एनेलेक्टस ऑफ कन्फ्यूशियस—ओशो की प्रिय पुस्तकें
कन्फूशियस चीन के प्राचीन और प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक है। जैसा कि सभी प्राचीन पौर्वात्य व्यक्तियों के साथ हुआ है, इतिहास में उसके जन्म और मृत्यु की कोई सुनिश्चत तारीख दर्ज नहीं है। जो भी उपलब्ध है वह केवल अनुमान है। कन्फ्यूशियस का जीवन काल ईसा पूर्व 551-479 बताया जाता है। कुछ इतिहासविद् उससे सहमत है, कुछ नहीं। जो भी हो, उसके जैसे व्यक्तियों के वचन महत्वपूर्ण होते है, उनका इतिहास या भूगोल नहीं। उसके जीवन के संबंध में जो भी आंशिक जानकारी इधर-उधर उपलब्ध है उसे जोड़कर जो चित्र बनता है वह यह कि कन्फ्यूशियस सामान्य परिवार में पैदा हुआ, वह विवाहित था। जीते जी उसकी ख्याति एक विद्वान और सर्वज्ञ ऋषि के रूप में फैल चुकी थी। और वह लगातार उसका खंडन करता था। वह इसका इन्कार करता था कि वह उसके पास कोई विशेष ज्ञान है। उसके मुताबिक उसके पास जो असाधारण बात थी वह थी सत्तत सीखने की प्यास। सुदूर अतीत में जो दिव्य शास्ता थे उनके आगे वह स्वयं को नाकुछ मानता था।
कन्फूशियस चीन के प्राचीन और प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक है। जैसा कि सभी प्राचीन पौर्वात्य व्यक्तियों के साथ हुआ है, इतिहास में उसके जन्म और मृत्यु की कोई सुनिश्चत तारीख दर्ज नहीं है। जो भी उपलब्ध है वह केवल अनुमान है। कन्फ्यूशियस का जीवन काल ईसा पूर्व 551-479 बताया जाता है। कुछ इतिहासविद् उससे सहमत है, कुछ नहीं। जो भी हो, उसके जैसे व्यक्तियों के वचन महत्वपूर्ण होते है, उनका इतिहास या भूगोल नहीं। उसके जीवन के संबंध में जो भी आंशिक जानकारी इधर-उधर उपलब्ध है उसे जोड़कर जो चित्र बनता है वह यह कि कन्फ्यूशियस सामान्य परिवार में पैदा हुआ, वह विवाहित था। जीते जी उसकी ख्याति एक विद्वान और सर्वज्ञ ऋषि के रूप में फैल चुकी थी। और वह लगातार उसका खंडन करता था। वह इसका इन्कार करता था कि वह उसके पास कोई विशेष ज्ञान है। उसके मुताबिक उसके पास जो असाधारण बात थी वह थी सत्तत सीखने की प्यास। सुदूर अतीत में जो दिव्य शास्ता थे उनके आगे वह स्वयं को नाकुछ मानता था।
उसका काम सिर्फ इतना था कि प्राचीनतों के ज्ञान को वह हस्तांतरित करे। पुरातन में उसका विश्वास और निर्भरता अटूट थी।
परंपरा के अनुसार कन्फ्यूशियस के 72 शिष्य थे और एनेलेक्टस में बीस शिष्यों के सूत्र है। एनेलेक्टस चीनी शब्द ‘’लून यू’’ का अनुवाद है। उसका अर्थ है। चुनिंदा वचन। इस किताब के बीस परिच्छेद है और इसकी सामग्री से पता चलता है कि ये कन्फ्यूशियस की मृत्यु के अरसे बाद लिखे गये है। कन्फ्यूशियस के शिष्यों की कई शाखाएं बन गई थी। उसके पट्टी शिष्य मास्टर त्सेंग की मृत्यु हो चुकी थी। इन बीस परिच्छेदों में से सिर्फ तीन से नौ तक परिच्छेद पुराने और कन्फ्यूशियस के मूल रूपेण मालूम होते है। 10 और 20 परिच्छेद का मूल सूत्रों से कोई संबंध नहीं है। दसवां परिच्छेद क्रिया कांडो के नियमों का संकलन है और बीसवें में शु चिंग प्रणाली के वचन है। उन्नीसवें परिच्छेद में सिर्फ शिष्यों के वचन है। 18, 17 और 14 के परिच्छेदों में तो कन्फ्यूशियस के विरोधकों के वचन संग्रहीत है।
मूल किताब का सर्वसंमत समय है ईसा पूर्व चौथी शताब्दी। लेकिन इस किताब में अलग-अलग लोगों के वचनों की जो खिचड़ी पकाई गई है उसे देखते हुए लगता है कि क्या कन्फ्यूशियस के कुछ असली सूत्र हमारे हाथ लगेंगे। इस संबंध में चीनी मुहावरों का चलन समझ लें तो हम रिलैक्स हो जायेंगे। चीन सदा से प्राचीन प्रज्ञा को मानता रहा है। और इसीलिए जो भी सूत्र वहां प्रचलित है वे प्राचीन समय में चले आ रहे है। कोई भी एक व्यक्ति उनका लेखक नहीं है। कन्फ्यूशियस भी खुद को एक माध्यम मानता है, द्रष्टा नहीं।
अब हम उन परिच्छेदों को देखें जो यकीनन कन्फ्यूशियस के माने जाते है। वे है तीन से लेकर नौ तक। इनकी आबोहवा, सोच, अभिव्यक्ति कन्फ्यूशियस दर्शन से मेल खाती है। उनके विषय है—क्रिया कांड, भलाई, शिष्यों का मूल्यांकन, कन्फ्यूशियस का स्वयं के संबंध में वक्तव्य और कुछ शिष्यों की कहानियां। कन्फ्यूशियस के वचन ‘’दि मास्टर सैड’’ इन शब्दों से शुरू होते है। अन्य शिष्यों को भी मास्टर कहा गया है। लेकिन आगे उनका नाम भी आता है।
किताब की एक झलक:
मास्टर ने कहा: उच्च पद पर संकीर्ण दृष्टि के लोग, कोई भी धार्मिक क्रिया बिना आदर के साथ बिना दुःख के निभाई गई मृत्यु शोक की रस्में--इन्हें देख सकता ।
मास्टर ने कहा: भलाई के बगैर आदमी लंबे समय तक विपदा नहीं झेल सकता। और न ही लंबे समय तक संपदा को भोग सकता है।
मास्टर ने कहा: धन और पद हर व्यक्ति को चाहत होती है। लेकिन यदि वे उसके मार्ग में अवरोध बनते है तो उन्हें छोड़ देना चाहिए। गरीबी और अपनी पहचान नहीं होना, इससे हर कोई नफरत करता है। लेकिन यदि वे उसके मार्ग में बाधा नहीं बनते है तो उनका वरण करना चाहिए। जो सज्जन भलाई का दामन छोड़ते हों वे सज्जन कहलाने योग्य नहीं है। सज्जन भलाई की राह से कभी भटकते नहीं है। वे कभी इतने परेशान नहीं होते कि इसके आगे घुटने टेक दें। या कभी इतने बेहाल नहीं होते कि इसके आगे झक जाएं।
मास्टर ने कहा: सुबह को मार्ग के संबंध में सुनो, सांझ संतुष्ट मर जाओ।
मास्टर ने कहा: मेरे मार्ग पर एक ही धागा है जो उसके भीतर से बहता है।
मास्टर चेंग ने कहा, ‘’हां’’
जब मास्टर बाहर चले गये तब शिष्यों ने पूछा इसका क्या मतलब हुआ। मास्टर चेंग ने कहा, ‘’हमारे मास्टर का मार्ग है: वफादारी है, सोच।‘’
मास्टर ने कहा: भले आदमी की मौजूदगी में सतत सोचो कि तुम उसके जैसे कैसे हो सको। बुरे आदमी की मौजूदगी में अपनी आंखें भीतर मोड़ लो।
मास्टर ने कहा: पुराने जमाने में व्यक्ति अपने शब्दों पर नियंत्रण रखता था क्योंकि उसे यह डर होता था कि अगर वह शब्दों को आचरण में न उतार सके तो उसकी कितनी बेइज्जती होगी।
मास्टर ने कहा: सज्जन यह ख्याति चाहता है कि वह बोलने में धीमा है लेकिन काम करने में तेज है।
मास्टर ने कहा: जान युंग भला है लेकिन बोलने में कमजोर है।‘’
मास्टर ने कहा: उसे अच्छा वक्ता होने की जरूरत क्या है?
जो होशियारी के साथ दूसरों को नीचा दिखाते है वे कभी लोकप्रिय नहीं होते। वह भला है या नहीं। यह मैं नहीं जानता लेकिन उसे कुशल वक्ता बनने की कोई जरूरत नहीं है।‘’
मास्टर ने कहा: साइ यू दिन में सोता था। सड़ी हुई लकड़ी का शिल्प नहीं बन सकता। और न ही सूखे गोबर के कंडों से बनी दीवाल पर पलास्टर लग सकता है। में उसे डांट भी दूँ तो क्या फायदा।
मास्टर ने कहा: एक समय था जग मैं लोगों की बातें बड़े गौर से सुनता था और मान लेता था कि वे उनके शब्दों पर अमल करेंगे। और अब ने केवल उनकी बातों को सुनता हूं वरन वे जो कहते है उस पर भी नजर रखता हूं। त्साई यु के साथ मेरा जो तजुर्बा था उसे यह बदलाहट आई है।
मास्टर ने कहा: मुझे जो सिखाया गया था, उसे मैंने यथावत हस्तांतरित किया, उसमें अपनी और सक कुछ भी जोड़ा नहीं। मैं प्राचीनों के प्रति निष्ठावान था और उनसे प्रेम करता था। मैं मौन होकर सुनता रहा और जो कहा गया उसे आत्मसात करता गया। मैं सीखने से कभी थका नहीं और जो सीखा उसे दूसरों को सिखाने से भी निश्चय ही ये गुण है जिनका मैं दावा कर सकता हूं। ये ख्यालात मुझे उद्विग्न करते है कि मैंने अपनी नैतिक शक्ति की और ध्यान नहीं दिया, मेरी शिक्षा को पूरा नहीं किया, कि मैंने ईमानदार लोगों के बारे में सुना लेकिन मैं उनके पास नहीं गया, मैंने दुर्जनों के बारे में सुना लेकिन मैं उन्हें सुधार नहीं सका।
विश्राम के समय मास्टर का मिज़ाज सहज और मुक्त होता था। उनके भाव हमेशा प्रसन्न और सजग होते थे।
ओशो का नज़रिया:
मुझे कन्फ्यूशियस बिलकुल पसंद नहीं है, और उसमें मुझे कोई अपराध भाव महसूस नहीं होता। मुझे बड़ा हल्का लग रहा है यह सोचकर अब यह किताब में दर्ज हो रहा है। कन्फ्यूशियस और लाओत्से समसामयिक थे। लाओत्से उम्र में थोड़ा बड़ा था। कन्फ्यूशियस लाओत्से से मिलने भी गया था। लेकिन कंपते हुए वापस आया। जड़ें हिल गई थीं, पसीना-पसीना हो गया था।
उसके शिष्यों ने पूछा, ‘’क्या हुआ गुफा में? आप दोनों ही थे भीतर, और कोई नहीं था।‘’
‘’वह वास्तव में खतरनाक है।‘’
कन्फ्यूशियस सच कह रहा था। लाओत्से जैसा आदमी तुम्हें मार सकता है। ताकि पुनरुज्जीवित कर सके। और जब तम तुम करने को तैयार नहीं होते तब तक तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं हो सकता है। कन्फ्यूशियस अपने ही पूनर्जन्म से भाग खड़ा हुआ। मैंने लाओत्से को चुन लिया है। सदा के लिए। कन्फ्यूशियस बहुत साधारण, बहुत भौतिक जगत का हिस्सा है। ये बात दर्ज हो कि मैं उसे पसंद नहीं करता। वह पाखंडी है। आश्चर्य है कि वह इंग्लैंड में पैदा नहीं हुआ। लेकिन उन दिनों चीन इंग्लैंड जैसा ही था। उन दिनों इंग्लैंड जंगली था, वहशी था, वहां कुछ भी मूल्यवान नहीं था।
कन्फ्यूशियस राजनैतिक था, धूर्त और चालाक था। लेकिन बहुत बुद्धिमान नहीं था। अन्यथा वह लाओत्से के चरणों में गिर जाता। भागता नहीं। वह सिर्फ लाओत्से से ही डरा नहीं था, वह मौत से भी डर गया था। क्योंकि लाओत्से और मौत एक ही है। लेकिन मैं कन्फ्यूशियस की कोई प्रसिद्ध किताब सम्मिलित करना चाहता था—सिर्फ उसे न्याय देने के लिए ‘’एनेलेक्टस’’ उसकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण किताब है। मेरे लिए वह एक वृक्ष की जड़ों की भांति है। कुरूप लेकिन आवश्यक—जिसे तुम आवश्यक अशुभ कहते हो। एनेलेक्टस एक आवश्यक अशुभ है। उसमे वह संसार और सांसरिक विषयों के संबंध में, राजनीति और तमाम चीजों के संबंध में बात करता है।
एक शिष्य ने पूछा, ‘’मास्टर मौन के बारे में क्या? वह चिढ़ गया, चिल्लाया। चीख कर उसने कहा, खामोश, मौन.... ? मौन का अनुभव तुम कब्र में करोगे। जीवन में उसकी कोई जरूरत नहीं है। बहुत सी महत्वपूर्ण चीजें है करने के लिए।‘’
तुम समझ सकते हो मैं उसे पसंद क्यों नहीं करता। उस पर दया आती है। भला आदमी था लेकिन दुर्भाग्य श्रेष्ठतम व्यक्ति के, लाओत्से के करीब आकर चूक गया। मैं उसके लिए आंसू गिरा सकता हूं
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
( लाओत्से से जब कन्फ्यूशियस मिला और, पहला सवाल यह किया कि धर्म क्या है। तब लाओत्से ने उसे कहा था। जिसे तू धर्म कहता है, वह धर्म के जूते तो है ही नहीं, उन जूतों के निशान भी नहीं है। तब कफ्यूशियस इतना डर गया कि उसे बहार आकर अपने शिष्यों से कहा इस आदमी की परछाई से भी दूर रहना इसके पास कभी मत जाना।)
स्वामी आनंद प्रसाद
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