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बुधवार, 9 मई 2018

मा सीता के गीत-(मा सीता)

क्या तुम वहीं हो? –(मा सीता)

(ओशो को समर्पित काव्य गीत भाव मंजूषा)

ओशो का मैंने पहली बार जब क्रास मैदान मम्बई में 1973 बोलते हुए सूना तो मेरे पूर्व जन्मों की सारी यादें जीवित हो गई, मानों अंदर कुछ हो गया। कुछ सोया सा था वह जीवित हो गया।
शायद बीज तो थे, पर उन्हें माली की जरूरत थी। नहीं तो बीज में ओर पत्थर में क्या फर्क होगा। मैं इस वृद्धावस्था में भी जैसे पागल हो गई।
ओर यदि कोई कोई बात मेरेीसमण् में नहीं आई तो.......होगा उसमें जरूर कुछ। या कुछ इसमें भी, लेकिन यदि मुझे कुछ नहीं समझ में आता या पता चलता; तो जो समझ में आता है उसे क्यों छोड़ू?
.........देखा, तो मेरा कितना रूपांतरण होता गया है। वह मैं क्यों भूल रही हूं। उनके चरणों में बैठकर, उन्होंने तो इतना कुछ मुझे दिया कि वह कह नहीं सकती।

मैं अपना विनम्र नमस्कार कर यह काव्य-संग्रह मेरे कुछ पत्रों ओर भावों के साथ अर्पण कर रही हूं।
मुझ ऊंचे-ऊंचे शब्द तो नहीं आते अगर मगर जो मेरे भाव समय-समय पर उन अनुभूतियों में डूबकर उठते थे, उन्हीं को सादी ओर सरल भाषा में लिख दिया है। प्रभु-चरणों में। वहीं अर्पण करती हूं आपको।
प्रेम में तासीर होगी, तो हिला देगा तुझे।
जो न तेरा दिल हिला, तो प्रेम है कच्चा अभी।
मा सीता

13 सितंबर 1993 

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