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रविवार, 1 नवंबर 2009

संदेह

संदेह पैदा क्योंन होता है दुनिया में, संदेह पैदा होता है, झूठी श्रद्धा थोप देने के कारण। छोटा बच्चा है, तुम कहते हो मंदिर चलो। छोटा बच्चाट पुछता है किस लिए?
अभी मैं खेल रहा हूं, तुम कहते हो, मंदिर में और ज्या दा आनंद आएगा।
और छोटे बच्चेह को वह आनंद नहीं आता, तुम तो श्रद्धा सिखा रहे हो और बच्चाह सोचता है, ये कैसा आनंद, यहां बड़े-बड़े बैठे है उदास,
यहां दोड भी नहीं सकता, खेल भी नहीं सकता। नाच भी नहीं सकता, चीख पुकार नहीं कर सकता, यह कैसा आनंद। फिर बाप कहता है, झुको, यह भगवान की मूर्ति है। बच्चाा कहता है भगवान यह तो पत्थहर की मूर्ति को कपड़े पहना रखे है। झुको अभी, तुम छोटे हो अभी तुम्हा री बात समझ में नहीं आएगी। ध्या न रखना तुम सोचते हो तुम श्रद्धा पैदा कर रहे हो, वह बच्चा‍ सर तो झुका लेगा लेकिन जानता है, कि यह पत्थेर की मूर्ति है। उसे न केवल इस मूर्ति पर संदेह आ रहा है। अब तुम पर भी संदेह आ रहा है, तुम्हाेरी बुद्धि पर भी संदेह आ रहा है। अब वह सोचता है ये बाप भी कुछ मूढ़ मालूम होता है। कह नहीं सकता, कहेगा, जबत तुम बूढे हो जाओगे, मां-बाप पीछे परेशान होते है, वे कहते है कि क्यास मामला है।
बच्चेी हम पर श्रद्धा क्योंह नहीं रखते, तुम्हींा ने नष्टू करवा दी श्रद्धा। तुम ने ऐसी-ऐसी बातें बच्चेह पर थोपी, बच्चोम का सरल ह्रदय तो टुट गया। उसके पीछे संदेह पैदा हो गया, झूठी श्रद्धा कभी संदेह से मुक्तं होती ही नहीं। संदेह की जन्मेदात्री है। झूठी श्रद्धा के पीछे आता है संदेह, मुझे पहली दफा मंदिर ले जाया गया, और कहा की झुको, मैंने कहा, मुझे झुका दो, क्योंाकि मुझे झुकने जैसा कुछ नजर आ नहीं रहा।
पर मैं कहता हूं, मुझे अच्छे बड़े बूढे मिले, मुझे झुकाया नहीं गया। कहा, ठीक है जब तेरा मन करे तब झुकना,
उसके कारण अब भी मेरे मन मैं अब भी अपने बड़े-बूढ़ो के प्रति श्रद्धा है। ख्या ल रखना, किसी पर जबर्दस्ती़ थोपना मत, थोपने का प्रतिकार है संदेह। जिसका अपने मां-बाप पर भरोसा खो गया, उसका अस्तित्व़ पर भरोसा खो गया। श्रद्धा का बीज तुम्हामरी झूठे संदेह के नीचे सुख गया।
--एस धम्मो सनंतनो

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