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सोमवार, 2 नवंबर 2009

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—02

मृत्युं कि प्रतीक्षा

एक ज्यो‍तिषी ने मेरी जन्म -कुंडली तैयार करने का वादा किया था, लेकिन उससे पहले कि वह यह काम कर पाता उसकी मृत्यु हो गई, इसलिए उसके बेटे को जन्मा-कुंडली तैयार करनी पड़ी। लेकिन वह भी हैरान था। उसने कहा: ‘यह करीब-करीब निश्चित है कि यह बच्चा इक्कीपस वर्ष की आयु में मर जाएगा। प्रत्ये क सात साल के बाद उसको मृत्यु को सामना करना पड़ेगा।’

इसलिए मेरे माता-पिता, मेरा परिवार सदैव मेरी मृत्यु को लेकर चिंति‍त रहा करते थे। जब कभी मैं नये सात वर्ष के चक्र के आरंभ में प्रवेश करता, वे भयभीत हो जाते। और वह सही था। सात वर्ष की आयु में मैं बच गया। लेकिन मुझे मृत्यु का गहन अनुभव हुआ—मेरी अपनी मृत्यु का नहीं बल्कि मेरे नाना की मृत्यु का। और मेरा उनसे इतना लगाव था कि उनकी मृत्यु मुझको अपनी स्वायं की मृत्यु प्रतीत हुई। अपने स्वायं के बचपन के ढंग से मैंने उनकी मृत्यु की अनुकृति की। मैंने लगातार तीन दिनों तक भोजन नहीं किया, पानी नहीं पिया, क्योंमकि मुझको लगा कि यदि मैं यह सब करता तो यह नाना के साथ विश्वा सघात होता।


मैं उनको इतना प्रेम करता था, वे मुझको इतना प्रेम करते थे कि जब वह जीवित रहे मुझको अपने माता-पिता के घर नहीं जाने दिया, में अपने नाना-नानी के पास ही रहा। उन्होंनने कहा: ‘जब मैं मर जाऊँ केवल तभी तुम जा सकते हो।’ वे एक बहुत छोटा गांव था। इस लिए मैं किसी स्कूतल में न जा सका, क्योंकि वहां कोई स्कूएल नहीं था। वह मुझे कभी न छोड़ते, लेकिन फिर वह समय आया जब उनकी मृतयु हो गई। वह मेरा अभिन्नं अंग थे। मैं उनकी उपस्थिति, उनके प्रेम के सान्निध्य। में बड़ा हुआ हूं। जब उनकी मृत्यु हुई, मुझको लेगा कि भोजन करन उनके प्रति विश्वाबसघात होगा, अब मैं जीवित रहना नहीं चाहता.... यह खयाल बचपना था, लेकिन इसके माध्यिम से कुछ गहरा घटित हो गया। तीन दिनों तक में लेटा रहा, में बिस्तेरे से उठ कर नहीं आता था। मैंने कहा, जब उनकी मृत्यु हो गई है, मैं जीवित रहना नहीं चाहता। मैं जीवित, परंतु वे तीन दिन मृत्यु का एक अनुभव बन गए। एक ढंग से मैं मर गया, और मुझको वह स्पतष्टठ बोध हो गया—अब मैं इसके बारे में बता सकता हूं, यद्यपि उस समय यह बस एक धुंधला सा अनुभव था—मुझे अनुभव हो गया है। यह एक अनुभूति थी।

फिर चौदह वर्ष की आयु में मेरा परिवार पुन: परेशान हो गया कि मैं मर जाऊँगा। मैं फिर बच गया, लेकिन तब मैंने सचेतन रूप से प्रयास किया। मैंने उनसे कहा: ‘यदि मृत्यु घटने ही वाली है, जैसा कि उस ज्येतिषी ने कह रखा था, तो बेहतर है कि तैयारी कर ली जाए और मृत्यु को अवसर क्यों दिया जाए। क्यों न मैं चला जाऊँ और आधे रास्ते में उससे भेंट करुँ?’ यदि मैं मरने वाला हूं तो बेहतर यही है कि होशपूर्वक मरा जाए।‘ इसलिए मैंने अपने स्कूैल से सात दिनों के लिए अवकाश ले लिया। मैं अपने स्कू ल के प्रधानाचार्य के पास गया और उनसे कहा: ‘मैं मरने जा रहा हूं।’

उन्हों्ने कहा: ‘तुम यह क्या बकवास कर रहे हो? क्या तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, मरने जा रहे हो इससे तुम्हा रा क्याह अभि प्राय है।’

मैंने उनको ज्यो तिषी की उस भविष्ययवाणी के बारे में बताया कि प्रत्येक सात वर्ष के बार मेरा मृत्युज की संभावना से आमना-सामना होगा। मैंने कहा: ‘मैं मृत्यु की प्रतीक्षा करने के लिए सात दिन के एकांत वास कर रहा हूं। यदि मृत्यु आती है, तो यह अच्छाक है कि उससे होश पूर्वक भेंट कर ली जाए जिससे कि यह एक अनुभव बन जाए।’
अपने गांव के ठीक बाहर मैं एक मंदिर में चला गया। मैंने पुजारी से बात करके व्य वस्था कर ली कि वह मुझको तंग नहीं करेगा। चह बहुत अकेला सह वीरान मंदिर था, पुराना खँड़हर, इसमें कभी कोई नहीं आता था। इसलिए मैंने उससे कहा: ‘मैं मंदिर में ही रहा करूंगा। दिन में एक बार आप मुझे कुछ खाने कि लिए और पीने के लिए दे दिया करें, और मैं वहां पर सारा दिन मृतयु की प्रतीक्षा में लेटा रहूंगा।’
मैंने सात दिनों तक प्रतीक्षा की। वे सात दिन एक सुंदर अनुभव बन गए। मृतयु कभी नहीं आई, लेकिन मैंने अपनी और से मृत होने के हर संभव प्रयास किए। असाधारण, अद्भुत अनुभव हुए। अनेक बातें घटित हुई, लेकिन मूलभूत तथ्यु यह था कि यदि तुमको अनुभव हो रहा है कि तुम मरने बाले हो, तो तुम शांत और मौन हो जाते हो। तब कुछ भी कोई चिंता उत्पहन्नन नहीं करता। क्यों कि सभी चिंताएँ जीवन से संबंधित है। जीवन सभी चिंताओं का आधार है। जब‍ तुमको किसी भी तरह से एक दिन मर ही जाना है, तो चिंता क्यों। करनी?’ मैं वहां पर लेटा हुआ था। तीसरे या चौथे दिन मंदिर में एक सांप आया। यह मुझको दिखाई पड़ रहा था; मैं उस सांप को देख रहा था, लेकिन कोई भय न था। अचानक मुझे विचित्र अनुभव हुआ। सांप निकट और निकटतर आता जा रहा था। और मुझको बहुत विचित्र अनुभव हुआ। कोई भय न था, इसलिए मैंने सोचा, ‘ जब मृत्यु आ रही है, तो हो सकता है कि यह इस सांप के द्वारा आ जाए, इसलिए भयभीत क्या, होना? प्रतीक्षा करो।‘ सांप मेरे ऊपर से होकर निकला और दूर चला गया। भय खो गया। यदि तुम मृत्यु को स्वी कार कर लेते हो तो कोई भय नहीं है। यदि तुम जीवन से चिपकते हो, तब हर प्रकार का भय होता है।‘

अनेक बार मक्खियां मेरे आस-पास आई, वे मेरे चारों और उड़ी, वे मेरे ऊपर मेरे चेहरे पर चलती रहीं। कभी-कभी मुझे बेचैनी हुई और मैं उनको भगा देता, लेकिन फिर मैंने सोचा, ‘अब इसका अपयोग ही क्याभ, अब या तो मैं मरने ही वाला हूं, और इस देह की रक्षा करने वाला कोई न होगा, इसलिए उनको अपना काम कर लेने दो।’

जिस क्षण मैंने उनको उनके ढंग पर छोड़ दिया, बेचैनी मिट गई। अभी भी वे मेरे शरीर पर चल रही थी, लेकिन अब जैसे मेरा उनसे सरोकार न रहा। वे पूर्ववत रेंगती रहीं, चलती-फिरती रही, लेकिन जैसे किसी और के शरीर पर हों। अचानक एक दूरी हो गई। यदि तुम मृत्यु को स्वीककार कर लेते हो, तो एक दूरी निर्मित हो जाती है। जीवन अपनी सभी चिंताओं, बेचैनियों, सभी कुछ से दूर चला जाता है।‘

एक ढंग से मैं मर गया, लेकिन मुझे ज्ञात हो गया कि कुछ अमर्त्यी मुझमें है। एक बार तुम पूर्णत: मृत्‍यु को स्वीकार कर लो, तो तुम इसके प्रति सजग हो जाते हो।

फिर पुन: इक्की स वर्ष की आयु में मेरा परिवार मेरी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था। तब मैंने उनसे कहा: ‘तुम लोग क्योंक प्रतीक्षा करते हो? प्रतीक्षा मत करो। अब मैं नहीं मरने बाला हूं।’

शारीरिक रूप से किसी दिन निस्संगदेह मेरी मृत्यु हो जाएगी। फिर भी, ज्योरतिषी की इस भविष्यरवाणी ने मेरी बहुत सहायता की, क्यों कि उसने मुझे बहुत जल्दी मृतयु के बारे में सजग कर दिया था। मैं सतत रूप से ध्यान कर सका और स्वी्कार कर सका कि
यह आ रही है।‘
ओशो                                 (वो मंदिर जिसमें ओशों ने मृत्‍यु की प्रतीक्षा की थी )

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