अंधकार—संबंधी
पहली विधि
‘वर्षा
की अंधेरी राम
में उस अंधकार
में प्रवेश
करो,जो रूपों
का रूप है।’
अतीत में एक
बहुत पुराना
गुह्म विधा का
संप्रदाय था।
जिसके बारे
में शायद
तुमने न सुना
हो। यह
संप्रदाय ‘इसेनी’ नाम
से जाना जाता
था। जीसस की
शिक्षा-दीक्षा
उसी संप्रदाय
में हुई थी।
जीसस उस
संप्रदाय के
सदस्य थे।
इसेनी
संप्रदाय
संसार में
अकेला संप्रदाय
है जिसने
परमात्मा की
धारणा परम
अंधकार के रूप
में कि है।
कुरान कहती है
कि परमात्मा
प्रकाश है।
वेद कहते है
कि परमात्मा
प्रकाश है।
बाइबिल भी
कहती है की
परमात्मा
प्रकाश है।
पूरी दुनियां
में सिर्फ
इसेनी की परंपरा
कहती है कि
परमात्मा
घनघोर अंधकार
है। परमात्मा
सर्वथा
अंधकार है;
एक अनंत रात
जैसा है।
यह
धारणा बहुत
सुंदर है। आश्चर्यजनक
है, पर बहुत
सुंदर है। और
बहुत
अर्थपूर्ण भी
है। तुम्हें
इसका अर्थ
जरूर समझना
चाहिए। और तब
यह विधि बहुत
सहयोगी हो
जाएगी। क्योंकि
इस विधि का
प्रयोग इसेनी
साधक अंधकार में
प्रवेश करने
के लिए,
उसके साथ एक
होने के लिए
करते थे।
थोड़ा
इस पर विचार
करो कि क्यों परमात्मा
को सब जगह
प्रकाश की
भांति
चित्रित किया
गया है। इसलिए
नहीं क्योंकि
परमात्मा
प्रकाश है,
बल्कि इसलिए
क्योंकि
मनुष्य
अंधकार से
भयभीत है। यह
मानवीय भय है।
हम प्रकाश को
पसंद करते है
और अंधकार से
डरते है। इसलिए
हम अंधकार या
कालिमा के रूप
में ईश्वर की
धारणा नही बना
सकते। वह
मानवीय धारणा
है। हम ईश्वर
को प्रकाश की
भांति सोचते
है। क्योंकि
हम अंधकार से
भयभीत है।
हमारे ईश्वर
हमारे भय की
ही निर्मिति
है। हम ही उन्हें
आकार और रूप देते
है। और क्योंकि
आकार और रूप
हम देते है।
ये आकार और रूप
हमारे संबंध
में खबर देते
है। परमात्मा
के संबंध में
नहीं। वे
हमारी
निर्मिति है। हम
अंधकार से
भयभीत है;
इसलिए परमात्मा
प्रकाश है।
लेकिन ये
विधियां एक
भिन्न
संप्रदाय की
विधियां है।
इसेनी कहते है
कि ईश्वर अंधकार
है। और इस बात
में कुछ सार
है। पहली तो बात
की अंधकार
शाश्वत है।
प्रकाश आता है
जाता है।
अंधकार सदा
है। सुबह
सूर्य उगता
है। और प्रकाश
होता है।
अंधकार सदा
है। डूबता है
और अंधकार छा
जाता है।
अंधकार के लिए
कुछ उदय नहीं
होता है; अंधकार सदा
है। वह न कभी
उगता है और न
डूबता हे।
प्रकाश आता है
जाता है।
अंधकार बन
रहता है। और
प्रकाश का सदा
कोई स्त्रोत
है। अंधकार स्त्रोत
हीन है। और
जिसका कोई स्त्रोत
है वह शाश्वत
नहीं हो सकता
है। असीम और
शाश्वत तो
वही हो सकता
है। जिसका कोई
स्त्रोत न हो, जो
स्त्रोत हीन
हो। और प्रकाश
में थोड़ा
तनाव है। यही
कारण है कि
तुम प्रकाश
में कभी सो
नहीं सकते। वह
तनाव पैदा
करता है।
अंधकार
विश्राम है—समग्र
विश्राम।
लेकिन हम
अंधकार से
भयभीत क्यों
है। कारण यह
है कि प्रकाश
हमें जीवन
जैसा मालूम
पड़ता है। वह
जीवन है। और
अंधकार मृत्यु
जैसा प्रतीत
होता है; वह
मृत्यु है।
जीवन प्रकाश
से आता हे। और
जब तुम मरते
हो तो ऐसा
लगता है कि
तुम शाश्वत
अंधकार में
गिर रहे हो।
यही कारण है
हम मृत्यु को
काले रंग से
चित्रित करते
है। और काला रंग
शोक का रंग बन
गया है। ईश्वर
प्रकाश है ओर
मृत्यु
अंधकार है।
लेकिन
ये हमारे भय
है—प्रक्षेपित और
आरोपित भय।
वस्तुत:
अंधकार असीम
है; प्रकाश
सीमित है।
अंधकार गर्भ
जैसा है। जिसमें
सब चीजें जन्म
लेती है और
जिसमें फिर
विलीन हो जाती
है।
यह
इसेनियों का
दृष्टिकोण
बहुत सुंदर
है। और बहुत
सहयोगी भी। क्योंकि
अगर तुम
अंधकार को
प्रेम कर सको
तो तुम मृत्यु
से निर्भय हो
जाओगे। अगर
तुम अंधकार में
प्रवेश कर सको—और
यह प्रवेश तभी
हो सकता है जब
भय न हो—तो तुम
समग्र
विश्राम को
उपलब्ध हो
जाओगे। अगर
तुम अंधकार के
साथ एक हो सको
तो तुम खो
जाओगे। विलीन
हो जाओगे। सही
समर्पण है। अब
कोई भय न रहा।
क्योंकि जब
तुम अंधकार के
साथ एक हो गए
तो तुम मृत्यु
के साथ एक हो
गए। अंग तुम्हारी
मृत्यु नहीं
हो सकती। तुम
अब अमृत हो
गए। अंधकार अमृत
है। प्रकाश
जन्मता है और
मर जाता है।
अंधकार बस है।
वह अमृत है।
इस
विधियों के
संबंध में
पहली बात यह
स्मरण रखना
चाहिए कि तुम्हारे
मन में अंधकार
के प्रति,
कालिमा के
प्रति कोई भय
न रहे। अन्यथा
तुम यह प्रयोग
नहीं कर
सकोगे। पहले
भय को छोड़ना
होगा। तो
आरंभिक चरण के
रूप में एक
काम यह करो; अंधकार में
बैठ जाओ, रोशनी
बुझा दो और
अंधकार को
अनुभव करो।
उसके प्रति
प्रेमपूर्ण
दृष्टि रखो; अंधकार को
तुम्हें
छूने दो। उसे
देखो। अंधेरे
कमरे में या
अंधेरी रात
में अपनी आंखे
खोलों और
अंधकार को
अनुभव करो।
उसके
साथ संवाद
करो, उससे
मैत्री बांधों।
यदि
तुम भयभीत हो
गए तो ये
विधियां तुम्हारे
लिए किसी काम
की नहीं है।
तब तुम इनका
प्रयोग नहीं
कर सकोगे।
पहले अंधकार के
साथ घनिष्ठ
मैत्री की जरूरत
है। कभी रात
में, जब सब लोग
सोने के लिए
चले जाये,तुम
अंधकार के साथ
रहो। कुछ मत
करो,बस
उसके साथ रहो।
और उसके साथ
मात्र रहना ही
तुम्हें
उससे प्रति
गहन भाव से भर
देगा। कारण यह
है कि अंधकार
बहुत विश्राम
दायी है।
सिर्फ भय के
कारण तुम्हें
अंधकार के इस
पहलू से
परिचित नहीं
हुए। अगर रात
में तुम नींद
न आए तो तुम
तुरंत बत्ती
जला लोगे और
कुछ करने या
पढ़ने लगोगे।
लेकिन तुम
अंधकार के साथ
नहीं रह सकते।
अंधकार के साथ
रहो। और अगर
तुम उसके साथ
रह सके तो
तुम्हारा
उसके साथ एक
नया संपर्क
बनेगा,
तुम्हें
उसमें एक नया
द्वार
मिलेगा।
मनुष्य
ने अपने को
अंधकार के
प्रति बिलकुल
बंद कर लिया
है। उसके कारण
थे ऐतिहासिक
कारण थे। पुराने
जमाने में
मनुष्य
जंगलों और
गुफाओं में
रहा करता था।
वहां रातें
बहुत खतरनाक
होती थी। दिन
में तो वह
सुरक्षित
अनुभव करता
था। चारो और
देख सकता था।
दिन में वह
अपने को जंगली
जानवरों के
हमने से बचा
सकता था। कम से
कम उनसे भाग
तो सकता था।
लेकिन रात में
चारों तरफ
अँधेरा होता
था। और वह
बहुत असहाय हो
जाता था। इससे
ही वह अंधकार
से भयभीत हो
गया।
और
यह भय उसके
अचेतन में
गहरा समा गया
है। हम अब भी
भयभीत है। तुम्हारा
अचेतन तुम्हारा
अपना अचेतन
नहीं है; वह
सामूहिक है, वंशानुगत
है। वह तुम्हें
विरासत में
मिला है। वह
भय वहां है और
उस भय के कारण
तुम अंधेरे के
साथ संवाद
नहीं कर सकते
हो।
एक
और बात इस भय
के कारण ही
मनुष्य ने
अग्नि को
पूजना शुरू कर
दिया। जब आग
खोजी गई तो आग
देवता बन गई।
ऐसा नहीं कि
आग को पूजना शुरू
किया। ऐसा
नहीं है कि आग
देवता है। पर
अंधेरे के डर
के कारण वह
देवता बन गई। तो जब आग
का आविष्कार
हुआ तो वह
देवता बन गई।
वह उस समय
सबसे
सुरक्षित और
विश्वास
तुल्य बन गई।
पारसी लोग आज
भी अग्नि की
पूजा करते है।
रात के कारण
आग आदमी की
मित्र और
सुरक्षा बन गई—दैवी
सुरक्षा बन
गई।
यह
भय आज भी बना
हुआ है। भले
ही तुम्हें
उसका बोध न हो;
क्योंकि
उसके प्रति
बोधपूर्ण
होने की स्थितियाँ
नहीं है।
लेकिन किसी भी
रात रोशनी
बुझा दो और अंधकार
में बैठो। और
वह आदिम भय आज
भी तुम्हें
घेर लेगा।
तुम्हें
अपने घर में
लगेगा कि
चारों और
जंगली जानवर
खड़े है। कोई
आवाज होगी और
तुम्हें
जंगली जानवरों
का भय पकड़
लेगा। प्रयोग
कर सकते हो यह
अद्भुत है। तब
तुम ऐसे
प्रगाढ़
विश्राम में
प्रवेश करोगे
जिसका अनुभव
तुम्हें कभी
न हुआ होगा।
लेकिन
पहले अपने
अचेतन भयो को उघाड़ो
तथा अंधकार को
जीना और प्रेम
करना सिखों।
वह बहुत
आनंददायी है।
एक बार तुम
इसे जान लेते
हो और
इसके संपर्क
में होते हो
तो तुम एक
बहुत गहन
जागतिक घटना
के संपर्क में
आ जाते हो।
जब
भी तुम्हें
अंधेरे में
होने का मौका
मिले तो जागे
रहने का ख्याल
रखो। क्योंकि
तुम दो काम कर
सकते हो: या तो
तुम रोशनी जला
लोगे या नींद
में चल जाओगे।
ये दोनों
अंधकार से
बचने की
तरकीबें है।
अगर तुम सो
जाते हो तो भय
चला जाता है।
क्योंकि तुम
चेतन नहीं
रहे। या अगर
तुम चेतन रहे
तो तुम रोशनी
जला लोगे। न
रोशनी जलाओ और
न नींद में
उतरो। अंधकार
के साथ रहो।
बहुत
से भय पकड़ेगे
उन्हें
अनुभव करो।
उनके प्रति
सजग होओ। उन्हें
अपने चेतन में
ले आओ। वह
अपने आप ही आएँगे।
और वह जब आएं
तो उनके
साक्षी भर
रहो। वे भय विदा
हो जाएंगे। और
शीध्र ही वह
दिन आएगा जब
तुम अंधेरे
में पूरे
समर्पण के साथ
रहोगे। और
तुम्हें कोई
डर नहीं
घेरेगा। तब
तुम सहजता से
अंधकार के साथ
रह सकते हो।
और तब एक
सुंदर घटना
घटती है। और
तभी तुम
इसेनियों के
इस वक्तव्य
को समझ सकोगे।
परमात्मा
अंधकार है।
परम अंधकार
है।
‘वर्षा
की अंधेरी रात
में उस अंधकार
में प्रवेश
करो, जो
रूपों का रूप
है।’
शिव
कहते है कि यह
विधि वर्षा की
रात में करने योग्य
है। जब सब कुछ
अंधकार में
डूबा हो। जब
काले बादलों
में तारे भी
नहीं दिखाई
देते हो।
अंधेरी रात
में जब चाँद न
हो ‘उस अंधकार
में प्रवेश
करो, जो
रूपों का रूप
है।’ उस
अंधकार के साक्षी
बनों। और फिर
उसमे विलीन हो
जाओ। वह सब रूपों
का रूप है।
तुम रूप हो; तुम उसमे
विलीन हो सकते
हो।
जब
प्रकाश होता
है तो तुम
परिभाषित हो
जाते हो,
सीमित हो जाते
हो। मैं तुम्हें
देख सकता हूं।
क्योंकि
प्रकाश है।
तुम्हारे
शरीर की
सीमाएं है।
तुम्हारी
सीमाएं बन
जाती है। तुम्हारी
हदे निर्मित
हो जाती है।
तुम्हारी
सीमाएं
प्रकाश के
कारण है। जब
प्रकाश नहीं
होता तो
सीमाएं खो
जाती है।
अंधकार में
कहीं कोई सीमा
नहीं है। हर
चीज दूसरी चीज
में समा जाती
है। रूप
विसर्जित हो
जाता है।
वह
भी हमारे भा
का एक कारण हो
सकता है। क्योंकि
तब तुम्हारी
परिभाषा नही
रहती है। और
तुम नहीं
जानते हो कि
तुम कौन हो।
तब तुम्हारा
चेहरा नहीं
देखा जा सकता,
तुम्हारा
शरीर नहीं
देखा जा सकता
है। सब कुछ
रूप ही अस्तित्व
में घुल मिल
जाता है। वह
भय का एक कारण
हो सकता है।
क्योंकि
तुम्हें तुम्हारे
सीमित अस्तित्व
का अहसास नहीं
रहता। अस्तित्व
धुंधला-धुंधला
हो जाता है।
और भय तुम्हें
पकड़ लेता है।
क्योंकि अब
तुम नहीं
जानते कि तुम
कौन हो। तब अहंकार
नहीं रह सकता।
सीमा के बिना
अहंकार का होना
कठिन है। आदमी
भय अनुभव करता
है। वह प्रकाश
चाहता है।
धारण
और ध्यान
करते हुए
प्रकाश की
बजाएं अंधकार
में विलीन
होना आसान है।
प्रकाश तोड़ता
है। पृथकता
पैदा करता है।
अंधकार सभी
पृथकता और
फर्क मिटा
देता है।
प्रकाश में
तुम सुंदर हो
या कुरूप हो।
अमीर हो या
गरीब हो।
प्रकाश तुम्हें
व्यक्तित्व
देता है।
विशिष्टता
देता है।
शिक्षित हो,
अशिक्षित हो, पुण्य आत्मा
हो या पापी
हो। प्रकाश तुम्हें
पृथक व्यक्ति
की तरह प्रकट
करता है।
अंधकार तुम्हें
अपने में समेट
लेता है। तुम्हें
स्वीकार कर
लेता है। वह
तुम्हें
पृथक व्यक्ति
की तरह नहीं
लेता है। वह
तुम्हें
बिना किसी
परिभाषा के स्वीकार
कर लेता है।
तुम उसमें डूब
जाते हो। तुम
उसमें एक हो
जाते हो।
अंधकार
में सदा ही
ऐसा होता है।
लेकिन भयभीत
होने के कारण
तुम नहीं समझ
पाते हो। अपने
भय को अलग करो
और उससे एक हो
जाओ।
‘उस
अंधकार में
प्रवेश करो, जो रूपों का
रूप है। उस
अंधकार में
प्रवेश करो।’
तुम
अंधकार में
कैसे प्रवेश
कर सकते हो।
ती बात है। एक
अंधकार को
देखो। यह कठिन
है। किसी ज्योति
को, किसी रोशनी
के स्त्रोत
को देखना आसान
है; क्योंकि
वह एक आब्जेक्ट्स
की भांति
सामने है और
तुम उसे देख
सकते हो। अंधकार
कोई आब्जेक्ट्स
नहीं है। वह
सब जगह है,
चारों और है।
तुम उसे एक आब्जेक्ट्स
की तरह नहीं
देख सकते हो।
शून्य में
देखो,
खालीपन में
झांको। वह सब
और है। तुम बस
देखा। शिथिल
होकर विश्राम
पूर्व देखते
रहो। वह तुम्हारी
आंखों में
प्रवेश करने
लगेगा। और जब
अंधकार तुम्हारी
आंखों में
प्रवेश करता है
तो तुम भी
उसमें प्रवेश
करते हो।
अंधेरी
रात में इस
विधि का
प्रयोग करते
हुए अपनी
आंखें खुली
रखो। आंखों को
बंद मत करो।
बंद आंखों से
तुम एक अलग
तरह के अंधकार
में होते हो।
वह तुम्हारा
निजी अंधकार
है। तुम्हारे
मन का अंधकार
है। वह यथार्थ
नहीं है। सच तो
यह है कि बंद
आंखों का
अंधकार
नकारात्मक
हे; वह विधायक
अंधकार नहीं
है।
यहां
प्रकाश है;
और तुम अपनी
आंखें बंद कर
लेते हो। तब
तुम्हें जो
अंधकार दिखाई
देता है वह
सिर्फ प्रकाश का
नकारात्मक
रूप है। वह
सच्चा
अंधकार नहीं
है। जैसे कि तुम
खिड़की को
देखते हो ओर
फिर आंखें बंद
कर लेते हो। तो
तुम्हारी
आंखों में
खिड़की की
नकारात्मक
आकृति तैरती
रहती है।
हमारे सभी
अनुभव प्रकाश
के है। इसलिए
हम जब आँख बंद
करते हे तो
हमें प्रकाश
का नकारात्मक
अनुभव होता
है। जिसे हम
अंधकार कहते
है वह असली
अंधकार नहीं
है। उससे काम
नहीं चलेगा।
अपनी
आंखें खुली
रखो और अंधकार
में खुली आंखों
से देखते रहे।
तब तुम्हें
एक अगर ही
किस्म का
अंधकार
मिलेगा—विधायक
अंधकार। वह
सचमुच है।
उसमें टकटकी
लगाओ । अंधकार
को घूरते रहो।
तुम्हारे
आंसू बहने
लगेंगे। तुम्हारी
आंखें दूखने
लगेगी। इसकी चिंता
मत करना। प्रयोग
को जारी रखो।
जिस क्षण
अंधकार असली
अंधकार तुम्हारी
आंखों में
प्रवेश करेगा, वह तुम्हें
एक सुखद भाव
से भर देगा।
मानों कड़ी
घूप में चलने
वाली राही को
घनी छाया मिल
गई हो। और विधायक
अंधकार का
प्रवेश तुम्हारे
भीतर से सभी
नकारात्मक
अंधकार को हटा
देगा। यह बहुत
अद्भुत अनुभव
है।
असली
अंधकार से
इसेनियों के
और शिव के
अंधकार से
हमारा संपर्क
खो गया है।
उसके साथ
हमारा कोई
संपर्क नहीं
है। हम उससे
इतने भयभीत है
कि हम उससे
बिलकुल ही विमुख
हो गए है।
हमने उसकी तरफ
अपनी पीठ कर
ली है।
तो
यह विधि
प्रयोग में
कठिन होगी। लेकिन
अगर तुम इसे
कर सको तो यह
अद्भुत है। तब
तुम्हारा
होना सर्वथा
भिन्न होगा;
तब तुम और ही
व्यक्ति
होगे।
जब
अंधकार
तुममें
प्रवेश करता
है तो तुम
उसमें प्रवेश
करते हो। यह
सदा पारस्परिक
है। दोनों तरफ
से है। तुम
किसी जागतिक
तत्व में
नहीं प्रवेश
कर सकते हो।
अगर वह तत्व
तुम्हारे
प्रवेश न करो।
तुम जबरदस्ती
नहीं कर सकते;
उसमें जबरदस्ती
प्रवेश नहीं
हो सकता है।
अगर तुम उपलब्ध
हो, खुले
हो वलनरेबल हो, अगर तुम
किसी जागतिक
तत्व को अपने
भीतर प्रवेश
देते हो,
तो ही तुम उस
तत्व में
प्रवेश कर
सकते हो। यह
सदा पारस्परिक
है,
साथ-साथ है।
तुम जबरदस्ती
नहीं कर सकते, तुम उसे
सिर्फ घटित
होने दे सकते
हो।
अभी
तो शहरों में
हमारे घरों
में असली
अंधकार का
मिलना कठिन हो
गया है। और
नकली प्रकाश
के साथ हमारा
सब कुछ नकली
हो गया है।
हमारा अंधकार
भी प्रदूषित
है; वह भी शुद्ध
नहीं है। तो
अच्छा है कि
सिर्फ अंधकार
के अनुभव के
लिए हम कहीं
दूर निकल
जाएं। तो किसी
गांव में चले
जाओ; जहां
अभी बिजली न
पहुंची हो। या
किसी पहली पर चले
जाओ और वहां
हफ्ते भर रहो।
ताकि शुद्ध
अंधकार का
अनुभव हो सके।
तुम वहां से
और ही आदमी होकर
लौटोगे।
पूर्ण
अंधकार में
बिताए उन साथ
दिनों में
तुम्हारे
सारे भय, सारे
आदिम भय उभर
कर ऊपर आ
जाएंगे।
भयानक जीव-जंतुओं
से तुम्हारा
सामना होगा।
तुम्हें
तुम्हारे
अचेतन का
साक्षात
होगा। ऐसा
लगेगा कि तुम
उस पूरे विकास
क्रम से गुजर
रहे हो। जिससे
पूरी मनुष्यता
गुजरी है।
अचेतन की
गहराई में दबी
बहुत चीजें
ऊपर आ जाएंगी।
और वे यथार्थ
मालूम
पड़ेगी। तुम
भयभीत हो सकते
हो। आतंकित हो
सकते हो। क्योंकि
वह चीजें
यथार्थ मालूम
पड़ेगी—और वे
तुम्हारी
मानसिक
निर्मितियां
भर है।
हमारे
पागल खानों
में अनेक पागल
बंद है जो
किसी और चीज
से नहीं, इसी आदिम
भय से पीडित
है। जो भय
उनके अचेतन से
उभरकर बाहर आ
गया है। यह भय
वहां मौजूद है, और
विक्षिप्त
लोग उससे ही
हमेशा भयभीत
है, आतंकित
है। और हम अभी
तक नहीं मालूम
है कि इन आदिम भयो
से मुक्त
कैसे हुआ जाए।
यदि इन पागलों
को अंधकार पर
ध्यान करने के
लिए राज़ी किया
जा सके तो
उनका पागल पन
विदा हो
जाएगा।
सिर्फ
जापन में इस
दिशा में इस
कुछ प्रयास
किया है। वे
अपने पागल
लोगों के साथ
बिलकुल भिन्न
व्यवहार
करते है। यदि
कोई व्यक्ति
पागल हो जाता
है विक्षिप्त
हो जाता है,
तो जापन में
वे उसे उसकी
जरूरत के
मुताबिक तीन
या छह हफ्तों
के लिए एकांत
में रख देते
है। वे उसे
सिर्फ एकांत
में रहने के
लिए छोड़ देते
है। उसकी अन्य
जरूरतें पूरी
करते रहते है।
वे उसे समय पर
भोजन देते है।
लेकि एक काम
किया जाता है, राम में
रोशनी नहीं
जलाई जाती।
उसे अंधेरे में
अकेले रहना
पड़ता है।
निश्चित ही
उसे बहुत
पीड़ा से
गुजरना होता
है। अनेक अवस्थाओं
से गुजरना
पड़ता है।
उसकी सब देख
की जाती है, लेकिन उसे
किसी तरह का
साथ-संग नहीं
दिया जाता।
उसे अपनी विक्षिप्तता
का साक्षात्कार
सीधे और प्रत्यक्ष
रूप से करना
पड़ता है। और
तीन से छह सप्ताह
के अंदर उसका
पागलपन दूर
होने लगता है।
दरअसल
कुछ नहीं किया
गया, उसे सिर्फ
एकांत में रखा
गया है। बस
इतना ही किया
गया। पश्चिम
के मनोचिकित्सक
चकित है। उन्हें
यह बात समझ
में नहीं आती
कि यह कैसे हो
सकता है। वे
खुद वर्षों
मेहनत करते
है। वे मनोविश्लेषण
करते है,
उपचार करते है।
वे सब कुछ
करते है।
लेकिन वे रोगी
को कभी अकेला
नहीं छोड़ते।
वे उसे कभी स्वयं
ही अपने
आंतरिक अचेतन
का साक्षात्कार
करने का मौका
नहीं देते। क्योंकि
तुम उसे जितना
ही सहारा देते
हो, वह
उतना ही
बेसहारा हो
जाता है। वह
उतना ही तुम
पर निर्भर हो
जाता है। और
उतना ही तुम
पर निर्भर हो
जाता है। और
असली सवाल आंतरिक
साक्षात्कार
का है। स्वयं
को देखने का
है। सच में
कोई भी कुछ
सहारा नहीं दे
सकता हे। तो
जो जानते है
वे तुम्हें
अपना
साक्षात्कार
करने को छोड़
देंगे। तुम्हें
अपने अचेतन को
भर आँख देखना
होगा।
और
अंधकार पर
किया
जानेवाला ध्यान
तुम्हारे
सारे पागलपन
को पी जायेगा।
इस प्रयोग को करो।
तुम अपने घर
में भी इस
प्रयोग को कर
सकते हो। रोज
रात को एक
घंटा अंधकार
के साथ रहो।
कुछ मत करो;
सिर्फ अंधकार
में टकटकी
लगाओ, उसे
देखो। तुम्हें
पिघलने जैसा
अनुभव होगा।
तुम्हें
एहसास होगा कि
कोई चीज तुम्हारे
भीतर प्रवेश
कर रही हे। और
तुम किसी चीज में
प्रवेश कर रहे
हो। तीन महीने
तक रोज रात एक
घंटा अंधकार
के साथ रहने
पर तुम्हारे
वैयक्तिकता
के, पृथकता
के सब भाव
विदा हो
जायेगे। तब
तुम द्वीप
नहीं रहोगे,तुम सागर हो
जाओगे। तुम
अंधकार के साथ
एक हो जाओगे।
और
यह अंधकार
इतना विराट है,
कुछ भी उतना
विराट और शाश्वत
नहीं है। और
कुछ भी उतना
निकट नहीं है।
और तुम इस
अंधकार से
जितने भयभीत
हो त्रस्त हो
उतने भयभीत और
त्रस्त किसी
अन्य चीज से
नहीं हो। और
यह तुम्हारे
पास ही है,
सदा तुम्हारी
प्रतीक्षा
में है।
‘वर्षा
की अंधेरी रात
में उस अंधकार
में प्रवेश
करो, जो
रूपों का रूप
है।’
उसे
इस तरह देखो
कि वह तुममें
प्रविष्ट हो
जाए।
दूसरी
बात: लेट जाओ
और भाव करो कि
तुम अपनी मां के
पास हो।
अंधकार मां है—सब
की मां। थोड़ा
विचार करो कि
जब कुछ भी
नहीं था तो क्या
था? तुम अंधकार
के अतिरिक्त
ओर किसी चीज
की कल्पना
नहीं कर सकते
हो। और यदि सब
कुछ विलीन हो
जाए तो क्या
रहेगा?
अंधकार
रहेगा।
अंधकार माता
है, गर्भ
है।
तो
लेट जाओ और
भाव करो कि
मैं अपनी मां
के गर्भ में
पडा हूं। और
वह सच में
वैसा अनुभव
होगा। वह उष्ण
मालूम पड़ेगा।
और देर अबेर
तुम महसूस
करोगे कि अंधकार
का गर्भ मुझे
सब तरफ से
घेरे है। और
मैं उसमे हूं।
और
तीसरी बात:
चलते हुए,
काम करते हुए, भोजन करते
हुए, कुछ
भी करते हुए
अपने साथ
अंधकार का एक
हिस्सा साथ
लिए चलो। जो
अंधकार
तुममें
प्रवेश कर गया
है उसे साथ लिए
चलो। जैसे हम
ज्योति को
साथ लिए चलने
की बात करते
थे। वैसे ही अंधकार
को साथ लिए
चलो। और जैसे
मैंने तुम्हें
बताया कि अगर
तुम अपने साथ
ज्योति को
लिए चलो और
भाव करो कि
मैं प्रकाश
हूं तो तुम्हारा
शरीर एक
अद्भुत
प्रकाश
विकीरित
करेगा और
संवेदनशील
लोग उसे अनुभव
भी करेंगे।
ठीक वही बात
अंधकार के इस
प्रयोग के साथ
भी घटित होगी।
अगर
तुम अपने साथ
अंधकार को लिए
चलो तो तुम्हारा
सारा शरीर
इतना
विश्रांत हो
जाएगा, इतना
शांत और शीतल
हो जाएगा कि
वह दूसरों को
भी अनुभव होने
लगेगा। और जैसे
साथ में
प्रकाश साथ
लिए चलने पर
कुछ लोग तुम्हारे
प्रति
आकर्षित
होंगे वैसे ही
साथ में
अंधकार लिए
चलने पर कुछ
लोग तुमसे विकर्षित
होंगे, दूर
भागेगे। वे
तुमसे भयभीत
और त्रस्त
होंगे। वे ऐसा
उपस्थिति को
झेल नहीं
पाएंगे। यह उनके
लिए असह्य
होगा।
अगर
तुम अपने साथ
अंधकार लिए
चलोगे तो
अंधकार से
भयभीत लोग
तुमसे बचने की
कोशिश करेंगे,
वे तुम्हारे
पास नहीं आएँगे।
और प्रत्येक
आदमी अंधकार
से डरा हुआ
है। तब तुम्हें
लगेगा कि
मित्र मुझे
छोड़ रहे है।
जब तुम अपने
घर आओगे तो
तुम्हारा
परिवार
परेशान होगा।
क्योंकि तुम
तो शीतलता के
पुंज की तरह प्रवेश
करोगे। और लोग
अशांत ओर
क्षुब्ध है।
उनके लिए तुम्हारी
आंखों मे
देखना कठिन
होगा; तुम्हारी
आंखें घाटी की
तरह गहन खाई
की तरह होंगी।
अगर कोई व्यक्ति
तुम्हारी
आंखों मे
झांकेगा तो
वहां उसे ऐसी
अतल खाई
दिखेगी कि
उसका सर
चकराने
लगेगा।
दिन
भर अपने साथ अंधकार
चलना तुम्हारे
लिए बहुत उपयोगी
होगा। क्योंकि
जब तुम रात में
अंधकार पर ध्यान
करोगे तो जो आंतरिक
अंधकार तुम अपने
साथ दिन भर लिए
चले रहे थे वह तुम्हें
बाहरी अंधकार से
जुड़ने में सहयोग
देगा। आंतरिक बाह्म
से मिलने के लिए
उभर आयेगा।
और
सिर्फ इसके स्मरण
से—कि मैं अंधकार
लिए चल रहा हूं
कि मैं अंधकार
से भरा हूं कि मेरे
शरीर की एक-एक कोशिका
अंधकार से भरी
है। तुम बहुत विश्राम
अनुभव करोगे।
इसे प्रयोग करो; तुम्हारे
भीतर सब कुछ शांत
और विश्रामपूर्ण
हो जाएगा। तब तुम
दौड़ नहीं सकोगे।
तुम बस चलोगे र
वह चलना भी धीमे-धीमे
होगा। तुम धीरे-धीरे
चलोगे—जैसे की
कोई गर्भवती स्त्री
चलती है। तुम धीरे-धीरे
चलोगे और बहुत
सजगता से चलोगे।
तुम अपने साथ
कुछ लिए चल रहे
हो।
और
जब तुम अपने साथ
ज्योति लेकर चलोगे
तो उलटी बात घटित
होगी। तब तुम्हारा
चलना तेज हो जाएगा।
बल्कि तुम दौड़ना
चाहोगे। तुम्हारी
गतिविधि बढ़ जायेगी।
तुम ज्यादा सक्रिय
होगे। अंधकार को
साथ लिए हुए तुम
विश्राम अनुभव
करोगे और दूसरे
लोग समझेंगे कि
तुम आलसी हो गये
हो।
जिन
दिनों मैं विश्वविद्यालय
में था, दो वर्षों
तक मैंने इस विधि
का प्रयोग किया।
और मैं इतना आलसी
हो गया कि सुबह
बिस्तर से उठना
भी मुश्किल था।
मेरे प्राध्यापक
इससे बहुत चिंतित
थे और उन्हें
लगाता था कि मेरे
साथ कुछ गड़बड़
हो गई है। वे सोचते
थे कि या तो मैं
बीमार हूं या बिलकुल
उदासीन हो गया
हूं। एक प्राध्यापक
तो, जो विभागीय
अध्यक्ष थे और
मुझे बहुत प्रेम
करते थे इतने चिंतित
थे कि परीक्षा
के दिनों में वे
खूद मुझे सुबह
होस्टल से लेकर
परीक्षा कक्ष पहुंचा
आते थे। ताकि में
वहां समय पर पहुंचूं।
यह उनका रोज का
काम था कि वे मुझे
परीक्षा कक्ष में
दाखिल करके चैन
लेते थे और घर चले
जाते थे।
तो
इस प्रयोग में
लाओ। अपने भीतर
अंधकार लिए चलना, अंधकार
ही हो जाना, जीवन के सुंदरतम
अनुभवों मे एक
है। चलते हुए, बैठे हुए, भोजन करते हुए, कुछ भी करते हुए
स्मरण रखो कि
मैं अंधकार हूं।
कि मैं अंधकार
से भरा हूं। और
फिर देखो कि चीजें
किस तरह बदलती
है। तब तुम उत्तेजित
नही हो सकते, बहुत सक्रिय
नही हो सकते, तनावग्रस्त
नही हो सकते। तब
तुम्हारी नींद
इतनी गहरी हो
जाएगी कि सपने
विदा हो जाएंगे।
और पूरे दिन तुम
मदहोश जैसे रहोगे।
सूफियों
ने, उनके एक संप्रदाय
ने इस विधि का प्रयोग
किया है। और वे
मस्त सूफियों
के नाम से जाने
जाते है। वे इसी
अंधकार के नशे
में चूर रहते थे।
वे जमीन में गड़े
खोदकर उसमें पड़े-पड़े
ध्यान करते थे।
अंधकार पर ध्यान
करते है। और अंधकार
के साथ एक हो जाते
है। उनकी आंखें
तुम्हें कहेगी
कि वी पीए हुए है।
नशे में है। तुम्हें
उनकी आंखों में
ऐसे प्रगाढ़ विश्राम
का एहसास होगा
जो तभी घटित होता
है जब तुम गहरे
नशे में होते
हो। या जब तुम्हें
नींद आती हे। तभी
तुम्हारी आंखों
में वैसी अभिव्यक्ति
होती है। वे मस्त
सूफियों के नाम
से प्रसिद्ध है।
और उनका नशा अंधकार
का नशा है।
ओशो
विज्ञान
भैरव तंत्र,
भाग-चार
प्रवचन-51
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