगर
ध्यान रहा तो ठीक, अन्यथा
ये जो इस तरह की
बातें सारे मुल्क
में चलती हैं,
इस मदारीगिरी
ने भारत के धर्मों
को, भारत के
योग को सारी दुनिया
में अपमानित किया
है। सारी दुनिया
में अपमानित किया
है। और पश्चिम
से जो लोग आते हैं,
वे इसी तरह की
बातें देख कर लौट
जाते हैं और समझते
हैं यह अध्यात्म
है। और वे महावीर
और बुद्ध और इन
सबके बाबत भी यही
खयाल बनाते हैं,
ये भी इसी तरह
के मदारी रहे होंगे।
अगर
भारत को अपने धर्मों
की वापस सुरक्षा
करनी है और उन्हें
पुनर्जन्म देना
है,
तो इस तरह की
तथाकथित झूठी बातें—
—जिनका समाधि से,
योग से, धर्म
से कोई संबंध नहीं
है—हमें बंद करनी
चाहिए। ये सब मदारीगिरियां
हैं। इससे कोई
वास्ता नहीं है।
ओशो
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