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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

ओशो के प्रवचन पेंटिंग्‍स है—एम एफ हुसैन

हर कोई ओशो के प्रवचनों में से कुछ चून लेता है। मुझे उनमें एक पेंटिंग्‍स बनती नजर आती है। बिना किसी बुश और कैनवास के।
      कलाकार के लिए ओशो कहते है कि सारे तकनीक छोड़ दो और शुन्‍य चित दशा में कला का सृजन करो। इस बात से मैं सौ फीसदी सहमत हूं। इस स्‍थिति में ही कला में वह अनगढ़, शक्‍तिशाली तत्‍व आ सकेगा जो कि वास्‍तविक सृजन का स्‍त्रोत है।
      इस बात को मैंने तब महसूस किया जब ओशो के प्रवचनों को चित्रित करने के लिए में बंबई गया था। सूफियों पर उनके प्रवचन चल रहे थे। अब सूफियों की रूहानी मोहब्‍बत पर ओशो जैसा आदमी बोल रहा हो तो यह मौका तो मैं छोड़ने वाला नहीं था। म्यूज़िशियन के लाइव म्‍यूजिक को पेंटिंग्‍स में उतारने का मेरा सिलसिला शुरू हो चुका था।
सो सोचा कि सूफियों पर ओशो के प्रवचनों को भी पेंटिंग्‍स में जरूर उतारूंगा। ओशो की और से भी इजाज़त मिल गई। मुझे याद है कि जब ओशो  का प्रवचन शुरू हुआ तो दिमाग तो न जाने कहां काफूर हो गया। दिल को कभी लगे कि यह आवाज़ म्‍यूजिक है, कभी लगे कि कोई डांस कर रहा है। और कभी अहसास हो कि कोई पेंटिंग सजाई जा रही है। बस कैनवास पर क्‍या उतरता चला गया, मालूम नहीं। न कोई तकनीक, सिर्फ एक शून्‍य चित दशा। उस समय मैं अपने सृजन के स्‍त्रोत को रूबरू था।
      1977-78 में मैं फिर पूना आया और ओशो के प्रवचन सुने। जैसे हर कोई ओशो के प्रवचनों में से कुछ न कुछ चुन लेता है। मुझे उनमें हमेशा एक पेंटिंग बनती नजर आई। बिना किसी ब्रश और कैनवास के। उनके प्रवचन एक पेंटिंग है जिनमें हम जितनी बार उतरें उतनी बार नए रंग खिलते चले जाएंगे।
एम एफ हुसैन
विख्‍यात चित्रकार  

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