अध्याय-35
मां के अवशेष
आज मैं दिन भर खूब
सोता रहा,
परंतु पापा जी का काम तो आज अधिक बढ़ गया था। उन्हें तो वरूण भैया
को जाकर स्कूल से भी लाना और दुकान के लिए दूध भी लाना होता था। परंतु पापाजी
मेहनत से कभी नहीं डरते थे। रात को जब पापा जी दुकान से आये तो आज शनिवार था और कल
बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी। इसलिए आज वह रात का ध्यान भी नहीं कर सकते थे।
आज दिन का ध्यान मैंने खराब कर दिया और अब रात के ध्यान को बच्चे नहीं करने
देंगे क्योंकि वह कहानी सुनाने की जिद्द जरूर ही करेंगे। इतने बड़े हो गये है फिर
भी कहानी बच्चों की तरह से सुनने की जिद्द करते थे। सच पापा जी कहानी बहुत मजेदार
सुनाते थे। मैं भी उस संगत का आनंद लेता था। पापा जी शब्दों के साथ जो भाव और
उत्तेजना भरते थे उस सब को केवल लेटा-लेटा पीता रहता था। सब के बीच अपना अधिकार
समझ अपनी जगह बना लेता था। एक बात और है अगर अपने कहानी का आनंद लेना है तो आपको
उसमें डुबना ही होगा। तब आपको पानी के बहार अपनी गर्दन नहीं निकालनी अपनी बुद्धि को
एक तरफ ताक पर रखना होगा। एक सरलता एक सहजता ही आपको उसमें डुबो सकती थी। तब आपको
एक बच्चा बनना ही होगा।
पापा जी शब्द बोलते थे, वो तो कम ही मेरी समझ में आते थे, परंतु वो संगत बहुत ही सुंदर होती थी। छत पर बिखरी बिलौरी चांद की चांदनी, दूर कही कभी किसी पक्षी की आवाज शांति को और गहरा कर देती थी। बच्चों के मन में एक टीस थी कि आज पोनी और पापा अकेले जंगल में गए थे। पापा जी की तो कोई बात नहीं परंतु पोनी ये तो हमसे बाजी मार ले गया। हमें तो इसे स्कूल जाने का गर्व दिखाते थे, कि हम कुछ है।

















