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मंगलवार, 29 जून 2010
चमत्कार वैज्ञानिक चित का आभाव—3
यह हो सकता है, जीसस ने किसी के हाथ पर हाथ रखा हो और आँख ठीक हो गयी हो, लेकिन फिर भी चमत्कार नहीं है। क्योंकि पूरी बात अब पता चल गयी है। अब पता चल गयी है कि कुछ अंधे तो सिर्फ मानसिक रूप से अंधे होते है। वे अंधे होते है ही नहीं सिर्फ मेंटल बलांइडनेस होती है। उनको सिर्फ ख्याल होता है अंधे होने का और यह ख्याल इतना मजबूत हो जाता है कि आँख काम करना बंद कर देती है। अगर कोई आदमी उनको भरोसा दिला दे तो उनकी आंखे ठीक हो सकती है। तो उनका मन तत्काल वापस लौट आयेगा और आँख ठीक हो गयी, तो वह तत्काल उनका मन वापस लौट आयेगा और आँख के तल पर काम करना शुरू कर देगा।
सोमवार, 28 जून 2010
सोने की मछली —(कथा यात्रा-001)
सोने की मच्छली- (एस धम्मों सनंतनो)
बात उस समय की है, जब भगवान बुद्ध श्रावस्ती में विहरते थे। श्रावस्ती नगर के पास केवट गांव के कुछ मल्लाहों ने अचरवती नदी में जाल फेंककर कर एक स्वर्ण-वर्ण की अद्भुत मछली को पकड़ा। कहानी कहती है अचरवती नदी.....जो चिर नहीं है......अचिर यानि क्षणभंगुर है।
बात उस समय की है, जब भगवान बुद्ध श्रावस्ती में विहरते थे। श्रावस्ती नगर के पास केवट गांव के कुछ मल्लाहों ने अचरवती नदी में जाल फेंककर कर एक स्वर्ण-वर्ण की अद्भुत मछली को पकड़ा। कहानी कहती है अचरवती नदी.....जो चिर नहीं है......अचिर यानि क्षणभंगुर है।
ऐसा ही तो जीवन है, प्रत्येक प्राणी क्षण-क्षण बदलते प्रवाह के संग-साथ जाता है और पकडना चाहता है। जाल फेंक कर बैठे है, अचरवती के किनारे, कोई पद का, यश का, धन का, नाम का......की मछली को पकड़-पकड़ को कहां पकड़ पाता है। कास हम समझ जाते ये जीवन क्षण भंगुर है।
सोने की मछली तो मल्लाहों ने पकड़ ली, जिसका शरीर तो सोने का था, परन्तु उसके मुख से भयंकर दुर्गंध आ रही थी।
शुक्रवार, 25 जून 2010
चमत्कार वैज्ञानिक चित का अभाव है—2
एक हजार साल गुलाम रहे थे, और यहां ऐसे चमत्कारी पड़े है कि जिसका कोई हिसाब नहीं, गुलामी की जंजीरें नहीं कटतीं। ऐसा लगता है कि अंग्रेज के सामने चतत्कार नहीं चलता। चमत्कार होने के लिए हिंदुस्तानी होना जरूरी है। क्योंकि अगर खोपड़ी में थोड़ी भी विचार चलता हो, तो चमत्कार के कटने का डर रहता है। तो जहां विचार है, बिलकुल न चला पाओगे चमत्कार को। सब से बड़ा चमत्कार यह है कि लोग चमत्कार कर रहे है। सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि हम खुद भी होते हुए चमत्कार देख रहे हे। और घरों में बैठकर चर्चा कर रहे है। कि चमत्कार हो रहा है। और कोई इन चमत्कारियों की जाकर गर्दन नहीं पकड़ लेता कि जो खो गयी है घड़ी उसको बाहर निकलवा ले, कि क्या मामला है। क्या कर रहे हो? वह नहीं होता है।
चमत्कार वैज्ञानिक चित का अभाव— 1

बुधवार, 16 जून 2010
महेश भट्ट -विजय आंनद- का संन्यास-ओशो भाग-02
महेश भट्ट-विजय आंनद-का संन्यास-
मरौ हे जोगी मरौ-ओशो
....तो यह तो जब तुम दीक्षा लोगे यह घटना घटेगी। फिर जब तुम दीक्षा छोड़ोगे, इससे उल्टी घटना घटेगी। घटनी ही चाहिए, ठीक तर्क है; एक सरणी है उसकी। अब तुम्हें बोलना पड़ेगा मेरे खिलाफ। अब तुमने जो-जो संदेह दबा लिए थे, वे सब उभर कर ऊपर आ जायेंगे। और जो-जो श्रद्धा तुमने आरोपित कर ली थी, वह सब तिरोहित हो जायेगी। अब तुम्हारे सारे संदेह अतिशयोक्ति से प्रकट होंगे। करने ही पड़ेंगे। क्योंकि जिसे तुमने छोड़ा वह गलत होना चाहिए, जैसे तुमने जब पकड़ा था तो वह सही था।
मरौ हे जोगी मरौ-ओशो
....तो यह तो जब तुम दीक्षा लोगे यह घटना घटेगी। फिर जब तुम दीक्षा छोड़ोगे, इससे उल्टी घटना घटेगी। घटनी ही चाहिए, ठीक तर्क है; एक सरणी है उसकी। अब तुम्हें बोलना पड़ेगा मेरे खिलाफ। अब तुमने जो-जो संदेह दबा लिए थे, वे सब उभर कर ऊपर आ जायेंगे। और जो-जो श्रद्धा तुमने आरोपित कर ली थी, वह सब तिरोहित हो जायेगी। अब तुम्हारे सारे संदेह अतिशयोक्ति से प्रकट होंगे। करने ही पड़ेंगे। क्योंकि जिसे तुमने छोड़ा वह गलत होना चाहिए, जैसे तुमने जब पकड़ा था तो वह सही था।
तो विजया नंद पाँच साल मेरे पक्ष में बोलते रहे, अब पचास साल मेरे खिलाफ बोलना पड़ेगा। वे सब जो पाँच साल में दबाये हुए संदेह थे, सब उभरकर आयेंगे। और अब रक्षा करनी होगी, क्योंकि वे ही लोग जो कल कहते थे कि क्या तुम पागल हो गये हो संन्यास लेकर,अब कहेंगे कि हमने पहले ही कहा था कि तुम पागल हो गये हो। अब इनको जवाब देना होगा। तो अब बड़ी अड़चन खड़ी होगी। उस अड़चन से बचाव करना होगा। बचाव एक ही है कि हम भ्रांति में पड़ गये थे। या बचाव यह है कि कुछ-कुछ बातें ठीक थीं, उन्हीं बातों के कारण हम संन्यस्त हो गये थे। फिर जब संन्यस्त हुए तब धीरे-धीरे पता चला है कि कुछ-कछ बातें गलत है।
सोमवार, 14 जून 2010
महेश भट्ट -विजय आंनद- का संन्यास-ओशो भाग-01
महेश भट्ट-विजय आंनद-का संन्यास-
मरौ हे जोगी मरौ-ओशो
शिष्यों की चार कोटियां है। पहली कोटि—विद्यार्थी की है, जो कुतूहल वश आ जाता है। जिसके आने में न तो साधना की कोई दृष्टि है न कोई मुमुक्षा है, न परमात्मा को पाने की कोई प्यास है। चलें देखें, इतने लोग जाते है, शायद कुछ हो। तुम भी रास्ते पर भीड़ खड़ी देखो तो रूक जाते हो, पूछने लगते हो क्या मामला है? भीतर प्रवेश करना चाहते हो, भीड़ में। देखना चाहते हो कुछ हुआ होगा.....। नहीं कि तुम्हें कोई प्रयोजन है, अपने काम से जाते थे। आकस्मिक कुछ लोग आ जाते है। कोई आ रहा है। तुमने उसे आते देखा;उसने कहा: क्या करते हो बैठे-बैठ, आओ मेरे साथ चलो, सत्संग में ही बैठेंगे। खाली थे कुछ काम भी न था, चले आये। पत्नी आयी, पति साथ चला आया; पति आया, पत्नी साथ चली आई। बाप आया बेटा साथ चला आया।
मरौ हे जोगी मरौ-ओशो
शिष्यों की चार कोटियां है। पहली कोटि—विद्यार्थी की है, जो कुतूहल वश आ जाता है। जिसके आने में न तो साधना की कोई दृष्टि है न कोई मुमुक्षा है, न परमात्मा को पाने की कोई प्यास है। चलें देखें, इतने लोग जाते है, शायद कुछ हो। तुम भी रास्ते पर भीड़ खड़ी देखो तो रूक जाते हो, पूछने लगते हो क्या मामला है? भीतर प्रवेश करना चाहते हो, भीड़ में। देखना चाहते हो कुछ हुआ होगा.....। नहीं कि तुम्हें कोई प्रयोजन है, अपने काम से जाते थे। आकस्मिक कुछ लोग आ जाते है। कोई आ रहा है। तुमने उसे आते देखा;उसने कहा: क्या करते हो बैठे-बैठ, आओ मेरे साथ चलो, सत्संग में ही बैठेंगे। खाली थे कुछ काम भी न था, चले आये। पत्नी आयी, पति साथ चला आया; पति आया, पत्नी साथ चली आई। बाप आया बेटा साथ चला आया।
ऐसे बहुत से लोग आकस्मिक रूप से आ जाते है। उनकी स्थिति विद्यार्थी की है। वे कुछ सूचनाएं इकट्ठी कर लेंगे, सुनेंगे तो कुछ सूचनाएं इकट्ठी हो जायेगी। उनका ज्ञान थोड़ा बढ़ जायेगा। उनकी स्मृति थोड़ी सधन होगी। ऐसे आने वालों में से, सौ में से दस ही रूकेंगे; नब्बे तो छिटक जायेंगे। दस रूक जाते है यह भी चमत्कार है। क्योंकि वे आये न थे किसी सजग-सचेत प्रेरण के कारण—ऐसे ही मूर्छित -मूर्छित किसी के धक्के में चलें आये थे पानी में बहती हुई लकड़ी की तरह किनारे लग गये थे। किनारे की कोई तलाश नहीं थी।
शनिवार, 12 जून 2010
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म—7

सोमवार, 7 जून 2010
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म—6
जब बुद्ध को ज्ञान हुआ, तब बुद्ध ने दोनों हाथ जोड़कर पृथ्वी पर सिर टेक दिया। कथा है कि आकाश से देवता बुद्ध को नमस्कार करने आए थे कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध हुए है। बुद्ध को पृथ्वी पर हाथ टेके सिर रखे देखकर वे चकित हुए। उन्होने पूछा: तुम, और किसको नमस्कार कर रहे हो। क्योंकि हम तो तुम्हें नमस्कार करने स्वर्ग से आते है। हम तो नहीं जानते कि बुद्ध भी किसी को नमस्कार करे, ऐसा कोई है। बुद्धत्व तो आखिरी बात है। बुद्ध ने आंखें खोली और बुद्ध ने कहा, जो भी घटित हुआ है उसमें मैं अकेला नहीं हूं, सारा विश्व है। तो इस सबको धन्यवाद देने के लिए सिर टेक रहा था। यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से बंधी हुई बात है—सार जगत।
शनिवार, 5 जून 2010
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म—5
ज्योतिष से इसका कोई लेना देना नहीं है। और चुंकी ज्योतिष इस तरह की बात चीत में लगे रहते है। इसलिए ज्योतिष का भवन गिर गया। ज्योतिष के भवन के गिर जाने का कारण यही हुआ। कोई भी बुद्धिमान आदमी इस बात को मानने को राज़ी नहीं हो सकता है, कि मैं जिस दिन पैदा हुआ उस दिन लिखा था कि मरीन ड्राइव पर फलां-फलां दिन एक छिलके पर मेरा पैर पड़ जाएगा। और फिसल जाऊँगा। न तो मेरे फिसलने का चाँद तारों से प्रयोजन है, न उस छिलके का कोई प्रयोजन है। इन बातों से संबंधित होने के कारण ज्योतिष बदनाम हुआ। और हम सबकी उत्सुकता यहीं है। कि ऐसा पता चल जाए। इससे कोई संबंध नहीं है।
शुक्रवार, 4 जून 2010
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म—4

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