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बुधवार, 4 जुलाई 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—40 (ओशो)

  ध्‍वनि-संबंधी चौथी विधि:
          ‘’किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागों।‘’
     कभी-कभी गुरूओं ने इस विधि का खूब उपयोग किया है। और उनके अपने नए-नए ढंग है। उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी झेन गुरु के झोंपड़े पर जाओ तो वह अचानक एक चीख मारेगा और उससे तुम चौंक उठोगे। लेकिन अगर तुम खोजोंगे तो तुम्‍हें पता चलेगा कि वह तुम्‍हें महज जगाने के लिए ऐसा कर रहा है। कोई भी आकस्मिक बात जगाती है। वह आकस्‍मिकता तुम्‍हारी नींद तोड़ देती है।

      सामान्‍य: हम सोए रहते है। जब तक कुछ गड़बड़ी न हो, हम नींद से नहीं जागते। नींद में ही हम चलते है; नींद में ही हम काम करते है। यही कारण है कि हमे अपने सोए होने का पता नहीं चलता। तुम दफ्तर जाते हो, तुम गाड़ी चलाते हो। तुम लौटकर घर आते हो और अपने बच्‍चों को दुलार करते हो। तुम अपनी पत्‍नी से बातचीत करते हो। यह सब करने से तुम सोचते हो कि मैं बिलकुल जागा हुआ हूं। तुम सोचते हो कि मैं सोया-सोया ये काम कैसे कर सकता हूं।
      लेकिन क्‍या तुम जानते हो कि ऐसे लोग है जो नींद में चलते है? क्‍या तुम्‍हें नींद में चलने वालों के बारे में कछ खबर है।
      नींद में चलने वालों की आंखें खुली होती है। और वे सोए रहते है। और उसी हालत में वे अनेक काम कर गुजरते है। लेकिन दूसरी सुबह उन्‍हें याद भी  नहीं रहता कि नींद में मैंने क्‍या-क्‍या किया। वे यहां तक कर सकते है कि दूसरे दिन थाने चले जाएं और रपट दर्ज कराए कि कोई व्‍यक्‍ति रात उनके घर आया था और उपद्रव कर रहा था। और बाद में पता चलता है कि यह सारा उपद्रव उन्‍होंने ही किया था। वे ही रात में सोए-सोए उठ आते है। चलते-फिरते है, काम कर गुजरते है; फिर जाकर बिस्‍तर में सो जाते है। अगली सुबह उन्‍हें बिलकुल याद नहीं रहता कि क्‍या-क्‍या हुआ। वे नींद में दरवाजे तक खोल लेते है, चाबी से ताले तक खोलते है; वे अनेक काम कर गुजरते है। उनकी आंखें खुली रहती है। और वे नींद में होते है।
      किसी गहरे अर्थ में हम सब नींद में चलने वाले है। तुम अपने दफ्तर जा सकते हो। तुम लौट कर आ सकते हो, तुम अनेक काम कर सकते हो। तुम वही-वही बात दोहराते रह सकते हो। तुम अपनी पत्‍नी को कहोगे कि मैं तुम्‍हें प्रेम करता हूं; और इस कहने में कुछ मतलब नहीं होगा। शब्‍द मात्र यांत्रिक होंगे। तुम्‍हें इसका बोध भी नहीं रहेगा। कि तुम अपनी पत्‍नी से कहते हो कि मैं तुम्‍हें प्रेम करता हूं। जाग्रत पुरूष के लिए ये सारा जगत नींद में चलने वालों का जगत है।
      यह नींद टूट सकती है। उसके लिए कुछ विधियों का प्रयोग करना होगा।
      यह विधि कहती है: ‘’किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागों।‘’
      किसी ध्‍वनि, किसी अक्षर के साथ प्रयोग करो। उदाहरण के लिए, ओम के साथ ही प्रयोग करो। उसके आरंभ में ही जागों, जब तुमने ध्‍वनि निर्मित नहीं की। या जब ध्‍वनि निर्ध्‍वनि में प्रवेश करे, तब जागों। ये कैसे करोगे?
      किसी मंदिर में चले जाओ। वहां घंटा होगा या घंटी होगी। घंटे को हाथ में ले लो और रुको। पहले पूरी तरह से सजग हो जाओ। ध्‍वनि होने वाली है और तुम्‍हें उसका आरंभ नहीं चूकना है। पहले तो समग्ररूपेण सजग हो जाओ—मानो इस पर ही तुम्‍हारी जिंदगी निर्भर है। ऐसा समझो कि अभी कोई तुम्‍हारी हत्‍या करने जा रहा है। और तुम्‍हें सावधान रहना है। ऐसी सावधान रहो—मानों कि यह तुम्‍हारी मृत्‍यु बनने वाली है।
      और यदि तुम्‍हारे मन में कोई विचार चल रहा हो तो अभी रुको; क्‍योंकि विचार नींद है। विचार के रहे तुम सजग नहीं हो सकते। और जब तुम सजग होते हो तो विचार नहीं रहता है। रुको। जब लगे कि अब मन निर्विचार हो गया, कि अब मन में कोई विचार नहीं है। सब बादल छंट गये है। तब ध्‍वनि के साथ गति करो।
      पहले जब ध्‍वनि नहीं है। तब उस पर ध्‍यान दो। और फिर आंखें बंद कर लो। और जब ध्‍वनि हो, घंटा बजे, तब ध्‍वनि के साथ गति करो। ध्‍वनि धीमी से धीमी, सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म होती जायेगी और फिर खो जाएगी। इस ध्‍वनि के साथ यात्रा करो। सजग और सावधान रहो। ध्‍वनि के साथ उसके अंत तक यात्रा करो। उसके दोनों छोरों को, आरंभ और अंत को देखो।
      पहले किसी बाहरी ध्‍वनि के साथ, घंटा या घंटी के साथ प्रयोग करो। फिर आँख बंद करके भीतर किसी अक्षर का, ओम या किसी अन्‍या अक्षर का उच्‍चार करो। उसके साथ वही प्रयोग करो। यह कठिन होगा। इसीलिए हम पहले बाहर की ध्‍वनि के साथ प्रयोग करते है। जब बाहर करने में सक्षम हो जाओगे तो भीतर करना भी आसान होगा। तब भीतर करो। उस क्षण को प्रतीक्षा करो जब मन खाली हो जाए। और फिर भीतर ध्‍वनि निर्मित करो। उसे अनुभव करो, उसके साथ गति करो, जब तक वह बिलकुल न खो जाए।
      इस प्रयोग को करने में समय लगेगा। कुछ महीने लग जाएंगे कम से कम तीन महीने। तीन महीनों में तुम बहुत ज्‍यादा सजग हो जाओगे। अधिकाधिक जागरूक हो जाओगे। ध्‍वनि पूर्व अवस्‍थ और ध्‍वनि के बाद की अवस्‍था का निरीक्षण करना है। कुछ भी नहीं चूकना है। और जब तुम इतने सजग हो जाओ कि ध्‍वनि के आदि और अंत को देख सको तो इस प्रक्रिया के द्वारा तुम बिलकुल भिन्न व्‍यक्‍ति हो जाओगे।
      कभी-कभी यह अविश्‍वसनीय सा लगता है कि ऐसी सरल विधियों से रूपांतरण कैसे हो सकता है। आदमी इतना अशांत है। दुःखी और संतप्‍त है। और ये विधियां इतनी सरल मालूम देती है। ये विधियां धोखाधड़ी जैसी लगती है। अगर तुम कृष्‍ण मूर्ति के पास जाओ और उनसे कहो कि यह एक विधि है तो कहेंगे कि यह एक मानसिक धोखाधड़ी है। इसके धोखे में मत पड़ो। इसे भूल जाओ। इसे छोड़ो। देखने पर तो वह ऐसी ही लगती है। धोखे जैसी लगती है। ऐसी सरल विधियों से तुम रूपांतरित कैसे हो सकते हो।
      लेकिन तुम्‍हें पता नहीं है। वे सरल नहीं है। तुम जब उनका प्रयोग करोगे तब पता चलेगा कि वे कितनी कठिन है। मुझसे उनके बारे में सुनकर तुम्‍हें लगता है कि वे सरल है। अगर मैं तुमसे कहूं कि यह जहर है और उसकी एक बूंद से तुम मर जाओगे। और अगर तुम जहर के बारे में कुछ नहीं जानते हो कि तुम कहोगे; ‘’आप भी क्‍या बात करते है? बस, एक बूंद और मेरे सरीखा स्‍वस्‍थ और शक्‍तिशाली आदमी मर जाएगा। अगर तुम्‍हें जहर के संबंध में कुछ नहीं  पता है तो ही तुम ऐसा कह सकते हो। यदि तुम्‍हें कुछ पता है तो नहीं कह सकते।
      यह बहुत सरल मालूम पड़ता है: किसी ध्‍वनि का उच्‍चार करो और फिर उसके आरंभ और अंत के प्रति बोधपूर्ण हो जाओ। लेकिन यह बोधपूर्ण होना बहुत कठिन बात है। जब तुम प्रयोग करोगे तब पता चलेगा। कि यह बच्‍चों का खेल नहीं है। तुम बोधपूर्ण नहीं हो। जब तुम इस विधि को प्रयोग करोगे तो पहली बार तुम्‍हें पता चलेगा कि मैं आजीवन सोया-सोया रहा हूं अभी तो तुम समझते हो कि मैं जागा हुआ हूं, सजग हूं।
      इसका प्रयोग करो, किसी भी छोटी चीज के साथ प्रयोग करो। अपने को कहो कि में लगातार दस श्‍वासों के प्रति सजग रहूंगा, बोधपूर्ण रहूंगा। और फिर श्‍वासों की गिनती करो। सिर्फ दस श्‍वासों की बात है। अपने को कहो कि मैं सजग रहूंगा और एक से दस तक गिनुंगा आती श्‍वासों को, जाती श्‍वासों को, दस श्‍वासों को सजग रहकर गिनुंगा।
      तुम चूक-चूक जाओगे। दो या तीन श्‍वासों के बाद तुम्‍हारा अवधान और कहीं चला जाएगा। तब तुम्‍हें अचानक होश आएगा कि मैं चूक गया हूं, मैं श्‍वासों को गिनना भूल गया। या अगर गिन भी लोगे तो दस तक गिनने के बाद पता चलेगा कि मैंने बेहोशी में गिनी, मैं जागरूक नहीं रहा।
      सजगता अत्‍यंत कठिन बात है। ऐसा मत सोचो कि ये उपाय सरल है विधि जो भी हो। सजगता साधनी है। उसे बोध पूर्वक करना है। बाकी चीजें सिर्फ सहयोगी है। और तुम अपनी विधियां स्‍वयं भी निर्मित कर सकते हो। लेकिन एक चीज सदा याद रखने जैसी है कि सजगता बनी रहे। नींद में तुम कुछ भी कर सकते हो; उसमे कोई समस्‍या नहीं है। समस्‍या तो तब खड़ी होती है जब यह शर्त लगायी जाती है कि इसे होश से करो, बोध पूर्वक करो।

(इस ध्‍यान को अति सुंदर और विकसित कर ओशो ने कुंडलिनी ध्‍यान बनाया है। उसमें दो चरण ओशो ने और जोड़ दिये, पहले तो उर्जा को जगाओं, और फिर नृत्‍य कर उर्जा का प्रफुलित कर के फैलने दो, केवल आनंदित उर्जा का एक पुंज आपको घेरे रहे। तब तुम अति ऊर्जा से लबरेज हो, फिर सुनो संगीत को....ओर वह भी छम-छम अविरल बहते संगीत को आदि से अंत से अनेक......वाद्य की ध्‍वनियों के साथ ‘’स्‍वामी दूतर’’ द्वारा तैयार किया संगीत)
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग2
प्रवचन27

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