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बुधवार, 11 नवंबर 2009

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—07

‘’पिता ने थप्‍पड़ मारा’’

    मेरे दादा प्रत्‍येक मामले मैं सदैव मेरे पक्ष में रहा करते थे। यदि वे कर सकते तो वे मेरे साथ सहभागिता करने को तत्‍पर रहते थे। निस्‍संदेह उन्‍होंने कभी मुझे दंडित नहीं किया, उनहोंने मुझे सदा पुरस्‍कृत किया।
      मैं हर रात देर से घर आया करता था, और घर में घुसते ही जो पहली बात वे पूछते थे सह यह कि ‘आज तुमने क्‍या-क्या किया है।’ सब कुछ कैसा चल रहा है, कोई परेशानी तो पैदा नहीं हुई, रात में उनके बिस्‍तर पर साथ  बैठ कर हमारी सदा महफिल जमा करती थी। और वे हद बात का मजा लेते थे। मैं उनको हद बात बताया करता था। जो उस दिन हुई थी और वे कह देते, ‘वास्‍तव में एक अच्‍छा दिन था।’
      मेरे पिता ने मुझको केवल एक बार दंडित किया, क्‍योंकि मैं एक मेले में जो नगर से कुछ मील दूर प्रतिवर्ष हुआ करता था, चला गया था। वहां पर हिंदुओं की पवित्र नदियों में से एक नर्मदा बहा करती थी, और नर्मदा के तट पर एक महीने तक एक विशाल मेला लगा करता था। इसलिए मैं बिना उनसे पूछे वहां मेले में चला गया।
      मेले में इतना कुछ चल रहा था कि...मैं केवल एक दिन के लिए गया था और मैंने सोचा था कि रात तक वापस लौट जाऊँगा, लेकिन वहां पर देखने के लिए बहुत‍ कुछ था, जादुगर, सर्कस, नाटक। इसलिए एक दिन में वापस लौट पाना संभव न था। इसलिए मैं वहां पर तीन दिन तक रुका रहा...सारा परिवार चिंता में पड़ गया: ‘मैं कहां चला गया था?
      पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। ज्‍यादा से ज्‍यादा ऐसा होता था कि मैं देर रात घर लौटता था, लेकिन लगातार तीन दिन तक मैं कभी घर से...ओर वह भी बिना किसी संदेश कि दूर नहीं रहा। उन्‍होंने मेरे प्रत्‍येक मित्र के घर पूछताछ की, मेरे बारे में किसी को पता नहीं था। और चौथे दिन जब मैं घर लौट कर आया, उस समय मेरे पिता वास्‍तव में बहुत क्रोध में थे। उन्‍होंने मुझसे कुछ पूछने से पहले ही मुझे एक थप्‍पड़ मार दिया। मैंने कुछ भी नहीं कहा।
      फिर मैंने कहा: ‘क्‍या आप मुझे एक और थप्‍पड़ मारना चाहते है? आप मार सकते है क्‍योंकि इन तीन दिनों में मैंने पर्याप्‍त मजा लिया है। जितना मैं आनंदित हो चुका हूं उससे अधिक थप्‍पड़ आप नहीं मार सकते, इसलिए आप कुछ और थप्‍पड़ मार सकते है। इससे आप शांत हो जाएंगे और मेरे लिए यह पिटना बस एक संतुलन होगा। मैं स्‍वयं को आनंदित कर चुका हूं।’
      उन्‍होंने कहा: ‘तुम वास्‍तव में विचित्र हो। तुमको थप्‍पड़ मारना अर्थहीन है। इससे तुम आहत नहीं हुए हो, तुम और थप्‍पड़ों की मांग कर रहे हो। क्‍या तुम्‍हें पुरस्‍कार और दंड में कोई अंतर नहीं कर सकते हो।’
      मैंने कहा: ‘नहीं, मेरे लिए हर बात एक प्रकार का पुरस्‍कार के अनेक प्रकार होते है। लेकिन प्रत्‍येक बात एक प्रकार का पुरस्कार होती है।‘
      उन्‍होंने मुझसे पूछा: ‘इन तीन दिनों से तुम कहां थे?
      मैंने कहा: ‘यह तो आपको मुझे थप्‍पड़ मारने से पहले पूछना चाहिए था। अब आप मुझसे पूछने का अधिकार खो चूके है। मुझसे पूछे बिना ही थप्‍पड़ मार दिया गया। अब मामला निबट चुका है—इस अध्‍याय को बंद कर दीजिए। यदि आप जानना चाहते थे, तो आपको पहले ही पूछ लेना चाहिए था। लेकिन आप में जरा भी धैर्य नहीं है। एक मिनट का धैर्य ही पर्याप्‍त रहा होता। लेकिन मैं आपको लगातार इस चिंता में नहीं देखना चाहता कि मैं कहां रहा था, इसलिए आपसे में कहूंगा कि मैं मेले में गया था। ’
      उन्‍होंने पूछा: ‘तुमने मुझसे क्‍यो नहीं पूछा?
      मैंने कहा: ‘क्‍योंकि मैं जाना चाहता था। सत्‍यवादी बनता, यदि मैंने पूछा होता, क्‍या आपने मुझे मेले में जाने की अनुमति दे दी होती, सत्‍य कहि‍ए।‘
      उन्‍होंने कहा: ‘नहीं।’
      मैंने कहा: ‘इससे पूरी बात स्‍पष्‍ट हो जाती है कि मैंने क्‍यों आपसे नहीं पूछा, कयोंकि मैं जाना चाहता था। और यह आपके लिए और भी कठिन होता। यदि मैंने आपसे पूछा होता और अपने कहा होता नहीं और फिर भी मैं चला गया होता तो मेरा जाना आपके लिए और भी कठिन रहा होता। आपके लिए इसे और सरल करने के लिए मैने नहीं पूछा, और मुझको इसके लिए पुरस्‍कार मिल गया है। और यदि आप मुझे और अघिक पुरस्‍कार देना चाहते है तो मैं उसको लेने के लिए तैयार हूं। लेकिन मैंने मेले में इतना आनंद लिया है। कि मैं हर साल वह जाया करूंगा। इसलिए...जब कभी भी मैं खो जाऊँ आप जान लें कि मैं कहां हूं। चिंता त करें।’
      उन्‍होंने कहा: ‘’ यह आखिरी बार है कि मैंने तुमको दंडित किया है, पहली और आखिरी बार। शायद तुम ठीक कहते हो: यदि तुम वास्‍तव में जाना चाहते  थे तो यही एकमात्र उपाय था, क्‍योंकि मैं तुमको मेले में जाने की अनुमति नहीं देने बाला था। उस मेले में हर प्रकार की परिस्थितियां होती है: वेश्‍याएं हो वहां, नशीले पदार्थ वहाँ उपलब्‍ध है। वहां मादक औषधियां बिका करती हैं—और भारत मैं उस समय मादक द्रव्‍यों के बारे में कोई कानूनी रूकावट नही थी, प्रत्‍येक मादक द्रव्‍य आसानी से उपलब्‍ध था। और मेले में सभी प्रकार के साधु-महात्‍मा  एकत्रित होते थे। सभी हिंदू साधु महात्‍मा मादक द्रव्‍यों का प्रयोग करते है—इसलिए मैंने तुमको जाने की अनुमति नहीं दी होती। और यदि तुम वास्‍तव में जाना चाहते थे, तो शायद तुम्‍हारा न पूछना उचित था।‘
      मैंने उनसे कहा: ‘लेकिन मैं वेश्‍याओं की या साधु-महात्‍माओं की या मादक द्रव्‍यों की चिंता नहीं करता। आप मुझे जानते हे, यदि मुझे मादक द्रव्‍यों में रूचि होती तो इसी नगर में ही मेरे घर के बस बगल में ही एक दुकान थी जहां सारे मादक द्रव्‍य अपलब्ध थे। और वह आदमी तो मेरे प्रति इतना मैत्रीपूर्ण है। कि यदि मैं कोई मादक द्रव्य लेना चाहूं तो वह कोई पैसा भी नहीं लेगा, इसलिए यह मेरे लिए कोई समस्‍या...वेश्याएं नगर में ही उपलब्‍ध है। यदि मुझे उनका नृत्‍य देखने में रूचि होगी तो मैं वहां उनके पास जा सकता हूं। मुझे कौन रोक सकता है? नगर में साधु महात्‍मा लगातार आते रहते है। लेकिन मैं जादूगरों में उत्‍सुक था।’
      और जादू में मेरी रूचि चमत्‍कारों में रूचि से संबंधित है1 भारत में विभाजन से पहले मैंने गलियों में जादूगरों, गरीब जादूगरों द्वारा किए जाने बाले हर प्रकार के जादू को देखा है। पूरा खेल समाप्‍त होने के बाद शायद उन जादूगरों के पास कोई एक रूपया ही एकत्रित हो पाता था। मैं कैसे विश्‍वास कर लू कि वे जादूगर लोग मसीहा है? एक रूपये के लिए वे तीन घंटे तक करीब-करीब असंभव कार्य कर रहे थे। निस्संदेह प्रत्‍येक कार्य की एक युक्ति होती है लेकिन यदि तुम उस युक्ति को नहीं जानते हो तो यह चमत्‍कार है।
            तुमने बस सूना होगा—मैंने उनको एक रस्‍सी ऊपर उछालते हुए देखा है, और यह रस्‍सी स्‍वत: खंभे की तरह सीधी खड़ी हो जाती है। उनके साथ एक लड़का होता है, जिसे वे जमुना कहा करते है, प्रत्येक जादूगर के पास एक जमुना होता है। मैं नहीं जानता कि इसे अंग्रेजी में कैसे अनुवादित किया जाएं...बस ‘मेरा लड़का’ है इसका अभिप्राय। और वह जमूरे से बात करता है। ‘जमूरे, क्‍या तुम रस्‍सी पर चढ़ जाओगे?
      और वह कहेगा, हां उस्‍ताद  मैं चढ़ जाऊँगा। और लगातार चलने बाली इस बातचीत को जादू की इस युक्ति से कुछ संबंध होता है। इससे लोगों का मन बातचीत में अटका रहता है, और यह बातचीत अनेक ढंग से मजेदार होती है। मैंने उस लड़के को तनी हुई रस्‍सी पर और फिर वह आदमी नीचे से पुकारता है, ‘जमुरे’।
      और दूर ऊपर से आवाज आती है। ‘हां उस्‍ताद।‘
      और वह कहता है, ‘अब मैं तुम्‍हें टुकड़-टुकड़े करके नीचे लाऊंगा।’ फिर वह एक छुरा ऊपर की और फेंकता है और लड़के कर सर नीचे आता है। वह फिर से छुरा ऊपर की और फेंकता है और एक टाँग नीचे आ जाती है। टुकड़े-टुकड़े होकर लड़का नीचे आता है। और जादूगर उन टुकड़ों को एक साथ रखता चला जाता है। उनको एक चादर से ढक देता है और कहता है: ‘जमूरे, अब जाओ।’
      और जमूरा कहता है। हां, ‘उस्‍ताद’। जादूगर चादर हटा देता है और लड़का उठ कर खड़ा हो जाता है। वह रस्‍सी नीचे खींच लेता है। इसे लपेट लेता है, इसे अपने थैले में रख देता है और पैसा मांगता आरंभ कर देता है।
      और उसको अधिक से अधिक एक रूपया मिल पाएगा—क्‍योंकि उन दिनों भारत में चौंसठ पैसे एक रूपये के बराबर होते थे। और उसे कोई भी एक पैसे से अधिक नहीं देने वाला था। अधिक से अधिक दो पैसे कोई दे देता; और एक बहुत धनी व्‍यकित उसको चार पैसे दे देता है। यदि उसने अपने इस चमत्‍कार से एक रूपया एकत्रित कर लिया तो वह सौभाग्‍यशाली है।
      मैंने हर प्रकार के तमाशे देखे है, और जो लोग उनको कर रहे थे वे बस भिखारी थे।


--(ओशो )           ओशो के पिताश्री

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