प्रश्न’-- आत्मा जब शरीर छोड़ देती है और दूसरा शरीर धारण नहीं करती है, उस बीच के समयातित अंतराल में जो घटित होता है उसका, तथा जहां वह विचरण करती है उस वातावरण के वर्णन की कोई संभावना हो सकती है? और इसके साथ जिस प्रसंग में आपने आत्मा का अपनी मर्जी से जन्म लेने की स्वतंत्रता का जिक्र किया है, तो क्या उसे जब चाहे शरीर छोड़ने अथवा न छोड़ने की भी स्वतंत्रता है?
ओशो—पहली तो बात शरीर छोड़ने के बाद और नया शरीर ग्रहण करने के पहले जो अंतराल का क्षण है, अंतराल का काल है, उसके संबंध में दो-तीन बातें समझें तो ही प्रश्न समझ में आ सकें।
एक तो कि उस क्षण जो भी अनुभव होते है वह स्वप्नवत है। ड्रीम लाइफ है। इसलिए जब होते है तब तो बिलकुल वास्तविक होते है, लेकि जब आप याद करते है तब सपने जैसे हो जाते है। स्वप्नवत इसलिए है वे अनुभव कि इंद्रियों का उपयोग नहीं होता। आपके यथार्थ का जो बोध है, यथार्थ की जो आपकी प्रतीति है, वह इंद्रियों के माध्यम से है, शरीर के माध्यम से नहीं।
अगर मैं देखता हूं कि आप दिखाई पड़ते है, और छूता हूं और छूने में नहीं आते। तो मैं कहता हूं कि फैंटम है। है नहीं आदमी। वह टेबल में छूता हूं, और छूने में नहीं आती। और मेरा हाथ उसके आर पार चला जाता है। तो मैं कहता हूं कि सब झूठ है। मैं किसी भ्रम में पड़ गया हूं, कोई हैलूसिनेशन है। आपके यथार्थ की कसौटी आपकी इंद्रियों के प्रमाण है। तो एक शरीर छोड़ने के गाद और दूसरा शरीर लेने के बीच इंद्रियाँ तो आपके पास नहीं होती। शरीर आपके पास नहीं होता। तो जो भी आपको प्रतीतियां होती है। वे बिलकुल स्वप्नवत है—जैसे आप स्वप्न देख रहे है।
जब आप स्वप्न देखते है तो स्वप्न बिलकुल ही यथार्थ मालूम होता है, स्वप्न में कभी संदेह नहीं होता। यह बहुत मजे की बात है। यथार्थ में कभी-कभी संदेह हो जाता है। स्वप्न में कभी संदेह नहीं होता। स्वप्न बहुत श्रद्धावान है। यथार्थ में कभी-कभी ऐसा होता है। जो दिखाई पड़ता है, वह सच में है या नहीं। लेकिन स्वप्न में ऐसा कभी नहीं होता कि जो दिखाई पड़ रहा है वह सच में है या नहीं। क्यों? क्योंकि स्वप्न इतने से संदेह को सह न पाएगा, वह टूट जाएगा, बिखर जाएगा।
स्वप्न इतनी नाजुम घटना है कि इतना सा संदेह भी मौत के लिए काफी है। इतना ही ख्याल आ गया कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं है। कि स्वप्न टूट गया। या आप समझिए कि आप जाग गए। तो स्वप्न के होने के लिए अनिवार्य है कि संदेह तो कण भर भी न हो। कण भर संदेह भी बड़े से बड़े प्रगाढ़ स्वप्न को छिन-भिन्न कर सकता है। तिरोहित कर देगा।
तो स्वप्न को कभी पता नहीं चलता कि जो हो रहा है, वह हो रहा है। बिलकुल हो रहा है। इसका यह भी मतलब हुआ कि स्वप्न जब होता है तब यथार्थ से ज्यादा यथार्थ मालूम पड़ता है। यथार्थ कभी इतना यथार्थ नहीं मालूम पड़ता। क्योंकि यथार्थ में संदेह की सुविधा है। स्वप्न तो अति यथार्थ होता है। इतना अति यथार्थ होता है कि स्वप्न के दो यथार्थ में विरोध भी हो, तो विरोध दिखाई नहीं पड़ता।
एक आदमी चला आ रहा है, अचानक कुत्ता हो जाता है, और आपने मन में यह भी ख्याल नहीं आता कि यह कैसे हो सकता है। यह आदमी था, कुत्ता कैसे हो गया। नहीं, यह ख्याल नहीं आ सकता, संदेह जरा भी नहीं। संदेह उठा नहीं की स्वप्न खत्म। जागने के बाद आप सोच सकते है कि यह क्या गड़बड़ झाला है। लेकिन स्वप्न में कभी नहीं सोच सकते। स्वप्न में यह बिलकुल ही रीज़नेबल है, इसमें कहीं कोई असंगति नहीं है। बिलकुल ठीक है। एक आदमी अभी मित्र और एकदम से वहीं आदमी बंदूक तान कर खड़ा हो गया। तो आपके मन में कहीं ऐसा सपने में नहीं आता है कि अरे, मित्र होकर और बंदूक तान रहे हो।
स्वप्न में असंगति होती ही नहीं, स्वप्न में सब असंगत भी संगत है। क्योंकि जरा सा शक, कि स्वप्न बिखर जाएगा। लेकिन जागने के बाद, सब खो जायेगा। कभी ख्याल न किया होगा कि जाग कर ज्यादा से ज्यादा घंटे भर के बीच सपना याद किया जा सकता है। इससे ज्यादा नहीं। आमतौर से तो पाँच-सात मिनट में खोने लगता है। लेकिन ज्यादा से ज्यादा, बहुत जो कल्पनाशील है वे भी एक घंटे से ज्यादा स्वप्न की स्मृति को नहीं रख सकते। नहीं तो आपके पास सपने की ही स्मृति इतनी हो जायेगी। कि आप जी नहीं सकेगें। घंटे भर के बाद जागने के भीतर स्वप्न तिरोहित हो जाते है। आपका मन स्वप्न के धुएँ से बिलकुल मुक्त हो जाता है।
ठीक ऐसे ही दो शरीरों के बीच का जो अंतराल का क्षण है, जब होता है तब तो भी होता है वह बिलकुल ही यथार्थ है—इतना यथार्थ, जितना हमारी आंखों और इंद्रियों से कभी हम नहीं जानते। इसलिए देवताओं के सुख का कोई अंत नहीं। क्योंकि अप्सराएं जैसी यथार्थ उन्हें होती है, इंद्रियों में स्त्रियां वैसी यथार्थ कभी नहीं होती। इसलिए प्रेतों के दुःख का अंत नहीं। क्योंकि जैसे दुःख उन टूटते है ऐसे दूःख आप पर कभी टूट नहीं सकते। तो नरक और स्वर्ग जो है वे बहुत प्रगाढ़ स्वप्न अवस्थाएं है—बहुत प्रगाढ़ तो जैसी आग नरक में जलती है, उतनी यथार्थ में कभी नहीं जला सकती। हालांकि बड़ी इनकंसिस्टेंट आग है।
कभी आपने देखा कि नरक की आग का जो-जो वर्णन है, उसमे यह बात है कि आग में जलाएं जाते है, लेकिन जलते नहीं। मगर यह इनकंसिस्टेंसी ख्याल में नहीं आती कि आग में जलाया जा रहा है, आग भयंकर है, तपन सही नहीं जाती और जल बिलकुल भी नहीं रहा हूं। मकर यह इनकंसिस्टेंसी बाद में ख्याल आ सकती हे। उस वक्त ख्याल नहीं आ सकती।
तो दो शरीरों के बीच का जो अंतराल है उसमें दो तरह की आत्माएं है। एक तो वे बहुत बुरी आत्माएं, जिनके लिए गर्भ मिलने में वक्त लगेगा। उनको में प्रेत कहता हूं। दूसरी वे भली आत्माएं जिन्हें गर्भ मिलने में देर लगेगी। उनके योग्य गर्भ चाहिए। उन्हें में देव आत्माएं कहता हूं। इन दोनों में बुनियादी कोई भेद नहीं है—व्यक्तित्व भेद है, चरित्र गत भेद है। चितगत भेद है। योनि में कोई भेद नहीं है। अनुभव दोनों के भिन्न है। बुरी आत्माएं बीच के इस अंतराल से दुखद अनुभव लेकिर लौटेंगी। और उनकी ही स्मृति का फल नरक है। जो-जो उस स्मृति को दे सके है लौट कर, उन्होंने ही नरक की स्थिति साफ करवाई। नरक बिलकुल ड्रीमलैंड है, कहीं है नहीं। लेकिन जो उससे आया है वह मान नहीं सकता। क्योंकि आप जो दिखा रहे हे, यह उसके सामने कुछ भी नहीं है। वह कहता है, आग बहुत ठंडी है, उसके मुकाबले जो मैंने देखी है, यहां जो घृणा और हिंसा है वह कुछ भी नहीं। जो मैं देख कर चला आ रहा हूं। वह जो स्वर्ग का अनुभव है, वह भी ऐसा ही अनुभव है। सुखद सपनों का और दुखद सपनों का भेद है। वह पूरा का पूरा ड्रीम पीरियड है।
अब यह तो बहुत तात्विक समझने की बात है कि वह बिलकुल ही स्वप्न है। हम समझ सकते है, क्योंकि हम भी रोज सपना देख रहे हे। सपना आप तभी देखते है जब आपके शरीर की इंद्रियाँ शिथिल हो जाती हे। एक गहरे अर्थ में आपका संबंध टूट जाता हे। सपने भी रोज ही दो तरह के देखते है—स्वर्ग और नरक के। या तो मिश्रित होते है। कभी स्वर्ग के कभी नरक के। या कुछ लोग नरक ही देखते है। कुछ लोग स्वर्ग ही देखते है। कभी सोचें कि आपका सपना रात आठ घंटे आपने देखा। अगर उस को आठ साल कर दिया जाये तो आपको कभी भी पता नहीं चलेगा। क्योंकि टाईम का बोध नहीं रह पाता। समय का कोई बोध नहीं रह जाता। उस घड़ी का बोध पिछले जन्म के शरीर और इस जन्म के शरीर के बीच पड़े हुए परिवर्तनों से नापा जात सकता है। पर वह अनुमान है। खुद उसके भीतर समय का कोई बोध नहीं है।
और इसीलिए जैसे क्रिशिचएनिटी ने कहा है कि नरक सदा के लिए है। वह भी ऐसे लोगों की स्मृति के आधार पर है जिन्होंने बड़ा लंबा सपना देखा। इतना लंबा सपना कि जब वे लौटे तो उन्हें पिछले अपने शरीर के और इस शरीर के बीच कोई संबंध स्मरण न रहा। इतना लंबा हो गया। लगा कि वह तो अनंत है, उसमे से निकलना बहुत मुश्किल है।
अच्छी आत्माएं सुखद सपने देखती है, बुरी आत्माएं दुखद सपने देखती हे। सपनों से ही पीडित और दुःखी होती है। तिब्बत में आदमी मरता है तो वे उसको मरते वक्त जो सूत्र देते है वह इसी के लिए है, ड्रीम सीक्वेंस पैदा करने के लिए है। आदमी मर रहा है तो वे उसको कहते है, कि अब तुम यह-यह देखना शुरू कर। सारा का सारा वातावरण तैयार करते है।
अब यह मजे की बात है, लेकिन वैज्ञानिक है—कि सपने बाहर से पैदा करवाए जा सकते है। रात आप सो रहे है। आपके पैर के पार अगर गीला पानी, भीगा हुआ कपड़ा आपके पैर के पास घुमाया जाए तो आप में एक तरह का सपना पैदा होगा। हीटर से थोड़ी पैर में गर्मी दी जाए तो दूसरे तरह का स्वप्न पैदा होगा। अगर ठंडक दी जाये तो आप सपने में देखेंगे की वर्षा हो रही है, और बर्फ गिर रही है। गर्मी अगर दी जाये तो आप देखेंगे की रेगिस्तान की जलती हुई रेत पर आप चल रहे हे। सूरज जल रहा है, आप पसीने-पसीने हो रहे है। आपके बाहर से सपने पैदा किये जा सकते है। और बहुत से सपने आपके बहार से ही पैदा होते है। रात छाती पर हाथ रख गया जोर से तो सपना आता है कि कोई आपकी छाती पर चढ़ा हुआ है। है आपका हाथ ही।
ठीक एक शरीर छोड़ते वक्त, वह जो सपने का लंबा काल आ रहा है—जिसमे आत्मा नये शरीर में शायद जाए, न जाए—जो वक्त बीतेगा बीच में, उसका सीक्वेंस पैदा करवाने की सिर्फ तिब्बत में साधना विकसित की गई। उसको वक बारदो कहते है। वे पूरा इंतजाम करेंगे उसका सपना पैदा करने का। उसमें जो-जो शुभ है, जो-जो वृतियां है, उसने जीवन में कुछ अच्छा किया है, वे उन सब को उभारेगें। और जिंदगी भर भी उनकी व्यवस्था करने की कोशिश करेंगे कि मरते वक्त वे उभारी जा सकें।
जैसा मैंने कहा कि सुबह उठ कर घंटे भर तक आपको सपना याद रहता है। ऐसा ही नये जन्म पर कोई छह महीने तक, छह महीने की उम्र तक करीब-करीब सब याद रहता है। फिर धीरे-धीरे वह खोता चला जाता है। जो बहुत कल्पनाशील है या बहुत संवेदनशील है, वे कुछ थोड़ा ज्यादा रख लेते है। जिन्होंने अगर कोई तरह की जागरूकता के प्रयोग किए है पिछले जन्म में, तो वह बहुत देर तक रख ले सकते है।
जैसे सुबह एक घंटे तक सपना याददाश्त में घूमता रहता है, धुएँ की तरह आपके आस-पास मँडराता रहता है। ऐसे ही रात सोने के घंटे भर पहले भी आपके ऊपर स्वप्न की छाया पड़नी शुरू हो जाती है। ऐसे ही मरने के भी छह महीने पहले आपके ऊपर मौत की छाया पड़नी शुरू हो जाती है। इस लिए छह महीने के भीतर मौत प्रेडिक्टेबल है।
अगले पाठ में ...........क्रमश:
ओशो
मैं कहता हूं आंखन देखी,
प्रवचन—3, संस्करण:1988
swami ji subah subah bagwan ke dersano ke bad unka pervachan per ke acha laga.apka ka din subh ho.danny zirkpur
जवाब देंहटाएंjiwan-mirtu nirantar kram.....
जवाब देंहटाएं