तंत्र, अध्यात्म और काम-ओशो
(तांत्रिक-प्रेम विधियों के संबंध में छ: प्रवचनों का संकलन)
(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)इस पुस्तक से:
योग होशपूर्वक दमन है तंत्र होशपूर्वक भोग है।
तंत्र कहता है कि तुम जो भी हो परम-तत्व उसके विपरीत नहीं है। यह विकास है तुम उस परम तक विकसित हो सकते हो। तुम्हारे और सत्य के बीच कोई विरोध नहीं है। तुम उसके अंश हो इसलिए प्रकृति के साथ संघर्ष की, तनाव की, विरोध की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें प्रकृति का उपयोग करना है; तुम जो भी हो उसका
उपयोग करना है ताकि तुम उसके पार जा सको।
योग में पार जाने के लिए तुम्हें स्वयं से संघर्ष करना पड़ता है। योग में संसार और मोक्ष तुम जैसे हो और जो तुम हो सकते हो दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं। दमन करो, उसे मिटाओ जो तुम हो: ताकि तुम वह हो सको जो तुम हो सकते हो। योग में पार जाना मृत्यु है। अपने वास्तविक स्वरूप के जन्म के लिए तुम्हें मरना होगा।
तंत्र की दृष्टि में, योग एक गहरा आत्मघात है। तुम्हें अपने प्राकृतिक रूप अपने शरीर अपनी वृत्तियों अपनी इच्छाओं को- सब कुछ को मार देना होगा नष्ट कर देना होगा। तंत्र कहता है ''तुम जैसे हो, उसे वैसे ही स्वीकार करो।'' तंत्र गहरी से गहरी स्वीकृति है। अपने और सत्य के बीच संसार और निर्वाण के बीच कोई अंतराल मत
बनाओ। तंत्र के लिए कोई अंतराल नहीं है मृत्यु जरूरी नहीं है। तुम्हारे पुनर्जन्म के लिए किसी मृत्यु की जरूरत नहीं है बल्कि अतिक्रमण की आवश्यकता है। इस अतिक्रमण के लिए स्वयं का उपयोग करना है।
उदाहरण के लिए- काम है सेक्स है। वह बुनियादी ऊर्जा है जिसके माध्यम से तुम पैदा हुए हो। तुम्हारे अस्तित्व के तुम्हारे शरीर के बुनियादी कोश काम के हैं। यही कारण है कि मनुष्य का मन काम के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है। योग में इस ऊर्जा से लड़ना अनिवार्य है। वहां लड़कर ही तुम अपने भीतर एक भिन्न केंद्र को निर्मित
करते हो। जितना तुम लड़ते हो उतना ही तुम उस भिन्न केंद्र से जुड़ते जाते हो। तब काम तुम्हारा केंद्र नहीं रह जाता। काम से संघर्ष- निश्चित ही होशपूर्वक- तुम्हारे भीतर अस्तित्व का एक नया केंद्र निर्मित कर देता है। तब काम तुम्हारी ऊर्जा नहीं रह जाएगा। काम से लड़कर तुम अपनी ही ऊर्जा निर्मित कर लोगे एक अलग प्रकार की ही ऊर्जा, एक अलग प्रकार का अस्तित्व-केंद्र पैदा होगा।
ओशो
Tantra Spiituality and Sex yeh pustak kaha se milegi sir plz reply
जवाब देंहटाएंसारे धर्म मेरे (प्रवचन-तीसरा) पढना चाहता हूँ|
जवाब देंहटाएंओशो का हर शब्द आत्म जागृति का अनुपम माध्यम है,,,युगों में ऐसा बिरला विचारवान दृष्टा अवतरित होता है🕉