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शनिवार, 14 जुलाई 2012

मिस्‍टर एकहार्ट-रहस्‍य सूत्र—(057)

मिस्‍टर एकहार्ट के रहस्‍य सूत्र—(ओशो की प्रिय पुस्तकें)

एक हार्ट बहुत करीब था। एक कदम और, और संसार का अंत आ जाता—उस पार का लोक खुल जात।
     एक हार्ट जर्मन का सबसे रहस्यपूर्ण और ग़लतफ़हमियों से घिरा रहस्‍यदर्शी है। एक सदी पहले तक जर्मन रोमांटिक आंदोलन के द्वारा मिस्‍टर एकहार्ट को, ‘’एक अर्ध रहस्‍यवादी चरित्र’’  समझा जाता था। न तो उसके जन्‍म की तारीख मालूम थी, न स्‍थान। जर्मनी में किसी कब्र पर उसका नाम दिवस खुदा नहीं था। कुछ छुटपुट तथ्‍यों की जानकारी थी—मसलन वह परेसा में पढ़ा, सन 1402 में डाक्‍टर ऑफ थियॉलॉजी की उपाधि प्राप्‍त की, जर्मनी के स्‍टैसवर्ग शहर में वह उपदेशक था। 1322 में कालोन के एक विद्यापीठ में उसे ससम्‍मान आमंत्रित किया गया। और पीठाधीश बनाया गया। तब तमक एकहार्ट अपने रहस्‍यवाद से ओतप्रोत प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध हो चुका था। कालोन के आर्चबिशप को रहस्यवाद से चिढ़ थी। उसे उसमें बगावत की बू नजर आती थी। 1326 में उसने एकहार्ट पर मुकदमा दायर किया। उस पर इलजाम था, वह सामान्‍य जनों में खतरनाक सिद्धांत फैल रहा है।
एकहार्ट जैसे प्रतिष्‍ठित शिक्षक के खिलाफ लगाया गया यह आरोप अभूतपूर्व था। एकहार्ट ने जवाब दिया कि वह सिर्फ पेरिस विश्वविद्यालय या पोप को जवाब देगा। मुकदमा लंबे समय तक चला। न्यायाधीश बदलते रहे। आखिर स्‍वयं पोप ने धर्म शास्‍त्रियों की समिति नियुक्‍त की। हर नयी समिति एकहार्ट के प्रवचनों के कुछ अंश निकालकर उन्‍हें बगावती, गैर धार्मिक करार देती रही। हर आरोप का खंडन एकहार्ट खुद करता रहा। यह सिलसिला जारी ही था कि इस बीच एकहार्ट की मृत्‍यु हो गई। उसके मरने के एक साल बाद भी पोप ने उसके प्रवचनों के कुछ अंश अलग किए और उन्‍हें खतरनाक और बगावती करार किया।
      ईसाई चर्च की साजिश की वजह से सन् 1900 तक एकहार्ट के वचनों को अंधेरे में छुपाया गया। जब उसकी खोजबीन शुरू हुई तब एकहार्ट के लेखन की भाषा पुरानी हो चुकी थी। लेकिन उसके शब्‍दों से उठती हुई सत्‍य की, निजी अनुभव सुगंध आज भी उतनी ही ताजा थी। एक सदी पहले तक उसके कुछ ही प्रवचन उपलब्‍ध थे। अन्‍य सब लेखन गायब थे।

ओशो का नजरिया--
      आज मेरी सूची में दूसरा नाम है: एकहार्ट, काश वह पूरब में पैदा होता। जर्मन लोगों में पैदा होकर परम तत्‍व के बारे में बात करना थोड़ा मुश्‍किल काम है। लेकिन इस बेचारे ने यह काम किया, और बहुत अच्‍छे तरह  किया। जर्मन आखिर जर्मन है। वे कुछ भी करें, परिपूर्णता से करते है।
      एकहार्ट गैर पढ़ा लिखा था। आश्‍चर्य की बास है, रहस्यदर्शीयों में से कई लोग पढ़े लिखे नहीं थे। लगता है शिक्षा में कोई गलती है, शिक्षित रहस्यदर्शीयों की संख्‍या इतनी कम क्‍यों है? निश्‍चित ही,  शिक्षा कुछ नष्‍ट कर रही है। इसलिए लोग रहस्‍यदर्शी नहीं हो पा रहे। हां,  शिक्षा पच्‍चीस साल बरबाद कर देती है—किंडरगार्टन से लेकिर विश्‍वविद्यालय  के पोस्‍ट ग्रैजुएट तक तुम्‍हारे भीतर जो भी सुंदर है, उसे नष्‍ट करती चली जाती है। विद्वता के नीचे कमल का फूल कुचल दिया जाता है। तथाकथित प्राध्‍यापक, शिक्षक, उप कुलपति आदमी के भीतर के गुलाब को मसल देते है। उन्‍होंने खुद के लिए कैसे-कैसे खुबसूरत नाम चुने है।
      वास्‍तविक शिक्षा अभी शुरू नहीं हुई है। शुरू होनी है। वह ह्रदय की शिक्षा होगी। दिमाग की नहीं—तुम्‍हारे भीतर जो स्‍त्रैण तत्‍व है उसकी, पुरूष तत्‍व की नहीं।
      हैरानी की बात है कि एकहार्ट जर्मनी के बीच पैदा होकर—जो कि सर्वाधिक दंभ से भरी जाति है। अपने ह्रदय में बना रहा। और वही से बोलता रहा.....।
      एकहार्ट ने थोड़ी सी बात कहीं, लेकिन वह उस समय के कुरूप धर्म गुरूओं को झूंझलाने के लिए काफी थी। पोप, और अन्‍य सारे शैतान जो धर्मोंपदेशकों के इर्दगिर्द होते है उन्‍होंने एकहार्ट पर पाबंदी लगा दी। वे एकहार्ट को सिखाने लगे कि क्‍या कहना है। और क्‍या नहीं कहना है। लेकिन इकहार्ट सरल आदमी था उसने अधिकारियों की बात मान ली। वह तो मेरे जैसा पागल आदमी होता है जो इन मूर्खों की बात नहीं मानता।
      ....इकहार्ट बहुत करीब था। एक कदम और, और संसार का अंत आ जाता। उस पार का लोक खुल जाता। लेकिन पोप के सारे दबाव के बावजूद उसने खूबसूरत बातें कही। उसके वक्‍तव्‍यों में सत्‍य का अंश प्रवेश कर गया। इसलिए मैं (मेरे मनपसंद लेखकों में) उसे शामिल करता हूं।
ओशो
बुक्‍स आई हेव लव्‍ड






   

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