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शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

पतंजलि: योग--सूत्र-(भाग--01)-ओशो

पतंजलि : योग—सूत्र
(भाग—1)
ओशो
तंजलि अत्‍यंत विरल व्‍यक्‍ति है। वे प्रबुद्ध है बुद्ध, कृष्‍ण और जीसस की भांति, महावीर, मोहम्‍मद और जयथुस्‍त्र की भांति। लेकिन एक ढंग से अलग है। बुद्ध, महावीर, मोहम्‍मद,जरथुस्‍त्र—इसमें से किसी का दृष्‍टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। वे महान धर्म प्रवर्तक है, उन्‍होंने मानव मन और उसकी सरंचना को बिलकुल बदी दिया, लेकिन उनकी पहुंच वैज्ञानिक नहीं है।
पंतजलि बुद्ध—पुरूषों की दुनियां के आइंस्‍टीन है। वे अद्भुत है

वे सरलता से आइंस्टीन, बोर, मैक्स प्लांक या हेसनबर्ग की तरह नोबल पुरस्कार विजेता हो सकते थे। उनकी अभिवृत्ति और दृष्टि वही है जो किसी परिशुद्ध वैज्ञानिक मन की होती है। कृष्ण कवि हैं; पतंजलि कवि नहीं है। पतंजलि नैतिकवादी भी नहीं है, जैसे महावीर है। पतंजलि बुनियादी तौर पर एक वैज्ञानिक हैं, जो नियमों की भाषा में ही सोचते—विचारते है। उन्होंने मनुष्य के अंतस जगत के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्य और मानवीय मानस की चरम कार्य—प्रणाली के विस्तार का अन्वेषण और प्रतिपादन किया।
यदि तुम पतंजलि का अनुगमन करो तो तुम पाओगे कि वे गणित के फार्मूले जैसी ही सटीक बात कहते हैं। तुम वैसा करो जैसा वे कहते है और परिणाम निकलेगा ही; ठीक दो और दो चार की तरह शुनिश्रित। यह घटना उसी तरह निश्चित ढंग से घटेगी जैसे पानी को सौ डिग्री तक गर्म करें तो वाष्प बन उड़ जाता है। किसी विश्वास की कोई जरूरत नहीं है। बस, तुम उसे करो और जानो। यह कुछ ऐसा है जिसे करके ही जाना जा सकता है। इसलिए मैं कहता हूं कि पतंजलि बेजोड़ है। इस पृथ्वी पर पतंजलि जैसा दूसरा कोई नहीं हुआ। बुद्ध की वाणी में तुम्हें कविता मिल सकती है। वहां कविता होगी ही। अपने को अभिव्यक्त करते हुए बुद्ध बहुत बार काव्यमय हुए हैं। परम आनंद का, चरम ज्ञान का जो संसार है वह इतना सुंदर, इतना भव्य है कि काव्यात्मक हो जाने के मोह से बचना मुश्‍किल है। उस अवस्था की सुंदरता ऐसी, उसका मंगल आशीष ऐसा, उसका परम आनंद ऐसा कि उद्गार सहज ही काव्यमय भाषा में फूट पड़ते हैं।
लेकिन पतंजलि इस पर रोक लगाते हैं। हालांकि यह बहुत कठिन है। ऐसी अवस्था में आज तक कोई भी स्वयं को नहीं रोक सका। जीसस, कृष्ण, बुद्ध, सभी काव्यमय हो गये। जब उसकी अपार भव्यता और उसका परम सौंदर्य तुम्हारे भीतर फूटता है, तो तुम नाच उठोगे, गाने लगोगे। उस अवस्था में तुम उस प्रेमी की तरह हो जो सारी सृष्टि के ही प्रेम में पड गया है।
पतंजलि इस पर रोक लगा लेते हैं। वे कविता का प्रयोग नहीं करते। वे एक भी काव्यात्मक प्रतीक का उपयोग नहीं करते। कविता से उन्हें कोई सरोकार ही नहीं। वे सौंदर्य की भाषा में बात ही नहीं करते। वे गणित की भाषा में बात करते हैं। वे संक्षिप्त होंगे और तुम्हें कुछ सूत्र देंगे। वे सूत्र संकेत मात्र हैं कि क्या करना है। वे आनंदातिरेक में फूट नहीं पड़ते। वे ऐसा कुछ भी कहने का प्रयास नहीं करते, जिसे शब्दों में कहा न जा सके। वे असंभव के लिए प्रयत्न ही नहीं करते। वे तो बस नींव बना देंगे और यदि तुम उस नींव का आधार लेकर चल पड़े, तो उस शिखर पर पहुंच जाओगे जो अभी सबके परे है। वे बड़े कठोर गणितज्ञ हैं, यह बात ध्यान में रखना।
पतंजलि सबसे बड़े वैज्ञानिक है अंतर्जगत के। उनकी पहुंच एक वैज्ञानिक मन की है। वे कोई कवि नहीं है। और इस ढंग से वे बहुत विरले हे। क्‍योंकि जो लोग अंतर्जगत में प्रवेश करते है वे प्राय: कवि ही होते है सदा। जो बहिर्जगत में प्रवेश करते है, अक्‍सर हमेशा वैज्ञानिक होते है।
पतंजलि एक दुर्लभ पुष्‍प है। उनके पास वैज्ञानिक मस्‍तिष्‍क है, लेकिन उनकी यात्रा भीतरी है। इसलिए वे पहले और अंतिम वचन बन गए। वे ही आरम्‍भ है और वे ही अंत है। पाँच हजार साल में कोई उनसे ज्‍यादा उन्‍नत हुआ ही नहीं जा सकता। वे अंतिम वचन ही रहेंगे। क्‍योंकि वे जोड़ ही असम्‍भव है। वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण रखना और अंतरिक जगत में प्रवेश करना करीब—करीब असम्‍भव सम्‍भावना है। वे एक गणितज्ञ, एक तर्क शास्‍त्रज्ञ की भांति बात करते है। और वे है हेराक्‍लतु जैसे रहस्‍यदर्शी।
उनके एक—एक शब्‍द को समझने की कोशिश करो। यह कठिन होगा। क्‍योंकि उनकी शब्‍दावली तर्क की, विवेचन की है; पर उनका संकेत प्रेम की ओर, मस्‍ती की और, परमात्‍मा की और है। उनकी शब्‍दावली उन व्‍यक्‍ति की है, जो वैज्ञानिक प्रयोगशाला में काम करता है। लेकिन उनकी प्रयोगशाला आंतरिक अस्‍तित्‍व की है। अत: उनकी शब्‍दावली द्वारा भ्रमित न होओ और यह अनुभूति बनाये रखो कि वे परम काव्‍य के गणितज्ञ है। वे स्‍वयं एक विरोधाभास है। लेकिन वे विरोधाभासी भाषा हरगिज प्रयुक्‍त नहीं करते। कर नहीं सकते। वे बड़ी मजबूत तर्कसंगत पृष्‍ठभूमि बनाए रखते हे। वे विश्‍लेषण करते, विच्‍छेदन करते, पर उनका उद्देश्‍य संश्‍लेषण है। वे केवल संश्‍लेषण करने को ही विश्‍लेषण करते हे।
इसलिए पंतजलि ने पश्‍चिमी मन को बहुत ज्‍यादा प्रभावित किया है। पतंजलि सदैव एक प्रभाव बने रहे है। जहां कहीं उनका नाम पहुंचा है, वे प्रभाव बने रहे, क्‍योंकि तुम उन्‍हें आसानी से समझ सकते हो। लेकिन उन्‍हें समझना ही पर्याप्‍त नहीं है......।
वे बुद्धि से बातें करते है, पर उनका उद्देश्‍य, उनका लक्ष्‍य ह्रदय ही है। वे चाहते हैं कि तुम तर्क के द्वारा तर्क के पार चले जाओ।
ओशो
पतंजलि : योग—सूत्र

3 टिप्‍पणियां:

  1. सद्गुरु ओशो के अनुसार तो ऐसा लग रहा है जैसे योग गुरु बाबा रामदेव ने महर्षि पतंजलि को गलत तरीके से प्रस्तुत कर दिया बाबा रामदेव ने तो पतंजलि को मिटाने का ही काम कर दिया क्योंकि बाबा रामदेव की योग प्रणाली शरीर पर ही सारी समाप्त हो गई बाबा रामदेव ने ध्यान मन के बारे में कोई क्रांतिकारी बातें नहीं करी और ना ही महर्षि पतंजलि द्वारा कही गई बातों पर प्रकाश दिया

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  2. कुछ तो किया भाई। वैसे बात करते ह कबी कबी

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